Bengaluru Riots: हिंसा भड़काने वाले से ज्यादा बुरे हिंसा को अंजाम देने वाले हैं!
आजादी के 75 साल बाद बेंगलुरु (Bengaluru) में लोगों का पैगंबर मोहम्मद (Prophet Mohammad) को लेकर लिखी गयी एक फेसबुक पोस्ट (Facebook Post) से आहत होना और दंगा (Riots) करना ये बताता है कि लोगों के दिमाग में गंदगी भरी है जिसे अगर कोई साफ कर सकता है तो वो केवल देश का कानून है.
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कर्नाटक (Karnataka) की राजधानी बेंगलुरु (Bengaluru) जिसका नाम सुनते ही मन में जो तस्वीर बनती है वह बहुत खूबसूरत, शांत और शिक्षित शहर के रूप में दिखाई देती है. लेकिन सोशल मीडिया के एक पोस्ट ने पूरे शहर की तस्वीर सामने रख दी है और यह साबित कर दिया है कि शहर की यह छवि महज एक भ्रम है. मामला कुछ यूं है कि कांग्रेस विधायक श्रीनिवास मूर्ति (Congress MLA Srinivasa Murthy) के भतीजे ने एक भड़काऊ पोस्ट (Facebook Post) सोशल मीडिया पर शेयर की. इस पोस्ट ने लोगों को भड़का दिया और इस कद्र भड़का दिया कि आगजनी शुरू हो गई (Bengaluru Riots). पत्थर बरसने लगे. तोड़फोड़ होने लगी. हालात बेकाबू हो गए पुलिस को सबकुछ काबू में करने के लिए जो आखिरी फैसला लेना पड़ा वो फायरिंग का फैसला था. तीन लोग मारे गए सैकड़ों घायल हुए और इन सबका ज़िम्मेदार कौन है इस पर मंथन अपने अपने नज़रिए से जारी है. फिलहाल एक बात तो तय है कि यह सबकुछ अचानक से हो जाने वाली घटना नहीं है. सैकड़ों वाहनों का फूंका जाना पूरे थाने को आग के हवाले कर देना अचानक से तो नहीं हो सकता है. कर्नाटक सरकार में मंत्री सीटी रवि ने तो साफ कह डाला है कि यह सबकुछ सुनियोजित था.
पोस्ट होने के चंद घंटे के भीतर ही हजारों की संख्या में लोग इकठ्ठा हो गए. पेट्रोल बम और पत्थर का इस्तेमाल भी खूब किया गया. मंत्री जी ने साफ कहा है कि वह इसकी भरपाई उन्हीं लोगों से करेंगें जिन्होंने इसको अंजाम दिया है. यह उत्तर प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ का फार्मूला है जो बहुत ही लाजवाब है. हर राज्य में दंगाईयों के लिए ऐसा ही होना चाहिए. हिंसा फैलाने वाले लोग अपराधी होते हैं. हिंसा को रोकने के लिए इसी फार्मूले पर हर राज्य को काम करना चाहिए.
खबरों की मानें तो इस पूरे घटना की शुरुआत एक भड़काऊ पोस्ट की वजह से हुई. जिसका विरोध स्थानीय लोगों ने किया. स्थिति खराब होने पर इस पोस्ट को डिलीट कर दिया गया. लेकिन कुछ असमाजिक किस्म के लोगों ने विधायक के आवास पर तोड़फोड़ शुरू कर दी. पुलिस थाने को भी अपना निशाना बनाया गया. आगज़नी की घटना को भी अंजाम दिया गया. कई पुलिस वाले भी ज़ख्मी हो गए. पुलिस ने फायरिंग की तो लोगों की भीड़ तितर-बितर हो गई और कुछ हालात काबू में आए.
