New

होम -> सियासत

 |  6-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 19 अक्टूबर, 2019 03:31 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
  • Total Shares

राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो चुकी है. बरसों से अदालत में लटके इस मामले पर कोर्ट जल्द ही अपना फैसला सुनाने वाली है. पूरे राममंदिर बाबरी मस्जिद विवाद पर यदि गौर करा जाए तो तमाम ऐसी बातें हैं जो बेहद दिलचस्प हैं. मामले पर मुसलामानों का एक वर्ग ऐसा भी है जिसका मानना है कि हालात बदलने चाहिए. इस वर्ग का मानना है कि अब वो समय आ गया है जब देश के मुसलमानों को सौहार्द का परिचय देते हुए अयोध्या मसले पर नर्म रुख अख्तियार कर लेना चाहिए. वहीं दूसरी तरफ एक वर्ग वो भी है जो पूरी मजबूती के साथ अपने मुद्दे पर खड़ा है. मुसलमानों का ये वर्ग इस बात का समर्थन करता है कि अगर मुस्लमान आज अपने हक के लिए नहीं खड़े हुए तो फिर आने वाले वक़्त में ऐसे ही उनके अन्य अधिकारों का हनन किया जाएगा. राममंदिर को लेकर भले ही कुछ वक़्त में फैसला आने वाला हो मगर ये कहना हमारे लिए अतिश्योक्ति नहीं है कि बाबरी मस्जिद को लेकर खुद मुसलमानों के बीच विचार, 3 अलग अलग राहों के बीच बिखर गए हैं.

बाबरी मस्जिद, राम मंदिर, हिंदू, मुस्लिम, अयोध्या  अयोध्या मामले के मद्देनजर मुस्लिम समुदायों में बंटवारे का होना एक अलग ही कहानी बयां कर रहा है

एक बाबरी मस्जिद दोगे, हजार और देना पड़ेंगी

मुसलमानों के बीच इस विचार को भेजने के जिम्मेदार वो नेता है जो राम मंदिर- बाबरी मस्जिद विवाद को एक बड़ा मुद्दा बनाकर अपनी राजनितिक रोटियां सेंक रहे हैं. ऐसे नेता राम मंदिर बाबरी मस्जिद मुद्दे को किसी हथियार की तरह ले रहे हैं और उससे किसी और पर नहीं बल्कि अपनी ही कौम पर वार कर रहे हैं. यदि इस बात को समझना हो तो हम हैदराबाद से AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी को बतौर उदहारण ले सकते हैं. ओवैसी किस टाइप के नेता है और उग्र और ज्वलनशील भाषण देने में उन्हें कैसी महारत है ये किसी से छुपी नहीं है. बात अगर ओवैसी के उस भाषण की हो जो बाबरी मस्जिद के संबंध उन्होंने अभी हाल में दिया है तो उसमें उन्होंने जम पर राजनीति की है और कांग्रेस, भाजपा और समाजवादी पार्टी को घेरा है.

ओवैसी बस एक उदाहरण हैं तमाम मुस्लिम नेता हैं जो देश के मुसलमानों के सामने राम मंदिर बाबरी मस्जिद विवाद को एक बड़े मुद्दे की तरह दर्शा रहे हैं. ऐसे मौकापरस्त नेताओं का मामले को लेकर यही कहना है कि अगर देश का मुस्लमान आज एक मस्जिद के लिए समझौता कर लेगा तो आने वाले वक़्त में उसे कई हजार मस्जिदों की कुर्बानी देनी होगी. हो सकता है ये बातें विचलित कर दें मगर वो अरुण शौरी की उस किताब Hindu Temples – What Happened to Them जो 1991 में छपी थी से भी समझ सकते हैं. अपनी इस किताब में अरुण शौरी ने इस बात का जिक्र किया था कि देश में 2000 के आसपास ऐसी मस्जिदें हैं जो कभी मंदिर थीं. दिलचस्प बात ये है कि इस मसले पर शौरी ने पूरी रिसर्च की थी और आंकड़ें पेश किये थे कि ये मस्जिदें कहां कहां स्थित हैं.

