रोका जा सकता था पटना नाव हादसा
बिहार का हादसा प्रशाशन की एक बड़ी चूक को उजागर करता है. आखिर अब 25 जिंदगियों के गंगा में प्रवाहित होने पर किसे दोषी ठहराया जाए? सच तो ये है कि इस हदसे को रोका जा सकता था.
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बिहार की राजधानी पटना में मकर संक्रांति के मौके पर गंगा में एनआईटी घाट पर नाव हादसा हुआ जिसमे कम-से-कम 25 लोगों की मौत हो गई. हादसे के शिकार लोग दियारा क्षेत्र में मकर संक्रांति के मौके पर पतंग महोत्सव में हिस्सा लेकर लौट रहे थे.
बिहार में त्योहारों के अवसर पर मौत का मंज़र आम बात है. पहले दशहरा, छठ और अब मकर संक्रांति के दिन ये मौतें. आखिर क्यों हर बार ये हादसे दोहराए जाते हैं? क्यों प्रशासन पिछली घटनाओं से सीख नहीं लेता? इन मौतों के आखिर जिम्मेदार कौन होते हैं? आखिर कब तक ये मौतें और हादसे होते रहेगे? या फिर इस पर भी केवल राजनीतिक रोटियां सेकी जाएंगी और फिर वही बात होगी.
प्रकाशोत्सव की तैयारी देखकर लगा था कि संक्रांति पर भी ऐसा ही सुरक्षित इंतजाम होगा |
इसी महीने सम्पन्न हुए प्रकाशोत्सव के शानदार आयोजन के बाद जिला प्रशासन की काफी प्रशंसा हुई थी. इस प्रकाश पर्व पर प्रशासन ने भीड़ प्रबंधन और अतिथि सत्कार का शानदार उदाहरण पेश किया था. लाखों बाहरी श्रद्धालुओं की भीड़ के बावजूद जितनी पर्याप्त और सुंदर व्यवस्था की गई उसका गुणगान विदेश तक से हुआ था लेकिन इस बार प्रशासन की लापरवाही फिर से सामने दिख गई. कहीं ऐसा तो नहीं कि प्रकाशोत्सव में महत्वपूर्ण लोगों की भागीदारी होना था इसलिए प्रशासन चुस्त और दुरुश्त था और इस आयोजन में आम आदमी के भागीदारी को नज़अंदाज़ कर दिया गया?
ऐसी लापरवाही पहले भी देखा गया है......
प्रशासन ने फिर से वही लापरवाही दिखाई, जो पटना में 2012 और 2014 में हुई थी. पटना में 2012 में छठ के दौरान भगदड़ हुई थी, जिसमें 22 लोगों की जानें गई थीं.
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फिर 2014 में भी दशहरे के समय पटना के लोगों ने पर्व पर खुशहाली की बजाय आंसू बहाए थे. उस समय करीब 33 लोगों की जानें गई थीं. लेकिन, अतीत के हादसों को इस बार भी ध्यान में नहीं रखा गया और पतंग महोत्सव की तैयारी में प्रशासन की विफलता फिर से सामने आई और 25 ज़िंदगियां गंगा में प्रवाहित हो गईं.
घटना-दुर्घटना पर किसी का नियंत्रण नहीं, पर संभावित परिस्थितियों को नजरअंदाज कर दिया जाए तो इसे लापरवाही कहते हैं और ऐसा ही इस बार भी देखने को मिला. लेकिन अब उन परिवारों के लिए तो मकर संक्रांति हर साल काले दिन के रूप में दर्ज हो गई है जिनके अपने अब नहीं रहे.
क्या हादसे को रोक जा सकता था?
हादसे में तो करीब 25 लोगों की मौत हो गई. लेकिन सबसे बड़ा सवाल है इसकी ज़िम्मेदारी किसकी है? क्या सरकार चाहती तो इस हादसे को रोक सकती थी? ये सारे सवाल इसलिए हैं क्योंकि प्रशासन ने बड़ी लापरवाही को नज़रअंदाज़ नहीं किया होता तो पटना में इतने लोगों को शायद अपनी जान न गंवानी पड़ती. क्षमता से अधिक लोगों के सवार होने से नाव गंगा में समा गई. नाव पर अधिक लोगों के सवार होने की एक ही वजह रही कि करीब 35 हजार लोगों की भीड़ के लिए नावों का पर्याप्त प्रबंध नहीं किया गया था.
ऐसा कैसे हो सकता है कि एक गैरकानूनी अम्यूजमेंट पार्क प्रशाशन की नाक के नीचे चल रहा था और किसी को खबर ही नहीं थी |
इतने लोगों के जान से हाथ धोने के बाद अधिकारी भी मान रहे हैं कि भीड़ की एक बड़ी वजह डॉल्फिन आइलैंड अम्यूज़मेंट पार्क भी रहा. प्रशासन के के लिए सबसे बड़ा सवाल है कि क्या उसे पहले से इस अवैध अम्यूजमेंट पार्क की जानकारी नहीं थी और अगर थी तो फिर कार्रवाई क्यों नहीं की गई?
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मौत पर राजनीति भी....
25 लोगों की मौत पर अब राजनीति भी शुरू हो गई है. मुख्य विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी ने जहां इस हादसे के लिए सरकार को जिम्मेवार बता रही है, वहीं सत्ताधारी महागठबंधन में शामिल राष्ट्रीय जनता दल इस हादसे को प्रशासनिक चूक का नतीजा बता रही है और जनता दल (यू) सरकार के बचाव में उतर आई है.
ज़ाहिर है हर हादसे और मौत के बाद राजनीति तो होती ही है बस एक चीज़ नहीं होती और वो है कि इन हादसों से सरकारें कोई सबक नहीं लेती और भविष्य में ऐसे हादसों की पुर्नावृति न हो इसकी कोई गारन्टी नहीं लेता.
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