मायावती के गेस्ट हाउस कांड की तरह है जयाप्रदा का रामपुर-कांड
यूपी के रामपुर संसदीय क्षेत्र में आजम खान और जया प्रदा के बीच 10 साल पुरानी अदावत ने सबसे घिनौना रूप लिया. आजम खान के शर्मनाक बयान ने मायावती के गेस्टहाउस कांड की याद दिला दी.
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यूपी के रामपुर संसदीय क्षेत्र में आजम खान और जया प्रदा के बीच 10 साल पुरानी अदावत ने सबसे घिनौना रूप लिया. आजम खान ने जया प्रदा के लिए बेहद आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया. अपनी हेट स्पीच में आजम खान ने इस बात का भी ख्याल नहीं रखा कि वो एक महिला के लिए ये सब कह रहे थे.
आजम ने कहा कि 'क्या राजनीति इतनी गिर जाएगी कि 10 साल जिसने रामपुर वालों का खून पिया, जिसे उंगली पकड़कर हम रामपुर में लेकर आए, उसने हमारे ऊपर क्या-क्या इल्जाम नहीं लगाए. क्या आप उसे वोट देंगे?' आजम ने आगे कहा कि आपने 10 साल जिनसे अपना प्रतिनिधित्व कराया, उसकी असलियत समझने में आपको 17 साल लगे, मैं 17 दिन में पहचान गया कि इनके नीचे का अंडरविअर खाकी रंग का है.'
#WATCH Azam Khan says in Rampur(in apparent reference to jaya prada), "Jisko hum ungli pakadkar Rampur laaye, aapne 10 saal jinse apna pratinidhitva karaya...Uski asliyat samajhne mein aapko 17 baras lage,main 17 din mein pehchan gaya ki inke niche ka underwear khaki rang ka hai" pic.twitter.com/JwIlcth4uQ
— ANI UP (@ANINewsUP) April 14, 2019
इस बेहद शर्मनाक बयान के बाद आजम खान अब हर किसी के निशाने पर हैं. आजम खान के खिलाफ रामपुर के शाहबाद थाने में FIR दर्ज कराई गई है. वहीं, राष्ट्रीय महिला आयोग की तरफ से नोटिस भी भेज दिया गया है. ट्विटर पर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का भी गुस्सा फूटा. उन्होंने सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव को ट्वीट करते हुए कहा कि रामपुर में द्रौपदी का चीर हरण हो रहा है, मुलायम सिंह यादव भीष्म पितामह की तरह मौन साधने की गलती ना करें.
आजम के बयान की निंदा कांग्रेस ने भी की है. पार्टी प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने ट्वीट कर कहा, ‘जया प्रदा पर आजम खां की टिप्पणी का स्तर भद्दा और तुच्छ है. ऐसे बयान एक जीवंत लोकतंत्र के लिए अपमानजनक हैं. आशा करता हूं कि चुनाव आयोग और अखिलेश यादव इसका संज्ञान लेंगे तथा कार्रवाई सुनिश्चित करेंगे. निश्चित तौर पर आज़म खां का बयान निंदनीय है. राजनीति में उन लोगों के लिए कोई जगह नहीं है जो विरोधियों की आलोचना करते हुए मर्यादित विमर्श बरकरार नहीं रख सकते.'
न शर्म, न पछतावा
आजम खान ने कहा कि उन्होंने अपने बयान में किसी का नाम नहीं लिया है. उन्होंने कहा कि अगर मैं दोषी साबित हो जाता हूं तो मैं लोकसभा चुनाव 2019 की उम्मीदवारी से अपना नाम वापस ले लूंगा और चुनाव नहीं लड़ूंगा. यानी आजम खान को न अपने किए पर कोई पछतावा है और न शर्म. उन्होंने नाम नहीं लिया लेकिन हर किसी को बता भी दिया कि वो ये सब किसके लिए कह रहे थे. और हैरानी की बात तो ये है कि ये बयानबाजी जब हो रही थी तो अखिलेश यादव सभा में मौजूद थे.
जया प्रदा अखिलेश यादव से आजम खान को पार्टी से निष्कासित करने की मांग कर रही हैं. उनका कहना है कि- 'आजम खान को चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. क्योंकि अगर यह आदमी जीत गया, तो लोकतंत्र का क्या होगा? समाज में महिलाओं के लिए कोई जगह नहीं होगी. हम कहां जाएंगे? क्या मुझे मर जाना चाहिए, तब आप संतुष्ट होंगे? आप सोचते हैं कि मैं डर जाऊंगी और रामपुर छोड़ दूंगी? लेकिन मैं नहीं छोड़ूंगी.'
जयाप्रदा, आजम खान के बीच सियासी अदावत नई नहीं है. ये दोनों एक दूसरे पर लगातार हमलावर रहे हैं. दोनों की तल्खियां समय समय पर कुछ इसी तरह नजर आई हैं.