उपरोक्त बातों को देखते हुए कहा यही जा सकता है कि मुसलमानों का वो वर्ग जो बाबरी मस्जिद को ढाल बनाकर राजनीती कर रहा है वो ये जानता है कि यदि उसका उठाया ये मुद्दा देश के मुसलमानों को समझ में आ गया तो फिर उसके अच्छे दिन आने से कोई नहीं रोक सकता.

बाबरी मस्जिद, राम मंदिर, हिंदू, मुस्लिम, अयोध्या  अयोध्या में भव्य राममंदिर के निर्माण को लेकर तैयारी तेज हो गई है

एक मस्जिद के लिए दो समुदायों के बीच नफरत बेकार है

जैसा कि हम बता चुके हैं अभी फैसला आया नहीं है मगर देश के मुसलामानों ने राम मंदिर-बाबरी मस्जिद पर अपने विचारों को अपनी सुचिता के अनुसार बांट लिया है. मामले पर एक वर्ग वो भी सामने आया है जिसका मानना है कि जिस तरह का माहौल इस वक़्त देश में तैयार हुआ है.

यही वो समय है जब देश के मुसलमानों को सौहार्द और आपसी भाईचारे का परिचय देते हुए मामले पर नर्म रुख अख्तियार कर लेना चाहिए और पीछे हट जाना चाहिए. ऐसे लोगों का मानना है कि यदि एक मस्जिद के कारण दो समुदायों का बरसों का एका प्रभावित हो रहा है तो ये वाकई एक शर्मनाक बात है.

ध्यान रहे कि बरसों से इस देश में अलग अलग समुदाय साथ रहते आ रहे हैं और मुसलमानों का ये वर्ग जो मस्जिद के लिए समझौता करने को तौयार है मनाता है कि यदि शांति से बैठकर इस समस्या का निवारण नहीं किया गया तो आने वाले वक़्त में हालात बद से बदतर हो जाएंगे.

बाबरी मस्जिद हमारी संपत्ति है, इससे ज्‍यादा कुछ नहीं

इस पक्ष को राममंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद का सबसे अहम् पक्ष माना जा सकता है और किसी भी सूरत में इसे खारिज नहीं किया जा सकता. इस पक्ष के अंदर जिस विचार के लोग हैं यदि उनका अवलोकन किया जाए तो मिलता है कि इस मुद्दे के पीछे इनका कोई स्वार्थ नहीं है और ये लोग इस पूरे मुद्दे को केवल और केवल दीवानी का मामला मान रहे हैं.

चाहे निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान हों या सुन्नी वक्फ बोर्ड तीनों ही मुख्य पक्ष अदालत में संपत्ति के मालिकाना हक़ की लड़ाई लड़ रहे हैं. इन तीनों ही पक्षों का विचार है कि फैसला आए और जिसके भी पक्ष में आए वो संपत्ति को अपने हिसाब से चलाए.

बहरहाल बात हमने मुसलमानों के सन्दर्भ में कही है मगर ये देश के हिंदुओं के लिए भी उतनी ही फिट है जितनी मुसलमानों के लिए है. यानी जिस तरह राम मंदिर- बाबरी मस्जिद पर मुसलामानों ने अपने को तीन धड़ों में बांटा है ठीक वैसे ही हिंदू भी तीन विचारों में न बंटे हैं और ठीक वैसा ही सोच रहे हैं जैसे मुसलमान.

ये भी पढ़ें -

तीन सनसनी जो बता रही हैं कि रामलला आएंगे नहीं, आ रहे हैं!

अयोध्या विवाद: भगवान राम और बाबर को लेकर पूछे गए 10 दिलचस्‍प सवाल

राम मंदिर को लेकर माया के मोह में 'निर्मोही'!

        

लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय