बघेल की कुर्बानी बेकार गई, समझो ब्राह्मण-OBC दोनों वोट हाथ से गये!
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा (Priynka Gandhi Vadra) ने भूपेश बघेल (Bhupesh Baghel) का पक्ष लेकर जातीय राजनीति (Caste Politics) की जो राह पकड़ी थी, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के पिता की गिरफ्तारी के बावजूद वो फायदा मिलता नजर नहीं आ रहा है.
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कांग्रेस के छत्तीसगढ़ मॉडल के रुझान तो राहुल गांधी के दौरे से पहले ही आने लगे. भूपेश बघेल (Bhupesh Baghel) ने 'बतौर मुख्यमंत्री' वायनाड से कांग्रेस सांसद राहुल गांधी को छत्तीगढ़ दौरे का न्योता दिया था - और उसमें खास फोकस बस्तर क्षेत्र को लेकर दिखा था.
हो सकता है टीएस सिंहदेव को भी राहुल गांधी के दौरे को लेकर उम्मीद की कोई किरण नजर आयी हो. टीएस सिंहदेव छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री की कुर्सी के मौजूदा आधे कार्यकाल के दावेदार हैं - और सोच रहे होंगे कि अगर भूपेश बघेल की गलतियां राहुल गांधी ने पकड़ ली तो काम बन जाएगा.
हो सकता है भूपेश बघेल के मन में भी ऐसी कोई आशंका हो - और वैसी नौबत आने से पहले भूपेश बघेल ने प्रियंका गांधी वाड्रा (Priynka Gandhi Vadra) की सहमति लेकर या सलाह से अपने पिता नंद कुमार बघेल की गिरफ्तारी का फरमान जारी कर दिया हो - ये सोच कर कि ये कुर्बानी तो बेकार जाने से रही.
मनुष्य का सोचा हुआ होता कहा है? भले ही वो राजनीति का ही फील्ड क्यों न हो. ये तो ऐसा लगता है जैसे उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों की नाराजगी से बचने के लिए कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने ओबीसी वोट बैंक को भी नाराज कर दिया हो - जातीय राजनीति (Caste Politics) के फायदे भी हैं और बड़े नुकसान भी. जरा सी चूक हुई और लेने के देने पड़ जाते हैं.
भूपेश बघेल के नजरिये से देखें तो कुर्सी पर पकड़ मजबूत बनाये रखने के लिए तो ये सियासी चाल काफी फायदेमंद लगती है, लेकिन प्रियंका गांधी वाड्रा के हिसाब से देखें तो नंद कुमार बघेल की गिरफ्तारी से कुर्मी समाज तो नाराज होगा ही, और सोशल मीडिया के जरिये गिरफ्तारी के नाम पर जो नजारा देखने को मिला है. वो महाराष्ट्र में केंद्रीय मंत्री नारायण राणे की गिरफ्तारी के वाकये से तो बिलकुल ही अलग है - ये तो ऐसा लग रहा है जैसे कांग्रेस ने पूरे के चक्कर में आधा भी गवां दिया है.
एक मुख्यमंत्री के पिता की गिरफ्तारी!
देश के एक मुख्यमंत्री का अपने पिता के खिलाफ FIR दर्ज करने और फिर गिरफ्तारी की मंजूरी देना - कोई मामूली बात नहीं, बहुत बड़ी बात है. राजनीति में ऐसी कुर्बानियां कम ही देखने को मिलती हैं.
जब लोग कुर्सी पर जमे रहने के लिए इस्तीफा देने को तैयार न हों, ऐसे में कोई नेता कुर्सी पर रहते हुए अपने पिता की गिरफ्तारी की मंजूरी या आदेश दे और फिर बयान दे - कानून की नजर में सब बराबर हैं.
लेकिन नंद कुमार बघेल की एक तस्वीर ही सारा पोल खोल देती है. एक वायरल तस्वीर में नंद कुमार बघेल के लिए थाने का सरकारी फर्नीचर डाइनिंग टेबल और कुर्सी में तब्दील हो जाता है.
