मोदी ने तेजस्वी के सवालों का जवाब दिया या नहीं, फैसला बिहारवालों को करना है
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के बिहार (Bihar Election 2020) दौरे से पहले तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने 11 सवाल पूछे थे. ये तो नहीं कह सकते कि मोदी चुन चुन कर जवाब दिये, लेकिन इतना जरूर है कि मोदी जो भी बोले - बिहार के लोग तय करेंगे कि जवाब मिला या नहीं?
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बिहार में दूसरे चरण के चुनाव (Bihar Election 2020) में 94 सीटों पर 3 नवंबर को वोटिंग होनी है. चुनाव प्रचार के आखिरी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के बिहार पहुंचने से पहले महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने एक फेसबुक पोस्ट में 11 सवाल पूछे थे.
जाहिर तौर पर तेजस्वी यादव के सवाल उन्हीं मुद्दों पर फोकस रहे जिनका वो अपनी हर चुनावी रैली में जिक्र कर रहे हैं - बेरोजगारी, नौकरी और बिहार को विशेष राज्य का दर्जा. बाद में तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार को भी घेरे में लेने के मकसद से राज्य कर्मचारियों के रिटायरमेंट का मसला भी जोड़ दिया.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार में जगह जगह अपनी रैलियों में लोगों से अपने तरीके से संवाद किया और तेजस्वी एंड कंपनी हर जगह उनके निशाने पर रही. अब प्रधानमंत्री के भाषण में तेजस्वी के सवालों का जवाब मिला कि नहीं, ये तो बिहार के लोगों को ही फैसला करना है, लेकिन तेजस्वी के सवालों पर प्रधानमंत्री मोदी ने एक सवाल जरूर खड़ा कर दिया है - सबसे बड़ा सवाल ये है कि युवाओं को रोजगार दिला कौन रहा है?
कहीं यूपी जैसा खेल तो नहीं करने वाले हैं मोदी?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पिछले दौरे की बातों को आगे बढ़ाते हुए फिर से तेजस्वी यादव को जंगलराज का युवराज कह कर संबोधित किया - और उनके साथ राहुल गांधी को जोड़ते हुए डबल-युवराज कह कर टारगेट किया.
प्रधानमंत्री बोले, 'आज बिहार के सामने, डबल इंजन की सरकार है, तो दूसरी तरफ डबल-डबल युवराज भी हैं. उनमें से एक तो जंगलराज के युवराज भी हैं... डबल इंजन वाली एनडीए सरकार बिहार के विकास के लिए प्रतिबद्ध है, तो ये डबल-डबल युवराज अपने-अपने सिंहासन को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं.' प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोगों को ये समझाने की कोशिश कर रहे थे कि डबल युवराज का मकसद कुछ और नहीं बल्कि परिवारवाद की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाना है. बिहार में एनडीए को चैलेंज कर रहे महागठबंधन में तेजस्वी यादव और राहुल गांधी के साथ साथ लेफ्ट नेता कन्हैया कुमार भी हैं.
तेजस्वी यादव और राहुल गांधी को एक ही फ्रेम में रखते हुए मोदी ने कहा, 'ये अपने परिवार के लिए पैदा हुए हैं... अपने परिवार के लिए जी रहे हैं... अपने परिवार के लिए ही जूझ रहे हैं... न बिहार से कोई लेना देना है और न बिहार की युवा पीढ़ी से कोई लेना देना है.'
मोदी ने मौका देख कर बाकियों में नीतीश कुमार में राजनीति के हिसाब से फर्क भी समझाया. मसलन, नीतीश कुमार ने परिवार के किसी सदस्य को राज्य सभा भेजा या उनके परिवार का कोई और राजनीति में वैसे है जैसे विपक्षी गठबंधन के लोग हैं. प्रधानमंत्री मोदी याद दिला रहे थे कि कैसे तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव बिहार विधानसभा में रहे और उनकी बहन मीसा भारती राज्य सभा सदस्य हैं. वही हाल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी में भी देखने को मिला है. परिवारवाद की राजनीति को विस्तार देने और अपनी बातों का वजन बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने यूपी की राजनीति से जोड़ दिया. 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव और राहुल गांधी साथ साथ चुनाव प्रचार कर रहे थे. जब नतीजे आये तो बीजेपी भारी बहुमत के साथ सरकार बनाने में कामयाब रही, लेकिन समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन टूट गया.
