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Updated: 28 अक्टूबर, 2020 08:12 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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नीतीश कुमार को लेकर बीजेपी नेतृत्व के मन में ये धारणा रही है कि वो लालू यादव और उनके प्रति कहीं न कहीं एक सॉफ्ट कॉर्नर जरूर है. नीतीश कुमार के बयानों के साथ साथ टिकटों के बंटवारे में भी इसके लक्षण देखे गये हैं. बिहार चुनाव के वोटिंग (Bihar Election 2020) के द्वार तक पहुंचते पहुंचते आखिर ऐसा क्या हो गया कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अचानक लालू यादव पर निजी हमले (Nitish Kumar personal attack on Lalu Family) करने लगे हैं - और उनके बच्चों की संख्या तक गिनने लगे हैं?

नीतीश कुमार के तेवर में अचानक आये इस बदलाव में लोक जनशक्ति पार्टी नेता चिराग पासवान की भी कोई भूमिका हो सकती है क्या?

ऐसे तो न थे नीतीश कुमार

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर का बीजेपी को जिस अंदरूनी सर्वे में पता चला था, ये भी फीडबैक भी उसी दौरान मिला था कि नीतीश कुमार बात व्यवहार में लालू यादव और उनके परिवार के प्रति कुछ नरम रुख रखते हैं. वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और तमाम बीजेपी नेताओं की तरह लालू यादव या तेजस्वी यादव के विरुद्ध आक्रामक हमले करते नहीं देखे गये हैं.

बाद के दिनों में ऐसे कई वाकये भी हुए जो इस लाइन पर सबूत बन कर उभर रहे थे. जब लालू यादव के समधी चंद्रिका राय ने आरजेडी छोड़ कर जेडीयू ज्वाइन किया तब से लेकर कई खास मौकौं पर लालू यादव की बहू ऐश्वर्या राय की मौजूदगी देखी जाती रही और जिक्र भी होता रहा, लेकिन उनके जरिये लालू परिवार को जितना राजनीतिक नुकसान पहुंचाया जा सकता था - नीतीश कुमार की तरह से वैसा तो कुछ भी नहीं हुआ.

चंद्रिका राय ने नीतीश कुमार का हाथ थामते इस बात से इंकार नहीं किया था कि ऐश्वर्या चुनाव नहीं लड़ रही हैं. तब जैसी चर्चा थी, बीजेपी को भी उम्मीद रही होगी कि ऐश्वर्या को तेजस्वी यादव नहीं तो कम से कम तेज प्रताप यादव के खिलाफ तो जेडीयू की तरफ से उम्मीदवार बनाया ही जाएगा - लेकिन ऐश्वर्या को कहीं से भी टिकट नहीं मिला. वो भी तब जब डर के मारे तेज प्रताप यादव ने महुआ छोड़ कर हसनपुर से चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया. तेज प्रताप यादव के चुनाव क्षेत्र बदल लेने की कोई बड़ी मजबूरी तो थी नहीं.

सूत्रों के हवाले से पहले ये भी खबर आयी थी कि ऐश्वर्या को तेजस्वी के खिलाफ खड़ा किया जा सकता है, ताकि दबाव में आकर तेजस्वी यादव ज्यादा वक्त अपने विधानसभा क्षेत्र में देने को मजबूर हो और बाकी जगहों पर चुनाव प्रचार ठीक से न कर पायें. आरजेडी में वैसे भी तेजस्वी यादव के अलावा कोई दूसरा स्टार प्रचारक तो है नहीं.

जब चंद्रिका राय के लिए परसा विधानसभा क्षेत्र में वोट मांगने नीतीश कुमार पहुंचे तो ऐश्वर्या ने मंच पर आकर मुख्यमंत्री के पैर भी छुए और ये भी इशारा किया कि जल्दी ही वो राजनीति में आएंगी. ये उसी पब्लिक मीटिंग की बात है जिसमें लालू जिंदाबाद के नारे लगे थे. नाराज नीतीश कुमार ने कहा था कि वोट नहीं देना है तो मत देना लेकिन शांत रहो. फिर नारेबाजी कर रहे लोगों को रैली से बाहर करने का आदेश दे दिया था.

एक रैली में नीतीश कुमार ने ऐश्वर्या को लेकर भी लालू यादव पर हमला बोला. नीतीश कुमार ने कहा, देखा पढ़ी लिखी लड़की के साथ एक परिवार ने कितना गंदा व्यवहार किया. ऐश्वर्या का लालू यादव के बेटे तेज प्रताप यादव के साथ तलाक का मुकदमा चल रहा है.

अब तो हालत ये हो गयी है कि नीतीश कुमार इस स्तर तक पहु्ंच चुके हैं कि लालू यादव के बच्चे तक चुनावी रैलियों में गिनाने लगे हैं. हालांकि, तेजस्वी यादव ने नीतीश की बातों को अपने लिए आशीर्वचन और अपनी मां राबड़ी देवी के लिए अपमानजनक बताया है.

nitish kumarआखिर नीतीश कु्मार की लालू यादव के बच्चों पर क्यों नजर लग गयी है?

एक रैली में नीतीश कुमार ने कहा, 'बेटे की चाह में कई बेटियां हो गईं. मतलब बेटियों पर भरोसा नहीं है. ऐसे लोग क्या बिहार का भला करेंगे. अगर यही लोगों के आदर्श हैं तो समझ लीजिये बिहार का क्या बुरा हाल होगा. कोई पूछने वाला नहीं रहेगा. सबका सब बर्बाद हो जाएगा. हम सेवा करते हैं और वे मेवा और माल चाहते हैं - कर्मों की वजह से अंदर जाते हैं.'

