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Updated: 03 अगस्त, 2016 07:06 PM
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शराबबंदी के मामले में ऐसा क्यों लगता है कि नीतीश कुमार इंदिरा गांधी के रास्ते पर चल रहे हैं? इमरजेंसी के दौरान इंदिरा गांधी ने फेमिली प्लानिंग को बड़ी सख्ती से लागू कराया था. शराबबंदी पर नीतीश सरकार के प्रस्तावित बिल को भी खाप पंचायतों के कानून से तुलना की जा रही है.

शराबमुक्त समाज

नीतीश कुमार ने संघ मुक्त भारत और शराबमुक्त समाज का नारा दिया है. वो केंद्र की मोदी सरकार को पूरे देश में शराबबंदी लागू करने की चुनौती देते हैं तो यूपी की अखिलेश सरकार को बिहार की तर्ज पर अमल करने की सलाह देते हैं.

नीतीश ने बिहार चुनाव के दौरान सत्ता में वापस आने पर शराबबंधी लागू करने का वादा किया था - और उसे पूरा भी किया है. माना जाता है कि शराबबंदी के चलते ही नीतीश कुमार को महिलाओं का जबरदस्त सपोर्ट मिला.

इसे भी पढ़ें: बनारस में नीतीश ने फूंका चुनावी बिगुल - संघमुक्त भारत, शराबमुक्त समाज

ये नीतीश के बनाये माहौल का ही असर रहा होगा कि तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में भी शराबबंदी मुद्दा बना - और जयललिता को भी नीतीश की तरह चुनावी वादा करना पड़ा.

नीतीश कुमार को लगता है कि इस मुद्दे के बूते वो पूरे देश में महिलाओं का सपोर्ट हासिल कर सकते हैं. शराबबंदी को ज्यादा असरदार बनाने के लिए नीतीश कुमार एक संशोधित बिल भी लाये हैं.

प्रस्तावित कानून में कई अच्छी बातें हैं जिनके जरिये शराब माफिया और नकली शराब के कारोबारियों पर शिकंजा कसा जा सकता है.

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कानून के शासन के मायने...

इस कानून में मिलावटी शराब बेचने वालों को उम्रकैद और फांसी तक की सजा का प्रावधान है, अगर उसकी वजह से किसी को विकलांगता या गंभीर नुकसान होता है. साथ ही, इसके लिए 10 लाख रुपये तक के जुर्माने का भी प्रावधान रखा गया है. अगर कोई सरकारी कर्मचारी या अधिकारी किसी को गलत तरीके से फंसाने का दोषी पाया जाता है तो उसके लिए भी तीन से सात साल की सजा हो सकती है. ऐसे मामलों की सुनवाई के लिए हर जिले में स्पेशल कोर्ट बनाने की बात है जिसके जज के पॉवर सेशंस जज के बराबर होंगे.

फूल के साथ कांटे होना कुदरती सिस्टम का हिस्सा है, लेकिन नीतीश के इस प्रस्तावित कानून में ठूंसे गये इन कांटों में जंग भी लगी हुई है जिसके बड़े बुरे साइड इफेक्ट हो सकते हैं.

पहले पिलाये, अब तड़ीपार

नीतीश कुमार अब भले ही शराब के खिलाफ अलख जगाये फिर रहे हों, लेकिन वो इस इल्जाम से बरी नहीं हो सकते हैं बिहार के लोगों को सबसे ज्यादा शराब उन्होंने ही परोसे हैं. ये नीतीश कुमार ही हैं जो कभी कहा करते थे कि - हमे क्या लोग पीयें और टैक्स दें जिससे सरकार लड़कियों को मुफ्त साइकिल देती रहेगी.

1. प्रस्तावित कानून के मुताबिक अगर कहीं नाबालिग बच्चे शराब पीते पकड़े जाते हैं तो उस परिवार के सभी एडल्ट जेल भेज दिये जाएंगे.

2. अगर किसी गांव या नगर में लोगों का समूह शराबबंदी कानून का उल्लंघन करते पकड़ा जाता है तो जिला कलक्टर के पास पूरे गांव या नगर पर जुर्माना लागू कर सकता है.

3. अगर किसी की शराब की लत नहीं छूट पा रही तो उसे दो साल के लिए जिलाबदर या तड़ीपार कर दिया जाएगा.

भई वाह, पहले गली मोहल्ले में दारू ठेके खुलवा कर ऐसी सुविधाएं मुहैया कराई कि लोग जब चाहें छक कर पी सकें - और अब उन्हें आप जेल में ठूंस देंगे. आपही की पिछली सरकार में शराबा का आदी बन चुका शख्स अगर पीना छोड़ नहीं पाया तो उसे आप बिहार से बाहर कर देंगे.

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बीजेपी नेता सुशील मोदी ने इस कानून पर चुटकी लेते हुए कहा, "नये कानून में यदि कोई सिरफिरा लालू प्रसाद के बंगले में रात को शराब की खाली बोतल भी फेंक दे, तो लालू प्रसाद, राबड़ी देवी और दोंनो मंत्री बेटों सहित जेल जाना पड़ेगा."

पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने भी इस पर रिएक्ट किया है, अपने अंदाज में - "ये बात खेत खाये गदहा और मार खाये जोलहा जैसी है."

इमरजेंसी के बाद इंदिरा गांधी की हार में परिवार नियोजन का सख्ती से लागू किया जाना भी एक बड़ा कारण माना जाता रहा है. इसके चलते सरकारी कर्मचारी बेहद नाराज थे - और उनकी नाराजगी ही हार के ताबूत में आखिरी कील साबित हुआ.

ये बात जगजाहिर है कि नीतीश कुमार की नजर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर है जिसे एक बार उन्हीं के विरोधी नरेंद्र मोदी झटक चुके हैं - कहीं ऐसा न हो अगली बार कोई और लपक ले.

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