नंद कुमार बघेल की गिरफ्तारी भूपेश बघेल और प्रियंका गांधी वाड्रा के एक तीर से दो निशाना साधने से कहीं ज्यादा दुधारी तलवार जैसा खतरनाक नजर आ रहा है!
बेशक कानून की नजर में सब बराबर नजर आते जब छत्तीसगढ़ के हर थाने में गिरफ्तारी के बाद पुलिस हर आरोपी से ऐसे ही पेश आती. यही वजह है कि सोशल मीडिया पर सभी ने तस्वीर पर नाराजगी नहीं जतायी है, बल्कि कह रहे हैं कि जब तक आरोप साबित न हों, पुलिस से ऐसा व्यवहार अपेक्षित है.
लेकिन तस्वीर देखते ही केंद्रीय मंत्री नारायण राणे की गिरफ्तारी का वीडियो आंखों के सामने आ जाता है - जब उनके हाथ में डिनर की थाली है और उनको दो मिनट के लिए भी पुलिस बख्श देने को तैयार नहीं नजर आ रही है.
दोनों ही गिरफ्तारियों के पीछे प्रक्रिया, परिणति और मकसद तो तकरीबन एक जैसे ही हैं - हां, नारायण राणे को तत्परता के चलते 8 घंटे में ही जमानत मिल जाती है, जबकि नंद कुमार बघेल जमानत न मांग कर जेल भेज दिये जाते हैं.
नंद कुमार बघेल के खिलाफ रायपुर के डीडी नगर थाने में आईपीसी की धारा 505 और धारा 153 ए के तहत केस दर्ज किया गया था. कोर्ट में पेश किये जाने के बाद वो 15 दिन की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिये गये - मामले की अगली सुनवाई 21 सितंबर को होगी.
पिता के खिलाफ पुलिस एक्शन को लेकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का कहना रहा, 'पिता के रूप में उनको पूरा सम्मान है, लेकिन माहौल बिगाड़ने वाले लोगों पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी - समाज में सभी वर्गों के बीच समरसता और भाईचारा बने रहना चाहिये, कोई कोई इसमें आड़े आएगा तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी.
नंद कुमार बघेल अपने खिलाफ बेटे भूपेश बघेल के एक्शन पर फेसबुक पोस्ट में लिखते हैं, "निश्चित ही आपने पुत्रधर्म और राजधर्म का पालन कर जो मिसाल भारतीय राजनीति में दिया है, वह देश में विरले ही देखने को मिलता है मुझे आप पर गर्व है, परंतु मेरा एक ही धर्म है और वह है एससी-एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक लोगों के हक और अधिकार के लिए अपना सर्वस्व निछावर करना. जय मूलनिवासी."
असल में नंद कुमार बघेल शिक्षक भर्ती में आरक्षण के मामले में एक विरोध प्रदर्शन में लखनऊ में थे और उसी दौरान कहा था, 'आंदोलन हम करेंगे और ब्राह्मणों को गंगा से वोल्गा भेजेंगे, वो परदेसी हैं, विदेशी हैं - जिस तरह से अंग्रेज लोग आये और चले गये, वैसे ये ब्राह्मण या तो सुधर जायें या फिर गंगा से वोल्गा जाने के लिए तैयार हों'
नंद कुमार बघेल ने ब्राह्मणों से नाराजगी की वजह भी बतायी थी, 'क्योंकि ब्राह्मण विदेशी हैं और हमको अछूत मानते हैं. हमारे सारे अधिवार वह छीन रहे हैं, इसीलिए उनसे लड़ाई जरूरी है - उन्हें गांव में घुसने नहीं दिया जाये.'
हाल ही में विरोध स्वरूप ब्राह्मण समाज ने रायपुर में नंद कुमार बघेल का पुतला भी दहन किया था - और गिरफ्तारी की मांग को लेकर शहर कोतवाली का घेराव भी किया था. प्रदर्शनकारियों की शिकायत लेकर कार्रवाई का भरोसा दिया गया था, लेकिन तब केस दर्ज नहीं हुआ था. ये अचानक हुआ है.
अपने बयानों को लेकर नंद कुमार बघेल शुरू से ही विवादों में रहे हैं. नंद कुमार बघेल ने 20 साल पहले एक किताब भी लिखी तो भी खूब बवाल हुआ -‘ब्राह्मण कुमार रावण को मत मार.'
नंद कुमार बघेल की दलील रही है कि अपनी किताब में उन्होंने मनुस्मृति, बाल्मिकी रामायण, रामचरितमानस और पेरियार की सच्ची रामायण की व्याख्या अपने नये नजरिये से पेश की है.
जब 2001 में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की ही तत्कालीन अजित जोगी सरकार ने किताब पर पाबंदी लगा दी, तो वो कोर्ट चले गये. 17 साल तक मुकदमा लड़े. कोर्ट में सरकार का स्टैंड रहा कि नंद कुमार बघेल की किताब में हिंदू धर्म की मान्यताओं के विपरीत और समाज पर नकारात्मक असर डालने वाली सामग्री है, लेकिन नंद कुमार बघेल की दलील अदालत में नहीं टिक पायी. 2017 में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने सरकार के एक्शन के खिलाफ उनकी याचिका को खारिज कर दिया.
नंद कुमार पटेल की बयानबाजी का ट्रैक रिकॉर्ड भी हमेशा ही भड़काऊ रहा है. अगस्त, 2019 में दिल्ली में एक कार्यक्रम में नंद कुमार बघेल की सलाह रही कि बस्तर में तैनात ब्राह्मण अफसरों और कर्मचारियों को टर्मिनेट कर देना चाहिये - ये उनके बेटे के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के साल भर के भीतर की ही बात है. जाहिर ये डिमांड भी एक एक्टिविस्ट पिता की मुख्यमंत्री बेटे से ही रही.
80 के दशक में नंद कुमार बघेल ने चुनावी राजनीति में भी निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर किस्मत आजमायी थी, लेकिन नाकाम रहे. हालांकि, वो SC/ST और OBC के लिए कास्ट एक्टिविस्ट के तौर पर काम करते रहे हैं.
बताते हैं कि 1970 में हिंदुत्व छोड़ कर बौद्ध धर्म अपना लेने के बाद वो लगातार आक्रामक होते गये - और ये अक्सर भूपेश बघेल के लिए मुसीबत का सबब ही बना है क्योंकि हमेशा ही पिता के भड़काऊ बयानों पर सफाई पेश करनी पड़ी है. करीब 20 साल से दोनों की राहें बिलकुल ही जुदा चली जा रही हैं.
2019 में ही पिता और पुत्र के बीच धार्मिक मान्यताएं तब आड़े आ गयीं जब भूपेश बघेल की मां का निधन हुआ. नंद कुमार बघेल चाहते थे कि उनकी पत्नी का अंतिम संस्कार बौद्ध धर्म के तौर तरीके से हो, लेकिन भूपेश बघेल अपने पर अड़ गये और सब कुछ हिंदू रीति रिवाज से ही हुआ.
बावजूद सारे मतभेद और विवादों के नंद कुमार बघेल का फेसबुक और ट्विटर प्रोफाइल काफी दिलचस्प है - "कुर्मवंशी, कृषक वंशी, देश व्यापी OBC और किसान नेता - प्राउड फादर ऑफ छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल.
कांग्रेस के हाथ क्या हासिल?
जातीय विद्वेष वाले बयान देने को लेकर नंद कुमार बघेल के खिलाफ जो कानूनी कार्रवाई हुई है, उसके सीधे सीधे दो लाभार्थी लगते हैं - एक खुद भूपेश बघेल और दूसरी, तात्कालिक तौर पर उनको कुर्सी पर बिठाये रखने के मामले में मेंटोर बनीं कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा.
हाल में अंग्रेजी अखबार हिंदू में प्रकाशित एक रिपोर्ट से मालूम होता है कि कैसे भूपेश बघेल को दो दिन में ही दो-दो बार रायपुर से दिल्ली बुलाया गया था. दरअसल, जिस दिन वो राहुल गांधी से मिल कर लौट गये थे उस दिन प्रियंका गांधी वाड्रा के दिल्ली में न होने की वजह से मीटिंग नहीं हो पायी थी.
