इस भारत बंद का हासिल क्या?
नोटबंदी से त्रस्त आम जनता को इस भारत बंद से हासिल क्या होगा? क्या ये बंद किसी भी तरह से अपने पैसों के लिए जूझ रही आम आदमी को राहत देगा?
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केंद्र सरकार के नोटबंदी के फैसले के खिलाफ पूरा विपक्ष एकजुट है. विपक्ष का आरोप है कि सरकार कालेधन का झांसा देकर लोगों को बेवकूफ बना रही है, इस नोटबंदी से कालेधन वालों को नहीं बल्कि आम जनता को काफी परेशानी हो रही है. एकजुट विपक्ष ने आम आदमी की परेशानियों का हवाला देकर 28 नवंबर को भारत बंद का आह्वान किया है. इस मुहिम में 14 पार्टियां शामिल हैं, जिसमें टीएमसी, जेडीयू, सीपीएम, सीपीआई, एनसीपी, बीएसपी और आरजेडी जैसे दल हैं. हालांकि, विपक्ष का ये तर्क खुद में ही हास्यपद है कि पहले से ही नोटबंदी से त्रस्त आम जनता को इस भारत बंद से हासिल क्या होगा? क्या ये बंद किसी भी तरह से अपने पैसों के लिए जूझ रही आम आदमी को राहत देगा?
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इसमें कोई दो राय नहीं कि सरकार के नोटबंदी के फैसले के बाद से ही आम लोगों को कई जगहों पर काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, बैंकों के आगे दिन रात लंबी लंबी लाइन देखी जा रही है. मगर विपक्ष का भारत बंद किसी प्रकार से परेशान जनता की परेशानियों को कम कर पाएगा ऐसी कोई संभावना नहीं.
सांकेतिक फोटो |
क्या असर पड़ेगा-
बात करें अगर इस बंद से परेशानियों की तो भारत के कई राज्यों में शिक्षण संस्थानों में छुट्टी कर दी गई है, यातायात पर भी इसका असर देखने को मिलेगा, कुछ जरुरी सेवाओं को छोड़ कर बाकी सभी क्षेत्रों में इसका असर दिख सकता है. इस बंद का असर हालांकि पूरे भारत में दिखने के आसार कम ही हैं, मगर फिर भी अगर पूरे भारत में छुटपुट रूप में भी इस बंद का असर दिखे तो करोड़ों का कारोबार इससे जरूर प्रभावित होगा. सितंबर में ट्रेड यूनियन ने पूरे देश में व्यापक बंद ऐलान किया था उस बंद के बाद एसोचैम के आकलन के अनुसार पूरे भारत में करीब 18,000 करोड़ का कारोबार प्रभावित हुआ था. हो सकता है कि 28 नवंबर का बंद शायद इतने बड़े स्तर पर ना हो, मगर इससे जो भी नुकसान होगा वो उस आम जनता का ही होगा.
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विपक्ष के तर्क इस बंद पर खुद काफी विरोधाभाषी हैं, जहाँ इस बंद में शामिल सभी पार्टियां खुद को आम आदमी का सबसे बड़े मसीहा साबित करने में कोई कमी नहीं छोड़ रही हैं, वहीं इस बंद से आखिर में सबसे ज्यादा परेशानी उस आम आदमी को ही झेलनी है जिसके नाम पर ये सारा ड्रामा किया जा रहा है. अगर विपक्ष वाकई में सरकार के इस कदम के खिलाफ है तो इसके लिए संसद में बहस को तरजीह दे सकता था. मगर इस मुद्दे पर पक्ष विपक्ष दोनों चर्चा से भाग रहे हैं. शीतकालीन सत्र में अभी तक दूसरे सप्ताह में भी कोई काम नहीं हो पाया. लोकसभा में तो इस अवधि में ना के बराबर काम हुआ है. वहीं, राज्य सभा में दो दिन के अलावा कोई काम नहीं हो पाया. विपक्ष इस मुद्दे पर नोटबंदी के संभावित नुकसान को बता सत्ता पक्ष को कटघरे में ला सकती थी. मगर विपक्ष इस मुद्दे पर भारत बंद बुला कर खुद घिरती दिख रही है. नरेंद्र मोदी ने भी मन की बात में यह कह कर कि "आप कालाधन बंद करना चाहते हैं कि भारत" विपक्ष को कटघरे में खड़ा कर दिया है.
शायद इस बंद से खुद को होने वाले नुकसान का आकलन करते हुए कांग्रेस ने अपने को इस बंद से अलग रखने का ऐलान कर दिया है. फिर भी विपक्ष की 10 से ज्यादा पार्टियां जनता को परेशानियों से बचाने को भारत बंद करती दिखेंगी.
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