Coronyl: बाबा रामदेव ने कोरोना की दवा लाकर अपनी साख भी दांव पर लगा दी है
कोरोनिल (Coronil) को लेकर भी बाबा रामदेव (Baba Ramdev) का दावा धीरे धीरे वैसा ही लगने लगा है, जैसा किम्भो ऐप को लेकर रहा - कोरोना महामारी के बीच पतंजलि (Patanjali) की दवा के 100 फीसदी कारगर होने के दावे ने रामदेव की साख भी दांव पर लगा दी है.
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बाबा रामदेव (Baba Ramdev) के खाते में एक योग ही है जिस पर कभी सवाल नहीं उठा है, बल्कि योग को लेकर उनका योगदान बेजोड़ और बेमिसाल है. वरना, रामदेव के पतंजलि के काफी उत्पाद ऐसे रहे हैं जिन पर कभी न कभी सवाल न उठे ही है्ं - और शायद ही कभी उन सवालों के संतोषजनक जवाब मिल पाये हों. इंसान के भूल जाने की फितरत के चलते जिन चीजों को एक वक्त के बाद संदेह का फायदा मिलता है, रामदेव के पतंजलि के उत्पादों को भी उसके लाभार्थी होने का गौरव हासिल होता है.
ये योग ही है जिसने बाबा रामदेव को ख्याति दिलाई और और जब वो कारोबार में उतरे तो खुद ही ब्रांड भी बने. पतंजलि (Patanjali) तो योग से ही जुड़ा नाम रहा है, अगर स्वामी रामदेव कोई भी नाम रखते तो उसके प्रोडक्ट पर लोग रामदेव के नाम के कारण आंख मूंद कर भरोसा करते ही. सच्चाई भी यही है कि पतंजलि के प्रोडक्ट को रामदेव का चेहरा देख कर ही कोई भी खरीदता है.
दुर्भाग्यवश बाबा रामदेव ने अब तक ऐसा कोई भी प्रोडक्ट नहीं बनाया जिस पर योग की तरह सवाल न उठे हों. कभी नूडल्स और जींस के कट्टर विरोधी रहे बाबा रामदेव खुद ही ये सब क्यों बेचने लगे आज तक समझ में नहीं आया. समझ में तो ये भी नहीं आया कि बाबा रामदेव के 'किम्भो' लाने के पीछे क्या सोच रही होगी?
कोरोनिल जैसा प्रोडक्ट की भारत ही क्या पूरी दुनिया शिद्दत से जरूरत महसूस कर रही है - और ये वो चीज है जो स्वामी रामदेव के विरोधी भी बगैर एक पल सोच विचार किये दौड़ कर लेते. जब जिदंगी दांव पर आ जाती है तो हर तरह के विरोध अपनेआप खत्म हो जाते हैं, लेकिन दुर्भाग्य तो ये है कि कोरोनिल (Coronil) को लेकर दावों के साथ साथ स्वामी रामदेव ने अपनी साख भी दांव पर लगा दी है!
रामदेव का दावा गलत निकला तो?
मौजूदा मोदी सरकार योग और आयुर्वेद को मेडिकल साइंस के समानांतर मुख्यधारा में जगह दिलाने के लिए कोई कसर बाकी नहीं रखती. मोदी सरकार का आयुष मंत्रालय योग और आयुर्वेद के साथ साथ यूनानी और होम्योपैथी तक को संरक्षण देने वाली दुनिया की शायद अकेली सरकार होगी.
लेकिन इससे बड़ी त्रासदी क्या होगी कि मोदी सरकार के आयुष मंत्रालय ने ही रामदेव के कोरोनिल पर जांच बिठा दी है. ये बात अलग है कि पतंजलि की तरफ से आचार्य बालकृष्ण दावा कर रहे हैं कि ये सब कम्युनिकेशन गैप की वजह से हुआ - लेकिन ये इतना भर ही नहीं लगता.
अगर बाबा रामदेव ने भारत में घर घर योग को नये दौर में जगह दिलायी है तो ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही हैं जिनकी पहल पर आज पूरी दुनिया 21 जून को योग दिवस मना रही है. संयुक्त राष्ट्र के योग दिवस घोषित करने में सबसे बड़ी भूमिका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ही है.