राहुल गांधी के छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री बदले जाने के पीछे कोई सियासी दलील नहीं बल्कि एक अच्छे इंसान के अपना वादा निभाने की तत्परता के तौर पर देखा जा रहा है. राहुल गांधी ने, बताते हैं, 2018 में भूपेश बघेल को मुख्यमंत्री बनाते वक्त उनकी विरोधी दावेदार टीएस सिंहदेव से वादा किया था कि ढाई साल बाद वो उनको कुर्सी पर बिठा देंगे.
अब ये कोई चुनावी वादा तो है नहीं जिसे पूरा होने के लिए अलग से संघर्ष की जरूरत पड़े. वैसे भी राजस्थान और पंजाब प्रत्यक्ष सबूत हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया भी चुनावी वादे पूरे न किये जाने को लेकर ही कांग्रेस छोड़े थे और सचिन पायलट तो बस इंतजार में ही बैठे हैं. पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू की तरफ से गांधी परिवार के दरबार में सौंपे गये ज्ञापन से निकाल कर 18 सूत्रीय कार्यक्रम की एक सूची कैप्टन अमरिंदर सिंह को भी थमायी गयी है ही.
अखबार की रिपोर्ट के अनुसार, प्रियंका गांधी का मानना है कि यूपी चुनाव से पहले छत्तीसगढ़ में कोई बदलाव खतरनाक साबित हो सकता है क्योंकि चुनावी राज्य में ये गलत संदेश भेज देगा. इस जातीय राजनीति का दूसरा पहलू, रिपोर्ट के अनुसार, ये भी है कि बीजेपी को भी 2023 के मद्देनजर छत्तीसगढ़ के लिए किसी भरोसेमंद पिछड़े चेहरे की शिद्दत से तलाश है. मतलब, चावल वाले बाबा डॉक्टर रमन सिंह के लिए आगे रेड सिग्नल है.
फिर भी मुसीबत नहीं टली. प्रियंका गांधी वाड्रा ने भूपेश बघेल पर राहुल गांधी का फैसला तो होल्ड करा लिया, लेकिन तभी नंद कुमार बघेल के बयान पर बवाल शुरू हो गया. लगता है भूपेश बघेल ने गांधी परिवार से भी एक कदम आगे की राजनीति सोच ली, साइड इफेक्ट की भी परवाह नहीं की.
ये एक तीर से दो निशाने साधे गये हैं या अपनी अपनी राजनीति मिल कर खेली गयी है - अगर इस चक्कर में न पड़ें तो भी निशाने के हिसाब से देखें तो ओबीसी को साथ रखने और ब्राह्मणों को नाराज न करने की कोशिश तो हुई ही है - लेकिन न माया मिली न राम वाली कहानी हो गयी है.
ब्राह्मणों की नाराजगी से बचने के लिए अगर कांग्रेस नेतृत्व ने नंद कुमार बघेल की गिरफ्तारी को मंजूरी दी, तो क्या वो ओबीसी को नाराज होने से रोक पाएंगे?
जिस भूपेश बघेल के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर होने और नंद कुमार बघेल के बयान की बदौलत कांग्रेस को फायदा मिल सकता था, वो तो गिरफ्तारी से जाता रहा. संभव है गिरफ्तारी की पहल आगे बढ़ कर भूपेश बघेल की तरफ से हुई हो और आइडिया प्रियंका गांधी वाड्रा को जम गया हो.
एक कुर्बानी देकर भूपेश बघेल ने कांग्रेस नेतृत्व की नजरों में अपनी जगह मजबूत तो कर ली और हो सकता है बाकी कार्यकाल के लिए उनकी कुर्सी भी पक्की हो गयी हो, लेकिन नंद कुमार की गिरफ्तारी के बाद राजनीति और भी करवटें तो बदलेगी ही - क्योंकि वो भी तो जातीय जनगणना के लिए ही कैंपेन चला रहे थे.
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