बीजेपी ने कैप्टन अमरिंदर सिंह को पंजाब में 2024 का पूरा ठेका दे दिया है
कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt Amrinder Singh) को पंजाब में बीजेपी (Punjab BJP) ने फिर से साबित करने का मौका दिया है - मतलब ये है कि बेटी जयइंदर कौर (Jai Inder Kaur) के साथ साथ कांग्रेस आये उनके समर्थकों को 2024 की अग्नि परीक्षा से गुजरना ही होगा.
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कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt Amrinder Singh) से बीजेपी को जैसी भी उम्मीदें रही हों, लेकिन पंजाब चुनाव 2022 में तो वो फेल ही रहे. तब भी जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद मोर्चा संभाले हुए थे. ये जरूर रहा कि कांग्रेस को सत्ता में नहीं आने दिये, लेकिन ये भी है कि वो आम आदमी पार्टी को सत्ता में आने से रोक नहीं पाये - और वो भी भारी बहुमत से.
अगर आम आदमी पार्टी को दिल्ली जैसा समर्थन पंजाब (Punjab BJP) में नहीं मिला होता तो बीजेपी के लिए गुजरात में वो मुसीबतें खड़ी नहीं कर पाते. हालत ये हो गयी कि जैसे 2017 में कांग्रेस ने बीजेपी के नाम में दम कर रखा था, अरविंद केजरीवाल उससे भी दो कदम आगे लग रहे हैं - और हालत ये है कि बीजेपी को पांच साल बाद एक ही तरीके की चुनौती से नयी पार्टी से जूझना पड़ रहा है.
फिर बीजेपी नेतृत्व को कैप्टन अमरिंदर सिंह से कोई शिकायत रही हो, ऐसा बाहर तो सुनने में नहीं ही आया है. बीजेपी ज्वाइन करने से पहले कैप्टन अमरिंदर सिंह ने बाकायदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी. अमित शाह से उनकी वैसी ही मुलाकातें तो तब भी होती रहीं जब वो कांग्रेस कोटे से पंजाब के मुख्यमंत्री हुआ करते थे.
सितंबर, 2022 में ही कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पूरे परिवार के साथ बीजेपी ज्वाइन किया था. कांग्रेस से जो कुछ झटक कर लाये थे वो 'तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा' वाले अंदाज में बीजेपी को हैंडओवर कर दिया था - और अब जिस तरीके से बीजेपी ने कैप्टन, उनकी बेटी और समर्थकों को संगठन में पोजीशन नवाजी है, वैसा तो कम ही देखने को मिलता है.
बीजेपी कोई एक्सचेंज ऑफर यूं ही नहीं देती. बहुत कंजूस है ऐसे मामलों में. पहले साबित करने का पूरा मौका देती है. और फिर बाद में ही मजदूरी तय की जाती है. हां, बंदा टैलेंटेड रहा और फायदे पर फायदे दिलाने लगा तो सीईओ जैसी जिम्मेदारी भी दी जा सकती है - जैसे असम में हिमंत बिस्वा सरमा को मिली है. या फिर ज्योतिरादित्य सिंधिया को अभी मिली है. सिंधिया के जिम्मे तो मध्य प्रदेश भर ही है, सरमा को पूरे नॉर्थ ईस्ट का एडिशनल चार्ज भी देखना पड़ता है.
एक हार्दिक पटेल हैं कि विरमगाम की अपनी विधानसभा सीट तक सीमित लगते हैं, जबकि हिमंत बिस्वा सरमा पश्चिम बंगाल और गुजरात से लेकर दिल्ली नगर निगम चुनाव तक छाये हुए हैं. वैसे उनको स्मृति ईरानी की तरह राहुल गांधी एक्सपर्ट होने का भी पूरा फायदा मिलता है - हो सकता है आगे चल कर सिंधिया भी उस जमात में शामिल कर लिये जायें, लेकिन अभी तो मीलों का सफर बाकी लगता है.
देखा जाये तो बीजेपी ने सिंधिया से भी बेहतर डील कैप्टन अमरिंदर सिंह को दी है. सिंधिया को तो कदम कदम पर साबित करना पड़ा था. पहले कमलनाथ की सरकार गिरानी पड़ी, फिर साथ आये नेताओं को नये सिरे से विधायक बनवाना पड़ा था. साथ बने रहें इसलिए लड़ झगड़ कर मंत्री भी बनवाना पड़ा. काफी दिनों तक राज्य सभा सांसद बन कर इंतजार करने के बाद ही मोदी कैबिनेट में जगह मिल पायी थी.
बीजेपी ने तो कैप्टन के परिवार और समर्थकों से पंजाब में संगठन को ही भर दिया है. हां, एक सतर्कता जरूर बरती है. कमान अपने पुराने कमांडर अश्विनी शर्मा के पास ही रखी है, ताकि कहीं कोई हेर फेर न हो सके - तस्वीर का दूसरा पहलू देखें तो ऐसा करना बीजेपी की मजबूरी भी लगती है.
लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह के लिए ये जिम्मेदारी चुनौतियों से भरी है. विधानसभा चुनावों को भूल कर भी बीजेपी नेतृत्व चाहेगा कि जैसे 2019 की मोदी लहर के बावजूद कैप्टन अमरिंदर सिंह ने लोक सभा की सीटें कांग्रेस की कांग्रेस की झोली में डाल दी थी - 2024 में बीजेपी के लिए भी बिलकुल वैसा ही करें. वरना, कैप्टन का हाल भी बाहर से आने वाले मुकुल रॉय और एसएम कृष्णा जैसा ही होगा - और कीमत उन सभी को चुकानी पड़ेगी जो उनसे सीधे जुड़े हैं.
कैप्टन पर बीजेपी मेहरबान यूं ही नहीं है
कैप्टन का परिवार और समर्थक सभी सौभाग्यशाली हैं जो बीजेपी ने दिल खोल कर गले लगाया है. लेकिन कैप्टन को ये भी नहीं भूलना चाहिये कि बीजेपी अगले आम चुनाव में सबसे वैसी ही उम्मीद भी कर रखी होगी. एक हाथ से देने के बाद मौका आने पर बीजेपी दूसरे हाथ से पाई पाई वसूल भी लेती है.
कैप्टन को परिवार का भविष्य सुधारने के लिए बीजेपी ने दो साल की मोहलत दी है
बीजेपी नेतृत्व ने कैप्टन अमरिंदर सिंह और 'कभी दोस्त, कभी दुश्मन' जैसे रहे उनके पुराने साथी सुनील जाखड़ को कार्यकारिणी में लेने के साथ ही संकेत दे दिया था कि और क्या क्या उनके लिए उसके पिटारे में है - और जब दिया तो ऐसे ही दिया जिसे छप्पर फाड़ कर देना कहते हैं.
बीजेपी ने बेशक पठानकोट से अपने विधायक अश्विनी शर्मा को पंजाब में संगठन का अध्यक्ष बनाये रखा है, लेकिन ध्यान देने वाली बात ये है कि नियुक्त किये गये 11 उपाध्यक्षों में से पांच कांग्रेस से आये नेता ही हैं - और उनमें से एक तो कैप्टन अमरिंदर सिंह की बेटी जयइंदर कौर (Jai Inder Kaur) ही हैं. बीजेपी कोटे के बाकी उपाध्यक्ष बने हैं पार्टी नेता डॉक्टर सुभाष शर्मा, राकेश राठौर, दयाल सिंह सोढ़ी, जगमोहन सिंह राजू, लखविंदर कौर गरचा और पूर्व अकाली विधायक जगदीम सिंह नकाई.
कैप्टन की बेटी जयइंदर कौर के अलावा पंजाब बीजेपी में जिन कांग्रेसियों को उपाध्यक्ष बनाया गया है, वे हैं - राज कुमार वेरका, केवल सिंह ढिल्लों, फतेहजंग बाजवा और अरविंद खन्ना. इतना ही नहीं, कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे गुरप्रीत सिंह कांगड़ को महासचिव नियुक्त किया गया है. वैसे ही जीवन गुप्ता, बिक्रमजीत चीमा, राजेश बाघा और मोना जायसवाल को भी पंजाब बीजेपी का पदाधिकारी बनाया गया है.
कैप्टन पर निर्भरता बीजेपी की मजबूरी है
पंजाब में बीजेपी कभी बड़े भाई की भूमिका में नहीं रही है. अकाली दल ने अपने असर और दबदबे की बदौलत बीजेपी को सहयोगी पार्टी ही बनाये रखा था. जैसे बिहार में नीतीश कुमार बड़े भाई की भूमिका में रहे, पंजाब में प्रकाश सिंह बादल और सुखबीर बादल ने कमान हमेशा अपने हाथ में ही रखी. हां, केंद्र में बीजेपी की पूरी मनमानी चलती रही, एनडीए छोड़ने से पहले तक सुखबीर बादल की पत्नी हरसिमरत कौर बादल केंद्र सरकार में अकेली मंत्री हुआ करती थीं. क्योंकि 2019 में भारी बहुमत के साथ लौटी बीजेपी ने सहयोगी दलों के लिए कैबिनेट में एक ही पद का कोटा तय कर दिया था.
बीजेपी को अब अपने बूते पंजाब में खड़ा होना है. कैप्टन अमरिंदर सिंह चाहते और बाहर रह कर बीजेपी से डील करते तो भी इससे बेहतर पोजीशन में शायद ही हो पाते. वैसे भी महाराष्ट्र और बिहार में धोखा खाने के बाद बीजेपी पंजाब में कोई नयी मुसीबत मोल लेने को शायद ही तैयार हो पाती.
बीजेपी के पास कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ उदारता दिखाने के अलावा कोई चारा भी नहीं बचा था. रही बात अपने मनमाफिक चीजों को करने की तो बीजेपी ने कैप्टन को पार्टी ज्वाइन करा कर सारे संभावित खतरों को पहले ही न्यूट्रलाइज कर रखा है.
