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Updated: 28 अगस्त, 2021 01:10 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) को लेकर पंजाब में कांग्रेस के प्रभारी हरीश रावत ने जो टिप्पणी की है, काफी सटीक लगती है. हरीश रावत ने, दरअसल, सिद्धू के बड़बोलेपन पर कमेंट किया है - वो उनके राजनीतिक चरित्र का स्केच खींचने की कोशिश भी लगती है. हरीश रावत का कहना है कि सिद्धू के बोलने का अंदाज-ए-बयां कुछ अलग है. हरीश रावत कहते हैं - 'कभी-कभी वो चौके की जगह सिक्सर मार देते हैं, लेकिन होता हमारे ही खाते में है.'

रावत की ये टिप्पणी भले ही कटाक्ष लगती हो, लेकिन ये राजनीतिक बयान भी है - जिसके जरिये, कांग्रेस नेतृत्व को निशाने पर रख कर 'ईंट से ईंट बजा' देने वाले सिद्धू के तेवर को न्यूट्रलाइज करने का प्रयास किया गया है. वैसे भी हरीश रावत एक अरसे से सिद्धू को काफी करीब से देख रहे हैं. तब भी नजर रखनी पड़ रही है जब उनके अपने घर उत्तराखंड में भी विधानसभा के चुनाव पंजाब और उत्तर प्रदेश के साथ ही होने हैं.

सिद्धू के बयान के नतीजे क्या होंगे, ये तो अभी नहीं मालूम, लेकिन ये जरूर है कि उनकी बातों का असर दिल्ली तक हुआ है - और उसका दायरा छत्तीसगढ़ के रायपुर तक फैला हुआ लगता है.

हफ्ते भर के भीतर हुई दो मुलाकातों के बाद छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (Bhupesh Baghel) ने जो बात कही है, उनके शब्दों में संदेश है - सीधा, सपाट और पूरी तरह स्पष्ट. राहुल गांधी को भी लगता है, वस्तुस्थिति काफी हद तक समझ में आ चुकी है.

दो दिन पहले ही डेढ़ घंटे की बातचीत के बाद फिर से तीन घंटे तक हुई मीटिंग के बाद राहुल गांधी ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है - अब वो मौका मुआयना के बाद ही अपना फैसला सुनाएंगे. ऐसा होने में भी हफ्ते भर का वक्त लगेगा.

राहुल गांधी (Rahul Gandhi) और भूपेश बघेल की मुलाकात के इर्द गिर्द ही नवजोत सिंह सिद्धू का बयान खबरों की सुर्खियां बना हुआ था. एक बार तो ऐसा लगा जैसे राहुल गांधी हेडलाइन बदलने के लिए छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री ही बदल देंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ - क्योंकि सिद्धू के बाउंसर ही भूपेश बघेल के लिए संजीवनी बूटी साबित हो रहे थे. असर भी रामबाण की तरह ही प्रभावी रहा.

बतौर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का बयान

कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके राहुल गांधी अगले हफ्ते बस्तर जाने वाले हैं. मान कर चलना होगा वो जगह राहुल गांधी को काफी पसंद भी आएगी - क्योंकि वो भी राहुल गांधी की राजनीतिक स्टाइल को भट्टा पारसौल की तरह ही सूट करती है. राहुल गांधी के बस्तर दौरे को भी उनके हाल के जम्मू-कश्मीर दौरे की तरह ही देखना होगा. महत्वपूर्ण ये है कि वो बस्तर पहुंच कर बोलते क्या हैं - पहले कभी भले न हुआ हो, लेकिन नक्सल प्रभावित इलाके बस्तर की जमीन से राहुल गांधी का बयान भूकंप जरूर ला सकता है, बशर्तें वो एस्केप वेलॉसिटी जैसी कोई थ्योरी पेश करने की कोशिश किये तो.

राहुल गांधी के बस्तर दौरे की जानकारी छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने दी है - और लगे हाथ जोर देकर ये भी बताया दिया कि ऐसा वो उनके इनवाइट करने पर ही होने जा रहा है.

navjot singh sidhu, bhupesh baghel, rahul gandhiलगता है अब से राहुल गांधी के फैसले की दिशा और दशा सिद्धू के तेवर से ही आगे बढ़ेंगे

राहुल गांधी से लंबी मुलाकात के बाद भूपेश बघेल ने बताया, 'मैंने राहुल जी को बतौर मुख्यमंत्री छत्तीसगढ़ आमंत्रित किया है. वो राज्य में अब तक हुए विकास कार्यों को देखेंगे.'

भूपेश बघेल के बयान में बतौर मुख्यमंत्री पर ज्यादा जोर दिखा. मतलब, साफ था. भूपेश बघेल बता रहे थे कि अभी तो मुख्यमंत्री हैं ही, हफ्ते भर बाद जब राहुल गांधी बस्तर के दौरे पर होंगे तब भी मुख्यमंत्री वही होंगे, न कि टीएस सिंहदेव. मुख्यमंत्री बदले जाने की सूरत में टीएस सिंहदेव को ही कमान थमाये जाने के कयास लगाये जा रहे हैं. टीएस सिंह देव काफी दिनों से दिल्ली में रह कर लॉबिंग कर रहे हैं.