अब इससे बड़ी हैरानी की बात क्या होगी कि देश में रामदेव की कंपनी कोरोना वायरस जैसी महामारी को लेकर दवा बना रही है - और न तो केंद्र सरकार के आयुष मंत्रालय को और न ही देश के प्रधानमंत्री को इसकी कोई खबर है? अपनेआप में ये बड़ा सवाल है.
उत्तराखंड सरकार का कहना है कि बाबा रामदेव ने इम्यूनिटी बूस्टर बनाने का लाइसेंस लिया था - कोरोना की दवा बनाने का नहीं
आयुष मंत्रालय से शुरुआती दौर में खबर आयी थी कि होम्योपैथ की आर्सेनिकम एल्बम नाम की दवा को कोरोना से बचाव के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन बाद में औपचारिक तौर पर सरकार की तरफ से कोई सलाहियत नहीं आयी. ये भी सही है कि आयुष मंत्रालय ने जब कोरोना को लेकर कुछ चीजों के शोध का प्रस्ताव रखा था तो आलोचना भी हुई. अभी तक आयुष मंत्रालय की तरफ से कोरोना से बचाव और इम्यूनिटी बढ़ाने के उद्देश्य से सिर्फ एक काढ़ा को प्रमोट किया गया है - कोई दवा नहीं रेकमेंड की गयी है. आसानी से समझा जा सकता है कि अब तक सरकार की नजर में ऐसी कोई दवा है नहीं - इसलिए सरकार को भी निश्चित रूप से ऐसी दवा की जरूरत होगी ही जो देश को कोरोना संकट से उबार सके.
केंद्र सरकार का साफ तौर पर निर्देश भी है कि कोई भी कोरोना वायरस के इलाज के नाम पर दवा बनाकर उसका प्रचार-प्रसार नहीं कर सकता - सवाल ये है कि आखिर रामदेव ने कैसे ये दवा इतने सारे दावों के साथ लांच कर दी है?
बाबा रामदेव का दावा है कि दवाओं के ट्रायल के दौरान तीन दिन के भीतर ही 69 फीसदी रोगी निगेटिव हो गये - और ट्रायल के दौरान सात दिन में 100 फीसदी मरीज निगेटिव हो गये. अगर वाकई ऐसा है तो ये तो दुनिया के लिए चमत्कार से कम नहीं है. ये तो रामबाण इलाज है. ये तो एक तरीके से संजीवनी बूटी ही है - मगर, अफसोस की बात ये है कि ऐसा बिलकुल नहीं लगता.
आयुष मंत्री श्रीपद नाईक का कहना है कि दवाई बनाने को लेकर, दवाई को मार्केट में लेकर पतंजलि को आयुष मंत्रालय से पहले से प्रोटोकॉल के मुताबिक अनुमति लेनी ही चाहिये थी. आयुष मंत्री ने कहा है कि पतंजलि के जवाब और पूरे मामले की टास्क फोर्स समीक्षा करेगी उसके बाद ही बात आगे बढ़ेगी.
आयुष मंत्री के बयान के उलट रामदेव और उनके साथी आचार्य बालकृष्ण का दावा है कि जितने भी स्टैंडर्ड पैरामीटर्स हैं उन सबक 100 फीसदी पालन किया गया है - और उसकी सारी जानकारी आयुष मंत्रालय को दे दी गयी है.
सच्चाई तो जांच के बाद ही सामने आ सकेगी, लेकिन अभी तो सरकार और रामदेव के दावे पूरी तरह विरोधाभासी हैं - और पूरे मामले को शक के दायरे में ला दे रहे हैं.
डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी एक्ट, 2005 के तहत अगर कोई व्यक्ति गलत दावा करता है तो इसे दंडनीय अपराध माना जाएगा. अब अगर कोरोनिल दवा को लेकर रामदेव का दावा सही नहीं साबित हो पाता तो ये कानूनी प्रावधान का उल्लंघन माना जाएगा. कानून के जानकारों के मुताबिक, ऐसे अपराध के लिए एक साल से लेकर सात साल तक की सजा भी हो सकती है. कोरोना वारस पैंडेमिक है, कोई एपिडेमिक नहीं यानी ये वैश्विक महामारी है, लिहाजा मुकदमे कहीं भी दर्ज हो सकते हैं - ठीक वैसे ही जैसे अमेरिका में चीन के खिलाफ हुए हैं.
