Bihar: गुटखा लोग तो छोड़ना चाहते हैं, सरकारों से ही नहीं छूटता!
Bihar की नीतीश कुमार सरकार ने तंबाकू गुटखा एक साल के लिए बैन कर दिया गया है. 2014 में जितनराम मांझी ने भी ऐसा किया था. लेकिन चुपके से कब ये बैन उठा लिया गया, पता नहीं. इस तरह के बैन कितने कारगर होते हैं, पेश है एक रिसर्च रिपोर्ट:
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बिहार में शराब बंद करने के बाद अब नीतीश ने एक साल तक के लिए पान मसाले/ गुटखे पर बैन लगाया है. अलग-अलग ब्रांड के पान मसलों की बिक्री पर पूरी तरह से रोक लगा दी है. सरकार की ओर से बताया गया है कि उन्हें पान मसाले में मैग्नीशियम कार्बोनेट के इस्तेमाल की शिकायत मिल रही थी. सरकार ने एक्शन लेते हुए बीस अलग अलग ब्रांड के पान मसालों की जांच की. रजनीगंधा, राज निवास, सुप्रीम पान पराग, पान पराग, बहार, बाहुबली, राजश्री, रौनक, सिग्नेचर, कमला पसंद, मधु पान मसाला ब्रांड की जांच में पाया गया कि इन पान मसलों में मैग्नीशियम कार्बोनेट का इस्तेमाल किया जा रहा था. जो कि हृदय रोग, कैंसर समेत तमाम गंभीर बीमारियों का जनक है.
इस कार्रवाई के बाद से ये तो स्पष्ट हो गया कि सरकार इन गुटखा ब्रांड की बिक्री नहीं होने देगी. लेकिन सिर्फ सालभर तक. सवाल ये है कि क्या ये मामला सिर्फ एक खतरनाक कैमिकल की मिलावट का ही है? या फिर नीतीश सरकार गुटखा/पान मसाला को सेहत के लिए हानिकारक मानती है? और यदि इसे हानिकारक मानती है तो यह बैन सिर्फ सालभर के लिए ही क्यों? सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं कि यह कार्रवाई बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव से ठीक पहले ही की गई है, और विरोधी आरोप लगा रहे हैं कि नीतीश कुमार इस एक फैसले से वोटरों के बीच अपनी जन-हितैषी छवि को उभारना चाहते हैं.
आइए, गुटखा बैन की इस कार्रवाई, और ऐसी सभी कार्रवाई का मूल्यांकन करते हैं कि यदि गुटखा-पान मसाला की बिक्री यदि समस्या है तो उस पर प्रतिबंध लगाने के प्रयास कामयाब क्यों नहीं हो रहे/हो पाए.
बिहार में शराब के बाद गुटखे पर जो रुख नीतीश कुमार ने अपनाया है उससे अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों को सबक लेना चाहिए
बिहार में गुटखा बैन का इतिहास: समय समय पर बिहार सरकार इसके लिए गंभीर हुई है. इससे पहले बिहार में जिस वक़्त जीतम राम मांझी की सरकार थी तब भी उन्होंने तंबाकू पर बैन लगाया था मगर नतीजा ढाक के तीन पात निकला. ये बैन नाकाम ही रहा और राज्य में तंबाकू का सेवन बदस्तूर जारी रहा. 2014 में बिहार से एक विडियो खूब वायरल हुआ जिसमें बिहार विशेषकर जदयू के नेता मंच पर तम्बाकू खाते नजर आए.
गुटखे और पान मसालेे का अंतर बैन को नाकाम करने के लिए
पहले गुटखे और पान मसाले का अंतर समझ लीजिए. गुटखे को सुपारी, चूने, कत्थे, तम्बाकू और रंगों से तैयार किया जाता है. साथ ही इसमें सुगंध के लिए केमिकल्स का भी इस्तेमाल किया जाता है. 2014 में एक गुटखा कंपनी के मालिक ने अपना कारोबार बंद करने के बाद जनता के बीच इस बात का खुलासा किया था कि गुटखे में स्वाद बढ़ाने के लिए खतरनाक रसायन और जहरीले रंग मिलाए जाते हैं. ये खुलासा उसने इसलिए किया था क्योंकि वो खुद माउथ कैंसर का शिकार हुआ था और अस्पताल में अपना इलाज करवा रहा था. 2011 के अधिसूचित खाद्य मानक और सुरक्षा अधिनियम में इस बात का उल्लेख किया गया था कि किसी भी उत्पाद में कोई भी ऐसा पदार्थ नहीं होगा जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है.
