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Updated: 15 मार्च, 2017 09:24 PM
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क्या बिहार की राजनीति पर यूपी चुनाव के नतीजों का असर पड़ने लगा है? या फिर नीतीश कुमार का दिल्ली में एमसीडी चुनाव में हिस्सा लेना आरजेडी को खटक रहा है?

आखिर रघुवंश प्रसाद सिंह जेडीयू नेताओं पर अचानक इतने हमलावर क्यों हो गये हैं? कहीं महागठबंधन के भीतर कोई और खिचड़ी तो नहीं पक रही?

महागठबंधन में रार

तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने की मांग बहुत पुरानी बात तो नहीं है लेकिन मामला अभी शांत है. आरजेडी नेताओं की ओर से उठी इस मांग को लेकर राबड़ी देवी से लेकर लालू यादव तक हामी भर चुके हैं - लेकिन फौरन ही डिस्क्लेमर डाल देते हैं कि फिलहाल बिहार में सीएम की वेकेंसी नहीं है.

आरजेडी नेता रघुवंश प्रसाद सिंह शुरू से ही नीतीश कुमार के खिलाफ आग उगलते रहे हैं. इन दिनों वो जेडीयू के प्रवक्ताओं से खासे खफा हैं. रघुवंश प्रसाद का आरोप है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी पार्टी जेडीयू के प्रवक्ताओं से इन दिनों उन्हें गाली दिलवाते रहते हैं. यूपी चुनाव में नीतीश कुमार के स्टैंड पर सवाल उठाते हुए रघुवंश ने पूछा कि उन्होंने बीजेपी के खिलाफ प्रचार क्यों नहीं किया?

वैसे भी एक दिन जेडीयू प्रवक्ता संजय सिंह ने रघुवंश प्रसाद के लिए शिखंडी बोल कर अपमानजनक टिप्पणी कर दी थी. ये सुनने के बाद रघुवंश का भड़क उठना तो स्वाभाविक ही था.

nitish-tejashwi_650_031517065126.jpgमहागठबंधन में कौन सी खिचड़ी पक रही है?

रघुवंश प्रसाद इतने गुस्सा हुए कि जेडीयू नेताओं को मारने-पीटने की धमकी दे बैठे. रघुवंश प्रसाद ने कहा, "अगर मेरे पार्टी के सेनापति का आदेश हो, तो वो किसी का भी गर्दा छुड़ा देंगे."

तेजस्वी-राबड़ी की फटकार

शायद ये पहला मौका होगा जब रघुवंश प्रसाद के बयान पर आरजेडी की ओर से कोई सख्त टिप्पणी की गयी है. राबड़ी देवी ने जहां रघुवंश के बयान को फूहड़ कहा है तो तेजस्वी यादव ने इस तरह के बयान से परहेज की सलाह दी है. तेजस्वी ने तो यहां तक कहा है कि अगर आगे भी ऐसा हुआ तो वो आरजेडी सुप्रीमो से रघुवंश के खिलाफ कार्रवाई की मांग करेंगे.

रघुवंश की बात को ऐसे समझें तो माना जाता है कि बिहार का बच्चा बच्चा जानता है कि रघुवंश जो भी बोलते हैं उसमें सिर्फ उनकी जबान होती है - और बातें सारी लालू प्रसाद की ही होती हैं. लेकिन इस बार राबड़ी और तेजस्वी के बयान डैमेज कंट्रोल हैं या वाकई रघुवंश प्रसाद बेलगाम हो चुके हैं.

आरजेडी को आपत्ति किस बात पर

क्या महागठबंधन पर यूपी चुनाव के नतीजों का असर पड़ने लगा है? क्या चुनाव के नतीजे समाजवादी पार्टी के पक्ष में होते तो लालू ज्यादा ताकतवर महसूस करते?

वैसे सच तो यही है कि जिस दामाद का प्रचार करने लालू प्रसाद सबसे पहले बुलंदशहर गये वो भी चुनाव हार गये. लालू यादव ने बनारस के पिंडरा से मोदी और अमित शाह को खूब बुरा भला कहा था और वहां लालू ने जिसके लिए वोट मांगे वो तीसरे स्थान पर पहुंच गया.

सवाल ये है कि लालू प्रसाद या आरजेडी नेताओं को नीतीश से ताजा चिढ़ की वजह सिर्फ यूपी चुनाव है या कुछ और?

वैसे एक घटना ये भी हुई कि होली पर जेडीयू के दो नेता श्याम रजक और संजय सिंह केंद्रीय मंत्री रामकृपाल यादव से मिलने पहुंच गये. राम कृपाल पहले आरजेडी में ही थी और लोक सभा में बीजेपी टिकट पर चुनाव लड़े. लालू की बेटी मीसा भारती ने उन्हें चुनौती दीं लेकिन हार का मुहं देखना पड़ा.

रघुवंश प्रसाद ने नीतीश पर तब भी हमला बोला था जब वो लालू से पहले बनारस पहुंच गये - शराबमुक्त समाज और संघमुक्त भारत का नारा दे डाला. तब बवाल बढ़ा तो लालू ने विवाद की वजह विपक्ष पर थोप कर मामला शांत कराया था.

लेकिन अब क्या? क्या रघुवंश प्रसाद अब नीतीश के एमसीडी चुनावों में हिस्सेदारी से नाराज हैं? या कहीं न कहीं लालू को भी नीतीश और बीजेपी की किन्हीं संभावित करीबियों का अहसास होने लगा है?

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