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Updated: 27 जून, 2020 09:05 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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पहले तो बाबा रामदेव (Baba Ramdev) और बालकृष्ण ने कम्यूनिकेशन गैप बताया, फिर आयुष मंत्रालय के पत्र के साथ भी लोगों को सरेआम गुमराह करने की कोशिश की - और अब तो क्लिनिकल ट्रायल (Clinical Trial) का दावा भी हवा हवाई ही लगने लगा है. अगर बाबा रामदेव कोरोनिल (Coronil) को इम्यूनिटी बूस्टर बोल कर ही बेच लिये होते तो लोग खुशी खुशी खरीद रहे होते - लेकिन जिस तरह का दावा रामदेव कर रहे हैं और जैसी हरकत बालकृष्ण कर रहे हैं - ये तो पूरी तरह भरोसा तोड़ने वाला है.

निम्स डायरेक्टर ने साथ क्यों छोड़ा

जिस कोरोनिल दवा को लेकर विवाद हुआ है, उसे पेश करते वक्त रामदेव के साथ उनके सहयोगी आचार्य बालकृष्ण के अलावा मुख्य तौर पर एक और शख्स मौजूद थे - बीएस तोमर. बीएस तोमर राजस्थान की निम्स यूनिवर्सिटी के सर्वेसर्वा हैं और बाबा रामदेव के अनुसार यूनिवर्सिटी के अस्पतालों में भी कोरोनिल का क्लिनिकल ट्रायल हुआ था.

कोरोना वायरस के इलाज का दावा किये जाने के बाद जयपुर के गांधीनगर थाने में पतंजलि आयुर्वेद, हरिद्वार और निम्स के मालिक बीएस तोमर के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है. पुलिस को दी गयी शिकायत में कोरोना वायरस के इलाज के नाम पर जनता को गुमराह करने का आरोप लगाया गया है. राजस्थान के चिकित्सा मंत्री डॉक्टर रघु शर्मा ने तो राज्य में ऐसी किसी दवा के क्लिनिकल ट्रायल को पहले ही खारिज कर दिया था और कानूनी एक्शन लेने की बात कह डाली थी.

ये सब होने के बाद बीएस तोमर ने पूरा मामला बाबा रामदेव पर डालते हुए पल्ला झाड़ लिया. कहते हैं जो दावे बाबा रामदेव कर रहे हैं ये वो ही जानें. तोमर का कहना है कि इम्यूनिटी बूस्टर के तौर पर अश्वगंधा, गिलोय और तुलसी का प्रयोग मरीजों पर किया गया था, लेकिन, तोमर कहते हैं, 'मैं नहीं जानता कि योग गुरु रामदेव ने इसे कोरोना का शत प्रतिशत इलाज करने वाला कैसे बताया?'

baba ramdev, balkrishnaबाबा रामदेव और बालकृष्ण आखिर क्या छुपाने की कोशिश कर रहे हैं?

क्लिनिकल ट्रायल की बात से भी अब तोमर पूरी तरह मुकर जा रहे हैं - 'हमने अपने अस्पतालों में कोरोना की दवा का कोई भी क्लिनिकल ट्रायल नहीं किया.'

बीएस तोमर अब चाहे जितनी भी बयानबाजी कर बच निकलने की कोशिश करें, लेकिन जब जांच होगी तो शामिल तो होना ही पड़ेगा. तभी ये भी साफ हो जाएगा कि ऐसी बयानबाजी वो फंसने के बाद करने लगे हैं या वास्तव में सच यही है. आखिर जब दवा लॉन्च हो रही थी तो हर बात में हां में हां तो उनकी भी देखी गयी थी.

वैसे बीएस तोमर की अपनी दलील भी है. कहते हैं, इम्यूनिटी टेस्टिेंग के लिए 20 मई को अनुमति ली गयी थी. 23 मई से ट्रायल शुरू हुआ और एक महीने तक चला भी. तोमर का दावा है कि ट्रायल के नतीजे आये दो दिन ही हुए थे कि बाबा रामदेव ने दवा बनाने का दावा पेश कर दिया.

ऐसे में, तोमर का कहना है, ये तो बाबा रामदेव ही बता सकते हैं कि दो दिन में दवा कैसे बना ली गयी - 'मुझे इसकी कोई जानकारी नहीं है.'

ट्विटर पर भी झूठा दावा

बाबा रामदेव ने दावा किया था कि कोरोनिल दवा के असर से सिर्फ तीन दिन के भीतर 69 फीसदी कोरोना मरीज ठीक हो गये - और 7 दिन में ही 100 फीसदी मरीज पूरी तरह स्वस्थ हो गये. एक उन्होंने यह भी दावा किया कि इस दवा के क्लिनिकल कंट्रोल ट्रायल में एक भी मरीज की मौत नहीं हुई.

लेकिन बाबा रामदेव का दावा सुनते ही केंद्र सरकार के आयुष मंत्रालय ने सवाल खड़े कर दिये कि उसे तो मालूम ही नहीं कि ये सब कैसे हो गया. बाबा रामदेव और बालकृष्ण ने ये समझाने की कोशिश की कि कुछ कम्यूनिकेशन गैप था जिसे दूर कर लिया गया है. ऐसा हो जाता है, इसलिए किसी को इस दावे पर कोई शक भी नहीं हुआ.

