बिहार मध्यावधि चुनाव की ओर, तो क्या राजद हो सकती हैं दो दर्जन विधायकों वाली पार्टी?
नीतीश कुमार यह भली-भांति जानते हैं कि केंद्र की सत्ता से बीजेपी को हटाना बहुत मुश्किल काम है. इसमें नीतीश कुमार की क्या भूमिका होगी यह स्पष्ट नहीं है. बाकी इतना तय है कि आने वाले वक़्त में नीतीश कई मायनों में राजद के लिए फायदेमंद होने वाले हैं.
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बिहार में जो सत्ता परिवर्तन हुआ है, बीजेपी और जेडीयू एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रही हैं. बीजेपी की ओर से कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार उप राष्ट्रपति बनना चाहते थे जो नहीं हुआ. साथ ही नीतीश जी की महत्वाकांक्षा राष्ट्रीय राजनीति में आने की है. लोकसभा चुनाव में विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनना चाहते हैं. वहीं नीतीश कुमार और उनकी पार्टी की ओर से कहा जा रहा है कि बीजेपी बिहार में महाराष्ट्र जैसा खेल करना चाहती थी. बीजेपी और जेडीयू एक दूसरे पर जो भी आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं, वह अंदर खाने की बात है. इसमें सच्चाई क्या है यह बताना बहुत ही मुश्किल है. नीतीश कुमार एक मजे हुए राजनेता है जो पूरे देश की राजनीति में अपने को प्रासंगिक बनाए हुए हैं. बिहार की घटनाक्रम पर नजर डालते हैं तो यह सतही तौर पर लगता है की प्रतिक्रिया और प्रतिशोध की परिणिति हैं. जहां तक मैं एक पत्रकार के तौर पर नीतीश कुमार का व्यक्तित्व और राजनीतिक जीवन को समझ पाया हूं कि, कहीं पर निगाहें और कहीं पर निशाना की उक्ति इनके संदर्भ में चरितार्थ होती है. बिहार में हुए घटनाक्रम का विश्लेषण करते हैं तो लगता है कि पर्दे के पीछे की कहानी कुछ और है: नीतीश जी अपने व्यक्तित्व को लेकर बहुत संजीदा रहते हैं, आया राम-गया राम से बहुत वाकिफ है कि इनके व्यक्तित्व पर क्या प्रभाव पड़ेगा ? लेकिन जब लक्ष्य बड़ा हो तो किसी तरीके का जहर पिया जा सकता है.
बिहार में नीतीश कुमार तेजस्वी यादव को बड़ा फायदा पहुंचाते नजर आ रहे हैं
नीतीश कुमार यह भली-भांति जानते हैं कि केंद्र की सत्ता से बीजेपी को हटाना बहुत मुश्किल काम है. इसमें नीतीश कुमार की क्या भूमिका होगी यह स्पष्ट नहीं है. अब मैं नीतीश कुमार के उद्देश्य का नहीं लक्ष्य का विश्लेषण कर रहा हूं: - इसमें कोई शक नहीं हैं कि नीतीश कुमार की लोकप्रियता घट रही थी. नीतीश कुमार किसी भी कीमत पर भारतीय राजनीति से अप्रसांगिक होकर रिटायर होना नहीं चाहते थे. श्री कुमार पर यह आरोप हमेशा लगता है कि यह बैशाखी मुख्यमंत्री है, इस दाग को धोने के लिए महागठबंधन में अपने पर्दे के पीछे वाले लक्ष्य के साथ आये हुए हैं.
नीतीश जी यूपी के तर्ज पर बिहार में बीजेपी का फार्मूला लागू करना चाहते हैं, ताकि 2025 के विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बना सके. यूपी में बीजेपी राज्य स्तर पर 2017 से पहले बहुत ही कमजोर स्थिति में थी, लेकिन बीजेपी ने राज्य की छोटी-छोटी पार्टियां अपना दल, निषाद पार्टी, प्रगतिशील समाज पार्टी सहित अन्य कई पार्टियों के साथ गठबंधन कर अकेले अपने दम पर पूर्ण बहुमत के आंकड़े से अधिक सीटों पर विजयी रही. उसी प्रकार नीतीश कुमार भी महागठबंधन के जो भी सहयोगी दल है उनको अपने पाले में करना उनका मुख्य लक्ष्य है, ताकि आने वाले चुनाव में गैर राजद, गैर बीजेपी अकेले छोटी-छोटी पार्टियों के सहयोग से एक नया गठबंधन बना कर चुनाव मैदान में उत्तरा जा सके.
वैसे कांग्रेस पहले से ही नीतीश कुमार का मौन समर्थक रही है. लेफ्ट पार्टियों को अपने पाले में करने के बाद नीतीश कुमार कभी भी मध्यावादी चुनाव के लिए जा सकते हैं, क्योंकि लेफ्ट पार्टियों के आने से नीतीश की पार्टी के सीटों में काफी इजाफा होगा. ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं कि आप 2010 के चुनाव परिणाम को देख ले, राजद अकेले चुनाव लड़ी थी, मात्र 24 सीटों पर सिमट कर रह गई थी. वहीं लेफ्ट पार्टियां भी अकेले ही चुनाव लड़ी थी, लेकिन हर जगह औसतन 5 से 10 हजार मत लाकर राजद को हराने में बड़ी भूमिका निभाई थी.
इस बात को नीतीश कुमार भली-भांति समझते हैं की लेफ्ट पार्टियों के आने से उनके सीटों में इजाफा हो जाएगा. जहां तक कांग्रेस की बात हैं तो कांग्रेस नीतीश कुमार के साथ ही जाना पसंद करेंगी, क्योंकि कांग्रेस पर जो लालू के जंगलराज के आभामंडल का दाग लगा है, उस दाग से निकलने का मौका मिलेगा. नीतीश कुमार, गैर राजद गैर बीजेपी से अकेले चुनाव लड़ने पर मुस्लिम वोटों में बड़ा सेंध लगा सकते हैं, क्योंकि बीजेपी में रहते हुए भी नीतीश कुमार की छवि सेकुलर बनी रही, जिसका फायदा उन्हें अकेले चुनाव लड़ने पर मिलेगा.
जीतन राम मांझी की पार्टी हम और मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी पहले से ही नीतीश कुमार के साथ हैं. बिहार का एक मजबूत सामाजिक समीकरण आने वाले चुनाव में नीतीश के साथ होगा, जिसका प्रभाव चुनाव परिणाम पर पड़ सकता हैं . यदि ऐसा होता हैं तो राजद पुन: दो दर्जन विधायकों वाली पार्टी हो जाएगी, वहीं बीजेपी कुछ खास नहीं कर पाएगी. दूसरी ओर नीतीश नीतीश कुमार अपनी भारतीय राजनीति में प्रसांगिकता बरकरार रखते हुए रिटायर होना चाहेंगे. साथ ही बैसाखी मुख्यमंत्री का दाग भी धुल जायेगा.
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