केंद्र सरकार के आयुष मंत्रालय के बाद अब उत्तराखंड सरकार के आयुर्वेद ड्रग्स लाइसेंस प्राधिकरण ने भी बाबा रामदेव की दवा पर सवाल उठाया है. अथॉरिटी के डिप्टी डायरेक्टर यतेंद्र सिंह रावत के अनुसार बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि को कोरोना की दवा के लिए नहीं बल्कि 'इम्युनिटी बूस्टर और खांसी-जुकाम' की दवा के लिए लाइसेंस जारी किया गया था. रावत का कहना है कि उनको भी मीडिया के माध्यम से ही मालूम हुआ है कि पतंजलि की तरफ से कोरोना की किसी दवा का दावा किया जा रहा है - जबकि लाइसेंस जारी हुआ है 'इम्युनिटी बढ़ाने वाली और खांसी-जुकाम की दवा' के लिए.
आम बोलचाल में ब्रांड को भरोसे के पर्याय के तौर पर लिया जाता है - भारतीय जनमानस में बाबा रामदेव और पतंजलि को अब तक यही रुतबा अनौपचारिक रूस से हासिल है - असल वजह जो भी हो और जो भी सच्चाई हो, लेकिन बाबा रामदेव ने कोरोनिल को लेकर दावा करके अपनी साख को भी दांव पर लगा दिया है.
अगर रामदेव ने कोरोनिल को महज इम्यूनिटी बढ़ाने वाली दवा के तौर पर भी पेश किया होता तो लोगों में खरीदने की वैसे ही होड़ मच जाती है, जैसे पतंजलि के बाकी प्रोडक्ट को लेकर है. अब तो ये भी संभव है कि कोरोनिल को लेकर पैदा हो रही संदेह का असर पतंजलि के दूसरे उत्पादों पर भी न पड़ने लगे.
रामदेव बार बार ऐसे दावे करते ही क्यों हैं
कैंसर से लेकर होमो सेक्शुअलिटी तक के इलाज का समय समय पर दावा कर चुके योग गुरु रामदेव का पतंजलि नूडल्स भी क्वालिटी टेस्ट में फेल हो चुका है, हो सकता है पतंजलि ने कम्यूनिकेशन गैप जैसे तैसे भर दूर कर लिया हो. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, RTI से मालूम हुआ है कि पतंजलि के तकरीबन 40 फीसदी उत्पाद उत्तराखंड के आयुर्वेद और यूनानी विभाग की तरफ से कराये गये क्वालिटी टेस्ट में पैमानों पर खरे नहीं उतर सके हैं. हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, 2013 से 2016 के बीच लिये गये पतंजलि के 82 सैंपल में से, 32 प्रोडक्ट क्वालिटी टेस्ट में फेल पाये गये.
व्हॉट्सऐप के मुकाबले बड़े बड़े दावों के साथ दो साल पहले बाबा रामदेव ने एक मैसेजिंग ऐप भी लांच किया था - किम्भो. नाम तो बड़ा ही खूबसूरत रखा गया था कि लेकिन गूगल प्ले स्टोर से इसे कुछ ही घंटों में वापस भी ले लिया गया.
30 मई, 2018 को लांच करते वक्त भी बाबा रामदेव ने स्वदेशी का नाम भुनाने की कोशिश की थी, लेकिन किम्भो के यूजर डाटा की सुरक्षा को लेकर सवाल उठने लगे - और कहा जाने लगा कि ऐप का इस्तेमाल करने वाले की निजी जानकारी कोई भी आसानी से हासिल कर सकता है. सबसे दिचस्प तो फ्रांस के एक एथिकल हैकर एलियट एल्डरसन का दावा रहा - जिनका कहना था था कि एक अमरीकी कंपनी के बंद हो चुके मैसेजिंग ऐप 'बोलो' को ही 'किम्भो' के रूप में पेश कर दिया गया है!
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