'काला सोना' बदलेगा किस्मत !
पचपदरा व सॉल्ट क्षेत्र के लंबे विशाल भू-भाग में उस स्थान पर ही रिफाइनरी लगने जा रही है, जहां अभी वर्तमान में नमक उत्पादन हो रहा है. ये क्षेत्र नमक उत्पादन के लिए संरक्षित है. इससे नौकरी खोने वालों के पुनर्वसन की बात सरकार नहीं कर रहे.
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पिछले कई सालों से विवादों में रही राजस्थान रिफाइनरी का काम शुरु होने की घोषणा से पूरे राज्य में खुशी का माहौल है. सरकार की इस महत्वाकांक्षी परियोजना में 43,129 करोड़ रूपए का निवेश होगा. जिससे प्रदेश को 34,000 करोड़ रूपए की अतिरिक्त आय होने का अनुमान लगाया जा रहा है. 2017 तक पूरा होने वाले इस रिफाइनरी का कार्य अब 2022-23 तक पूरा होने की बात कही जा रही है.
यह रिफाइनरी बाड़मेर की धरती में करीब 4 अरब बैरल तेल का खजाना है. इससे रोज 200 कुओं से करीब 1.75 लाख बैरल तेल का उत्पादन किया जाएगा. इस रिफाइनरी की क्षमता सालाना 90 लाख टन कच्चा तेल रिफाइन करने की है. जिसमें से 25 लाख टन कच्चा तेल बाड़मेर में और बाकी का 65 लाख टन कच्चा तेल गुजरात से आएगा.
पहले बाड़मेर का कच्चा तेल रिफाइन होने के लिए गुजरात जाता था. पचपदरा में पेट्रोकैमिकल हब बनने से तेल रिफाइन होकर 6 पेट्रोलियम उत्पादों में बदल जाएगा, जो बीएस-6 मानक के हिसाब से होगा. इस रिफाइनरी का निर्माण एचपीसीएल और राजस्थान सरकार करवा रही है. ये प्रोजेक्ट कांग्रेस राज में शुरु हुआ था, जिसे बीजेपी ने बदल दिया और नए सिरे से डील की गई. नई डील के मुताबिक चार साल की देरी से प्रोजेक्ट की लागत 43 हजार 129 करोड़ पहुंच गई है, जो कांग्रेस सरकार के वक्त 37 हजार 229 करोड़ रुपये थी. वसुंधरा सरकार ने एचपीसीएल के साथ पंद्रह साल तक 1123 करोड़ रुपये बिना ब्याज के सालाना देने का करार किया है.
कच्चा तेल तो ठीक है पर नमक के मजदूरों का क्या?
बीजेपी सरकार इस रिफाइनरी के लिए भले ही अपनी पीठ थपथपा रही हो, लेकिन बाड़मेर के पचपदरा इलाके के कुछ लोग अब भी दुखी हैं. ये वो लोग हैं जिन्होंने विकास के बड़े बड़े सपने दिखाए जाने के बाद अपनी जमा पूंजी यहां लगा रखी है. इसके अतिरिक्त राजस्थान रिफाइनरी को लेकर एक ओर राज्य सरकार थार से निकलने वाले काला सोना से हजारों लोगों की किस्मत बदलने की बात कह रही है. साथ ही रिफाइनरी के निर्माण से प्लास्टिक, पेंट, फाइबर जैसे कई उद्योगों के विकास का दावा कर रही है. तो वहीं दूसरी ओर पचपदरा झील के प्रमुख नमक उत्पादन क्षेत्र के नष्ट होने के कारण नमक उत्पादनकर्ताओं के रोजगार पर संकट के बादल मंडराने लग गए हैं.
हैरानी की बात ये है कि पचपदरा व सॉल्ट क्षेत्र के लंबे विशाल भू-भाग में उस स्थान पर ही रिफाइनरी लगने जा रही है, जहां अभी वर्तमान में नमक उत्पादन हो रहा है. ये क्षेत्र नमक उत्पादन के लिए संरक्षित है. रिफाइनरी का निर्माण होने पर नमक की फैक्ट्रियां बंद हो जाएंगी और अंग्रेजों की रानी विक्टोरिया की रसोई का स्वाद बढ़ाने वाले पचपदरा के नमक उद्योग का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा.
पचपदरा झील का नमक उत्पादन क्षेत्र 3234 वर्गमील में फैला है और सदियों से खारवाल नामक जाति पचपदरा के लोगों द्वारा पीढ़ी-दर-पीढ़ी नमक उत्पादन कर रहे हैं. इस 43,129 करोड़ रुपये की लागत वाली परियोजना के चार साल में पूरा होने के बाद इससे प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष तौर पर 10,000 लोगों को रोजगार मिलने की बात सरकार कह रही है. पर नमक की खानों के बंद होने से जो हजारों लोग बेरोजगार होंगे उनके बारे में सरकार ने चुप्पी साध रखी है.
कई सालों पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक समझौते में खारवाल समाज को नमक की खानों का मालिकाना हक दिया है. साथ ही माननीय सुप्रीम कोर्ट के समझौते के बिंदु क्रमांक 16 के तहत यह शर्त लगाई गयी है कि सरकार जब भी विकास के लिये नमक उत्पादकों को खानों की भूमि ले तो उनके पुनर्वास की व्यवस्था को जिम्मेवारी सरकार की होगी. इसलिए सरकार को चाहिए कि पचपदरा नमक उत्पादन क्षेत्र मे प्रस्तावित तेल रिफाइनरी में नमक उत्पादकों के हितों का भी ध्यान रखे. रिफाइनरी से सर्वश्रेष्ठ नमक उत्पादन उद्योग क्षेत्र नष्ट हो रहा है तो रिफाइनरी को अन्यत्र लगाने के बारे में सोचे.
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