बीएमसी और महाराष्ट्र निकाय चुनाव के बाद बीजेपी
महाराष्ट्र निकाय चुनाव के नतीजों ने बीजेपी के लिए गठबंधन की राजनीति को लेकर नया संदेश दिया है. महाराष्ट्र के बाद पंजाब में भी उसे कुछ नया सोचने की जरूरत है.
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महाराष्ट्र में बीजेपी के बेहतर प्रदर्शन से पंजाब में अकालियों को चौकन्ना हो जाना चाहिए. अगर इस बार विधानसभा में हार गए, जैसा कि लगता भी है, तो हो सकता है बीजेपी उनसे दूरी बना ले. वैसे भी बहुत दिन हो गए. बीजेपी लगभग दो दशक तक गठबंधन के बाद नीतीश और शिवसेना से अलग अपना प्रभाव बना चुकी है. पंजाब में वो ऐसा नहीं करेगी, उसका कोई कारण नहीं है.
कांग्रेस का जिस हिसाब से पतन हुआ है, हालांकि बीजेपी उस हिसाब से उसे नहीं भर पाई है लेकिन धीरे-धीरे उसका फैलाव जरूर हो रहा है. उड़ीसा से लेकर बंगाल और केरल तक उसका विस्तार हो रहा है.
ऐसे में अगर आम आदमी पार्टी पंजाब में जीत गई और गोवा में उसने बेहतर किया तो 2019 में हो सकता है कुछ और दृश्य हो.
बीजेपी अगर यूपी हार जाती है और आप पंजाब जीत जाती है तो 2019 में आप का विस्तार तीव्र होगा.
अगर बीजेपी यूपी भी जीत जाती है और आप पंजाब में आती है तो भी आप की संभावनाएं अच्छी हैं.
फिलहाल बीजेपी को विपक्ष की शून्यता का भी फायदा है. जहां विपक्षी नेतृत्व मजबूत है, वहां वो अच्छा नहीं कर पाती. कुछ-कुछ वैसा ही मामला है जैसा आजादी के बाद से लेकर सन् 1977 तक हुआ जब कांग्रेस केंद्र में अबाध शासन करती थी.
हाल के स्थानीय निकाय और पंचायत चुनावों में बीजेपी ने देशभर में बेहतर किया है. इसका एक मतलब ये भी है कि नोटबंदी का जनता में नकारात्मक असर नहीं है. हालांकि बीजेपी और खासकर मोदी की सबसे बड़ी चिंता रोजगार-विहीन विकास हो सकता है जो किसी भी विपक्षी एका पर बीस हो सकता है.
देश में भले ही हाईवे, बिजली या रेलवे की स्थिति सुधर जाए, जनता के लिए रोजगार, महंगाई और स्वास्थ्य उससे बड़े मुद्दे हैं. ये ऐसा मुद्दा है जो विपक्षी दलों में जान फूंक सकता है.
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