अचानक शराबबंदी पर सवाल क्यों खड़े हो गए !
5 अप्रैल 2016 को बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू हुई थी तब विरोध का एक भी स्वर सुनाई नहीं देता था. लेकिन अब शराबबंदी को लेकर बहस छिडी हुई है. क्योंकि नए कानून से किसी को भी फंसाया जा सकता है.
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शराबबंदी विधेयक राज्यपाल को राज्यपाल के स्तर पर सहमति मिलने के बाद अब बिहार में शराबबंदी के कडे कानून लागू होने में अब कोई अडचन नहीं है. सरकार कानून को जल्दी ही कैबिनेट में लाकर पूरे राज्य में कडाई से इसे लागू कर देगी. वैसे तो शराबबंदी पर सख्त कानून बिहार में पहले से ही लागू है लेकिन इस नए कानून के लागू होने के बाद सख्ती और बढ जाएगी. इसलिए शराब पीने वाले और तस्करी करने वाले पूरी तरह से सावधान हो जाएं. क्योंकि उनकी किसी भी गलती के लिए अब वो अकेले जिम्मेदार नहीं होंगे, बल्कि जिम्मेदार होंगे परिवार के सभी बालिग सदस्य भी.
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नए उत्पाद विधेयक में किए गए प्रावधान के मुताबिक-
* अगर घर में शराब पी जा रही है तो मालिक को कम से कम दस वर्ष की सजा या आजीवन कारावास की सजा हो सकती है.
* शराब का उपभोग करते पकडे जाने पर कम से कम पांच वर्ष की सजा और दस लाख तक का जुर्माना देना होगा.
* घर में शराब रखी हूई है या पी जा रही है इसकी जानकारी उत्पाद अधिकारी को नहीं देने पर घर के सभी व्यस्कों पर मुकदमा चलेगा.
* शराब का प्रचार-प्रसार करने या फिर उसके विज्ञापन को प्रकाशित करने पर तीन से पांच वर्ष की सजा और दस लाख तक जुर्माना.
* गांव या शहर का कोई समूह या समुदाय विशेष शराबबंदी कानून में अडंगा बनता है तो ऐसे गांव या शहर पर सामूहिक जुर्माना.
इस कानून को बिहार विधानमंडल पास कर चुका है, लेकिन राज्यपाल को इस कानून को रजामंदी देने में एक महीने से ज्याद का वक्त लगा. ये महज संयोग ही है कि महामहिम ने जब इस कानून पर अपनी सहमति दी तब भी शराबबंदी को लेकर बहस छिडी हुई है.
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5 अप्रैल 2016 को जब राज्य में पूर्ण शराबबंदी लागू हूई थी तब विरोध का एक स्वर सुनाई नहीं देता था. लोग खुश थे कि शराबबंदी उनके परिवार को अब बचा लेगी. खुश तो अब भी हैं लेकिन नए कानून का खौफ भी दिख रहा है. खौफ इसलिए कि इस कानून से किसी को भी फंसाया जा सकता है. शुरू में शराबबंदी का समर्थन करने वाला विपक्ष इस नए कानून को लेकर विरोध करने लगा, इसे काला कानून बताने लगा. विरोध का स्वर आम जनता में भी अब सुनाई देने लगा है लेकिन उसकी संख्या काफी कम है.
शराबबंदी को लेकर बहस छिडी हुई है क्योंकि लागू होने जा रहे इस नए कानून से किसी को भी फंसाया जा सकता है |
अभी हाल ही में सारण से एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें कच्ची शराब के तस्कर की जमकर पिटाई की जा रही है. जाहिर है कि शराब के तस्करों को लोग समाज का दुश्मन मानते हैं. गोपालगंज इसका उदाहरण है जहां जहरीली शराब पीने से 23 लोगो की मौत हो गई. लेकिन एक घटना ने सरकार के इस मंशे पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है. ये घटना है नालंदा के एक जनता दल यू के नेता के घर से शराब बरामद होना.
