अयोध्या विवाद की मध्यस्थता पैनल पर विवाद 'नादानी' है
सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद सुलझाने के लिए तीन मध्यस्थों के नाम का ऐलान तो कर दिया, लेकिन अब इस पैनल पर ही विवाद होने लगा है. इस पैनल के सदस्यों और उनके रिकॉर्ड को देखें तो ये विवाद नादानी लगता है.
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करीब 70 सालों से चले आ रहे राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद सुलझाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता की ओर कदम बढ़ा दिए हैं. तीन मध्यस्थों का एक पैनल भी नियुक्त किया गया है, जो अगले 8 हफ्तों के अंदर इस मामले पर अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपेगा. इस पैनल में रिटायर्ड जस्टिस एफ एम खलीफुल्लाह और जाने माने धर्मगुरु श्री श्री रविशंकर के अलावा वरिष्ठ वकील और मेडिएशन चेंबर्स के फाउंडर श्री राम पंचू भी शामिल हैं.
अभी तो सिर्फ ये नाम सामने आए हैं, जिसे लेकर मध्यस्थता शुरू होना अभी बाकी है, लेकिन एक विवाद को सुलझाने के लिए बनाया गया ये पैनल खुद ही विवादों में घिरता नजर आ रहा है. इस पैनल में जिन लोगों को रखा है, उनके नाम को लेकर कुछ आपत्तियां सामने आ रही हैं. खासकर श्री श्री रविशंकर प्रसाद को इस पैनल में शामिल किए जाने से कई लोग नाखुश दिख रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद सुलझाने के लिए तीन मध्यस्थों के नाम का ऐलान कर दिया है.
श्री श्री रविशंकर के नाम पर विवाद
श्री श्री रविशंकर के इस पैनल में होने पर सबसे पहला सवाल उठा रहे हैं मुस्लिम पॉलिटिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के प्रेसिडेंट तस्लीम अहमद रहमानी. अयोध्या मामले में मध्यस्थता कराने और उसके लिए सीमित समय देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का रहमानी स्वागत तो करते हैं, लेकिन कहते हैं कि श्री श्री रविशंकर को इसमें शामिल करना सही नहीं है. वह कहते हैं कि रविशंकर आरएसएस और वीएचपी की बैठकों में शामिल होते रहे हैं और उनकी बातों की वकालत भी करते हैं, जिनमें मस्जिद कहीं बाहर बनाने वाले सुझाव भी शामिल हैं. वह तो सीधे-सीधे ये तक कह रहे हैं कि श्री श्री रविशंकर इस पैनल में एक पार्टी की तरह हैं. ऐसे में उनके सुझाव पर अधिकतर लोगों को संदेह रहेगा. रहमानी सोच रहे थे कि इस पैनल में सिर्फ लीगल लोग ही रहेंगे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने श्री श्री रविशंकर को भी शामिल कर लिया. वह कहते हैं कि या तो उन्हें नहीं रखना चाहिए था और अगर उन्हें रखा ही है तो मुस्लिम कम्युनिटी से भी किसी को इस पैनल में शामिल करना चाहिए था, वरना मध्यस्थता का सुझाव संतुलित नहीं रहेगा.
रहमानी अकेले नहीं हैं, जिन्हें रविशंकर के पैनल में होने से आपत्ति है. असदुद्दीन ओवैसी भी इस पर सवाल उठा रहे हैं. वह कह रहे हैं कि 2018 में उन्होंने कहा था कि अगर राम जन्मभूमि का जल्द हल नहीं हुआ तो भारत सीरिया बन जाएगा. जब वह तटस्थ नहीं हैं तो मध्यस्थ कैसे हो सकते हैं. हालांकि, उन्होंने ये भी कहा कि इस बार ये जिम्मेदारी अदालत ने उन्हें सौंपी है तो वह तटस्थ और मध्यस्थ रहकर मध्यस्थ की जिम्मेदारी निभाएंगे.
इनके अलावा निर्मोही अखाड़े के महंत सीताराम दास भी श्री श्री रविशंकर से खुश नहीं दिख रहे हैं. वह कहते हैं कि उन्हें रविशंकर से थोड़ी आपत्ति हैं. हालांकि, वह ये भी बोले कि अगर श्री श्री रविशंकर सवैंधानिक तरीके से मध्यस्थता करते हैं तब तो ठीक है, क्योंकि हम हमेशा से संवैधानिक तरीके से इस विवाद का हल ढूंढ़ने की कोशिश करते रहे हैं.
कौन हैं इस मामले के मध्यस्थ?
आइए एक नजर डालते हैं इस मामले के तीनों मध्यस्थों पर.
