BCCI अध्यक्ष बने सौरव गांगुली का असली खेल 10 महीने बाद शुरू होगा
2013 और 2016 में भी सौरव गांगुली को लेकर राजनीतिक अटकलें लगायी जा रही थीं. गांगुली के BCCI अध्यक्ष बनने के बाद एक बार फिर चर्चा चल पड़ी है - लेकिन लगता है सही जवाब 10 महीने बाद ही मिलेंगे.
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सौरव गांगुली BCCI के अध्यक्ष की कुर्सी संभाल चुके हैं लेकिन सिर्फ 10 महीनों के लिए ही. मतलब ये कि सौरव गांगुली सितंबर, 2020 तक भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष बने रहेंगे. बतौर क्रिकेट पदाधिकारी तब उनका पांच साल पूरा हो जाएगा, इसलिए फिर उन्हें तीन साल तक कूल ऑफ पीरियड बिताने होंगे. उसके बाद ही वो फिर से ऐसे किसी पद का चुनाव लड़ सकेंगे. सौरव गांगुली सितंबर, 2015 में क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बंगाल के अध्यक्ष चुने गये थे और अपने दूसरे कार्यकाल के पूरे होने तक वो बीसीसीआई अध्यक्ष की कुर्सी पर बने रहेंगे.
सवाल ये है कि क्या सौरव गांगुली वास्तव में उसके बाद का 'कूल ऑफ' वक्त यूं ही बितायेंगे?
अभी तक सौरव गांगुली अपनी राजनीतिक पारी को लेकर पत्ते नहीं खोल रहे हैं. वैसे तो अमित शाह खुद भी गांगुली के साथ किसी तरह की डील से इंकार कर रहे हैं, लेकिन ये भी कह रहे हैं कि अगर कभी ऐसा होता है तो खुशी की बात होगी!
चैंपियन का खेल जल्दी खत्म नहीं होता!
जैसे ही सौरव गांगुली के BCCI अध्यक्ष बनने की खबर पक्की हुई, सोशल मीडिया पर #SouravGanguly और #DADAGIRI ट्रेंड करने लगे. दादा के फैन अपने अपने तरीके से खुशी का इजहार कर रहे थे.
भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान रह चुके सौरव गांगुली ने करीब एक दशक पहले अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह दिया था. जब गांगुली बीसीसीआई अध्यक्ष की कुर्सी संभालने पहुंचे तो वही ब्लेजर पहने हुए थे जो कप्तान बनने पर दादा को मिला था. ये तो नहीं मालूम कि सौरव गांगुली ने वो ब्लेजर बीच में किसी मौके पर पहना या नहीं, लेकिन इस खास मौके पर बिलकुल भी नहीं भूले.
गांगुली के ब्लेजर के लिए भी खास मौका!
खुशी भी गांगुली ने खुद ही जाहिर की, 'मुझे यह ब्लेजर तब मिला था, जब मैं भारतीय टीम का कप्तान बनाया गया था. इसलिए इस खास मौके पर मैंने इसे पहनने का फैसला किया.'
और लगे हाथ ब्लेजर की फिटिंग को अपनी फिटनेस से भी जोड़ दिया, 'मुझे इस बात का एहसास ही नहीं हुआ कि ये अब ढीला हो चुका है.'
सम्मान के आगे तो सब कुछ फीका होता है, लेकिन पैसा? पैसा भी महत्वपूर्ण होता है. एक नेता ने तो एक बार यहां तक कह दिया था - 'पैसा खुदा तो नहीं लेकिन खुदा से कम भी नहीं?'
बीसीसीआई अध्यक्ष बनने के बाद, एक अनुमान के मुताबिक, सौरव गांगुली के लिए सबसे बड़ा नुकसान तो यही होगा कि वो करीब सात करोड़ रुपये गंवा देंगे - ये आय गांगुली को क्रिकेट मैचों की कमेंट्री और ऐसे दूसरे कॉन्ट्रैक्ट से होने वाली थी. बतौर बीसीसीआई अध्यक्ष वो ऐसी किसी भी गतिविधि में शामिल नहीं हो पाएंगे.
कार्यभार संभालने के बाद मीडिया ने जब महेंद्र सिंह धोनी को लेकर सवाल पूछा तो उनका जवाब था, 'अभी मेरी बात नहीं हुई है, लेकिन हम उनसे भविष्य के बारे में जरूर चर्चा करेंगे. वो एक चैंपियन हैं और चैंपियन अपना खेल जल्दी खत्म नहीं करते.'
धोनी के बहाने गांगुली के उस दर्द को भी समझा जा सकता है जो अब तक वो अपने सीने में दफन किये हुए थे. पूरी दुनिया को मालूम है कि किस तरह गांगुली को क्रिकेट छोड़ना पड़ा था. बहरहाल, अब तो ये भी कहा जा सकता है गांगुली ने पुराने अपमानों का बदला सूद सहित वापस ले लिया है.
सवाल उठता है कि धोनी को लेकर गांगुली की राय से क्या दादा के राजनीतिक इरादे भी समझे जा सकते हैं?
दादा खुद को कब तक रोक पाएंगे?
जिस वक्त सौरव गांगुली बीसीसीआई अध्यक्ष की कुर्सी छोड़ेंगे, बिहार में विधानसभा चुनाव का माहौल चरम पर होगा - और पश्चिम बंगाल के लिए तैयारियां तेज हो चुकी होंगी. आम चुनाव की ही तरह एक बार फिर पश्चिम बंगाल में बीजेपी और टीएमसी एक दूसरे को शिकस्त देने के लिए राजनीतिक शह देने की कोशिश में दिन रात जुटे होंगे.