हरनौत के जेडीयू के प्रखंड अध्यक्ष चन्द्रजीत सेन के घर से 168 बोतल यानी तीन कार्टून विदेशी शराब बरामद हुई. उसे उत्पाद विभाग के सब इंस्पेक्टर ने गिरफ्तार कर लिया. लेकिन बाद में इस मामले ने कई मोड लिए, आनन फानन में नालंदा के डीएम और एसपी जांच के लिए पहुंच गए. शराब पकडने वाले सब इंस्पेक्टर को इनाम देने के बजाए पूछताछ होने लगी, उन्हें थाने में बैठाकर रखा गया. बा
द में जिसके घर शराब पकडी गई उसे जिला प्रशासन ने अपनी जांच में क्लीन चिट दे दी और कहा कि चन्द्रजीत सेन के यहां शराब प्लांट की गई थी और उसके बाद पकडने वाले सब इंस्पेक्टर दीपक कुमार और सूचक पूर्व मुखिया समरेन्द्र कुमार समेत 4 लोगो पर केस दर्ज कर जेल भेज दिया. जब मामला कोर्ट में पहुंचा तो बिहार शरीफ कोर्ट ने उत्पाद विभाग के सब इंस्पेक्टर और अन्य को जमानत दे दी और जिसे जिला प्रशासन ने अपनी जांच में क्लीन चिट दिया उसकी जमानत याचिका रद्द कर दी.
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अबतक इमानदारी से चल रही शराबबंदी पर यहीं से दाग लगना शुरू हो गया. विपक्ष को भी बोलने का मौका मिला और साथ ही शराब पीने या तस्करी में पकडे गए लोग अपने ऊपर हुई कार्रवाई पर सवाल उठाने लगे. मामला यहीं नहीं थमा, शराबबंदी को सख्ती से लागू करने वाले एक्साईज कमिश्नर के के पाठक भी इस घटना के बाद छुट्टी पर चले गए. उन्होंने नालंदा उत्पाद अधीक्षक को लिखे पत्र में स्पष्ट लिखा था कि उत्पाद विभाग को कैसे पता चलेगा कि सूचक दूसरे के घर में शराब प्लांट कर सूचना दे रहा है.
इस कार्रवाई से नाराज उत्पाद विभाग के ऑफिसर एसोसिएशन ने गुरूवार को पटना में एक बैठक बुलाई हांलाकि ये अलग बात है कि सदस्यों के आने के बावजूद बैठक नहीं हो पाई. शायद उन पर दबाव दिया गया. पर सवाल है कि क्या उत्पाद विभाग के अधिकारी जिस तरीके से शराब तस्करों को पकडने मे पहले तत्परता दिखाते थे वो अब दिखा पाएंगे?
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शराबबंदी के बाद बिहार के लोगों की प्रतिक्रिया जानने के लिए यात्रा पर निकलने वाले हैं. |
नीतीश कुमार ने अपने इस शराबबंदी के अभियान को समाजिक परिवर्तन का नाम दिया था वो लगातार शराबबंदी को बिहार के अलावा पूरे देश में लागू करने की बात कर रहे हैं. लेकिन विपक्ष नालंदा कि घटना से उन्हें घेरने में लगी है.
बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी का आरोप है कि मुख्यमंत्री के इशारे पर ही नालंदा के डीएम एसपी ने चन्द्रजीत सेन को क्लीन चिट दी जिसकी जमानत याचिका कोर्ट कर उनकी साजिश को बेनकाब कर दिया. मोदी का कहना है कि क्या 168 विदेशी शराब कोई प्लांट करेगा. और अगर प्लांट भी किया है तो किसी और मामले में डीएम एसपी ने जांच की है?
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ऐसे सवाल उठाने वाले कई लोग हैं. ऐसे में शराबबंदी का बिहार में क्या भविष्य होगा. खुद मुख्यमंत्री यह कह चूके हैं कि केवल कानून से इसे नहीं रोका जा सकता है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद शराबबंदी के बाद बिहार के लोगों की प्रतिक्रिया जानने के लिए यात्रा पर निकलने वाले हैं. पर यदि भेदभाव का सवाल उठेगा तो उनका क्या जवाब होगा. जनता दल यू के प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा कि जिस कानून को बीजेपी काला कानून बता रही थी उसे राज्यपाल ने सहमति दे दी. जहां तक नालंदा का सवाल है उस पर कोर्ट का कोई अंतिम निर्णय तो नही आया है.
तर्क वितर्क चाहे जो हों लेकिन नालंदा की एक घटना ने सरकार पर पक्षपात का आरोप तो लगा ही दिया है. अब इसे सुधारने की जरूरत है ताकि भविष्य में इसे कडाई से लागू होने पर कोई सवाल न उठें. और बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू रहे.
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