इस कानून में ये साफ कर दिया गया कि किसी भी खाद्य उत्पाद में तम्बाकू या निकोटीन इस्तेमाल नहीं किया जाएगा. इसके बाद कंपनियों ने पान मसाला और तम्बाकू अलग अलग बेचना शुरू कर दिया. आपको बता दें कि पान मसाले में केवल सुपारी चूने, कत्थे, तम्बाकू और रंगों का इस्तेमाल किया जाता है और इसमें तम्बाकू नहीं होता जबकि पहले इसमें तम्बाकू का इस्तेमाल होता था और ये गुटखा कहलाता था. अब उत्तर प्रदेश, दिल्ली, कर्नाटक, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश समेत अधिकांश राज्यों में पान मसाले और तम्बाकू को अलग अलग बेचा जा रहा है. ग्राहकों को गुटखा बनाने वाले कंपनियों द्वारा यही बताया जा रहा है कि अब उन्हें दोनों चीजें मिलकर खानी हैं.
भारत में गुटखा बैन करना इसलिए भी मुश्किल है क्योंकि इससे कंपनियों को अरबों रुपए का मुनाफा हो रहा है
कब उठी गुटखे पर प्रतिबंध लगाने की मांग
क्योंकि 2011 के अधिसूचित खाद्य मानक और सुरक्षा अधिनियम में तंबाकू को लेकर निर्देश जारी कर दिए गए थे. सुप्रीम कोर्ट ने इसी बात को आधार बनाया और राष्ट्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण संस्थान को निर्देश दिए कि वो ऐसे साक्ष्य प्रस्तुत करें जो तम्बाकू उत्पादों के दुष्परिणामों को दर्शाएं. कमेटी ने अपनी रिपोर्ट पेश की और इस जांच में जो परिणाम निकल कर आए वो चौंकाने वाले थे. इसी के बाद देश के तमाम एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट से विनती की कि वो तम्बाकू उत्पादों के बैन की दिशा में न सिर्फ सोचे बल्कि उसे अमली जामा पहनाए ये अपने आप में दिलचस्प था कि गुटखे पर बैन की बात खुद गुटखा चबाने वाले लोगों ने की. कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी के बाद Voice of Tobacco Victims’ (VoTV) के बैनर तले आए लोगों ने सरकार से मांग की कि तत्काल प्रभाव में गुटखे की बिक्री पर प्रतिबंध लगाया जाए.
लोगों का तर्क था कि इससे जहां एक तरफ लोग गंभीर रूप से बीमार हो रहे हैं तो वहीं नशे का इस्तेमाल उन्हें आर्थिक रूप से कमजोर कर रहा है जो परिवार के बिखरने की एक बड़ी वजह बन रहा है. लोगों ने इस दिशा में खूब मार्च निकाले. कई आन्दोलन हुए. सेलिब्रिटीज की मदद ली और आखिरकार पहली बार 1 अप्रैल 2012 को मध्य प्रदेश में गुटखा पूर्ण रूप से प्रतिबंधित हुआ.
इसके बाद अलग अलग राज्यों ने इसे अपने यहां लागू किया. कुछ राज्य ऐसे भी थे जिन्होंने गुटखे पर बैन लगाने से माना कर दिया था. इस स्थिति के बाद पीआईएल डाली गई और हाई कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद उन राज्यों ने अपने यहां पर बैन को लागू किया. आपको बताते चलें कि 2012 के बाद 29 में से 14 राज्यों ने अपने यहां बैन को लागू किया.