इसके बाद आचार्य बालकृष्ण ने आयुष मंत्रालय का एक पत्र ट्विटर पर शेयर किया. आयुष मंत्राल और रामदेव को टैग करते हुए बालकृष्ण ने लिखा - विवाद की पूर्णाहूति. आचार्य बालकृष्ण के ट्वीट को बाबा रामदेव ने रीट्वीट किया और लिखा - 'आयुर्वेद का विरोध एवं नफरत करने वालों के लिए घोर निराशा की खबर...'

बाबा रामदेव और बालकृष्ण के पहले के दावे तो नेपथ्य से रहे, लेकिन ये तो सरेआम गुमराह करने वाला रहा. जिस पत्र को लेकर बाबा रामदेव और बालकृष्ण ऐसे दावा कर रहे हैं जैसे उनको क्लीन चिट या परमिशन ही मिल गयी हो, उसमें ऐसा कुछ भी नहीं लिखा है. पत्र में अंग्रेजी में सिर्फ ये बताया गया है कि जो दस्तावेज मांगे गये थे वे मिल गये हैं. पत्र में ये कहीं नहीं लिखा है कि सारे दस्तावेजों को वेरीफाई भी किया गया है या नहीं.

केंद्रीय आयुष मंत्री ने तो कहा था कि पूरा मामला जांच के लिए टास्क फोर्स दो दिया जा रहा है, फिर तो पूरी जांच पड़ताल भी होगी. जांच भी कोई लैब में तो होनी नहीं है. जो जो दावे किये गये हैं उनकी बाकायदा पुष्टि की जाएगी.

अब सवाल ये है कि आयुष मंत्रालय के कथित पत्र को लेकर बाबा रामदेव और बालकृष्ण ने ऐसे दावे क्यों किये - क्या दोनों को अंग्रेजी भाषा की समझ नहीं है या फिर वे ये मानते हैं कि उन पर जो लोग भरोसा करते हैं उनको अंग्रेजी नहीं आती होगी. या फिर ये मान कर चल रहे हैं कि जो लिखेंगे लोग वही पढ़ेंगे पत्र को पढ़ने की जहमत कौन उठाएगा?

बाबा रामदेव और उनके साथी बालकृष्ण की देश के लोगों को लेकर जो भी धारणा हो, लेकिन जो कुछ भी वे मिल कर रहे हैं वो भरोसा करने वालों की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश है. सौ की एक बात. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि अभी हमें कोरोना की बस एक ही दवा पता है - और जब तक इसकी वैक्‍सीन नहीं बनती, इसे केवल इसी दवा से रोका जा सकता है.

प्रधानमंत्री कार्यालय के इस ट्वीट पर अपने रिएक्शन में कई लोगों ने बाबा रामदेव की कोरोनिल के बारे में सवाल उठाया है - और कइयों ने उनके खिलाफ एक्शन लेने की मांग भी की है.

रिएक्शन में भी राजनीति है

बाबा रामदेव की दवा और उनके दावों पर रिएक्शन भी मिला जुला देखने को मिल रहा है. गैर बीजेपी दलों के नेताओं का जहां कानूनी एक्शन पर जोर नजर आ रहा है, वहीं बीजेपी के नेताओं में रामदेव के प्रति एक सॉफ्ट कॉर्नर महसूस किया जा सकता है.

केंद्रीय आयुष मंत्री श्रीपद नाइक ने कहा कि ये अच्छी बात है कि योग गुरु बाबा रामदेव ने देश को एक नई दवा दी है, लेकिन नियमों के अनुसार पहले आयुष मंत्रालय में जांच के लिए देना होगा. उत्तराखंड के एक अफसर ने तो कहा था कि रामदेव ने इम्यूनिटी बूस्टर का ही लाइसेंस लिया था, दवा का तो कतई नहीं, लेकिन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का कहना है कि इसे बनाने में कोई प्रक्रियात्मक त्रुटि रही होगी.

दूसरी तरफ राजस्थान और महाराष्ट्र जहां गैर कांग्रेस सरकारें है, वहां अलग स्वर सुनने को मिले हैं - और वहां सिर्फ एक्शन की बात हो रही है.

सोशल मीडिया पर भी बाबा रामदेव के विरोधी और समर्थक अपने अलग अलग तर्क दे रहे हैं. अपनी फेसबुक पोस्ट में प्रोफेसर सीपी सिंह ने बाबा रामदेव की तुलना जगदीशचंद्र बसु से की है और याद दिलाय है कि कैसे उनको क्रेडिट से वंचित किया गया.

कोरोनिल को पेश करते वक्त बाबा रामदेव का ये कहना कि 'लोग सवाल तो उठाएंगे', एकबारगी तो उनका अपने विरोधियों पर कटाक्ष लगा - लेकिन अब लग रहा है कि बाबा सच बोल रहे थे - और सच तो ये है कि पूरे कोरोनिल प्रकरण में बाबा की तरफ से यही एक सच बोला भी गया है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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