मोदी-राहुल की राजनीति से कहीं बारीक है क्रिकेट की राजनीति
मिताली राज को लेकर जो सौरव गांगुली ने कहा है उसके बाद ये मान लिया जे कि क्रिकेट की राजनीति मोदी-राहुल की राजनीति से कहीं बारीक है और यहां उसी का कल्याण होता है जिसमें फेवरेट बनने के गुण हों.
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क्रिकेट के खेल में प्रिडिक्शन की गुंजाइश कम होती है. टीम और खिलाड़ी किस प्लानिंग के आधार पर मैदान में आए हैं. कुछ पता नहीं होता. टीम के खिलाड़ियों के लिए दो लोग एक कोच दूसरा कप्तान उत्प्रेरक की भूमिका निभाते हैं. खिलाड़ी टीम में इन होगा या आउट इसकी जानकारी या तो कोच को होती है या फिर कप्तान को. भारतीय महिला क्रिकेट टीम की स्टार परफ़ॉर्मर मिताली राज टीम से बाहर हैं. मिताली को महिला टी-20 विश्व कप में इंग्लैंड के खिलाफ खेले जाने वाले सेमीफाइनल मैच से ठीक पहले बाहर का रास्ता दिखाया गया है. मिताली को टीम से बाहर किये जाने की इस घटना को टीम इंडिया के पूर्व कप्तान सौरव गांगुली एक बड़ी साजिश का हिस्सा मानते हैं. सौरव का मानना है कि जब वह अपने करियर के शिखर पर थे तब चयनकर्ताओं ने उनके साथ भी कुछ ऐसा ही सुलूक किया था और उन्हें बाहर रखा गया था.
मिताली राज की जैसी दशा महिला टीम में हुई है उसने सौरव गांगुली को बहुत आहत किया है
अपनी स्मृतियों को याद करते हुए गांगुली ने कहा कि, 'भारत की कप्तानी करने के बाद मुझे भी डगआउट में बैठना पड़ा था. जब मैंने देखा कि मिताली राज को भी बाहर किया गया है तो मैंने कहा, 'इस ग्रुप में आपका स्वागत है.' गांगुली ने पाकिस्तान के खिलाफ 2006 में खेले गए दूसरे टेस्ट मैच को याद करते हुए कहा, 'कप्तान आपको बाहर बैठने के लिए कहते हैं तो वैसा करो. मैंने फैसलाबाद में ऐसा किया था. मैं 15 महीने तक वनडे नहीं खेला, जबकि मैं संभवत वनडे में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर रहा था. जिंदगी में ऐसा होता है. कभी-कभी दुनिया में आपको बाहर का रास्ता भी दिखाया जाता है.'
आत आगे बढ़ाने से पहले हमारे लिए मिताली के फॉर्म पर बात करना बेहद जरूरी है. पाकिस्तान और आयरलैंड के खिलाफ हुए मैच में मिताली ने शानदार प्रदर्शन किया था और दोनों ही मैचों में उन्होंने अर्धशतक जड़ा था. वहीं जब ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेलने की बात आई तो उन्हें रेस्ट के नाम पर टीम से बाहर भेजा गया था. इसके बाद इंग्लैंड के खिलाफ सेमीफाइनल में भी मिताली को अंतिम एकादश में नहीं रखा गया. इस मैच में भारत को आठ विकेट से करारी हार झेलनी पड़ी थी.
सौरव को महसूस हो रहा है कि मिताली एक बड़ी साजिश का शिकार हो रही हैं
मिताली को केंद्र में रखकर गांगुली ने ये भी कहा कि, अभी मिताली के लिए रास्ते बंद नहीं हुए हैं. 'इसके अलावा गांगुली ने ये भी कहा कि आपको हमेशा यह याद रखना चाहिए कि आप सर्वश्रेष्ठ हैं क्योंकि आपने कुछ अच्छा किया है और मौका फिर से आएगा. इसलिए मिताली राज को बाहर बैठने के लिए कहने पर मुझे निराशा नहीं हुई. मैं मैदान पर प्रतिक्रियाओं को देखकर निराश नहीं हूं. लेकिन मुझे निराशा है कि भारत सेमीफाइनल में हार गया, क्योंकि मुझे लगता है कि वह आगे बढ़ सकता था. ऐसा होता है कि क्योंकि कहा भी जाता है कि जिंदगी में कोई गारंटी नहीं है.'
