कांग्रेस में प्रियंका राज की शुरुआत है पायलट की री एंट्री!
राजस्थान (Rajasthan) में जो गतिरोध अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) और सचिन पायलट (Sachin Pilot) के बीच चल रहा है उसे जिस तरह प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi)ने सुलझाया साफ़ हो जाता है कि अब कांग्रेस वो कांग्रेस नहीं रही, जो रूठते को जाते देखती थी. ये प्रियंका की कांग्रेस है. इसे बिगड़ी चीजें हैंडल करना आता है.
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राजस्थान (Rajasthan) के सियासी ड्रामे में जो कांग्रेस (Congress) नजर आई है, यह प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) की कांग्रेस है. महाराष्ट्र (Maharashtra) के सियासी ड्रामे में जिस रोल को सियासी क्षत्रप शरद पवार (Sharad Pawar) ने निभाया था. उस रोल को राजनीति की नई मगर माहिर खिलाड़ी प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) ने निभाया है. सचिन पायलट (Sachin Pilot) पर आरोप था कि वह बीजेपी के गोद में बैठे हैं. राजस्थान (Rajasthan) के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) के करीबी हैं. अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) ने अपना पूरा दम लगा रखा था कि सचिन पायलट(Sachin Pilot) को पार्टी से निकाल कर ही मानेंगे. हालात अच्छे नहीं थे, मगर प्रियंका गांधी ने जिस मैच्योरिटी का प्रदर्शन किया है, वह बदलते कांग्रेस की बानगी है. 12 जुलाई को हुए इस पूरे घटनाक्रम को देखें तो साफ लगता है कि बीजेपी राजस्थान कांग्रेस की फूट का पूरा फायदा उठाने में लगी हुई है. सचिन पायलट भावुक इंसान हैं और जहां भावना होती है वहां गुस्सा भी होता है. गुस्से में सचिन पायलट ने राजस्थान सरकार को गिराने की ठान ली. पुरानी कांग्रेस होती तो शायद अपनी सरकार बचाने भर की जिम्मेदारी उठाती और घमंड से लबालब होकर सचिन पायलट को बाहर का रास्ता दिखामदमस्त होकर पायलट का मजाक उड़ाती और अट्ठाहास करती. मगर इस बार बदली बदली सी कांग्रेस थी.
जिस तरह प्रियंका गांधी ने सचिन पायलट और अशोक गहलोत विवाद निपटाया वो काबिल ए तारीफ है
पहले दिन से दिल्ली कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने यह रूख अख्तियार किया कि सचिन पायलट पर कोई भी सियासी या व्यक्तिगत हमला नहीं बोलेगा. यह आसान काम नहीं होता है कि सचिन पायलट जैसा नेता अशोक गहलोत की सरकार गिराने की कोशिश कर रहा हो और वह भी बीजेपी के साथ मिलकर, मगर कांग्रेस चुप्पी साधे रहे. गांधी परिवार की चुप्पी से एक बात तो साफ थी कि उनके मन में सचिन पायलट के लिए एक सॉफ्ट कॉर्नर था और पायलट के लिए उनके दरवाजे खुले थे.
अशोक गहलोत ने जब जयपुर में फेयरमाउंट होटल के बाहर सचिन पायलट को नकारा और निकम्मा कहा, उस बयान के महज 1 मिनट बाद कांग्रेस आलाकमान का फोन अशोक गहलोत के पास आ गया था. बयान देने के बाद 15 मिनट तक वह गाड़ी में बैठ कर बात करते रहे और फिर अपने दफ्तर के लिए निकले गहलोत वापस होटल में चले गए थे. शाम को उन्हें सफाई देनी पड़ी कि वह संगठन के मामले में बोल रहे थे निजी हमला नहीं कर रहे थे.
अशोक गहलोत लाख कोशिश करते रहें कि सचिन पायलट की विदाई कांग्रेस से कर दी जाए मगर कांग्रेस आलाकमान ने अपनी पार्टी के किसी बड़े नेता के स्वार्थ को पार्टी के बड़े मकसद के लिए कामयाब नहीं होने दिया. जब दिल्ली से कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल जैसलमेर पहुंचे और विधायकों से बातचीत की तब यह साफ हो गया था कि कुछ तो चल रहा है.
चार दिनों तक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने विधायकों के भी जैसलमेर नहीं आए तो साफ संकेत मिल रहे थे पायलट और गांधी परिवार के बीच कुछ तो चल रहा है. अचानक से अशोक गहलोत जैसलमेर पहुंचे और विधायक दल की बैठक बुलाकर सचिन पायलट को पार्टी से निकालने की मांग की तब यह समझ में आ गया था कि अशोक गहलोत एक हारी हुई बाजी खेल रहे हैं.
हालांकि अशोक गहलोत की ताकत उनके सूचनाओं के स्रोत हैं. वह विधायकों से जैसलमेर में बातचीत करते हुए इस बात का संकेत दे दिए थे जब वह कह रहे थे कि राजेश में कभी-कभी दिल पर पत्थर भी रखना पड़ता है. मगर तब जैसलमेर के होटल में बैठे विधायकों ने इसका मतलब पायलट की वापसी के बाद समझा.
