औरत व दलित-विरोध का दूसरा नाम आजम खान
बेहतर तो यह होता कि इस प्रकार के नारी समाज को अपमानित करने वाले शर्मनाक बयान के लिए उन्हें इस चुनाव से बाहर कर दिया जाता. उनके घटिया शब्दकोश से निकले हुए स्तरहीन शब्द सम्पूर्ण महिला जगत का घोर अपमान हैं.
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जिस बात को लेकर मन में भय था वह लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान दिखाई देने लगी है. अभी तो चुनाव प्रचार को काफी समय तक चलना है, पर देख लीजिए कि रामपुर से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार आजम खान ने अपनी मुख्य प्रतिद्वंदी भाजपा की उम्मीदवार जयप्रदा के खिलाफ कितनी ओछी और अश्लील टिप्पणी कर डाली है. आजम खान की टिप्पणी को यहां पर बताना नारी शक्ति का घोर अनादर होगा. इसलिए उसे यहां पर दोहराने का सवाल ही नहीं होता है. जब वो जयप्रदा के खिलाफ बदबूदार बयानबाजी कर रहे थे तब मंच पर अखिलेश यादव समेत पार्टी के तमाम बड़े नेता तालियां बजा रहे थे. आजम खान जैसे धूर्त, बेग़ैरत इंसान के खिलाफ चुनाव आयोग ने तुरंत कठोर कार्रवाई कर भी दी है. उन्हें तीन दिन तक घर बैठने का आदेश हुआ है. इसी प्रकार, एक भड़काऊ बयान के लिए मुख्मंत्री योगी, पूर्व मुख्यमंत्री बहन मायावती और केन्द्रीय मंत्री मानेका गांधी को भी क्रमशः तीन और दो-दो दिन चुनाव प्रचार से रोका गया है.
लेकिन, बेहतर तो यह होता कि इस प्रकार के नारी समाज को अपमानित करने वाले शर्मनाक बयान के लिए उन्हें इस चुनाव से बाहर कर दिया जाता. उनके घटिया शब्दकोश से निकले हुए स्तरहीन शब्द सम्पूर्ण महिला जगत का घोर अपमान हैं. जयाप्रदा तो बस बहाना मात्र है. आखिर क्यों अब समाजवादी पार्टी की वरिष्ठ नेत्री जया बच्चन आजम खान के खिलाफ तुरंत एक्शन लेने की मांग नहीं कर रही हैं? क्या उन्हें लगता है कि आजम खान का बयान सामान्य है?
आजम खान अपने विवादित बयानों को लेकर हमेशा सुर्खियों में बने रहते हैं
आजम खान औरतों का अपमान करने में पहले से ही 'उस्ताद' रहे हैं. आजम खान ने समाजवादी पार्टी की सरकार के दौर में बुलंदशहर में मां-बेटी के साथ हुए सामूहिक बलात्कार पर भी अपनी गंदी राजनीति की गोबर डालने की कोशिश की थी. याद कर लीजिए कि ये वही आजम खान हैं जिन्होंने करीब ढाई दशक पहले लखनऊ के एक सरकारी गेस्टहाउस में उन्हें आवंटित एक कमरे के दरवाजे में छेद को लेकर भारी हंगामा किया था. तब आजम खान ने दरवाजे के एक छेद को अपने घर की औरतों की इज्जत आबरू से जोड़ा था. उन्होंने तब उस गेस्टहाउस के प्रबंध अधिकारी से इसी तर्क के साथ बेहद घटिया सलूक किया था. तब आजम खान हद से आगे बढ़े थे और अधिकारी से अपमानजनक बात कही तो उस अधिकारी ने उन्हें उन्हीं की भाषा में उत्तर दिया था. जाहिर है, उस अधिकारी के बदले तेवर ने उनकी बोलती बंद कर दी थी.
दरअसल अपनी भैंस को एक आम हिंदुस्तानी औरत से ज्यादा "सम्मान" देने वाले आजम खान तहजीब से बहुत दूर रहते हैं. इन्होंने जयाप्रदा के लिये "रक्कासा" शब्द का इस्तेमाल किया था. दरअसल महिलाओं का सम्मान करना उन्हें सिखाया ही नहीं गया है. मुस्लिम वोट के लिये पहले मुलायम सिंह यादव और अब अखिलेश यादव उन्हें सर पर बैठाये हैं.
