बिहार चुनाव में झलक सनी लियोन के कंडोम एड की!
कुछ लोगों को यह बात बेतुकी लग सकती है लेकिन गौर से देखिए तो बिहार विधानसभा चुनावों और सनी लियोन के बीच एक गहरा कनेक्शन है, जानिए क्या?
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‘पहली बार करने का मजा ही कुछ और होता है. जो पहले कभी न किया हो... ट्राय समथिंग न्यू...’ इन लाइनों को पढ़ने के बाद आपको याद तो सनी लियोन का नया वाला कंडोम का विज्ञापन आ रहा होगा. ऐसा होना लाजिमी है क्योंकि सनी लियोन इन लाइनों को दिन भर में सैकड़ों मर्तबा नेशनल टेलीविजन पर दोहराती हैं. कुछ लोगों को यह बात बेतुकी लग सकती है, लेकिन सनी लियोन और बिहार में राजनीतिक पार्टियों का फोकस एक ही उम्र के लोगों पर है. फर्क बस इतना है कि नेता जिस बात को अपने घंटे-आधे घंटे के भाषण में घुमा-फिराकर कहने की कोशिश कर रहे हैं, सनी लियोन इस सच्चाई को दो लाइनों में बयां कर देती है.
परिवार के बीच बैठकर टीवी देखते लोगों को असहज कर देने वाले इस विज्ञापन की चर्चा भी इसी जगह बाद में करेंगे, लेकिन मेरी यह तुलना बेतुकी बिल्कुल नहीं है, क्योंकि बिहार चुनाव में इस बार नए निजाम के लिए वोट मांगे जा रहे है, नए लोगों को मौका देने की गुहार लगाई जा रही है और लुभाने की कोशिश उन वोटरों को भी है, जो नए हैं और पहली बार वोट करेंगे. इसीलिए ‘ट्राय समथिंग न्यू’ का नारा बिहार के चुनावी महाभारत में इस बार बहुत मायने रखता है. आखिर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी 12 अक्टूबर को वोटिंग शुरू होने से पहले खासतौर पर ट्वीट कर युवाओं से वोट करने की अपील करते हैं.
अबकी बार अगर बिहार जात-बिरादरी से ऊपर उठा, तो युवा वोटरों का रुख निर्णायक रहेगा. जैसा कि 2014 के आम चुनावों में हुआ था. कुल वोटरों का पांचवा हिस्सा 30 साल से कम उम्र वाले वोटरों का है. इनमें से भी करीब दस फीसदी ऐसे होंगे, जो पहली या दूसरी बार वोट करेंगे. ज़ाहिर है युवा वोटरों का जोश बिहार का भविष्य किसी भी दिशा में मोड़ने की काबिलियत रखता है. नए तरह की राजनीति करनी है, तो युवाओं के हिसाब से चलना होगा, इसमें अब शक नहीं है. लेकिन राजनीति है तो बड़ी गंदी चीज, इसलिए वो वोटर को जाति, धर्म और वर्ग के फेर में फंसाए रखना चाहती है.
बिहार की सियासत पर जातिगत समीकरण हावी हमेशा से रहते हैं.जातिवाद की जड़ें इतनी गहरी हैं कि कई नेता, नेता हैं ही इसलिए कि वो अपनी-अपनी जाति के धुरंधर हैं और उनके वोटर जाति के मकड़जाल से बाहर कभी निकल ही नहीं पाए. लेकिन बिहार अब बदलाव के मुहाने पर खड़ा है. इसका संकेत बिहार के भविष्य यानी युवा पीढ़ी ने 2014 के चुनाव में दिए थे. पिछले आम चुनाव में एनडीए को जबरदस्त जीत हासिल हुई थी और आंकड़ों का विश्लेषण यह बताता है कि 18 से 25 साल के वोटरों का समर्थन नरेंद्र मोदी की अगुआई वाले गठबंधन को मिला था, जो निकटतम विरोधियों के मुकाबले करीब दस फीसदी ज्यादा था. बिहार में इस बार कुल 6 करोड़ 68 लाख मतदाता हैं. इनमें ओबीसी और ईबीसी के 51 फीसदी वोटर हैं. दलित और महादलित वोटरों का हिस्सा करीब 16 फीसदी है और मुस्लिम वोटरों की भागीदारी 17 फीसदी है. सवर्ण वोटर चुनावों में 15 फीसदी की हिस्सेदारी रखते हैं. अब कशमकश ये है कि युवा वोटरों पर दावं लगाया जाए या फिर सोशल इंजीनियरिंग से जीत का हिसाब-किताब बैठाया जाए. वैसे पीएम मोदी के प्रति युवाओं का आकर्षण पिछले आम चुनाव से ज़ाहिर हो गया था, जो जाति से परे माना गया.
नरेंद्र मोदी की युवाओं में लोकप्रियता का नतीजा है कि बिहार की राजनीति में हालिया वक्त में विपरीत ध्रुव रहे लालू और नीतीश साथ मिलकर चुनाव लड़ने के लिए मजबूर हैं. जिस लालू को जंगलराज का जनक नीतीश ने बताया, वही सुशासन बाबू लालू की यादवी जमीन पर ‘ट्राय समथिंग न्यू’ के नारे को निष्क्रिय करने की जी-तोड़ कोशिश में हैं. चुनाव के परंपरागत समीकरणों और हथकंडों को छोड़ पाना विकास के महारथियों के लिए भी मुश्किल हो रहा है. वैसे दलित-पिछड़ों की जुगलबंदी करने में तो पीएम मोदी की पार्टी ने भी कमी नहीं की है. लेकिन मोदी का टारगेट भी विज्ञापन के समान 18-25 और 30 साल तक के युवा हैं.
रही बात सनी लियोन के कंडोम विज्ञापन की, तो ज़ाहिर तौर पर यह सेक्सुअली एक्टिव होते युवाओं को टारगेट करते हुए बनाया गया है. लेकिन जिस तरह से इसे फिल्माया और पेश किया गया है, वो सार्वजनिक प्रदर्शन के लिहाज से आपत्तिजनक है. कंडोम का विज्ञापन होना चाहिए. इस मुद्दे पर जागरूकता भी आनी चाहिए, लेकिन तस्वीरों में उत्तेजना और शब्दों में अश्लीलता के अलावा भी इसका तरीका हो सकता है. अगर सेंसर बोर्ड ने इस विज्ञापन को मंजूरी दी है, तो निश्चित तौर पर यह नियमों के मुताबिक ही होगा, फिर चौबीसों घंटे कामुकता का खेल दिखाने के बजाए इस तरह की ‘जागरूकता’ लाने के लिए टेलीविजन पर प्रसारण का वक्त तय करने पर अभी विमर्श चल ही रहा है. खैर, देश की संस्कृति के ठेकेदार फिलहाल गो-हत्या और घर वापसी की कोशिशों में व्यस्त हैं और तथाकथित उदारवादी पुरस्कार लौटाने में. बचे हुए महारथी हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण और सोशल इंजीनियर गढ़ने में लगे हैं. लेकिन जनाब जब फुर्सत मिले, तो मंथन सनी लियोन के अभियान पर भी होना चाहिए.
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