चुनाव में ही भाजपा को याद आते हैं ‘राम’
अदालत की आड़ में मोदी सरकार ने साढ़े चार साल के कार्यकाल में अयोध्या विवाद को सुलझाने के लिये कोई बड़ा ठोस उपाय नहीं किया. देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है कि जिस राम के नाम पर पार्टी ने सत्ता की सीढ़ी चढ़ना शुरू किया वो राम अपने सर पर छत बांट जोह रहे हैं.
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पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव को 2019 के लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा है. देश में चुनाव का मौसम हो और भारतीय जनता पार्टी को भगवान राम की याद न आए, ऐसा हो नहीं सकता. मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, ये स्थिति सरकार के लिये बड़ी राहत की बात है. अदालत की आड़ में मोदी सरकार ने साढ़े चार साल के कार्यकाल में अयोध्या विवाद को सुलझाने के लिये कोई बड़ा ठोस उपाय नहीं किया. पिछले दिनों शीर्ष अदालत ने अयोध्या विवाद की सुनवाई को दो महीने के लिये सरका दिया है. सुप्रीम कोर्ट के रूख ने मोदी सरकार की मुश्किलें बढ़ाने का काम किया है. वो अलग बात है कि पिछले तीन दशकों से भाजपा व उससे जुड़े हिंदूवादी संगठन भव्य राम मंदिर निर्माण को लेकर बयानबाजी करते रहे हैं. देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है कि जिस राम के नाम पर पार्टी ने सत्ता की सीढ़ी चढ़ना शुरू किया वो राम अपने सर पर छत बांट जोह रहे हैं.
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर एक बार फिर राम मंदिर पर राजनीति पूरी उफान पर है. सुप्रीम कोर्ट के रुख के बाद मोदी सरकार पर राम मंदिर निर्माण के लिये अध्यादेश लाने की आवाज बाहर और पार्टी के अंदर से उठने लगी है. राज्यसभा सांसद प्रोफेसर राकेश सिन्हा ने राम मंदिर के निर्माण के लिए संसद के शीतकालीन सत्र में प्राइवेट बिल लाने की घोषणा की है. राष्ट्रीय स्वयं संघ ने भी सरकार से मांग कर रहा है कि इस सिलिसले में वो जमीन अधिग्रहण के साथ साथ कानून भी बनाए. इसके साथ ही संघ ने कहा कि वो अदालत के फैसले पर टिप्पणी नहीं करेगा.
हर चुनाव के पहले अयोध्या में राममंदिर निर्माण, बीजेपी की राजनीति का यह अजमाया हुआ पैंतरा है.
तथ्यों के आलोक में बात की जाए तो तीन दशक पहले अयोध्या में रामजन्मभूमि मंदिर का ताला खुला था. इसी के बाद से देश के किसी राज्य में कोई भी चुनाव रहा हो, बीजेपी अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण का मुद्दा उठाती रही है. 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने राम मंदिर के नाम पर बहुत वोट बटोरे थे. असल में चुनाव के समय भारतीय जनता पार्टी राम मंदिर मुद्दा उठाती, जिससे वो लोगों की भावनाओं के साथ खेलती है फिर जब वो सत्ता में आ जाती है तो भगवन राम को भूल जाती है. बीजेपी यह भूल जाती है कि राम की कृपा से ही वो केंद्र और उत्तर प्रदेश सहित देश के कई बड़े राज्यों में सत्ता में है. अब फिर बीजेपी को इस मुददे की याद आई है, क्योंकि अगले साल देश में आम चुनाव होने हैं. राष्ट्रीय स्वयं संघ की ओर से सरकार पर राम मंदिर निर्माण के लिये अध्यादेश लाने का ‘प्रेशर’ डाला व बनाया जा रहा है. सवाल यह है कि अगर भाजपा राम मंदिर को लेकर इतनी गंभीर थी, तो क्या चार साल में इस संबंध में कोई प्रस्ताव नहीं ला सकती थी? आरएसएस ने तो धमकी भरे लहजे में जरूरत पड़ी तो राम मंदिर के लिए 1992 की तरह आंदोलन करने की बात कही है. चूंकि मौसम चुनाव का है ऐसे में भाजपा के लिए राम मंदिर का मुद्दा गले की हड्डी बनता दिख रहा है. हर चुनाव के पहले अयोध्या में राममंदिर निर्माण, बीजेपी की राजनीति का यह अजमाया हुआ पैंतरा है.