बिहार चुनाव में सवाल तेजस्वी के, जवाब मोदी के!
प्रधानमंत्री ने कहा, 'तीन-चार साल पहले यूपी के चुनाव में भी डबल-डबल युवराज बस के ऊपर चढ़कर लोगों के सामने हाथ हिला रहे थे... यूपी की जनता ने वहां उन्हें घर लौटा दिया था... वहां के एक युवराज अब जंगलराज के युवराज से मिल गये हैं... यूपी में जो डबल-डबल युवराज का हुआ, वही बिहार में होगा.'
तेजस्वी यादव के 10 लाख नौकरी के चुनावी वादे की काट में बीजेपी 19 लाख रोजगार के वादे के साथ उतरी है, लेकिन वो बहुत प्रभाव नहीं छोड़ सका है. तेजस्वी यादव के सरकारी नौकरी के आकर्षण से लोग हट नहीं पा रहे हैं. तेजस्वी यादव की रैलियों में युवाओं की भीड़ जुट रही है और वे खूब मजे ले लेकर तेजस्वी यादव को सुन रहे हैं - नौकरी रहेगी तभी तो बढ़िया बीवी मिलेगी. नौकरी रहेगी तभी तो मेहरारू को घुमाने ले जाओगे. नौकरी मिलेगी तभी तो मां-बाप को तीर्थ कराओए.
ये वो सपना ही है जो चुनावों में खूब बिकता है. अच्छे दिन आते हैं या चुनाव की बातें जुमला साबित होती हैं ये अलग बात है, लेकिन भीड़ को ये बातें सुनने में अच्छी लगती हैं - और भीड़ ये सब इतनी बार सुन ले कि ईवीएम का बटन दबाते वक्त भी ये ऐसी बातें उनके कान में गू्ंजती रहें तो बटन दबाना नहीं पड़ता, हाथ रखते ही दब जाता है.
19 लाख रोजगार को नहले पर दहला साबित न होते देख प्रधानमंत्री मोदी ने नयी तरकीब निकाली है. ये तरकीब कुछ वैसी ही है जैसे आप कोई सामान लेने जाते हैं और दुकानदार उसकी कोई कीमत बताता है. आप दूसरी दुकान पर उसी की कीमत पूछते हैं. वो दुकानदार कम कीमत बताता है. फिर आप पहली दुकान पर आते हैं और कहते हैं कि वही सामान वो कम कीमत पर क्यों दे रहा है. दुकानदार सब समझता है, लेकिन कहता है - अजी उनका का क्या वो तो कुछ भी मिलने पर सामान दे सकते हैं. वैसा सामान तो हम आधी कीमत पर दे दें. ग्राहक कन्फ्यूज हो जाता है. वो भले पहले दुकानदार से तत्काल सामान न ले, लेकिन दूसरे वाले के पास नहीं जाता क्योंकि उसे शक हो गया होता है. प्रधानमंत्री मोदी भी 10 लाख नौकरी को लेकर वैसी ही राजनीतिक चाल चले हैं. तेजस्वी यादव के नौकरी दिलाने के चुनावी वादे पर जिस तरह से प्रधानमंत्री मोदी ने सवाल उठाया है वो सभी को प्रभावित भले न करे, लेकिन बहुतों को उस दुकानदार की तरह कन्फ्यूज तो कर ही देगा. फिर दूसरे दुकानदार को लेकर भले ही ग्राहक बाद में कोई फैसला करे, लेकिन जो मन बना चुका है उस पर नये सिरे से विचार तो करेगा ही.
मोतिहारी की सभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना रहा, 'बिहार के युवाओं को बिहार में ही अच्छा और सम्मानजनक रोजगार मिले, ये बहुत जरूरी है - सवाल ये है कि ये कौन दिला सकता है? वो लोग जिन्होंने बिहार को अंधेरे और अपराध की पहचान दी? वो लोग जिनके लिए रोजगार देना करोड़ों की कमाई का माध्यम है?'
ऐसा बोल कर प्रधानमंत्री मोदी ने परिवारवाद की राजनीति के फायदे से चुनावी वादे को जोड़ कर पेश कर दिया है. अब ये बिहार के लोगों पर है कि वो इन बातों को कैसे लेते हैं? किस पर भरोसा करते हैं. परिवारवाद की राजनीति से दूर रहने वाले नीतीश कुमार पर या विरासत की राजनीति के बूते चुनाव मैदान में लड़ रहे तेजस्वी यादव और राहुल गांधी पर?
