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Updated: 30 अक्टूबर, 2020 05:15 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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बिहार चुनाव (Bihar Election 2020) में अब एनडीए और महागठबंधन में आमने सामने की टक्कर महसूस की जाने लगी है. पहले की तरह मामला अब एकतरफा नहीं रह गया है. वो भी तब जब एनडीए के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मोर्चा संभाले हुए हैं - और तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) करीब करीब अकेले ही जूझ रहे हैं. बिहार चुनाव में पहले चरण का मतदान हो चुका है और अब आगे के दो दौर की तैयारी है.

कहने को तो तेजस्वी यादव के महागठबंधन में भी राहुल गांधी और कन्हैया कुमार जैसे स्टार प्रचारक नेता रैलियां कर रहे हैं, लेकिन वैसे तो कतई नहीं जैसे नीतीश कुमार के साथ प्रधानमंत्री मोदी होते हैं.

तेजस्वी यादव के साथ राहुल गांधी ने भी रैली की जरूर है, लेकिन वो अपनी अलग छाप नहीं छोड़ पाये हैं. कन्हैया कुमार महागठबंधन की अगली सरकार बनने के दावे करते तो हैं, लेकिन उनका चुनाव प्रचार सीपीआई उम्मीदवारों तक ही सिमटा हुआ लगता है. शुरू में तेजस्वी और कन्हैया कुमार के भी साझा रैलियों की चर्चा रही, लेकिन लगता है उससे दोनों को परहेज हो रही है.

जहां तक भीड़ खींचने की बात है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद तेजस्वी यादव का ही नंबर आता है. नीतीश कुमार और उनके मंत्रियों के खिलाफ तो नारेबाजी भी होने लगी है - नीतीश कुमार मुर्दाबाद और लालू यादव जिंदाबाद के नारे तक लग रहे हैं. कुछ जगहों की रिपोर्ट से मालूम होता है कि नीतीश कुमार के मुकाबले राहुल गांधी की रैलियों में भी ज्यादा भीड़ हो रही है.

नारेबाजी कोई मायने रखती है तो राहुल गांधी की एक सभा में ऐसा ही नजारा देखने को मिला. कुशेश्वरस्थान पर हुई राहुल गांधी की रैली में भीड़ तेजस्वी यादव के नाम के नारे लगाती देखी गयी - चुनावी मुद्दों में चर्चा भी अगर कोई है तो वो तेजस्वी यादव के 10 लाख नौकरी देने का वादा है. खास बात ये है कि बीजेपी के 10 के बदले 19 लाख रोजगार देने के चुनावी वादे के बावजूद तेजस्वी का वादा फीका नहीं पड़ा है.

लालू के साये से निकलते तेजस्वी

कोई दो राय नहीं कि तेजस्वी यादव फ्रंट पर आरजेडी की अगुवाई कर रहे हैं, लेकिन पीछे से चुनाव से जुड़ी बहुत सी रणनीतियों के पीछे लालू यादव की सोच है. बेशक तेजस्वी यादव को लालू यादव से लगतार दिशानिर्देश मिल रहा हो, लेकिन हर बात की स्क्रिप्ट भी तो नहीं तैयार की जा सकती. मौके पर तो उसी को दिमाग का इस्तेमाल करना होता है जो वहां मौजूद होता है.

समझने वाली बात अब यही है कि तेजस्वी यादव की तरफ से समझदारी से भरपूर प्रतिक्रियाएं कहां से आने लगी हैं. आम चुनाव के बाद तेजस्वी यादव के बिहार की राजनीति से गायब होने को लेकर खूब सवाल हो रहे थे. फिर लॉकडाउन के दौरान भी तेजस्वी यादव की गैरहाजिरी पर सवाल उठाये गये. कुछ रैलियों में तो नीतीश कुमार पूछ भी रहे थे कि बतायें कि लॉकडाउन के दौरान दिल्ली में किसके घर रुके थे?