हाल ही में सौरव गांगुली और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की मुलाकात खासी चर्चित रही. हालांकि, बाद में पत्रकारों के सवालों के जबाव में दोनों ने ही सारे कयासों को सिरे से खारिज कर दिया.
मीडिया के सामने आने पर सौरव गांगुली का कहना रहा, 'मैं अमित शाह से पहली बार ही मिला. न तो मैंने उनसे बीसीसीआई में किसी पद के बारे में बात की और न ही कोई ऐसी चर्चा हुई.'
जब अमित शाह से एक इंटरव्यू में आजतक ने पूछा तो अमित शाह ने साफ तौर पर कह दिया करि बीसीसीआई अध्यक्ष की नियुक्ति में उनकी कोई भूमिका रही है - और उसे लेकर सौरव गांगुली के साथ किसी तरह की कोई डील नहीं हुई है.
एक और इंटरव्यू में अमित शाह ने इसे सौरव गांगुली के खिलाफ बेकार की चर्चा तो करार दिया, लेकिन ये भी जोड़ दिया कि अगर ऐसा होता है तो अच्छा है. फिर अमित शाह ने जो कुछ कहा वो बयान तो राजनीति के हिसाब से पूरी तरह फिट रहा, लेकिन शाह ने अटकलों की गुंजाइश भी छोड़ दी. अमित शाह बोले, 'मैं देश के हर नागरिक से कहता हूं कि बीजेपी एक अच्छी पार्टी है, इसे ज्वाइन कीजिए. ये मेरा जॉब है.'
जब अमित शाह के सामने सवाल उठा कि क्या भविष्य में सौरव गांगुली के साथ कोई बात हो सकती है, बीजेपी अध्यक्ष ने बात को उसी लहजे में आगे बढ़ा दिया, 'आगे कुछ भी हो सकता है. आगे बात होगी या नहीं इस पर कुछ नहीं कह सकता. अभी कोई चर्चा नहीं हुई.'
अमित शाह की तरह सौरव गांगुली ने भी ऐसे सवालों के जवाब दिये. गांगुली से ये पूछे जाने पर कि क्या 2021 में वो पश्चिम बंगाल में बीजेपी का चेहरा होंगे, जवाब रहा, 'कोई नेता मेरे संपर्क में नहीं है और यही हकीकत है. जहां तक ममता दीदी की बात है तो मैं उनका बधाई संदेश पाकर काफी खुश हूं.'
सौरव गांगुली ने ये तस्वीर ट्वीट करते हुए अनुराग ठाकुर को शुक्रिया कहा है
गांगुली और शाह भले ही राजनीतिक सवालों के जवाब इंकार के साथ दें या कयासों को खारिज करें, लेकिन जो राजनीतिक धुआं उठ रहा है वो बगैर आग लगे तो मुमकिन नहीं है. सिर्फ शाह ही नहीं सौरव गांगुली की अनुराग ठाकुर से भी मुलाकात हुई है - और हिमंता बिस्व सरमा से भी. चाहें तो गांगुली सभी के बारे में वैसा ही कह सकते हैं. फिर तो दिल्ली में वित्त मंत्री रहते अरुण जेटली से भी उनकी मुलाकात को क्रिकेट पदाधिकारी के तौर पर ही समझाया जा सकता है. कहते हैं तब गांगुली को बीजेपी में किसी बड़े पद का प्रस्ताव भी रखा गया था, लेकिन दादा ने हंसते हंसते अस्वीकार कर दिया था. वैसे तो 2016 में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले ममता बनर्जी की सत्ताधारी पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने भी सौरव गांगुली को रिझाने में कोई कम कोशिश नहीं की थी.
चर्चा तो ये भी रही है कि 2013 में ही बीजेपी की ओर से उनकी पसंदीदा सीट से लोक सभा का चुनाव लड़ने और सरकार बनने पर बतौर खेल मंत्री कैबिनेट में शामिल करने तक का ऑफर दिया गया था. ये चर्चा तब ज्यादा जोर पकड़ ली जब सौरव गांगुली ने किसी कॉमन दोस्त के साथ बीजेपी नेता वरुण गांधी से मुलाकात की थी.
तब समाचार एजेंसी PTI ने एक बंगाली अखबार का जिक्र करते हुए खबर दी कि सौरव गांगुली ने कहा था, "हां, मुझे ऑफर किया गया है. लेकिन मैं अभी तक कोई फैसला नहीं कर पाया हूं. मैं पिछले कई दिनों से बहुत व्यस्त रहा हूं... मैं जल्द ही बताऊंगा."
ये तब की बात है जब पीलीभीत से मौजूदा बीजेपी सांसद वरुण गांधी पश्चिम बंगाल में पार्टी के प्रभारी महासचिव हुआ करते रहे. तब से न तो गांगुली की तरह से कोई बात बतायी गयी - और न ही बीजेपी की ओर से.
चर्चाएं फिर छिड़ी हैं. 10 महीने बाद भी गांगुली से ये सवाल पूछे जाएंगे. हो सकता है तब तक दादा इस बारे में कोई फैसला कर लें और बता भी दें. फिलहाल तो यही मान कर चलना होगा कि सिर्फ मोहब्बत ही नहीं, राजनीति में भी कई बार जोरदार इंकार में गहरा इकरार छिपा होता है - जुबां चुप होती है और आंखें बातें बता देती हैं.
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