मेनका गांधी, आजम खान, साक्षी महाराज! हम वही काट रहे हैं जो हमने बोया है
मेनका गांधी से लेकर आजम खान और सखी महाराज तक जैसे चुनावों के दौरान हमारे नेताओं के बयान आते हैं साफ हो जाता है कि वो हमें वही दे रहे होते हैं जो हमें पसंद होता है. अपने नेताओं को बदलने से पहले हमें अपने आपको बदलना होगा.
-
Total Shares
मैं जीत रही हूं. लोगों की मदद और प्यार से मैं जीत रही हूं. लेकिन अगर मेरी जीत मुसलमानों के बिना होगी, तो मुझे बहुत अच्छा नहीं लगेगा. क्योंकि इतना मैं बता देती हूं कि फिर दिल खट्टा हो जाता है. फिर जब मुसलमान आता है काम के लिए फिर मैं सोचती हूं कि नहीं रहने दो, क्या फर्क पड़ता है. आखिर नौकरी एक सौदेबाजी भी तो होती है - बात सही है कि नहीं ? ये नहीं कि हम सब लोग महात्मा गांधी की छठी औलाद हैं कि हम लोग आएं केवल हम देते ही जाएंगे, देते ही जाएंगे. और फिर इलेक्शन में मार खाते जाएंगे.
सही है बात कि नहीं? सही है ये आपको पहचानना पड़ेगा. ये जीत आपके बिना ही होगी आपके साथ नहीं होगी और ये चीज आपको सब जगह फैलानी पड़ेगी. जब मैं दोस्ती के हाथ लेकर आई हूं. और अगर आप पीलीभीत में पूछ लें अगर पीलीभीत का एक भी बंदा फोन से आप पूछें कि मेनका गांधी कैसे थी वहां ? अगर आपको लगे कि कहीं भी हमसे गुस्ताखी हुई है तो हमको वोट मत देना.
लेकिन अगर आपको लगे कि हम खुले हाथों, खुले दिल से आए हैं कि आपको कल मेरी जरूरत पड़ेगी ये इलेक्शन तो मैं पार कर चुकी हूं अब आपको मेरी जरूरत पड़ेगी. अब आपको ये जरूरत के लिए नीव डालना है तो ये है वक़्त आपका जब पोलिंग बूथ का जब आएगा रिजल्ट और उस रिजल्ट में 100 वोट निकलेंगे या 50 वोट निकलेंगे तो उसके बाद जब आप काम के लिए आएंगे तो वही होगा मेरे साथ समझ गए आपलोग.
(मेनका गांधी - भाजपा सांसद- पीलीभीत)
उपरोक्त बयान से पहले आइये 2014 की यादें ताजा करते हैं. नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भाजपा ने इतिहास रचा और बहुमत हासिल किया. मोदी पीएम बने. फायदा तमाम लोगों की तरह मेनका गांधी को भी हुआ. पार्टी ने उन्हें पीलीभीत का रण दिया था जिसे उन्होंने जीता और सांसद बनीं. सांसद बनने के बाद उन्होंने एक शपथ ली थी.
मेनका गांधी की बातें संविधान के मुंह पर तमाचा जड़ती नजर आती हैं
शपथ लेते वक़्त मेनका ने कहा कि, मैं, मेनका गांधी, ईश्वर की शपथ लेटी हूं और सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करती हूं कि कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगी, मैं भारत की प्रभुता और अखंडता को अक्षुण्ण रखूंगी, मैं एक मंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक और शुद्ध अंतःकरण से निर्वहन करूंगी तथा मैं भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना, सभी प्रकार के लोगों के प्रति संविधान और विधि के अनुसार न्याय करूंगी.
सवाल उठता है कि 5 साल पहले ली गई ये शपथ और शपथ लेती हुई मेनका गांधी की याद हमें क्यों आई? कारण है 2019 का लोक सभा चुनाव. 2014 में पीलीभीत में इतिहास रच चुकी मेनका गांधी को 2019 में सुल्तानपुर की कमान देते हुए भाजपा ने टिकट दिया है. मेनका सुल्तानपुर थीं और वहां एक जनसभा के दौरान जो बातें उन्होंने कहीं वो इस लेख के शुरुआत में हैं. ये ऐसी बातें हैं जो न सिर्फ दिल दुखाती और भारत की अखंडता को प्रभावित करती हैं बल्कि भारत के संविधान पर तमाचा जड़ती नजर आ रही हैं.
Women and Child Minister #ManekaGandhi on camera says:
“I am going to win for sure. If Muslims won’t vote for me and then come to ask for work, I will have to think, what’s the use of giving them jobs.”#LokSabhaElections2019 @ECISVEEP pic.twitter.com/BHG5kwjwmQ
— Khabar Bar (@Khabar_Bar) April 12, 2019
सोशल मीडिया पर वायरल होता मेनका गांधी का यह वीडियो देखकर आसानी से इस बात को समझा जा सकता है कि अब हमारे नेताओं के जीवन का एकमात्र उद्देश्य तमाम मुख्य मुद्दे भूलकर हिंदू मुस्लिम की राजनीति करना और लोगों को डराना धमकाना है.
बात हिन्दू मुस्लिम कि चल रही है तो हम उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और सपा सरकार में मंत्री रह चुके आज़म खान को कैसे भूल सकते हैं. अभी कुछ दिनों पहले की बात है. एक जनसभा के दौरान उत्तर प्रदेश के मुख्यामंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश में महागठबंधन को आड़े हाथों लेते हुए ' बजरंगबली-अली' का मुद्दा उठा दिया था.