दरअसल इस पूरे मामले में अशोक गहलोत की भी गलती नहीं है. जैसे ही कुछ विधायकों को लगा कि मौका है सचिन पायलट की शिकायत कर अशोक गहलोत के नजरों में अपना नंबर बढ़ाए तो वह होटल में अशोक गहलोत को घेर कर बैठ जाते थे. सचिन पायलट के साजिश रचने की नई नई कहानियां बताते थे. जब अशोक गहलोत सुनते सुनते भर जाते थे तो होटल से बाहर निकलकर मीडिया के सामने पायलट को भला बुरा कहते थे. मगर इस सब के बावजूद प्रियंका गांधी ने हिम्मत नहीं हारी.
जिस तरह से मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के भरोसे पर कांग्रेस आलाकमान बैठी रही और मध्य प्रदेश को खो दिया उस तरह के अशोक गहलोत के भरोसे पर अब प्रियंका गांधी नहीं बैठना चाहती थी. प्रियंका गांधी को इस बात का अंदाजा था कि अशोक गहलोत भले ही 1 या 2 विधायकों के बहुमत के दम पर अपनी सरकार बचा भी लें तो आगे के तहत 3 साल तक सरकार बचाना आसान नहीं होगा. पूरे 3 साल इसी तरह से पार्टी की छीछालेदर होती रहेगी.
इसके अलावा सचिन पायलट केवल राजस्थान के नेता नहीं हैं. बल्कि गांधी परिवार के अलावा अगर पूरे हिंदुस्तान में चुनाव के समय सबसे ज्यादा किसी नेता की मांग होती है तो सचिन पायलट की होती है. सचिन पायलट के कांग्रेस छोड़ने से यूपी, हरियाणा ,राजस्थान दिल्ली और जम्मू कश्मीर तक में गुर्जर वोटों का नुकसान होने का डर था.
कहते हैं कि प्रियंका गांधी ने सचिन पायलट को बुलावा भेजा और कांग्रेस के विचारों में पले बढ़े सचिन पायलट के लिए खुद को रोक पाना संभव नहीं था. क्योंकि सचिन पायलट भले ही मुख्यमंत्री बनने के लिए बीजेपी के साथ जा रहे थे मगर उनकी असल शिकायत तो यही थी कि अपनी शिकायत करें कहां?प्रियंका गांधी ने जिस तरह से नाराज विधायकों से मुलाकात कर उनके साथ तस्वीरें खिंचाई है यह पार्टी के निचले तबके में एक बड़ा संदेश गया है.
असम के कांग्रेस नेता हेमंत विश्व शर्मा ने राहुल गांधी पर यह आरोप लगाकर कांग्रेस छोड़ी थी कि उनकी सुनवाई नहीं हो रही है.ज्योतिराज सिंधिया ने कांग्रेस आलाकमान पर आरोप लगाकर कांग्रेस छोड़ी थी की पार्टी में कोई सुन नहीं रहा था. प्रियंका गांधी ने यह गलती राजस्थान में कांग्रेस आलाकमान को नहीं दोहराने दी और खुद आगे बढ़कर पूरे मामले की कमान संभाली.
सचिन पायलट ने कांग्रेस के वार रूम से बाहर निकाल कर जिस तरह से कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी के अलावा प्रियंका गांधी का आभार जताया उससे साफ हो गया कि कांग्रेस में अब प्रियंका राज शुरू हो गया है. यूपी की यह प्रभारी महासचिव अब कांग्रेस के रंग ढंग के साथ तेवर और अंदाज भी बदलेगी.
इस पूरे मामले में बीजेपी सकते में है. प्रियंका गांधी ने शरद पवार के स्टाइल में बीजेपी को करारा सियासी तमाचा मारा है. इस थप्पड़ की गूंज राजस्थान की राजनीति में बीजेपी को लंबे समय तक याद रहेगी. वसुंधरा राजे जैसे कद्दावर नेता का कद इस पूरे एपिसोड में मिट्टी में मिल गया है. वसुंधरा राजे ने जिस तरह से अशोक गहलोत को मदद करने की कोशिश की उसके बाद वसुंधरा की राजनीति का राजस्थान में परवान चढ़ना आसान नहीं होगा. प्रियंका गांधी की इस करारी राजनीति ने बीजेपी के कद्दावर नेता वसुंधरा का चेहरा भी संदिग्ध कर दिया है.
हालांकि पायलट और गहलोत सियासी अदावत में इतनी दूर निकल चुके हैं कि एक साथ मिल कर काम करना आसान नहीं होगा. नाराज गहलोत को मनाना भी कांग्रेसी आलाकमान की बड़ी जिम्मेदारी है. अशोक गहलोत को लगता है कि पैसे और छवि का बड़ा नुकसान हुआ है. प्रियंका गांधी ने कांग्रेस परिवार के लिए गोंद बनने की शुरुआत का काम किया है, मगर यह सफर आसान नहीं है.
इसके बाद प्रियंका की जिम्मेदारी और बढ़ जाएगी कि भविष्य में इस तरह से पार्टी की किरकिरी नहीं हो. 80 के दशक से पहले का अधिनायक वादी कांग्रेस का आलाकमान कांग्रेस को नहीं चाहिए मगर ऐसा आलाकमान तो चाहिए ही जो अपनी नीति और नियत के बल पर कांग्रेस के लिए ऐसे गोंद का काम करें जिसके चिपकाने और चिपकने की क्षमता चिरस्थाई हो. इस पूरे प्रकरण में प्रियंका गांधी अगर अशोक गहलोत और सचिन पायलट को एक कर पाई कांग्रेस जीतेगी और प्रियंका गांधी का कद कांग्रेस की राजनीति में बढ़ेगा.
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