दरअसल अगर आप आजम खान की राजनीति पर पर गहरी नजर रखें तो आप देखेंगे कि वे घोर महिला और दलित विरोधी हैं. उन्होंने 2015 में रामपुर के दलितों की आंखों से आंसू निकलवा दिए थे. उस वक्त आजम खान एक शॉपिंग माल में कार पार्किंग बनवाने के लिए एक दलित बस्ती को खुलेआम उजाड़ रहे थे.
दरअसल वे तब रामपुर के तोपखाना क्षेत्र में अपना एक विशाल मॉल बनवा रहे थे. पर मॉल की पार्किंग नहीं बनी थी. तब आजम खान को पार्किंग बनाने के लिए मॉल के निकट एक दशकों पुरानी वाल्मीकि बस्ती दिखाई दे गयी. सो आज़म खान ने उस दलित बस्ती के 50 मकानों को तोड़ने का फरमान नगर पालिका को सुना दिया. फरमान चूंकि रामपुर के मुख्यमंत्री समझे जाने वाले आज़म खान का था, इसलिए नगर पालिका और रामपुर का पूरा प्रशासन उस गरीब दलित बस्ती को तोड़ने के लिए दलबल के साथ लग गया. यह तो आजम खान के दलित विरोध का एक छोटा सा उदाहरण था.
आप देखेंगे कि आजम खान को विवादों में रहना बेहद पसंद है. उन्होंने कुछेक साल पहले करगिल जंग में मुसलमान सैनिकों की भूमिका को लेकर भी एक शर्मनाक टिप्पणी कर दी थी. यह कहकर उन्होंने एक तरह से शहीद अब्दुल हमीद और शहीद मोहम्मद हनीफुद्धीन जैसे भारतीय सेना के उन शूरवीरों का अपमान किया जिन्होंने मातृभूमि के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया था. शहीद अब्दुल हमीद को 1965 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में असाधारण बहादुरी के लिए महावीर चक्र और परमवीर चक्र से नवाजा गया था. इसी तरह से करगिल जंग की कहानी हनीफ मोहम्मद का उल्लेख किए बिना अधूरी ही रहेगी. कारगिल युद्ध में उसकी दिलेरी की दास्तां आज भी देशवासियों की जुबान पर है.
आजम खान को विवादों में रहना बेहद पसंद है
अब अक्ल से पैदल आजम खान को कौन बताए कि भारतीय सेना धर्म या जाति के आधार पर विभाजित नहीं है. अफसोस कि उनके जैसे बीमार मानसिकता के लोगों को हर बात में साम्प्रदयिकता ही फैलानी होती है. क्या उन्होंने भारत के 1950 में आयोजित पहले गणतंत्र दिवस समारोह में पहली फ्लाई पास्ट का नेतृत्व करने वाले स्क्वॉड्रन लीडर इदरीस हसन लतीफ के बारे में सुना है? वे तब हॉक्स टैम्पेस्ट लड़ाकू विमान उड़ा रहे थे. तब लड़ाकू विमानों ने वायुसेना के अंबाला स्टेशन से उड़ान भरी थी. लतीफ आगे चलकर भारतीय वायुसेना के प्रमुख भी रहे. उनके नाम पर दिल्ली कैंट क्षेत्र में एक रोड भी है. वे 18 साल की उम्र में 1941 में रॉयल इंडियन एयर फोर्स में शामिल हुए थे. उन्होंने 1962, 1965 और 1971 की जंगों में दुश्नम की कमर तोड़ कर रख दी थी. उन्हें वर्ष 1981 में रिटायर होने के बाद महाराष्ट्र का राज्यपाल और फ्रांस में भारत का राजदूत नियुक्त किया गया था. अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व उप कुलपति जमीरुद्दीन शाह ने दशकों भारतीय सेना की सेवा की. जमीरुद्दीन शाह सेना में जनरल रहे हैं. आजम खान को यह मालूम नहीं कि सेना के सभी केन्द्रों में मंदिर, मस्जिद, चर्च वगैरह भी अनिवार्य रूप से होते हैं. सेना में सभी मजहबों का आदर होता है. उन्होंने सेना को धर्म के आधार पर बांटने की चेष्टा करके बेहद खतरनाक खेला था.
आजम खान जैसे नेता समाज और देश को धर्म और जाति के नाम पर तार-तार कर रहे हैं. ये देश को दीमक की तरह खा रहे हैं. इन्हें लोकसभा या विधानसभा में पहुंचने का कोई अधिकार ही नहीं है. चुनाव आयोग को ऐसे घटिया बयानबाजी करने वाले सांप्रदायिक नेता को चुनाव से पूरी तरह बाहर कर देना चाहिए.
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