भूपेश बघेल ने कहा, 'मैंने उसे सब कुछ बता दिया है. राजनीतिक मुद्दों के साथ-साथ राज्य के प्रशासनिक मामलों पर भी चर्चा हुई... अंत में मैंने राहुल गांधी से छत्तीसगढ़ आने का अनुरोध किया. उन्होंने सहर्ष निमंत्रण स्वीकार कर लिया, वो अगले हफ्ते वहां आएंगे. पहले वो बस्तर जाएंगे - और वहां विभिन्न परियोजनाओं और विकास कार्यों का निरीक्षण करेंगे.'

भूपेश बघेल के कदम रखने से पहले से ही उनके समर्थक 53 विधायक दिल्ली में डेरा डाल चुके थे. दर्जन भर से ज्यादा विधायकों ने तो रात में ही छत्तीसगढ़ के कांग्रेस प्रभारी पीएल पुनिया से मुलाकात भी कर डाली. मुलाकात भी ऐसे कि बगैर टाइम लिये सीधे उनके घर पर ही धावा बोल दिये.

भूपेश बघेल के 'बतौर मुख्यमंत्री' राहुल गांधी को न्योता देने की बात कहने के बावजूद सवाल उठा तो बोले कि वो कहीं नहीं जा रहे हैं.

सवाल खत्म करने के लिए भूपेश बघेल ने उसे रीडायरेक्ट कर दिया, 'पीएल पुनिया पहले ही इस पर सफाई दे चुके हैं, मुझे आगे कुछ कहने की जरूरत नहीं है. मैं जो चाहता था उसे अपने नेता को बता दिया है.'

असल में पीएल पुनिया ने अभी कोई नयी बात नहीं कही है. ढाई साल पर मुख्यमंत्री बदले जाने को लेकर पुनिया भी बघेल के स्टैंड को सपोर्ट करते नजर आये हैं - और छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री बदले जाने की संभावना से इंकार करते आये हैं. भूपेश बघेल ने समझदारी दिखाते हुए सवालों को पीएल पुनिया के नाम पर टाल दिया है.

सिद्धू का नया पैंतरा

नवजोत सिंह सिद्धू क्रिकेट से बरसों पहले संन्यास ले चुके थे, लेकिन राजनीति की पिच पर खुल कर खेलने लगे हैं. क्रिकेट में तो वो बैटिंग के ही शौकीन रहे, लेकिन राजनीति में क्रिकेट वाले अंदाज में ही बाउंसर फेंकने लगे हैं.

हरीश रावत भले ही सिद्धू के ताजा तेवर को छक्का बता रहे हों, लेकिन वे बैटिंग नहीं बल्कि बॉलिंग भी करने लगे हैं - वैसे भी जब कैप्टन बन चुके हैं तो ये हक तो हासिल है ही.

और हरीश रावत भी तो यही कह रहे हैं कि चूंकि नवजोत सिंह सिद्धू पंजाब में कांग्रेस पार्टी के प्रधान हैं, फिर उनके अलावा और कौन फैसले लेगा. सिद्धू की ही तरह ताबड़तोड़ पारी खेलने वाले उनके सलाहकार भी मिल जाते हैं - मालविंदर सिंह माली ने तो साबित भी कर दिया. जम्मू-कश्मीर और इंदिरा गांधी से लेकर पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और उनके समर्थकों को अलीबाबा और चालीस चोर बताने तक.

अब तक तो यही देखने को मिल रहा था कि सिद्धू के निशाने पर कैप्टन अमरिंदर सिंह ही हुआ करते थे, लेकिन इस बार तो सिद्धू ने सीधे कांग्रेस नेतृत्व को भी अपने टारगेट पर ले लिया. पहले तो सिद्धू ने बताया कि वो हाईकमान को बता चुके हैं कि अगर अपने पंजाब मॉडल के जरिये वो लोगों की उम्मीदों पर खरे उतरे तो अगले बीस साल तक पंजाब से कांग्रेस नहीं जाएगी.

लेकिन अगले ही पल उनके तेवर तो जैसे ललकारने वाले हो गये. कहने लगे, 'अगर आप मुझे फैसले लेने की छूट नहीं दोगे तो फिर मैं ईंट से ईंट भी खड़काउंगा... दर्शनी घोड़ा बनने का कोई फायदा नहीं - पंजाब मॉडल के आगे दिल्ली मॉडल भी फेल हो जाएगा.'

अब तक तो कैप्टन अमरिंदर सिंह के विरोध में नवजोत सिंह सिद्धू के मुंह से सुनने को मिलता रहा, उनके कैप्टन राहुल गांधी हैं, लेकिन ताजा तेवर तो शक पैदा करने वाले लगते हैं - कहीं सिद्धू ने किसी और को ही कैप्टन मान लिया है क्या?

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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