वर्ष 2017 में यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार के शपथ लेने के बाद से देश की जनता को यह उम्मीद जगी थी कि अब अयोध्या में राममंदिर को लेकर कोई सार्थक पहल होगी? परन्तु ऐसा नहीं हुआ. हालांकि योगी आदित्यनाथ सरकार ने लगातार अयोध्या मसले को चर्चा में रखा. वह खुद कई बार अयोध्या गए. जून 2016 में गोरखपुर से सांसद योगी आदित्यनाथ ने एक साक्षात्कार में कहा था कि अयोध्या में राम मंदिर जरूर बनेगा और किसी में दम नहीं है कि वहां पर राम मंदिर बनने से रोक सके. योगी आदित्यनाथ का कहना था कि जब बाबरी मस्जिद को गिरने से कोई नहीं रोक पाया तो राम मंदिर बनने से भला कौन रोक सकता है? वर्तमान में योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं. राम मंदिर के मुद्दे पर योगी आदित्यनाथ कह चुके हैं दिवाली का इंतजार करें कुछ अच्छी खबर सुनने को मिलेगी. इन सबके बीच जो खबर आ रही है उसके मुताबिक सीएम योगी आदित्यनाथ सरयू नदी के किनारे मर्यादा पुरुषोत्तम राम की भव्य प्रतिमा बनाने की योजना बना रहे हैं. बताया जा रहा है कि भगवान राम की प्रतिमा करीब 151 मीटर ऊंची होगी.
बीते 25 जून को अयोध्या में श्रीरामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल दास के 80वें जन्मदिवस समारोह में आयोजित संत सम्मेलन में, जिसे यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी संबोधित किया, उन्होंने यह पूछकर वातावरण असहज कर दिया था कि राममंदिर न बनाने का अब कौन-सा बहाना बचा है. केंद्र और उत्तर प्रदेश दोनों में भाजपा की सरकारें हैं. राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल और मुख्यमंत्री से लेकर अयोध्या के विधायक और महापौर भी ‘अपने’ हैं.
बाबरी मस्जिद-राम जन्म भूमि का मुद्दा संघ परिवार और भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के लिए शुरू से ही राजनीतिक मुद्दा रहा है. जहां तक बात बीजेपी की है तो राजनीतिक रूप से उसे यहां तक पहुंचाने में इस मुद्दे का विशेष योगदान रहा है, इससे कोई इंकार नहीं कर सकता है. लेकिन बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद जब बात राम मंदिर के निर्माण की शुरू हुई तो शायद बीजेपी अपने मतदाताओं के विश्वास पर खरी नहीं उतरी. राजनीतिक विशलेषक ये मानते हैं कि पार्टी उत्तर प्रदेश से एक तरह से गायब ही इसीलिए हुई क्योंकि उसने इस मुद्दे को ताक पर रख दिया था. यही वजह है कि पार्टी के कई नेता अक्सर राम मंदिर निर्माण के बारे में कुछ न कुछ बोलते रहते हैं और पार्टी में आला स्तर पर यह सफाई दे दी जाती है कि ये हमारा चुनावी मुद्दा नहीं है. इतिहास के पन्ने पलटे तो वर्ष 1991 में उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह के नेतृत्व में जब बीजेपी की पहली बार सरकार बनी तब कल्याण सिंह अपने पूरे मंत्रिमंडल के साथ अयोध्या में ये शपथ लेकर आए थे कि वो उसी जगह राम मंदिर बनवाएंगे जहां राम पैदा हुए थे.
