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Updated: 13 अप्रिल, 2017 03:19 PM
अभिनव राजवंश
अभिनव राजवंश
  @abhinaw.rajwansh
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आम तौर पर उप चुनावों में परिणाम ज्यादातर मामलों में सत्ताधारी दल के पक्ष में ही जाती है. मगर दिल्ली के राजौरी गार्डन के परिणाम कुछ अलग ही कहानी बयान करते दिख रहे हैं. आम आदमी पार्टी जो पिछले दो साल से दिल्ली की सत्ता पर काबिज है, इस उपचुनाव में तीसरे नंबर पर है, जबकि विधानसभा चुनावों में एक भी सीट न पाने वाली कांग्रेस भी आम आदमी पार्टी से 15000 से ज्यादा वोट पाकर दूसरे नंबर पर रही. ऐसे में जब विधानसभा के 70 में से 67 सीट आपकी झोली में हो और आपके कार्यकाल के लगभग 3 साल बाकी हों तो उपचुनाव में हार सरकार की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करती है.

इस उपचुनाव में न केवल आम आदमी पार्टी की हार हुई है बल्कि आम आदमी पार्टी कहीं से इस उपचुनाव में लड़ाई में भी नहीं दिखी.

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आम आदमी पार्टी के वोट प्रतिशत में जबरदस्त गिरावट

अगर 2015 के विधानसभा चुनावों के परिणाम और इन उपचुनावों के नतीजे देखें तो आम आदमी पार्टी के प्रदर्शन में जबरदस्त गिरावट आयी है. 2015 के चुनावों में जहां आम आदमी पार्टी को राजौरी गार्डन में 47 फीसदी वोट मिले थे, तो वहीं बीजेपी अकाली को 38 फीसदी वोट मिले थे. वहीं इस उपचुनाव में आम आदमी पार्टी का वोट प्रतिशत घट कर 13 फीसदी पर आ गया है, जबकि भारतीय जनता पार्टी का मत प्रतिशत बढ़कर 52 फीसदी हो गया है.

क्यों अहम हैं ये नतीजे

हालांकि अगर सीधे तौर पर देखा जाये तो इस उपचुनाव के परिणामों का कोई भी असर केजरीवाल सरकार की सेहत पर नहीं पड़ेगा. मगर दिल्ली में 10 दिन बाद ही निकाय चुनाव होने हैं ऐसे में ये चुनाव परिणाम एमसीडी चुनावों में अपना असर जरूर दिखाएगा. इस परिणाम के बाद जहां भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के कार्यकर्ता का मनोबल काफी बढ़ जायेगा तो वहीं आम आदमी पार्टी के लिए ये नतीजे किसी सदमे से कम नहीं होंगे. विपक्ष इस हार को सरकार के कामकाज पर जनता का असंतोष दिखाने में कोई कोर कसर नहीं रखेगी, ऐसे में आम आदमी पार्टी के इस उपचुनाव में हार का असर निश्चित रूप से एमसीडी चुनावों में भी दिखेगा.

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क्यों हो रहा है जनता का मोहभंग

अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी जब 2015 के विधानसभा चुनावो में जनता के बीच वोट मांगने गई तो जनता को उनमें एक ऐसा नेता दिखा था जो उनके तमाम दुश्वारियों का अंत करने में सक्षम हो, मगर पिछले दो साल के कार्यकाल में केजरीवाल की सरकार ने काम करने से ज्यादा ध्यान समाचारपत्रों की सुर्खियां बटोरने में ही लगाया. केजरीवाल आए दिन कभी देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो कभी दिल्ली के उपराज्यपाल से जंग करते ही आए हैं. इन दो सालों में केजरीवाल ने अपने आप की शख्सियत एक ऐसे नेता के रूप में बना ली जो अपने काम से ज्यादा विवादों में पड़ना बेहतर समझता हो. हालांकि केजरीवाल सरकार ने अपने वादों के अनुसार कुछ एक काम जरूर किये मगर काम से ज्यादा काम का ढिंढोरा पीटना इस सरकार को ज्यादा भाया.

अब हाल के दिनों में जैसे उत्तर प्रदेश में योगी सरकार एक्शन मोड में है, वैसे में लोगों को केजरीवाल का बिना काम किए बड़बोलापन रास न आया. वैसे भी लगता है कि अरविन्द केजरीवाल को इस चुनाव में हार का पूर्वाभास हो गया था तभी तो पंजाब चुनाव में हार के बाद से ही वो बौखलाए हुए नजर आ रहे हैं. बौखलाहट में अपनी खीज वो कभी चुनाव आयोग को धृतराष्ट्र कह कर तो कभी ईवीएम पर सवाल खड़े कर के निकाल रहे थे. पिछले कुछ हफ्तों से केजरीवाल चुनाव आयोग पर खफा थे उससे साफ है केजरीवाल अपनी हार से पहले ही हार का ठीकरा फोड़ने के लिए किसी को चुन लेना चाहते थे और इस बार उन्होंने चुनाव आयोग और ईवीएम को चुन रखा है.

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अभिनव राजवंश अभिनव राजवंश @abhinaw.rajwansh

लेखक आज तक में पत्रकार है.

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