तो क्या जुलाई में बिखर जाएगा बिहार का महागठबंधन !
नितीश कुमार का मीरा कुमार के बजाय कोविंद को समर्थन करने से बयानबाज़ियों के दौर शुरू हो गए हैं.कयास लगाये जा रहे हैं कि महागठबंधन बिखर जाएगा, बस तारीख और समय तय होना बाकी है.
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बिहार में जो महागठबंधन भाजपा के खिलाफ साल 2015 में बना, वही 2017 में भाजपा समर्थित राष्ट्रपति उम्मीदवार को लेकर बिखराव के दहलीज़ पर पहुंच गया है. यानी बिहार के महागठबंधन में शामिल राजद, जदयू और कांग्रेस में बवाल मचा हुआ है. इन तीनों पार्टियों के बीच बयानबाजी का दौर शुरू है और खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है.
बयानबाज़ी के केंद्र में बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार हैं. हों भी क्यों नहीं, भाजपा ने रायसीना की रेस में बिहार के पूर्व राज्यपाल रामनाथ कोविंद को उम्मीदवार बनाया. वहीं यूपीए के तरफ से 'बिहार की बेटी' लोकसभा के पूर्व स्पीकर मीरा कुमार को मैदान में उतारा गया. लेकिन ये क्या, महागठबंधन में शामिल नितीश कुमार की पार्टी जदयू ने मीरा कुमार के बजाय भाजपा समर्थित कोविंद को समर्थन का ऐलान कर दिया. बस यहीं से महागठबंधन में शामिल पार्टियों में बयानबाज़ी का दौर शुरू होता है. ऐसे में कयास लगाये जा रहे हैं कि महागठबंधन बिखर जाएगा. बस तारीख और समय तय होना बाकी है.
जदयू बनाम राजद
वैसे तो नितीश कुमार लालू प्रसाद से गठजोड़ के बाद से खराब हुई छवि को लगातार चमकाने का प्रयास कर रहे थे, लेकिन राष्ट्रपति पद के चुनाव ने उन्हें ये मौका भी दे दिया. हाल में ही लालू प्रसाद के परिवार पर जिसमे उनके दोनों पुत्र नितीश सरकार में मंत्री भी हैं के ऊपर कई घोटालों का आरोप लगा. इससे पहले बाहुबली राजद नेता शहाबुद्दीन के साथ लालू के रिश्ते और जेल से ही फोन पर बात के बाद नितीश कुमार मुश्किल में थे.
लालू और नीतीश कुमार के रास्ते अलग होनी की पूरी संभावना
नोटबंदी को लेकर भी दोनों के अलग-अलग विचार थे. बची खुची कसर बिहार के उप-मुख्यमंत्री और लालू सुपुत्र तेजस्वी यादव ने पूरी कर दी, जब उन्होंने नितीश कुमार पर निशाना साधते हुए कहा कि इशारों-इशारों में उन्हें 'आत्मकेंद्रित' और 'अवसरवादी' कह दिया. ऐसे में जदयू के बिहार इकाई के अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह ने तेजस्वी यादव के बयान के बाद 'महागठबंधन' के भविष्य पर ही सवाल खड़ा कर दिया. उन्होंने कहा कि अभी तक पार्टी स्तर पर ऐसे बयान आ रहे थे लेकिन अब सरकार में शामिल लोग ऐसे बयान जारी कर रहे हैं तो ये खतरे की घंटी बजने जैसा है.
कांग्रेस बनाम जदयू
जब राजद नीतीश कुमार पर हमला बोल चुकी थी तो भला महागठबंधन को लेकर अब तक खामोश रही कांग्रेस कब तक खामोश रहती. ऐसे में कांग्रेस के महासचिव गुलाम नबी आजाद ने कहा था कि 'नितीश कुमार कई विचारधाराओं में यकीन करके निर्णय लेते हैं. जो लोग एक सिद्धांत में यकीन करते हैं, वे एक फैसला करते हैं. लेकिन जो कई विचारधाराओं, सिद्धांतों में यकीन करते हैं वे अलग-अलग फैसले करते हैं'. कांग्रेस नेता गुलाब नबी आजाद के बयान पर जेडीयू नेता और राज्यसभा सांसद केसी त्यागी ने पलटवार किया और कहा कि जब उनका बीजेपी के साथ गठबंधन था तभी उनकी पार्टी काफी सहज थी. उन्होंने ये भी कहा कि हम पांच साल तक इस गठबंधन को चलाना चाहते थे.
बीजेपी के साथ जदयू सरकार बना सकती है
वैसे भी अगर नितीश कुमार महागठबंधन से अलग होते हैं तो बीजेपी के साथ सरकार बना सकते हैं. 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा में जदयू के पास 80 विधायक हैं, तो जेडीयू के पास 71 विधायक वहीं बीजेपी के पास 53 विधायक हैं. ऐसे में अगर बीजेपी-जेडीयू साथ आ जाते हैं, तो उन्हें बिहार में सरकार बनाने में कोई खास परेशानी नहीं होगी.
भाजपा और जदयू का पास आना लाजिमी है
इस समय पर इस तरह का बयान ये साफ-साफ दिखाता है कि बिहार के बिखराव के दहलीज़ पर पहुंच गया है और गठबंधन पर आंच आना लाज़िमी है. ऐसे में जदयू महागठबंधन पर कोई बड़ा ऐलान कर सकती है. कहा तो ये भी जा रहा है कि 2 जुलाई को जदयू कार्यकारिणी की बैठक होनी है, ऐसे में नितीश कुमार महागबंधन को लेकर बड़ा फैसला ले सकते हैं. अगर किसी कारणवश इस बैठक में महागठबंधन को लेकर फैसला नहीं होता है तो इतना तो तय है कि जब राष्ट्रपति के चुनाव का परिणाम 20 जुलाई को आएगा ठीक उसी वक्त महागठबंधन के ऊपर भी कोई परिणाम निश्चित है.
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