बात जब हिंदू मुस्लिम की राजनीति की हो तो आजम को बिल्कुल भी नहीं भूला जा सकता
योगी आदित्यनाथ के उस बयान का पलटवार सपा सरकार में मंत्री आजम खान ने अपनी एक जनसभा में किया है. अली और बजरंग मामले पर लोगों से अपील करते हुए आज़म ने कहा कि 'आपस के रिश्ते को अच्छा करो, अली और बजरंग में झगड़ा मत कराओ, मैं तो एक नाम दिए देता हूं बजरंग अली.'
#WATCH Azam Khan, Samajwadi Party in Rampur: Aap kal Nawaz Sharif ke dost the, aur aaj Imran Khan aapke dubara Wazir-e-Azam banne ka intezaar kar raha hai. Batao logon, Pakistan ka agent main hun ya ... ? (11.04.2019) pic.twitter.com/TBO4yrUftG
— ANI UP (@ANINewsUP) April 12, 2019
इसके बाद आजम उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पर जमकर बरसे. उन्होंने योगी आदित्यनाथ पर तंज कसते हुए कहा कि, 'मेरा तो दिल कमजोर नहीं हुआ. योगी जी, आपने कहा था कि हनुमान जी दलित थे. फिर किसी ने कहा हनुमान जी ठाकुर थे. फिर पता चला कि वे ठाकुर नहीं थे, वे जाट थे. फिर किसी ने कहा कि वे हिंदुस्तान के थे ही नहीं, वे तो श्रीलंका के थे. एक मुसलमान एमएलसी ने कहा कि हनुमान जी मुसलमान थे. तब जाकर झगड़ा ही खत्म हो गया. अब हम अली और बजरंग एक हैं.'
इसके बाद उन्होंने कहा- 'बजरंग अली तोड़ दो दुश्मन की नली, बजरंग अली ले लो जालिमों की बलि.'
हमारे तमाम नेता कैसे बड़े मुद्दों को नजरंदाज करते हैं और कैसे उसे हिन्दू मुस्लिम जात पात के रंग में रंग देते हैं. इसे समझने के लिए हमें उन्नाव से भाजपा सांसद साक्षी महाराज से ज़रूर मिलना चाहिए. एक ऐसे सामय में जब चुनाव नजदीक हो और मेनका गांधी एंटी मुस्लिम बातें, आज़म खान सबको साथ लेकर चलने वाली बातें कर रहे हों. जो बातें साक्षी ने कहीं हैं वो न सिर्फ अपने में हंसी का पुट लिए हैं बल्कि उन्हें सुनकर इस बात का भी एहसास हो जाता है कि हमारी राजनीति एक ऐसे स्तर पर आकर स्थिर हो गई है जहां से शायद ही उसे बाहर निकाला जा सके.
उन्नाव में चुनाव प्रचार के सिलसिले में आए साक्षी महाराज ने कहा है कि मैं एक संन्यासी हूं और एक संन्यासी जब भिक्षा मांगता है और उसे भिक्षा नहीं मिलती तो गृहस्थी के पुण्य ले जाता है, अगर एक संन्यासी को वोट नहीं दिया तो मैं अपने श्राप आपको दे जाऊंगा.
जब बात राजनीति में बेतुके बयानों की हो तो साक्षी महाराज को भी खारिज नहीं किया जा सकता
सभा को संबोधित करते हुए साक्षी महाराज ने ये भी कहा कि, मैं जो कुछ कह रहा हूं, वह शास्त्रोक्त या शास्त्रों में कही गई है. मैं धन या दौलत नहीं मांग रहा हूं. लोगों से वोट मांग रहा हूं, जिससे 125 करोड़ देशवासियों की किस्मत बदलनी है. साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि मतदान कन्यादान करने के बराबर होता है, इसलिए सभी लोग घर से निकलकर मतदान करें. विपक्षियों पर निशाना साधते हुए उन्होंने ये भी कहा कि उत्तर प्रदेश में गठबंधन का कोई असर नहीं है. पहले ये लोग एक-दूसरे को देखना पसंद नहीं करते थे. आज वही लोग एक साथ खड़े होकर प्रधानमंत्री मोदी को हटाने में लगे हुए हैं.
बहरहाल, क्या मेनका गांधी और क्या आजम खान और साक्षी महाराज गलती इनकी नहीं है. ये अपने आप में दुर्भाग्यपूर्ण है कि आजादी के एक लम्बे समय के बाद आज भी इस देश में राजनीति का आधार और नेताओं को चुने जाने का पैमाना हिंदू-मुस्लिम, जात-पात और धर्म ही है. कह सकते हैं कि हम अपने नेताओं से वही हासिल कर रहे हैं जो हम सोचते हैं. यदि हम वाकई अपने नेताओं को सुधरते हुए देखना चाहते हैं तो सबसे पहले हमें अपनी खुद की सोच बदलनी होगी.
यदि ऐसा हुआ तो बहुत अच्छी बात है वरना आज भी और कल भी हमारा नेताओं का चयन इसी बात पर निर्भर करेगा कि कौन किस मात्रा में जहर उगल सकता है और उस उगले हुए जहर से मुख्य मुद्दों को ढक सकता है.
ये भी पढ़ें -
शहरी 'शर्मिंदगी' के बीच बस्तर को बार-बार सलाम
राजनीति के फेर में कांग्रेस ने राहुल गांधी की जान खतरे में डाली है !
बसपा के डूबते जहाज पर सवार मायावती का भारी-भरकम गुस्सा, डूबना एकदम तय
आपकी राय