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Updated: 12 फरवरी, 2015 03:28 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राष्ट्रपति के सामने अपने 130 समर्थक विधायकों की परेड करा चुके हैं. इससे पहले उन्होंने राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी से मुलाकात कर मुख्यमंत्री बनने का दावा पेश किया था. उनकी मांग थी कि 48 घंटे के भीतर राज्यपाल जीतनराम मांझी को बहुमत साबित करने के लिए कहें. ऐसा न होने पर नीतीश ने जेडीयू अध्यक्ष शरद यादव, आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद और समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव के साथ राष्ट्रपति भवन का दरवाजा खटखटाया और गुहार लगाई. वैसे नीतीश को फिलहाल डबल झटका लगा है. एक तो राज्यपाल ने उनकी बात नहीं सुनी, दूसरे पटना हाई कोर्ट ने नीतीश के विधायक दल का नेता चुने जाने को गैर कानूनी मान लिया. अब हाई कोर्ट में 17 फरवरी को इस मामले की सुनवाई होगी, जबकि 20 फरवरी को मांझी विधानसभा में बहुमत साबित करने की कोशिश करेंगे. इन सबके बावजूद नीतीश के अब भी कुछ मौके हैं -  

पहला मौका – अगर मांझी विधान सभा में बहुमत साबित नहीं कर पाए तो राज्यपाल नीतीश को भी मौका दे सकते हैं. नीतीश के लिए सबसे बढ़िया यही होगा कि राष्ट्रपति के सामने उन्होंने जिन विधायकों की परेड कराई उनका समर्थन बरकार रखें और विधानसभा में बहुमत साबित कर दें.

दूसरा मौका - मांझी को जेडीयू के जिन विधायकों का समर्थन मिल रहा है उनमें कुछ तो उनके दलित समुदाय से हैं और कुछ मंत्री बनने के लिए साथ खड़े हैं. ऐसे विधायकों को अगर नीतीश ये भरोसा दिला दें कि मंत्री पद तो उन्हें नीतीश का साथ देने पर भी मिल सकता है तो वे उनका समर्थन कर सकते हैं. इससे बहुमत साबित करने की उनकी राह आसान हो जाएगी.

तीसरा मौका -  विधानसभा में बहुमत साबित न कर पाने की स्थिति में नीतीश खुद को शहीद के तौर पर प्रोजेक्ट कर सकते हैं. सारी तोहमत बीजेपी पर थोप कर नीतीश लोगों की सहानुभूति बटोर सकते हैं जो आने वाले चुनावों में उन्हें फायदा पहुंचा सकती है.

चौथा मौका – लालू और मुलायम का साथ मिलने से नीतीश के साथ मुस्लिम-यादव वोट बैंक हो गया है. नीतीश के खाते में खुद उनकी बिरादरी का वोट बैंक है ही. इस तरह लालू और मुलायम के साथ मिल कर नीतीश बीजेपी को बिहार के सियासी खेल का खलनायक साबित कर सकते हैं.

पांचवा मौका – नीतीश के पास आखिरी ऑप्शन ये है कि वह अभी से चुनाव की तैयारी में जुट जाएं. इसके लिए उनके पास सात-आठ महीने का लंबा वक्त है. इस दौरान वो अपने उम्मीदवारों का ठोक बजाकर चयन करने के साथ ही एक मजबूत चुनावी रणनीति तैयार कर सकते हैं.

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मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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