इससे पहले भी आजम खान जया प्रदा को 'नाचने गाने वाली' कह चुके हैं
बिगड़ते रिश्तों का ये खेल पुराना है
रामपुर सीट से पहली बार 2004 में जयाप्रदा ने सपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था. उस वक्त रामपुर से नौ बार विधायक रह चुके आजम खान जब जया के पक्ष में वोट मांगते तो कहते थे कि इस चुनाव में उनकी इज्जत दांव पर लगी है. चुनाव जीतने में आजम खान ने जया की काफी मदद की थी. लेकिन आज जब जया प्रदा बीजेपी के टिकट पर और आजम खान सपा के टिकट पर इसी मुस्लिम बहुल सीट पर आमने-सामने हैं. तो आजम खान कोई कसर नहीं छोड़ रहे जया प्रदा की इज्जत तार-तार करने में.
2004 के बाद जल्द ही आजम खान और जया प्रदा के संबंधों में खटास आने लगी. इसकी वजह था जया का अमर सिंह के करीब आना. अमर सिंह का साथ देने की वजह से आजम ने 2009 में जया का टिकट काटने की कोशिश की, लेकिन इस प्रयास वे खुद पार्टी से निलंबित हो गए. इस चुनाव में आजम ने जया को हराने में जी जान लगा दी थी लेकिन फिर भी जया 31000 वोटों से चुनाव जीतने में सफल रही थीं. 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान ही जया प्रदा ने आजम खान पर उनकी न्यूड morphed तस्वीरें प्रसारित करने और रामपुर में सीडी बांटने का आरोप भी लगाया था. इस आरोप के बाद यूपी की राजनीति में तूफान आ गया था.
2014 में हालात फिर बदले और आजम खान सपा में शामिल हो गए. पार्टी में आते ही उन्होंने यह पक्का किया कि जया को रामपुर से दोबारा टिकट न मिले. इसके बाद जया आरएलडी के टिकट पर बिजनौर से चुनाव लड़ीं, लेकिन वहां उनकी जमानत जब्त हो गई और इसके बाद वह लगभग राजनीतिक परिदृश्य से गायब ही हो गई थीं.
इस दुश्मनी को उनके बयानों से भी महसूस किया जा सकता है
2018 में जयाप्रदा ने आजम खान को तुलना अलाउद्दीन खिलजी से की थी. जया ने कहा था कि 'पद्मावत' फिल्म के अलाउद्दीन खिलजी को देखकर उन्हें आजम खान याद आ गए थे. जब वह चुनाव लड़ रही थीं तब आजम खान ने उन्हें भी बहुत प्रताड़ित किया था. इसके जवाब में आजम खान ने कहा था कि वह नाचने-गाने वालों के मुंह नहीं लगना चाहते.
जया प्रदा आजम खान के लिए कभी बहुत सम्मानीय थीं
खैर राजनीति में अक्सर यही होता है. जब विरोधियों पर उंगली उठाने की बात आती है तो नेताओं के सुर इसी तरह बिगड़ते हैं. उस आवेग में वो ये तक भूल जाते हैं कि वो किसी महिला के लिए ये सब कह और कर रहे हैं. आजम खान के इस कांड ने 1995 में हुए गेस्टहाउस कांड की यादें ताजा कर दीं, जब बसपा सुप्रीमो मायावती पर समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने बेहद शर्मनाक हरकत की थी. तब बसपा और सपा के बीच गठबंधन था जो टूटा तो सपा का गुस्सा मायावती पर फूटा था. वैसे ही रामपुर में रिश्तों की कड़वाहट का गुस्सा आजम खान ने जया प्रदा पर इस तरह उतारा. मायावती सपा से गठबंधन तोड़ने के बाद गेस्टहाउस में एक मीटिंग ले रही थीं. तब सपा कार्यकर्ताओं ने गेस्टहाउस पर हमला बोल दिया. खुद को बचाने के लिए मायावती को एक कमरे में बेद होना पड़ा था. पुलिस और डीएम के मौके पर आने के बाद ही मायावती की जान बचाई जा सकी थी. गेस्टहाउस कांड राजनीति के इतिहास में दर्ज एक काला अध्याय है जो गवाह है कि राजनीति में महिलाओं के साथ किस तरह का व्यवहार किया गया है.
लेकिन कितने आश्चर्य की बात है कि वो कांड भी समाजवादी पार्टी के नाम था, और जया प्रदा- आजम खान का विवाद भी समाजवादी पार्टी के नाम रहा. ये पार्टी महिलाओं को कितनी अहमियत देती है ये आप इन दोनों मामलों के देखकर समझ सकते हैं. गौरतलब है कि अभी तक इस मामले पर समाजवादी पार्टी की तरफ से कोई बयान नहीं आया है. मुलायम सिंह मौन हैं और ट्विटर पर हमेशा प्रतिक्रिया देने वाले अखिलेश भी इस मामले पर चुप्पी साधे बैठे हैं.
ये कैसी राजनीति है जहां पुरुष नेता बयानबाजियां करते समय अंडरवियर तक पहुंच जाते हैं और शर्मिंदा भी नहीं होते. क्या इस तरह की टिप्पणियां करने वाले लोग हमारे नेता बनने लायक हैं? क्यों हमें शर्म नहीं आनी चाहिए कि हम इन जैसों को वोट कर इन्हें अपने सिर पर बैठाते हैं. क्यों इनकी बातों से इनकी मानसिकता का आकलन नहीं किया जाता, क्यों इस बेशर्मी के लिए इन नेताओं का बहिष्कार नहीं किया जाता.
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