साल 1992 में बाबरी विध्वंस के बाद यह मामला थोड़ा ठंडे बस्ते में चला गया, लेकिन आए दिन बीजेपी के नेता इसे किसी न किसी तरह से उठाते रहते हैं. वर्ष 2009 में भाजपा ने लोकसभा चुनाव का घोषणा पत्र रामनवमी के दिन जारी किया था. इस मौके पर रामरथी आडवाणी ने भी रामराज्य स्थापित करने की बात कही थी. उन्होंने साफ-साफ कहा था कि गांधी के जमाने से आदर्श राज्य की परिकल्पना के तौर पर लोग रामराज्य को देखते आए हैं. यह कोई इत्तेफाक की बात नहीं कि चुनाव से पहले बीजेपी को भगवान राम याद आये हैं, आज फिर बीजेपी राम मंदिर बनाने को अपनी प्राथमिकता बता रही है. आज भले ही बीजेपी के अंदर और बाहर से मंदिर निर्माण की बात उठ रही हो, लेकिन इस पर खुद बीजेपी कितनी गंभीर है यह देखने योग्य है. 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी के 40 पेज के घोषणा पात्र के आखरी पन्ने पर राम मंदिर बनाने की बात कही गयी है. घोषणा पत्र के अनुसार, बीजेपी राम मंदिर बनाने का प्रयास करेगी संविधान के दायरे में रहते हुए. जब मामला कोर्ट में चल रहा है तो किस आधार पर राम मंदिर बनाने की बात कर रही है बीजेपी. किस तरह से ऐसा वादा संविधानिक दायरे में आता है. 2019 के चुनाव से पहले भाजपा फिर उसी जगह खड़ी है जहां वो एक दशक पूर्व खड़ी थी. वास्तव में जब भी चुनाव का समय आता है भाजपा की झोली से राम मंदिर का मुद्दा जिन्न की तरह बाहर आ जाता है.
बड़ा सवाल यह भी है कि केंद्र सरकार ने इस मामले में अब तक पहल क्यों नहीं की. जो सरकार बहुमत न होने पर भी तीन तलाक से लेकर तमाम विधेयक संसद में लाकर पारित करवा सकती है, उस सरकार ने अयोध्या में राममंदिर निर्माण को लेकर अब तक एक भी ठोस पहल क्यों नहीं की. क्यों मुस्लिम धर्मगुरूओं के साथ बातचीत कर अयोध्या में राममंदिर निर्माण को लेकर कोई रास्ता तलाशने का प्रयास नहीं किया गया? जबकि कई पूर्व प्रधानमंत्रियों ने इस तरह की पहल की थी, और उसके परिणाम अच्छे रहे थे. फिर इस तरह की पहल मोदी या योगी सरकार ने क्यों नहीं की? क्या अटल बिहारी वाजपेयी की तरह ही मोदी और योगी सरकार ने भी मंदिर निर्माण के मसले को ठंड़े बस्ते में डाल दिया है? और जैसे ही चुनाव नजदीक आए इस मामले को लेकर बीजेपी ने अब फिर राजनीति शुरू कर दी है? 2014 और 2019 चुनाव से पहले के हालात भिन्न हैं. 2014 में जहां भाजपा विपक्ष में थी और जनता में सत्ताधारी कांग्रेस के प्रति गुस्सा था. वहीं 2019 में हालात बिल्कुल इतर हैं. भाजपा सत्ता में है और चुनाव प्रचार के दौरान जो वायदे किये थे, कई अधूरे हैं. मोदी सरकार की तमाम उपलब्धियां नोटबंदी, जीएसटी, मंहगाई, बेरोजगारी और कई दूसरे वायदे न पूरे होने की वजह से फीकी पड़ गयी हैं. विधानसभा चुनाव वाले पांचों राज्यों से भाजपा के पक्ष में खबरें नहीं आ रही हैं. देश में मोदी लहर अब बेअसर होती दिख रही है. ऐसे में अब बीजेपी राम भरोसे है और राम के नाम पर अपना चुनावी रथ आगे बढ़ा रही है.
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