गुटखा खाने और बेचने वालों का सर्वे आंखें खोल देनेे वाला
बात 2014 की है. जॉन होपकिंस यूनिवर्सिटी, ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ और डब्लूएचओ ने 1001 लोगों पर सर्वे किया. इस सर्वे में वो लोग शामिल थे जो गुटखा छोड़ चुके थे. साथ ही इसमें 458 गुटखा बेचने वाले लोगों को भी रखा गया. 7 राज्यों असम, बिहार, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा और दिल्ली में कराए गए इस सर्वे में इस सर्वे में 90% ऐसे लोग थे जिन्होंने इस बात की वकालत की कि सरकार को गुटखे और पान मसाले पर पूर्ण रूप से बैन लगा देना चाहिए. सर्वे के अनुसार ऐसा ज्कोई आउटलेट नहीं था जहां पर पैक गुटका दिखाई दे रहा था. 92 % लोगों ने बैन का समर्थन किया. 99% लोगों ने माना कि ये बैन लोगों की सेहत के लिहाज से अच्छा है. कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्होंने कहा कि बैन के बाद उन्होंने गुटखा खाना कम कर दिया है. 80% लोगों ने कहा कि इस बैन ने उन्हें गुटखा छोड़ने की प्रेरणा दी.
बहरहाल, अब जबकि बिहार ने एक साल तक के लिए गुटखे पर बैन लगा दिया है. तो हमारे लिए भी ये देखना दिलचस्प रहेगा कि इससे गुटखे की बिक्री की रोकथाम में कितनी मदद मिलेगी. साथ ही अन्य राज्यों के लिए ये मामला नजीर बनेगा या नहीं इसका फैसला भी समय करेगा मगर जैसे नुकसान गुटखे के हैं तमाम सरकारों को इस दिशा में न सिर्फ सोचना चाहिए बल्कि इसे वास्तविकता में भी लाना चाहिए.
60,000 करोड़ रुपए का कारोबार और सरकार की कमाई
आकर्षक पैक में बिकने वाला गुटखा या पान मसाला बच्चों विशेषकर युवाओं को टारगेट करता है. पिछले एक दशक में जिस पैमाने पर इसका कारोबार बढ़ा है माना जाता है कि आज गुटखे या पान मसाले का कुल बाजार करीबन 60,000 करोड़ रुपए का है. जैसे जैसे इस बाजार का विस्तार हो रहा है, ओरल हेल्थ से जुड़ा महकमा परेशान है. बढ़ता हुआ बाजार वर्तमान में कई जानलेवा बीमारियों का अहम कारण है. गुटखा आज देश के लिए किस हद तक मुसीबत बन गया है यदि इस बात को समझना हो तो हम ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे (GATS) का रुख कर सकते हैं. 2009-10 में किये गए इस सर्वे के अनुसार भारत में लगभग 13% पुरुष और 3% महिलाएं गुटखा या फिर तम्बाकू का इस्तेमाल करते हैं और क्योंकि इनमें भी अधिकांश युवा हैं जो ओरल कैंसर का शिकार हो रहे हैं इसलिए भी ये एक गंभीर समस्या है. और पिछले दस सालों में यह समस्या बढ़ी ही है.
गुटखा कारोबारियों का स्वार्थ तो सीधा समझ में आता है, लेकिन सरकारों की नजर में टैक्स का लालच भी कम नहीं है. गुटखे और पान मसाले की बिक्री पर सरकारें तगड़ा टैक्स और सरचार्ज वसूलती हैं. शराब, सिगरेट के अलावा पान मसाले और गुटखे का सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, लेकिन इस सर्वविदित तथ्य के बावजूद सरकारें इसकी बिक्री को बैन करती और चुपके से हटाती रही हैं. गुटखे और पान मसाले से निजात पाने के लिए जनता सरकार का मुंह देखती रही है, तो सरकारें अपने खजाने का मुंह देखकर जनता से मुंह फेरती रही हैं. यह खेल इतना भी सीधा नहीं है. गुटखा-पान मसाला लॉबी भी इस कारोबार को दीर्घायु बनाने में अहम रोेल निभाती रही है. नीति निर्माताओं की जेब पिछले दरवाजे से भरी जाती रही हैं, और उसके बाद लोगों के मुंह में गुटखा और पान मसाला.
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