नीतीश कुमार ने वैसी बातें भी बोल डाली जो अभी तक उनके मुंह से सुनने को नहीं मिलती रहीं - ताना मारते हुए बोले, आठ-आठ, नौ-नौ बच्चे पैदा करने वाले बिहार का विकास करने चले हैं!

बीच बीच में नीतीश कुमार डेढ़ साल में ही महागठबंधन छोड़ कर एनडीए में वापस होने को लेकर भी सफाई पेश करते रहते हैं. लालू यादव के भ्रष्टाचार के किस्से सुनाते हैं. कर्मों की दुहाई देते हैं.

ये चिराग ही तो हैं!

अब तक भी देखा जाये तो इस चुनाव में वैसी बातें सुनने को नहीं मिली हैं, जैसी पांच साल पहले 2015 के चुनावों में देखी गयी थीं. किसी ने किसी को गली का गुंडा कहा तो किसी ने शैतान कहे जाने को लेकर खूब शोर मचाया. किसी ने किसी को नरभक्षी कहा तो किसी ने किसी को जल्लाद भी कहा - और डीएनए पर सवाल उठने पर जो कुच हुआ तो वो सबको याद ही होगा.

अब कुछ दिनों से चिराग पासवान बार बार समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि नीतीश कुमार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मदद से चुनाव जीत कर महागठबंधन में फिर से चले जा सकते हैं. चिराग पासवान कई दिनों से नीतीश कुमार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहे हैं और सत्ता में आने पर उनको जेल भेजने का भी दावा कर रहे हैं. ओपिनियन पोल में चिराग पासवान के खाते में 2-6 सीटें मिलने का ही अनुमान लगाया गया है, लेकिन उनका ये दावा भी है कि चुनाव नतीजे आने के बाद बीजेपी की अगुवाई में एलजपी के सहयोग से बिहार में सरकार बनेगी.

चिराग पासवान ने मुंगेर में मूर्ति विसर्जन के दौरान हिंसा और फायरिंग को लेकर नीतीश कुमार को वैसे ही निशाना बनाया है जैसे तेजस्वी यादव ने. तेजस्वी यादव ने सवाल उठाया है कि एसपी लिपि सिंह को जनरल डायर किसने बनाया. असल में लिपि सिंह, नीतीश कुमार के बेहद करीबी जेडीयू नेता आरसीपी सिंह की बेटी हैं और दामाद भी आईएएस हैं जो बिहार में ही तैनात हैं.

एकबारगी तो ऐसा लगता है जैसे चिराग पासवान के ऐसे आरोपों की काट में नीतीश कुमार लालू यादव और उनके परिवार को निजी तौर पर निशाना बना रहे हैं, लेकिन कुछ कड़ियों को जोड़ें तो कुछ और ही मालूम होता है - ऐसा लगता है जैसे लालू यादव पर नीतीश कुमार के हमलों के पीछे सीधे सीधे चिराग पासवान नहीं बल्कि बीजेपी का दबाव है.

चिराग पासवान के हमलावर रुख की बात करें तो ये तो काफी पहले से है. तब भी नीतीश कुमार कुछ नहीं बोल रहे थे. कभी कभार पूछे जाने पर एक दो शब्दों में गोल मोल जवाब देकर समझने के लिए छोड़ दिया करते थे. नीतीश कुमार गंभीर तब हुए जब चिराग पासवान ने बिहार में एनडीए छोड़ने की घोषणा कर दी और जेडीयू उम्मीदवारों के खिलाफ लोक जनशक्ति पार्टी के प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतार दिये. चिराग पासवान टिकट तो कुछ बीजेपी उम्मीदवारों के खिलाफ भी दिया, लेकिन जेडीयू के मुकाबले उनकी संख्या काफी कम पायी गयी है.

बीजेपी और जेडीयू के बीच सीटों के बंटवारे के पहले ही नीतीश कुमार ने बीजेपी पर दबाव बनाया कि वो सार्वजनिक तौर पर चिराग पासवान को लेकर अपना स्टैंड साफ करे. सुना तो ये भी गया था कि नीतीश कुमार अड़ गये थे कि जब तक ऐसा नहीं होगा वो प्रेस कांफ्रेंस में भी नहीं बैठेंगे. प्रेस कांफ्रेंस हुई और पूछे जाने पर बीजेपी नेता सुशील मोदी ने साफ किया कि एनडीए के सहयोगी दलों के अलावा किसी को भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं दी जाएगी. एफआईआर भी दर्ज कराया जाएगा. बाद में एक इंटरव्यू के जरिये अमित शाह ने भी साफ किया कि बिहार में चिराग पासवान एनडीए के साथ नहीं हैं - और दिल्ली में इस मुद्दे पर फैसला चुनाव के बाद किया जाएगा.

बहरहाल, अब तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बिहार की चुनावी रैली में एनडीए के सहयोगी दलों की फेहरिस्त पेश कर दी है - बीजेपी, जेडीयू, HAM और VIP. मतलब, चिराग पासवान एनडीए का हिस्सा नहीं हैं.

अब जब बीजेपी को नीतीश कुमार के दबाव के चलते इतना कुछ करना पड़ रहा है तो क्या वहां न्यूटन का नियम नहीं लागू होगा - हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है. ये तो राजनीति है. साथ साथ सियासत करने पर सभी को दूसरे के मन की बात करनी पड़ती है - पहले बीजेपी ने किया और अब नीतीश कुमार कर रहे हैं.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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