बिहार के ईवीएम से आ रही गंध बता रही है कि उसके दिल में का बा!
बिहार की सभी सीटों पर चुनाव (Bihar Elections) हो गए. चुनाव के मद्देनजर जैसा रवैया राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) का रहा चाहे वो उनकी रैली रही हो या फिर ट्विटर, वो चाहते हैं कि जनता उन्हें दोबारा मौका दे. लेकिन, Bihar exit poll के मुताबिक ऐसा होता दिख नहीं रहा है.
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अब बस कुछ देर और बिहार में सरकार किसकी होगी हमें पता चल जाएगा. सीएम नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने खुद भी इस बात के संकेत दे दिए हैं कि यह उनका अंतिम चुनाव है. बिहार में तीसरे और अंतिम चरण के मतदान के बाद आए एग्जिट पोल के परिणाम बता रहे हैं कि नीतीश कुमार के लिए यह अंतिम चुनाव उनकी राजनीतिक पारी का दुखद अंत हो सकता है. क्योंकि जनमानस का रुझान बदलाव के संकेत दे रहा है और RJD के नेतृत्व वाले महागठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिलता नजर आ रहा है. ध्यान रहे कि ट्वीट के जरिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लोगोंं से मत डालने की अपील के साथ यह भी कहा था कि 'आपका हर एक वोट बिहार के विकास की गति को जारी रखते हुए बिहार को विकसित राज्य बनाएगा.' डेढ़ दशक से किस गति से बिहार का विकास हो रहा है यह सब भलीभांति जानते हैं. कोरोना काल में हुए लॉकडॉउन में अन्य राज्यों में रहने वाले बिहारी कामगारों और मजदूरों (Migrant Workers) की हालत हम सब ने अपनी आंखों से देखी ही है. अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajput) की मृत्यु और क्षेत्रीय अस्मिता की भावना का ज्यादा लाभ न मिलता देख बाद के चरणों में सत्ता पक्ष अपने राष्ट्रवाद के पुराने फार्मूले पर लौट आया था. बाकी सहयोगी भाजपा के पास लोकसभा चुनावों की तरह सिवाय मोदी की लोकप्रियता को भुनाने के कुछ है भी नहीं. नीतीश के साथ भाजपा सरकार में साझीदार रही है. इस बार नीतीश के साथ गठबंधन में भी भाजपा ने लगभग आधी सीट पर अपनी दावेदारी पेश की है. इस बार रामविलास पासवान (Ramvilas Paswan) की मृत्यु और उनकी पार्टी ने जदयू भाजपा का साथ छोड़ दिया है. इसका चुनाव नतीजे पर क्या असर होगा यह देखने वाली बात होगी.
बिहार का चुनाव मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए कई मायनों में खास है
अंतिम चरण में आने वाले जिले मिथिलांचल और सीमांचल में मुस्लिम यादव वोटरों की काफी संख्या है. इन में शामिल 16 जिलों में मतदाताओं के बिखराव को रोकना और अपने परम्परागत मतदाताओं को अपने पाले में रखने के लिए सत्ता पक्ष और विपक्षी गठबंधन ने कोई कसर नहीं छोड़ रखी है. हालांकि पिछली बार लालू नीतीश ने साथ मिलकर यहां पचास से अधिक सीटें जीती थीं और तब भाजपा ने यहां लगभग 19 सीटों पर कब्जा जमाया था.
इस बार नीतीश भाजपा की दोस्ती यादव मुस्लिम बाहुल्य इन सीटों पर कितनी सीटों पर कब्जा कर पाते है यह देखना भी दिलचस्प होगा. बिहार चुनाव में जीत किसी भी गठबंधन की हो, लेकिन जनता के वास्तविक कष्ट यानि बेरोजगारी, गरीबी, स्वास्थ्य और पिछड़ापन के समाधान में विगत तीन दशकों में जनता ने लालू राबड़ी को पंद्रह साल और पंद्रह साल नीतीश कुमार को भी दिए. नीतीश कुमार ने लालू राबड़ी के शासन काल को जंगलराज और बिहार के पिछड़ेपन को कारण बताते हुए बिहार में जीत प्राप्त की थी.
उसके बाद से पिछले पंद्रह वर्षों से वे भी बिहार पर शासन कर रहे है. लेकिन फिर भी इस बार बिहार चुनाव में खबरिया चैनलों पर और लोकगायकों ने चुनावी डिबेट में यह जुमला खासा लोकप्रिय किया कि 'बिहार में का बा? पंद्रह साल किसी भी प्रदेश को विकास की पटरी पर लाने के लिए कम नहीं होते हैं. यह सही है कि झारखंड के बिहार से अलग होने पर बिहार की खनिज राजस्व से होने वाली आय में कटौती हुई है और विकास के लिए वित्तीय सेहत का दुरुस्त होना सबसे बड़ी और प्राथमिक शर्त है.
लेकिन कृषि और उद्योग के लिए बिहार की भौगोलिक स्थिति के पर्याप्त अनुकूल होने के बाद भी इन क्षेत्रों में आय और रोजगार के अवसरों का पर्याप्त सृजन न होने से बिहार से काम धंधे की तलाश में लोगो का अन्य राज्यों में पलायन बदस्तूर नीतीश के शासन काल में भी चलता ही रहा. बाढ़ बिहार की एक और समस्या है जिस पर प्रभावी नियंत्रण और उस पर दूरगामी रणनीति एवं कार्ययोजना के संदर्भ में जनता जरूर नीतीश सरकार का मूल्यांकन करेगी.
इसी प्रकार जनसुविधाओं के सरकारी ढांचे जैसे शिक्षा और स्वास्थ्य एवं ऊर्जा के उत्पादन में नीतीश सरकार ने क्या उल्लेखनीय योगदान किया इसके लिए सुशासन बाबू के दावों और उसकी वास्तविक स्थिति का मूल्यांकन तो जनता कर ही रही है. बिहार में विकास जारी बा कि न बा? यह तो 10 नवम्बर की मतगणना में जनता जनार्दन बता ही देगी.
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