नीतीश कुमार ने एक रैली में कहा कि जो लोग आठ-आठ, नौ-नौ बच्चा पैदा कर रहे हैं वो विकास क्या करेंगे?

tejashwi yadavतेजस्वी यादव की रैलियों में भीड़ तो हो रही है - ज्यादातर नौजवान भी होते हैं, लेकिन क्या ये वोट में भी तब्दील होंगे?

तेजस्वी यादव से इस पर रिएक्शन मांगा गया तो बस इतना ही बोले, 'मैं तो पहले भी कह चुका हूं कि नीतीश जी जो भी कहते हैं मैं उनकी बातों को आशीर्वचन की तरह लेता हूं.'

लेकिन उसके बाद जो बोला वो काफी गंभीर बात थी. कटाक्ष था. तंज था. तेजस्वी ने कहा, 'नीतीश कुमार के इस बयान से महिलाओं की मर्यादा को ठेस पहुंची है.'

नीतीश कुमार की ही तरह प्रधानमंत्री मोदी ने भी एक रैली में तेजस्वी यादव को 'जंगलराज का युवराज' बताया था और कुछ ही देर बाद जब आरजेडी नेता मीडिया के सामने आये रिएक्शन मांग लिया गया.

तेजस्वी यादव का कहना रहा, 'वो देश के प्रधानमंत्री हैं कुछ भी बोल सकते हैं. मुझे इस पर कोई टिप्पणी नहीं करनी है.'

याद कीजिये 2015 में प्रधानमंत्री मोदी के डीएनए और शैतान वाली बातों पर कैसी तीखी प्रतिक्रिया हुई थी. पूरा का पूरा लालू यादव परिवार प्रधानमंत्री मोदी पर बारी बारी टूट पड़ा था. हां, तब तेजस्वी यादव को ऐसे मुद्दों से कोई खास मतलब नहीं हुआ करता था.

प्रधानमंत्री के जंगलराज के युवराज वाले बयान को लेकर तेजस्वी ने भले ही कोई टिप्पणी नहीं की, लेकिन जो बोला वो खास चुनावी रणनीति के तहत जारी किया गया बयान ही लगा - 'बिहार के लोगों को उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री मोदी विशेष पैकेज, बेरोजगारी और भूखमरी पर बोलेंगे लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ नहीं कहा.'

आपने शायद गौर किया हो तेजस्वी यादव ने न तो केंद्रीय मंत्री नित्यनंद राय के कश्मीर जैसे आतंकवाद वाले बयान पर कोई टिप्पणी की है, न ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दंरभंगा की रैली में सीता के बहाने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के याद दिलाने पर. भूमि पूजन के मौके पर भी जब प्रधानमंत्री मोदी ने जय श्रीराम की जगह जय सियाराम नारा दिया तो सब ने यही कयास लगाया था कि वो बिहार चुनाव से जुड़ा हुआ है.

ऐसे कई मौके देखने को मिले हैं जब तेजस्वी यादव की समझदारी और सूझबूझ देखने को मिली है. वैसे वीडियो तो सेल्फी लेने की कोशिश कर रहे एक व्यक्ति की बांह पकड़ कर रास्ते से हटा देने का भी वायरल हुआ, लेकिन नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री मोदी के निजी हमलों का जिस समझदारी से तेजस्वी यादव ने जवाब दिया है - वो बिलकुल अलग है.

लालू जैसे बनने की कोशिश

माना जा रहा था कि बुद्धिमत्ता तो तेजस्वी यादव को लालू यादव से मिली है, लेकिन ऑडिएंस के साथ हंसी मजाक करते हुए उससे कनेक्ट होने का गुण नहीं मिल सका है. लालू यादव वाला लहजा और अंदाज तो नहीं, लेकिन तेजस्वी यादव को भी जनता की डिमांड समझ में आने लगी है. वो नौजवानो की नब्ज पकड़ने लगे हैं. रैलियों में नौजवानों की ताली के लिए क्या बोलना है, तेजस्वी को समझ में आने लगा है. अब ये समझ उनके अंदर की है या बाहर से कोई कदम कदम पर गाइड कर रहा है, बात अलग है. ये भी तो सच है कि किसी के बताये सिखाये अनुसार काम करने के लिए भी टैलेंट की जरूरत होती है.

