New

होम -> सियासत

 |  5-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 11 मई, 2022 07:51 PM
नवेद शिकोह
नवेद शिकोह
  @naved.shikoh
  • Total Shares

समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेता आज़म ख़ान अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के गले की हड्डी बनते जा रहे हैं. वो जेल में हैं तो भी मुसीबत और रिहा हुए तो सपा अध्यक्ष के लिए सबसे बड़ी मुसीबत बनकर उनके सर्वोच्च पार्टी पद के सामने चुनौती खड़ी कर सकते हैं. कहा जा रहा है कि ऐसे जिस दबाव की अंगीठी में अखिलेश तप रहे हैं उस अंगीठी में कोयले डालने वाले उनके चाचा शिवपाल यादव ही नहीं कांग्रेस भी है. जबकि भाजपा बड़ी ख़ामोशी से इस अंगीठी को हवा दे रही है. क्योंकि अखिलेश के कमज़ोर होने से सबका फायदा है, शिवपाल का भी आज़म का भी कांग्रेस और भाजपा का भी. भविष्य में आज़म ख़ान ज़मानत पर रिहा हुए तो उनका क्या रुख होगा, ये रुख़ यूपी की सियासत की बड़ी सुर्खियों को जन्म देगा. वो प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष शिवपाल यादव को ज्यादा तवज्जो देंगे या सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ दिखेंगे? भविष्य के गर्भ की कोख में क्या है, किसी को नहीं पता पर जिज्ञासाओं ने तमाम संभावनाओं को जन्म दे दिया है.

Azam Khan, Samajwadi Party, Akhilesh Yadav, Shivpal Yadav, Mulayam Singh Yadav, UP, Jailमाना जा रहा है कि अगर कोई निकट भविष्य में अखिलेश यादव को चुनौती देगा तो वो जेल में बंद आजम खान ही होंगे

आज़म खान समाजवादी पार्टी में वैसे ही रहेंगे जैसे थे, या उनको सपा-ए-आज़म बनाने का दबाव अखिलेश यादव को झेलना पड़ेगा? या फिर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी में उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद देने का प्रस्ताव रखकर शिवपाल यादव एक नया सियासी दांव खेलेंगे? कयास, संभावनाएं, अटकलें और अनुमान बहुत सारे हैं. ये सच है कि यदि जल्द ही आज़म ख़ान जेल से रिहा हो गए तो सपा के अंदर और बाहर की सियासी ताक़ते, सपा के कुछ विधायक, सांसद, पदाधिकारी, कार्यकर्ता और अधिकांश वोटर अखिलेश यादव को दबाव के बड़े चक्रव्यू में घेर सकते हैं.

भले ही आज़म का मुसलमानों में बड़ा जनाधार न हो पर वो पार्टी का सबसे बड़ा मुस्लिम चेहरा हैं इस बात को नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता है. लम्बे समय तक जेल की सख्तियां झेलने के बाद उनसे मुसलमानों की हमदर्दी बेतहाशा बढ़ गई है. सपा को यूपी के हालिया विधानसभा चुनाव 2022 में कुल जितने वोट मिले उसमें सार्वाधिक करीब 60 से 70 फीसद वोट मुस्लिम समाज के थे. इसलिए सपा के वोटरों, समर्थकों, कार्यकर्ताओं का ये दबाव लाज़मी हो जाता है कि कि सबसे बड़े मुस्लिम चेहरे आज़म ख़ान को सपा-ए-आज़म बनाया जाया.

जितनी जिसकी संख्या भारी उतनी उसकी हिस्सेदारी मिले, यानी सबसे ज्यादा मुस्लिम वोट हासिल करने वाली पार्टी में सबसे बड़े मुस्लिम चेहरे को सबसे बड़ा पद मिले. यदि ये कयास सच के धरातल पर उतरे तो अखिलेश यादव ऐसी किसी मांग को स्वीकार करें ये बात मुश्किल ही नहीं नामुम्किन होगी. इसी बीच अपने भतीजे से नाराज़ चाचा शिवपाल अपनी प्रसपा की कमान आज़म को देने का प्रस्ताव रख दें तो समाजवादियों में चल रही रही खेमाबाजी के रंग और ही गहरे हो सकते हैं.

ऐसे में एम वाई के फार्मूले के साथ प्रसपा आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने का इशारा भी कर दें तो एक झटके में मुस्लिम और यादव वोटों के बंटवारे और सपा के कमजोर होने के आसार प्रबल हो सकते हैं. और ये भाजपा के लिए बेहद मुफीद (फायदेमंद) होगा. सपा के कुछ मुस्लिम विधायकों, सांसदों, पदाधिकारियों, आजम के रवैयों, शिवपाल-अखिलेश की खींचातानी और कांग्रेस के इरादों को देखकर लगाए जा रहे ये सारे कयास किस करवट बैठेंगे ये आज़म खान का फैसला तय करेगा.

और ऐसा कोई फैसला वो तब ही लेंगे जब वो जेल से रिहा हो सकेंगे. लेकिन अभी तो आज़म की उपेक्षा का आरोप झेल रहे अखिलेश के लिए आने वाला वक्त और भी मुश्किल मालुम पड़ रहा है. अल्पसंख्यक वर्ग का एकतरफा वोट पाने वाली सपा यदि आज़म मसले पर अपना सबसे बड़ा वोट बैंक नहीं संभाल सकी तो लोकसभा चुनाव तक ये पार्टी 32 से 15-20 फीसद वोट में सिमट सकती है. आजम मामले में मुसलमानों की नाराजगी को खत्म करना समाजवादी पार्टी के लिए बड़ी चुनौती है.

कभी किंग मेकर कहे जाने वाला मुसलमान पिछले आठ-दस वर्षों से राजनीतिक हिस्सेदारी में हाशिए पर आता जा रहा है. इस बीच अब ये समाज असफलता की आग में तप कर एकजुटता के शऊर का कुंदन बनता दिख रहा है‌. पश्चिम बंगाल और यूपी के विधानसभा चुनावों में बिना बंटे या बिखरे मुस्लिम समाज ने एकजुट होगा भाजपा से मुकाबला करने वाले दल को एकतरफा वोट देकर अपनी राजनीतिक परिपक्वता का सुबूत दिया.

यदि ऐसा ही रहा तो अल्पसंख्यक वर्ग या तो कोई मजबूत विकल्प न होने के कारण नाराज़ रहकर भी सपा का दामन थामे रहेगा या फिर आगामी लोकसभा चुनाव तक बल्क में (पूरे तरीके से) सपा का साथ छोड़कर कांग्रेस का हाथ थाम लेगा. संभावना ये भी है कि अखिलेश, शिवपाल, आज़म की गुत्थमगुत्था और कमजोर कांग्रेस-बसपा व एआईएमआईएम के बीच खड़े मुसलमानों की एकजुटता और एकतरफा वोटिंग का तिलिस्म टूट जाए. और मुस्लिम वोट बैंक का बिखराव आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए बेहद मुफीद (लाभकारी) साबित हो.

ये भी पढ़ें -

मोदी विरोधियों का NRI-विरोध अपने पैर में कुल्हाड़ी मारने जैसा

Smriti Irani को चुनाव नहीं लड़ना, तो राहुल के वायनाड में क्या काम है?

मैंगलोर में मुसलमानों के 'बजरंग दल' का निशाने बनीं बुर्का न पहनने वाली लड़कियां

लेखक

नवेद शिकोह नवेद शिकोह @naved.shikoh

लेखक पत्रकार हैं

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय