बलूचिस्तान पर घिरा पाकिस्तान
पाकिस्तान के लिए यह मुसीबत पैदा करने वाला है कि भारत ही नहीं अमेरिका भी बलूचिस्तान पर पाकिस्तानी सेना द्वारा मानवाधिकार हनन और अत्याचारपूर्ण कार्रवाई को अनैतिक मान रहा है.
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आजादी की वर्षगांठ पर बलूचिस्तान में मानवाधिकारों के उलंघन को मुद्दा बनाए जाने से पाकिस्तान की घिग्घी बंध गयी है. उसे इस कदर करारी शिकस्त मिली है कि वह अब निर्वासित बलूच नेताओं से बातचीत को तैयार हो गया है. बलूचिस्तान प्रांत के मुख्यमंत्री नवाब सनाउल्ला जेहरी और पाकिस्तानी सेना के दक्षिणी कमान के कमांडर आमिर रियाज ने भी बलूच नेताओं से बातचीत की इच्छा जतायी है.
उधर, बलूच नेता भारतीय प्रधानमंत्री के समर्थन से उत्साहित हैं और अब अमेरिका और यूरोपीय देशों से बलूचिस्तान के मसले पर समर्थन की मांग कर रहे हैं. फिलहाल कहना मुश्किल है कि पाकिस्तान और बलूच नेताओं की बातचीत से बलूचिस्तान समस्या का हल निकलेगा. ऐसा इसलिए कि पाकिस्तान की सेना दशकों से बलूचिस्तान में आजादी की मांग कर रहे नागरिकों का उत्पीड़न, अपहरण एवं हत्या कर रही है. पाकिस्तानी सेना के हाथों प्रति वर्ष हजारों बलूच नागरिक मारे जा रहे हैं.
पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग की मानें तो यहां सेना और खुफिया एजेंसियां बलूच नागरिकों के खात्मे के लिए दमन चक्र चला रही हैं. हवाई हमले कर उनके घरों को तबाह कर रही हैं. बड़ी संख्या में लोगों की गिरफ्तारियां हो रही हैं और हजारों लोग नजरबंदी के शिकार हैं. उन्हें जबरन हिरासत में रखकर यातनाएं दी जा रही हैं. बलूचिस्तान विधानसभा में पूर्व नेता विपक्ष कछोल अली बलोच द्वारा कहा जा चुका है कि 4000 से अधिक लोग लापता हैं. इनमें ज्यादतर छात्र और राजनीतिक कार्यकर्ता हैं. पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ यहां के उन कट्टरपंथियों को भरपूर आर्थिक मदद दे रही है जो बलूच नागरिकों पर कहर बरपा रहे हैं.
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बलूचिस्तान का नक्शा (फोटो- अल जज़ीरा) |
गौर करें तो पाकिस्तानी सेना द्वारा बलूच नागरिकों पर सिर्फ अत्याचार ही नहीं हो रहा है बल्कि उनके संवैधानिक अधिकारों का भी हनन हो रहा है. दशकों से सेना एवं सरकारी नौकरियों में बलूचों की भर्ती पर रोक लगी है और वे बेरोजगार हैं. पाकिस्तानी सेना द्वारा 2006 में बलोच नेता नवाब अकबर बुगती की हत्या के बाद से बलूचियों पर अत्याचार बढ़ गया है.
सनद रहे कि 2005 में बलूच नेता नवाब अकबर बुगती और मीर बलाच मार्री द्वारा पाकिस्तान सरकार के समक्ष 15 सूत्री मांग रखी गयी थी. इस मांग में बलूचिस्तान प्रांत के संसाधनों पर ज्यादा नियंत्रण और सैनिक ठिकानों के निर्माण पर रोक का मुद्दा शीर्ष पर था. लेकिन पाकिस्तानी सरकार ने इन सभी मांगों को सिरे से खारिज कर दिया नतीजतन टकराव बढ़ गया. बलूचिस्तान के नागरिक अच्छी तरह समझ गए हैं कि पाकिस्तान उनके अधिकारों का सम्मान करने वाला नहीं. लिहाजा अब उनके समक्ष अपने अधिकारों के लिए लड़ने के अलावा कोई अन्य चारा नहीं बचा है.
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बलूचिस्तान की भौगोलिक संरचना पर गौर करें तो यह क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों से लैस है. पाकिस्तान के कुल प्राकृतिक गैस का एक तिहाई बलूचिस्तान से ही निकलता है. इस रेतीले इलाके में यूरेनियम, पेट्रोल, प्राकृतिक गैस, सोना, तांबा एवं अन्य धातुओं का खजाना है. लेकिन विडंबना है कि उसका आनुपातिक लाभ बलूचिस्तान को नहीं मिलता है. उदाहरण के लिए 1952 में बलूचिस्तान के डेरा बुगती में गैस के भंडार का पता लगा और 1954 से गैस का उत्पादन शुरु हो गया. पाकिस्तान के अन्य तीनों प्रांतों को उसका लाभ तुरंत मिलने लगा. लेकिन बलूचिस्तान को यह लाभ 1985 में मिला.
अमेरिका में आजाद बलूच की मांग |
इसी तरह चीन के साथ तांबा, सोना और चांदी उत्पादन करने की पाकिस्तानी चगाई मरुस्थल योजना 2002 में आकार ली और तय हुआ कि बलूचिस्तान को उसका वाजिब हक मिलेगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इस योजना के तहत प्राप्त लाभ में चीन का हिस्सा 75 फीसद होता है जबकि पाकिस्तान का 25 फीसद. लेकिन इस 25 फीसद हिस्सेदारी में बलूचिस्तान के हिस्से में सिर्फ 2 फीसद आता है. यह स्थिति तब है जब पाकिस्तानी संविधान के 18 वें संशोधन के मुताबिक बलूचिस्तान को विशेष अधिकार प्राप्त है. इसी नाइंसाफी का नतीजा है कि बलूचिस्तान के नागरिक आक्रोशित हैं और अपने हक के लिए पाकिस्तान के विरुद्ध संघर्षरत हैं.
वैसे भी इतिहास पर दृष्टिपात करें तो बलूचिस्तान कभी भी पाकिस्तान का नैसर्गिक हिस्सा नहीं था. ब्रिटिश शासन के दौरान बलूचिस्तान चार भागों कलात, लसबेला, खारन और करान में विभक्त था. खारन और लसबेला पर कलात के मीर अहमद यार खान का राज था.
पाकिस्तानी दस्तावेजों के मुताबिक भारत विभाजन और पाकिस्तान निर्माण से पहले मोहम्मद अली जिन्ना ने कलात के साथ-साथ संपूर्ण बलूचिस्तान की स्वतंत्रता और उसके पाकिस्तान में विलय को लेकर ब्रिटिश शासन से बात की. जिन्ना, कलात के हुक्मरान खानों और ब्रिटिश सरकार के बीच कई दौर की बातचीत हुई और निष्कर्ष निकला कि पाकिस्तान कलात को एक स्वतंत्र व संप्रभु राज्य के तौर पर मान्यता देगा.
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लेकिन जिन्ना इसके लिए तैयार नहीं हुए. वे चाहते थे कि कलात के हुक्मरान अन्य रियासतों की तरह ही कलात का पाकिस्तान में विलय करें. लेकिन बात नहीं बनी और बलूचिस्तान ने 15 अगस्त, 1947 को अपनी आजादी की घोषणा कर दी. मोहम्मद अली जिन्ना की बेचैनी बढ़ गयी और उन्होंने फरवरी 1948 में कलात के खान को धमकाते हुए पत्र लिखा कि मैं आपको सलाह देता हूं कि बिना देर किए कलात का पाकिस्तान में विलय कर दें. कलात द्वारा इस पत्र का जवाब देते हुए कहा गया कि विलय के मसले पर संसद के दोनों सदनों-दार-उल-उमरा और दार-उल-अवाम फैसला लेंगे.
उधर पाकिस्तान ने छल व झूठ का सहारा लेते हुए पाकिस्तान में अमेरिकी राजदूत (23 मार्च 1948) को बताया कि कलात के अधीन तीनों रियासतें-खारन, लसबेला और मकरान पाकिस्तान में विलय को तैयार हैं. खान के विरोध के बाद भी 26 मार्च 1948 को पाकिस्तानी सेना ने बलूचिस्तान के तटीय इलाकों पासनी, जिवानी और तुरबत पर हमला बोल दिया. पाकिस्तान की ओर यह झूठ भी प्रसारित किया गया कि कलात के खान संपूर्ण बलूचिस्तान को पाकिस्तान में विलय को तैयार हैं.
आजाद बलूचिस्तान के लिए व्हाइट हाउस पर प्रदर्शन |
नतीजा अप्रैल 1948 में पाकिस्तानी सेना ने मीर अहमद यार खान को अपना राज्य कलात छोड़ने को मजबूर कर दिया. उनसे जबरन कलात की आजादी के खिलाफ समझौते पर हस्ताक्षर करवा लिया गया जबकि बलूचिस्तान की संसद विलय के प्रस्ताव को खारिज कर चुकी थी. यहां ध्यान देना होगा कि मीर अहमद खान के भाई प्रिंस अब्दुल करीम खान ने इस समझौते के विरुद्ध आपत्ति जतायी और कहा कि वे किसी भी कीमत पर बलूचिस्तान का 23 फीसद हिस्सा पाकिस्तान को देने को तैयार नहीं हैं. लेकिन पाकिस्तान के आगे उनका जोर नहीं चला.
मजबूर बलूचिसतान की जनता ने 1948 में ही पाकिस्तान के खिलाफ संघर्ष का बिगुल फूंक दिया. उनके नेतृत्व में बलूच नागरिकों ने अफगानिस्तान की जमीन से पाक सैनिकों के खिलाफ गुरिल्ला जंग छेड़ दिया. इस संघर्ष को नवाब नवरोज खान ने आगे बढ़ाया लेकिन इसकी उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ी. पाकिस्तान की सरकार ने उनके दोनों बेटों और भतीजों को फांसी पर लटका दिया. लेकिन इस क्रुर अत्याचार के बाद भी संघर्ष का स्वर धीमा नहीं पड़ा. फिर विरोध से निपटने के लिए पाकिस्तान ने यहां 1973-74 में मार्शल लॉ लागू कर दिया. इसके बाद बलूचों पर पाकिस्तानी सेना का कहर बरपने लगा.
इस दौरान तकरीबन 8000 से अधिक बलूची नागरिक मारे गए और हजारों घायल हुए. लेकिन गौर करें तो पाकिस्तानी सेना के इतने जुल्म-ज्यादती के बाद भी बलूचों का हौसला टूटा नहीं है. आजादी का स्वर थमा नहीं है.
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मौजुदा समय में बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी, बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट, यूनाइटेड बलोच आर्मी, लश्कर ए बलूचिस्तान और बलूचिस्तान लिबरेशन यूनाइटेड फ्रंट जैसे कई संगठन बलूचिस्तान की आजादी के लिए आंदोलित हैं. पाकिस्तान के लिए यह मुसीबत पैदा करने वाला है कि भारत ही नहीं अमेरिका भी बलूचिस्तान पर पाकिस्तानी सेना द्वारा मानवाधिकार हनन और अत्याचारपूर्ण कार्रवाई को अनैतिक मान रहा है.
कैलिफोर्निया के रिपब्लिकन सांसद दाना रोहराबचेर ने दो अन्य सांसदों के समर्थन से अमेरिकी कांग्रेस में बलूचिस्तान के लोगों के लिए इन जुल्मों के खिलाफ ‘आत्मनिर्णयन’ के अधिकार की मांग वाला प्रस्ताव पेश कर दिया है. इस प्रस्ताव में कहा गया है कि बलूचिस्तान का प्रदेश पाकिस्तान, ईरान और अफगानिस्तान में फैला हुआ है और यहां के लोगों को संप्रभु अधिकार प्राप्त नहीं है. दो राय नहीं कि आने वाले दिनों में दुनिया के अन्य देश भी बलूचिस्तान के मसले पर मुखर होंगें और पाकिस्तान की मुश्किलें बढ़ेगी.
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