इसके अलावा गांगुली, अपने प्रदर्शन के चलते लगातार आलोचना का शिकार हो रहे पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के साथ भी कंधे से कंधा मिलाकर खड़े होते दिखाई दिए. धोनी को लेकर गांगुली का मत है कि वह अब भी बड़े छक्के लगाने में सक्षम हैं और उन्हें टीम में बने रहना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘वह एक और चैंपियन हैं. विश्व टी-20 में जीत के बाद पिछले 12-13 वर्षों से उनका शानदार करियर रहा.
जिंदगी में आप जो भी काम कर रहे हो, जहां भी हो. आप की जो भी उम्र है या आपके पास जितना भी अनुभव है आपको शीर्ष स्तर पर लगातार अच्छा प्रदर्शन जारी रखना होगा अन्यथा कोई आपका स्थान ले लेगा. मैं उन्हें शुभकामना देता हूं क्योंकि हम चाहते हैं कि चैंपियन अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करें. मेरा अब भी मानना है कि वह लंबे शॉट मार सकता है. वह बेजोड़ क्रिकेटर है.’
धोनी को लेकर भी सौरव का मानना है कि उनके साथ भी गलत हुआ
कुल मिलकर यदि गांगुली द्वारा कही बातों का गंभीरता से अवलोकन किया जाए तो मिल रहा है कि कहीं न कहीं गांगुली ने ये बताने का प्रयास किया है कि भारतीय टीम में जगह उसी को मिलती है जो फेवरेट हो. या फिर कोच से लेकर कप्तान तक सबका फेवरेट बनने का हुनर उसे आता हो.
बात साफ है जैसी स्थिति टीम इंडिया की है. उसको देखकर इस बात का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि टीम इंडिया और उसके सिलेक्शन प्रोसेस में जिस तरह की राजनीति चल रही है वो इस देश की राजनीति विशेषकर मोदी-राहुल की राजनीति से कहीं अलग और कहीं ज्यादा बारीक है.
पूर्व से लेकर वर्तमान तक कई ऐसे मौके आए हैं. जो ये साफ साफ बता देते हैं कि किस तरह राजनीति में जीतने वाले कैंडिडेट को दरकिनार कर नेता जी के फेवरेट या किसी करीबी को चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया जाता है. ठीक उसी तरह क्रिकेट की टीम में भी सिकंदर वही होता है जो कोच, सेलेक्टोर्स और कप्तान को खुश करना जानता हो.
क्रिकेट में जान पहचान बहुत जरूरी है. मठाधीशों द्वारा भी खराब फॉर्म वाले क्रिकेटर को ये कहकर बचा लिया जाता है कि खिलाड़ी कई दिन का थका हुआ है और इसमें अभी 5 या फिर 10 साल का क्रिकेट बचा हुआ है.
अंत में बस इतना ही कि चाहे खुद सौरव हों या फिर धोनी और मिताली जिस तरह एक समय के बाद खिलाड़ियों को बाहर का रास्ता दिखाया जाता है और उनके चमकते हुए करियर को गर्त के अंधेरों में डाल दिया जाता है उस पीड़ा को वही समझ सकता है जिसके साथ ये हुआ है. मिताली एक उम्दा क्रिकेटर हैं, उन्हें विषम परिस्थितियों को हैंडल करना आता है. वो जल्द ही इसका भी कोई समाधान निकालेंगी और अपने आलोचकों का मुंह बंद करेंगी.
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