वैसे बीजेपी जो भी कर रही है, मजबूरी में किया जाना माना जाएगा. बीजेपी की अपनी मजबूरी है - आखिर किस बूते संगठन खड़ा होगा? पहले तो अकाली दल के मोहताज रहे, जब साथ छूटा तो अकाली दल के पास भी ऐसा कुछ नहीं बचा था जिसे बीजेपी हथिया सके. फिर तो कैप्टन के कंधे पर ही सवार होकर फील्ड में उतरने का ऑप्शन बचा था.
कैप्टन भले ही 80 साल की उम्र में खुद को चालीस साल का समझें या बताये, लेकिन देखा जाये तो अब पूरा दारोमदार जयइंदर कौर पर आ टिका है. जयइंदर कौर ही काफी दिनों से कैप्टन अमरिंदर सिंह का पूरा राजनीतिक कामकाज संभाल रही हैं.
कैप्टन अमरिंदर सिंह की पत्नी परनीत कौर ने अभी कांग्रेस नहीं छोड़ी है. वो पटियाला से लोक सभा सांसद हैं. कांग्रेस में उनको पार्टी से हटाये जाने की मांग भी जोर पकड़ रही है - फिर भी अगर परनीत कौर ने कोई फैसला नहीं लिया है तो जाहिर है अंदर ही अंदर किसी खास रणनीति पर माथापच्ची चल रही होगी. अगर अभी वो इस्तीफा देती हैं तो पटियाला संसदीय सीट पर उपचुनाव होगा - और अगर फिर से वो चुनाव नहीं जीत पायीं तो गलत मैसेज जाएगा. वैसे संगरूर सीट का नतीजा तो यही कहता है कि जरूरी नहीं है कि पंजाब में सत्ताधारी पार्टी, उपचुनावों में विधानसभा या 2014 के आम चुनाव जैसा कमाल दिखा सकती है.
परनीत कौर की एक मीटिंग में गैरमौजूदगी भी गौर करने लायक रही. असल में कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने भारत जोड़ो यात्री की तैयारियों की समीक्षा के लिए पंजाब के कांग्रेस नेताओं की एक मीटिंग बुलायी थी. मीटिंग में कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी के अलावा पंजाब प्रभारी हरीश चौधरी और पंजाब कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वडिंग भी शामिल हुए थे - लेकिन परनीत कौर नदारद रहीं. असल वजह जो भी रही हो, लेकिन ऐसी गैर मौजूदगी राजनीतिक मैसेज तो देती ही है.
कैप्टन को जो टास्क मिला है
पंजाब में लोग सभा की 13 सीटें हैं. और अभी की जो स्थिति है, उसमें बीजेपी के सिर्फ दो सांसद हैं, जबकि सत्ताधारी आम आदमी पार्टी की पोजीशन जीरो बैलेंस की हो चुकी है. बीजेपी के पास दो सीटें हैं और उसकी पुरानी सहयोगी अकाली दल के पास भी दो ही सीटें हैं. संगरूर में हुए उपचुनाव में शिरोमणि अकाली दल - अमृतसर के सिमरनजीत सिंह मान को जीत मिली थी. सिमरनजीत सिंह मान ने आम आदमी पार्टी से भगवंत मान की वो सीट लपक ली जिसे वो 2014 और 2019 की मोदी लहर में भी आम आदमी पार्टी के खाते में ट्रांसफर कर दिया था.
पंजाब विधानसभा में जिस तरीके से प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई में बीजेपी मैदान में डटी हुई थी, 2017 में तो उसकी छोटी सी झलक भी देखने को नहीं मिली थी. बावजूद उसके आम आदमी पार्टी ने पंजाब में भी बीजेपी का हाल दिल्ली जैसा क्या कहें, उससे भी बुरा कर दिया. 117 सीटों वाली पंजाब विधानसभा में बीजेपी के मजह दो विधायक बने - कैप्टन अमरिंदर के हाथ तो खैर कुछ भी नहीं लगा था. अकाली दल को भी तीन ही सीटें मिल पायी थीं, जबकि उसके गठबंधन सहयोगी बीएसपी का एक विधायक चुना गया था. बीएसपी तो खैरे अपने उत्तर प्रदेश में भी एक ही सीट जीत पायी थी.
2019 में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने मुख्यमंत्री रहते कांग्रेस को 13 में से 8 सीटों पर जीत दिलायी थी. एक सीट पटियाला की रही जहां से उनकी पत्नी परनीत कौर अभी सांसद हैं. ऐसा लगता है बीजेपी ने अब कैप्टन अमरिंदर सिंह एंड कंपनी को वैसा ही काम बीजेपी के लिए करने का टास्क दिया है - और 2024 के नतीजे ही कैप्टन और उनके परिवार का भविष्य तय करेंगे.
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