लोगों के मन में जो रही सही कसर बाकी रही होगी, प्रधानमंत्री मोदी ने उसे भी नहीं छोड़ा, बोले - 'जो एक बार पेट खराब कर दे उसे दोबारा कोई नहीं खाता.'
आगाह करते हुए मोदी ने उम्मीद भी जतायी, 'मुझे लोगों पर भरोसा है कि वो अपने वोट से राज्य को बीमार होने से बचाएंगे.'
प्रधानमंत्री मोदी ने यूपी चुनाव की याद दिलायी है और एक बात और भी याद कर लीजिये. 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी का स्लोगन रखा था - 'काम बोलता है.' दरअसल, अखिलेश यादव विकास के अपने शासन में हुए कामों के आधार पर वोट मांग रहे थे.
एक रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अखिलेश यादव के स्लोगन को थोड़ा सा मॉडिफाई कर दिया - अरे काम नहीं, आपका कारनामा बोलता है! उसके बाद अखिलेश यादव अपनी सरकार की उपलब्धि की जो जो बातें कर रहे थे, प्रधानमंत्री मोदी ने तस्वीरों के दूसरे पहलू के बारे में समझाना शुरू किया और खेल हो गया. लगता है बिहार में भी प्रधानमंत्री मोदी ने एक बार फिर वैसा ही खेल करने की कोशिश की है.
जवाब मिला या नहीं?
जब प्रधानमंत्री मोदी ने तेजस्वी यादव को जंगलराज का युवराज बताया था, तो उनका बस यही कहना रहा कि वो प्रधानमंत्री हैं, कुछ भी बोल सकते हैं - लेकिन उनको बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर बोलना चाहिये था. प्रधानमंत्री के ताजा दौरे से पहले तेजस्वी यादव ने 11 सवाल पूछे थे. मसलन, "बिहार के युवाओं को P.hD Engineering, MBA, MCA करने के बाद भी चपरासी और माली बनने के लिए फॉर्म क्यों भरना पड़ता है? बिहार बेरोजगारी का केंद्र क्यों है और बिहार में डबल इंजन सरकार में रिकॉर्ड तोड़ बेरोजगारी दर 46.6% क्यों है? 2014 में किये गये वादे के अनुसार अभी तक बिहार को विशेष राज्य का दर्जा क्यों नहीं मिला है?"
जाहिर है प्रधानमंत्री की टीम ने तेजस्वी के सवालों की तरफ ध्यान दिलाया होगा - और ये भी हो सकता है उसीके हिसाब से वो अपने भाषण के कंटेंट में तब्दीली भी किये हों.
प्रधानमंत्री को जो कहना था कह दिया है. अब तेजस्वी यादव उसे जवाब मानते हैं या नहीं ये उनको खुद ही तय करना होगा. अगर वो खुद तय न कर पायें तो उनको चाहिये कि बिहार के लोगों पर छोड़ दें वे खुद तय भी कर लेंगे और उस पर अपने हिसाब से एक्शन भी लेंगे - आखिर सवाल पूछने का मकसद भी तो यही रहा होगा.
प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी तरफ से तेजस्वी के कुछ सवालों के जवाब दिये भी हैं और वे दोहरे अर्थ वाले हैं. फिर भी अगर तेजस्वी यादव को लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी ने उनके सवालों के जवाब नहीं दिये तो मान कर चलना चाहिये कि वो जवाब देना नहीं चाहते - वैसे भी जवाब न देना भी एक तरीके का जवाब ही होता है.
ध्यान देने वाली बात एक और है कि 10 लाख नौकरी के साथ साथ तेजस्वी यावद के मैनिफेस्टो में एक ऐड-ऑन फीचर भी एक्टिवेट हो गया है - कर्मचारियों के रिटारमेंट की उम्र.
तेजस्वी यादव का कहना है, 'नीतीश कुमार जी ने एक फरमान जारी किया है, जिसमें सरकारी कर्मचारियों को 50 साल की उम्र में रिटायरमेंट देने की बात कही गई है... खुद 70 से ज्यादा के हो गए हैं, लेकिन इस बार जनता उन्हें रिटायर करने जा रही है. हमारी सरकार बनेगी तो रिटायरमेंट की उम्र को बढ़ाएंगे.'
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