बेंगलुरु में कुछ इस तरह दंगाइयों ने सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया है
पुलिस ने तकरीबन 150 लोगों को गिरफ्तार भी किया है. अब सवाल उठता है कि क्या एक भड़काऊ पोस्ट का विरोध इस तरह होना चाहिए. माना पोस्ट असमाजिक था अमर्यादित था लेकिन इसके जवाब में जो हिंसा की घटना हुई वह तो इससे भी ज़्यादा अमर्यादित और अशोभनीय था. किसी भी भड़काऊ पोस्ट या बयान का विरोध करने का अधिकार सभी को है लेकिन इसी विरोध के नाम पर हिंसा करने का अधिकार किसी को भी नहीं है और अगर विरोध के नाम पर हिंसा होती है तो कानून आपको बख्श देने वाला नहीं है.
समुदाय विशेष के लोगों को सोचना चाहिए कि किसी भी भगवान या ईश्वर के दूत के बारे में आपत्तीजनक भाषा या भड़काऊ बातें आज ही नहीं हो रही है. विरोध का स्वर उन्होंने अपने जीवन में भी देखा था लेकिन अपने व्यवहार और अपने नैतिकता के चलते उन्होंने मोहब्बत की मार्ग पर चलकर उनको जवाब दिया था. वह किसी भी सूरत में अशांति नहीं फैलाते थे.
हिंसा का मार्ग केवल और केवल नफरत को बढ़ावा देता है. भारत जैसा खूबसूरत संविधान किसी भी देश के पास नहीं है. यहां का कानून किसी भी व्यक्ति के खिलाफ आपत्तिजनक भाषा का सपोर्ट नहीं करता है फिर यहां तो बात ईश्वर के दूत की थी. इस भाषा के खिलाफ भी कानून में प्रावधान है लेकिन उसके लिए कानून के रक्षक अपने कतृव्य को अंजाम देंगें. कोई भी धर्म, समाज, गिरोह, गुट, तबका कानून को अपने हाथ में नहीं ले सकता है.
बेंगलुरु में जो कुछ भी हुआ वह एक अपराध है. हिंसा को फैलाना या बढ़ावा देना धार्मिक लिहाज़ से भी अपराध है दुनिया का कोई भी मज़हब हो वह हिंसा के खिलाफ होता है. हिंसा की जांच शुरू हो गई है. जो इसके गुनहगार हैं उनको सज़ा भी मिलने वाली है. लेकिन इस हिंसा को अंजाम देने वाले लोग वह लोग हैं जो समाज में गंदगी फैलाना चाहते हैं. आगे कई नई जानकारियां भी सामने आने वाली हैं जो इस पूरे मामले की तस्वीर को साफ कर देंगे.
फिलहाल हमें दो चीज़ों की ज़रूरत है. पहली यह कि समाज को धर्म और जाति के बीच भड़का कर लोगों को उकसाने वालों के लिए कठोर सजा का प्रावधान हो ताकि किसी भी धर्म या जाति के लोगों को ठेस पहुंचाने के कार्य पर लोगों में एक डर पैदा हो और कोई भी वयक्ति किसी भी धर्म या जाति के लोगों को उकसा न सके.
दूसरा यह कि हिंसा को अंजाम देने वाले लोगों की असल पहचान कर उनके खिलाफ सख्त कार्यवाई हो ताकि हिंसा को अंजाम देने वालों में इसका भय साफतौर पर हो. समाज को बांटने वाला किसी भी सूरत में एक अच्छा इंसान नहीं हो सकता है. वह अपने धर्म के सिद्धान्तों के खिलाफ जाकर ही ये हरकत करता है. फिर वह अपनी ज़बान से समाज में नफरत फैलाए चाहे शहर को आग के हवाले कर दे.
कानून सबसे बड़ा है कानून का डर ज़रूर होना चाहिए. भारत को धर्म, जाति के घिनौने खेल से जल्द ही बाहर आना होगा तभी भारत दुनिया के शिखर पर पहुंच सकेगा.
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