तेजस्वी यादव की रैलियों में उमड़ रही युवाओं की भीड़ कुछ न कुछ इशारे तो कर रही रही है. कम से कम ये इशारा तो है कि 10 लाख नौकरी देने का वादा सटीक निशाने पर लगा है. ऐसी रैलियों में तेजस्वी यादव की भी कोशिश होने लगी है कि कैसे लालू यादव वाले अंदाम में वो भीड़ से कनेक्ट हो सकें और उनकी बातों पर ताली एक बार बजे तो देर तक गूंजती रहे.

तेजस्वी यादव कहते हैं - 'सरकारी नौकरी मिलेगी तब न अच्छी बीबी मिलेगी.'

फिर समझाते हैं कि नौकरी मिल जाने के बाद स्वास्थ्य और बच्चों के लिए बेहतर शिक्षा दीक्षा के इंतजाम करना आसान हो जाएगा. नौकरी मिलने पर मां-बाप की सेवा कर सकेंगे. माता-पिता को तीर्थयात्रा पर भेज सकेंगे.

तेजस्वी यादव को अब ये भी पता चल चुका है कि भीड़ में खड़ा नौजवान सुनना क्या चाहता है. मजाकिया होते हुए करीब करीब लालू यादव वाले अंदाज में ही तेजस्वी यादव कहते हैं, 'अच्छी नौकरी होगी, तो मेहरारू (पत्नी) को भी घुमाने ले जा सकेंगे.'

फिर क्या खूब जोरदार ताली बजती है. भीड़ के साथ साथ तेजस्वी यादव का भी जोश बढ़ जाता है. 2015 में नीतीश कुमार सरकार में तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम बने थे और सड़क निर्माण मंत्रालय मिला था. 2016 में लोगों की समस्यायें जानने के लिए तेजस्वी यादव ने अपना व्हाट्सऐप नंबर शेयर किया था - समस्याओं का तो नहीं पता लेकिन ये जरूर दर्ज हुआ कि तेजस्वी यादव को शादी के 44 हजार प्रस्ताव जरूर मिले थे.

वो सलाहकार कौन है

कोई तो है. कोई तो है जो तेजस्वी यादव को कदम कदम पर गाइड कर रहा है. क्या बोलना है. कब बोलना है. कितना बोलना है - ये सारी बातें तेजस्वी यादव के मुंह से वैसे ही निकल रही हैं जैसे चुनावों के दौरान दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को बदला बदला देखा जाता रहा या फिर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के हावभाव और बोलने के तौर तरीकों में बदलाव महसूस किया जा रहा है. अरविंद केजरीवाल की चुनावी मुहिम प्रशांत किशोर से संभाली थी - और ममता बनर्जी का चुनाव अभियान भी घोषित तौर पर प्रशांत किशोर और उनकी टीम ही संभाल रही है. ये वही प्रशांत किशोर हैं जो 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और 2015 में नीतीश कुमार के चुनाव प्रचार की निगरानी किये थे और फिर जेडीयू में उनको उपाध्यक्ष बना दिया गया था. ये नीतीश कुमार ने ही बताया था कि प्रशांत किशोर को जेडीयू में वो अमित शाह के कहने पर रखे थे - और बाद में CAA पर अलग स्टैंड और बयानबाजी के चलते नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर को बाहर का रास्ता दिखा दिया. उम्मीद है वस्तुस्थिति को समझने में ये बाते मददगार साबित होंगी.

बिहार की राजनीति को लेकर जब लालू परिवार और प्रशांत किशोर के बीच तकरार चल रही थी, तभी 5 अप्रैल 2019 को एक ट्वीट में तेजस्वी यादव को उनकी हदें समझाने की कोशिश की गयी थी. प्रशांत किशोर के टाइमलाइन से ये ट्वीट अब डिलीट कर दिया गया है. ट्वीट में जो बातें लिखी गयी थीं वो इस वक्त काफी प्रासंगिक लगती हैं.

प्रशांत किशोर ने ट्विटर पर लिखा था, "@yadavtejashwi आज भी लोगों के लिए आपकी पहचान और उपलब्धि बस इतनी है कि आप लालूजी के लड़के हैं. इसी एक वजह से पिता की अनुपस्थिति में आप RJD के नेता हैं और नीतीशजी की सरकार में DyCM बनाए गए थे. पर सही मायनों में आपकी पहचान तब होगी, जब आप छोटा ही सही पर अपने दम पर कुछ करके दिखाएंगे."

क्या मान लिया जाये कि तेजस्वी यादव अपने दम पर कुछ करके दिखाने लगे हैं - और यही वजह है कि प्रशांत किशोर को अपना ट्वीट डिलीट करना पड़ा है?

आज तक की एक रिपोर्ट से मालूम होता है कि प्रशांत किशोर ने तेजस्वी यादव को अगस्त, 2019 में कुछ टिप्स दिये थे. एक आरजेडी नेता के हवाले से इस रिपोर्ट में बताया गया है कि ये प्रशांत किशोर का ही सुझाव रहा कि तेजस्वी यादव आरजेडी के पोस्टर में लालू यादव या परिवार के किसी सदस्य की तस्वीर न लगायें. अब ये तो साफ साफ नजर आ रहा है कि तेजस्वी यादव ने प्रशांत किशोर की वो बात ताबीज की तरह अपने पास रख ली और उस पर अमल भी किया है. रिपोर्ट के मुताबिक, प्रशांत किशोर ने तेजस्वी को बताया था कि एनडीए, लालू यादव के 15 साल के शासन को जंगलराज के रूप में ही प्रचारित करेगा और परिवारवाद का आरोप लगाएगा. पोस्टर में लालू यादव और राबड़ी देवी की तस्वीर होने पर ऐसा करना आसान हो जाएगा. साथ ही, युवाओं को पोस्टर में जब युवा चेहरा दिखता है तो उसका प्रभाव अलग होता है. तेजस्वी यादव यही तो कर रहे हैं.

वैसे बिहार के अखबारों में प्रकाशित बीजेपी के विज्ञापन में भी सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ही तस्वीर देखने को मिली है, नीतीश कुमार की नहीं. कहीं बीजेपी को भी वैसे ही 15 साल के शासन के खिलाफ हवा खराब हो जाने का डर तो नहीं रहा.

तेजस्वी यादव की रैलियों में भीड़ भी काफी देखी जा रहा है. भीड़ की एक बड़ी वजह तो ये है कि तेजस्वी यादव ने 10 लाख नौकरी देने का वादा कर रखा है - और दूसरी वजह ये मानी जा रही है कि अमूमन तेजस्वी यादव की रैलियों के लिए छोटे मैदानों सेलेक्ट किये जाते हैं. जाहिर है मैदान छोटा होगा तो भरा भरा लगेगा ही - और ये सब कोई काबिल चुनाव रणनीतिकार और सलाहकार ही कर सकता है.

जो कोई भी तेजस्वी यादव को गाइड कर रहा है उसका नाम भले ही पीके न हो, लेकिन वो काम प्रशांत किशोर की तरह ही कर रहा है. तेजस्वी यादव की चुनावी मुहिम से साफ है कि तेजस्वी का जो भी सलाहकार है वो पीके की टक्कर का ही है. वरना, 'जंगलराज का युवराज' किसके बूते नीतीश की नींद हराम किये हुए हैं?

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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