जस्टिस एफ एम खलीफुल्लाह की अध्यक्षता में ही तीन लोगों का पैनल अयोध्या मामले की मध्यस्थता करेगा. सबसे पहले खलीफुल्लाह मद्रास हाईकोर्ट में 2000 में जज बने थे और 2 अप्रैल 2012 को वह सुप्रीम कोर्ट के जज बने. 22 जुलाई 2016 को ही वह रिटायर हुए हैं और अब सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें देश के सबसे बड़े विवादित मुद्दे का हल निकालने की जिम्मेदारी दे दी है.
इस पैनल में रिटायर्ड जस्टिस एफ एम खलीफुल्लाह, श्री श्री रविशंकर और श्री राम पंचू शामिल हैं.
श्री श्री रविशंकर जाने माने आध्यात्मिक गुरु और आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक हैं. उन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित भी किया जा चुका है. यहां ये जानना अहम है कि वज निजी तौर पर पहले भी इस मामले में मध्यस्थता की कोशिश कर चुके हैं. अयोध्या विवाद से पहले वे लैटिन अमेरिकी देश कोलंबिया में 50 साल से जारी सशस्त्र संघर्ष को खत्म कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं. कोलंबिया के विद्रोही संगठन FARC (रिवॉल्यूशनरी आर्म्ड फोर्सेस ऑफ कोलंबिया) और कोलंबिया की सरकार के बीच उन्होंने मध्यस्थ की भूमिका निभाई और दोनों पक्षों को शांति बहाली के लिए राजी किया. श्री श्री रविशंकर की बात मानकर पहले विद्रोही संगठनों ने एकतरफा सीज फायर किया, और कुछ दिन बाद सरकार ने भी सीज फायर का एलान कर दिया. इस प्रयास के लिए श्री श्री रविशंकर को कई शांति पुरस्कारों से भी नवाजा गया है. हालांकि, उन्होंने 2014 में इराक में शांति बहाली के लिए ISIS को भी बातचीत की पेश की थी और उनसे हथियार डालने की अपील की थी, लेकिन जवाब में उन्हें जान से मारने की धमकी मिली.
श्री राम पंचू एक ट्रेंड मध्यस्थ हैं, जिन्हें दो पार्टियों के बीच समझौता कराने को लेकर बहुत ही कठिन ट्रेनिंग मिली हुई है. वह एक वरीष्ठ वकील होने के साथ-साथ मेडिएशन चेंबर्स के फाउंडर भी हैं. देश के कई मामलों में वह मध्यस्थता कर चुके हैं. कॉरपोरेट मामलों में मध्यस्थता का उनका अनुभव काफी अधिक है. हालांकि, इस तरह के मामले में उनका अनुभव कितना काम आता है, ये देखना दिलचस्प होगा.
ये भी समझना जरूरी है!
इस पैनल पर विवाद तो हो रहा है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के वकील सुमित चंदेर ने जो बातें कही हैं वह साफ करती हैं कि कोई विवाद नहीं होना चाहिए. उन्होंने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने बहुत ही शानदार पैनल चुना है. यहां ये बात ध्यान देने की है कि ये पैनल मीडिएटर्स का है, जो इस विवाद को सुलझाने के तरीकों की रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपेंगे. पैनल के लोग समाज से मिले विचारों को देखेंगे और ये तय करेंगे कि इस मामले के मुमकिन समाधान क्या हो सकते हैं. पैनल के लोग सिर्फ सुझाव देंगे, आखिरी फैसला सुप्रीम कोर्ट ही करेगा. ऐसे में भले ही ये पैनल किसी तर्कसंगत सुझाव तक पहुंच सके या नहीं, मीडिएटर्स के पैनल से किसी भी पक्ष को कोई नुकसान नहीं होगा.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाए गए इस पैनल को 8 हफ्तों का समय दिया गया है. यानी अगर मान लें कि कल से ही ये पैनल अपनी कार्रवाई शुरू कर दे तो इसकी तारीख मई तक पहुंच जाएगी. वहीं दूसरी ओर, 26 मई को नई सरकार को शपथ लेनी है. यानी ये तो साफ है कि इस बार के लोकसभा चुनाव से पहले अयोध्या मामले पर कोई फैसला नहीं आ पाएगा. 1949 में पहली बार ये विवाद कोर्ट की चौखट तक पहुंचा था और अब करीब 70 सालों बाद भी इसका कोई फैसला नहीं हो सकता है. ये देखना दिलचस्प होगा कि जिस मामले पर दोनों ही पक्ष किसी भी तरह का समझौता नहीं करने पर अड़े रहते हैं, सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाया गया पैनल उस अयोध्या विवाद का क्या हल निकालता है.
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