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Updated: 31 जुलाई, 2016 06:34 PM
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मुमकिन है उन सभी को निराशा हुई हो जो मन-की-बात में दलित विमर्श सुनना चाहते हों. वैसे भी हर बात पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बोलना जरूरी तो नहीं. ऐसे सवालों के जवाब में बीजेपी नेताओं का तो यही कहना होता है. "है कि नहीं?"

ऊना की घटना को लेकर बीजेपी के सहयोगी रामदास अठावले का बयान उनकी फिक्र जता रहा है. फिर बीजेपी सांसदों का दलित शोर भी ध्यान खींचने वाला है.

बीजेपी और उसके सहयोगी दलों के सांसदों ने मोदी सरकार से एक्शन लेने को कहा है, ताकि गौरक्षा के नाम पर गुंडागर्दी करनेवालों को सख्त संदेश दिया जा सके.

बीजेपी का दलित विमर्श

मोदी सरकार में हाल ही में सामाजिक न्याय राज्य मंत्री बने रामदास अठावले ने गुजरात में दलितों पर हुए अत्याचार पर मजबूत स्टैंड लिया है - और उनके बाद बीजेपी सांसदों द्वारा दलितों को लेकर आवाज उठाये जाने के पीछे प्रेरणास्रोत भी वही बने हैं.

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अठावले ने कहा कि सरकार ये सुनिश्चित करे कि ऊना में हुई दलितों की पिटाई जैसी घटना दोबारा न हो. इस घटना को बहुत ही गंभीर मसला बताते हुए अठावले ने कहा, "...गोरक्षा करें, लेकिन इंसानों की हत्या की कीमत पर नहीं."

अठावले के बाद बीजेपी के कई दलित सांसद चाहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोई कड़ा संदेश दें ताकि ऐसी घटनाओं पर लगाम लगे. ऊना की घटना को ये सांसद मानवता और देश के लिए दाग बता रहे हैं. उनका मानना है कि मोदी जो विकास और सामाजिक समरसता का संदेश देना चाहते हैं वो ऐसी घटनाओं से कहीं पीछे छूटा जा रहा है.

इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में यूपी से बीजेपी सांसद यशवंत सिंह कहते हैं, "दलितों को मरी हुई गाय की खाल उतारने पर मारना गऊ रक्षा नहीं है." इसी तरह बिहार से बीजेपी सांसद छेदी पासवान का कहना है, "इस देश में पत्थर को भगवान बनाकर पूजा जाता है, कुत्ते को सबसे वफादार माना जाता है और सांप को दूध पिलाया जाता है लेकिन लोगों के साथ अच्छा बर्ताव नहीं किया जाता."

दलितों के मुद्दे पर घिरी बीजेपी

रोहित वेमुला की खुदकुशी के मामले पर संसद में इमोशनल अत्याचार की स्मृति ईरानी की कोशिश नाकाम रही, तो लखनऊ में प्रधानमंत्री मोदी को छात्रों के विरोध के चलते मौन तोड़ना पड़ा. प्रधानमंत्री के बयान पर भी सवाल उठा कि अगर रोहित वेमुला भारत-माता-का-लाल था तो वो देशद्रोही गतिविधियों का हिस्सा कैसे बन सकता है?

उसके बाद भी हालात कोई खास बदले नहीं हैं. ऊना की घटना बेहद गंभीर है, लेकिन दलितों पर अत्याचार के मामले में किसी एक राज्य को अलग नहीं किया जा सकता. ऐसी घटनाएं कहीं कम कहीं ज्यादा हो सकती हैं.

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दलितों के मामलों में बीजेपी कितना गंभीर...

फिर भी बीजेपी दलितों के मुद्दे पर ज्यादा घिरी हुई नजर आती है. मायावती पर अपमानजनक टिप्पणी के लिए दयाशंकर सिंह को बीजेपी बाहर कर चुकी है. दयाशंकर जेल भी भेजे जा चुके हैं. दयाशंकर के खिलाफ पुलिस शिकायत के बाद मोर्चा संभालने वाली उनकी पत्नी स्वाती सिंह बीमार हैं. यूपी बीजेपी प्रमुख केशव मौर्या की अस्पताल में स्वाति से मुलाकात के बाद उन्हें पार्टी में लाने की भी चर्चा होने लगी है. हालांकि, बीजेपी की ओर से अभी कोई संकेत नहीं दिये गये हैं.

बीजेपी नेताओं के ऐसे बयान और हिंदू हितों की रक्षा के नाम पर गुंडागर्दी करने वालों की हरकतों से संघ भी खफा बताया जा रहा है. वास्तव में बीजेपी को यूपी में सत्ता तक पहुंचाने की कोशिश में जुटे संघ के लिए ये मुश्किलें बढ़ानेवाला है. फिर तो समरसता भोज और धम्म यात्रा की बातें तो पूरी तरह बेमानी हैं. राजनाथ सिंह से लेकर अमित शाह तक, बीजेपी के तमाम नेताओं का दलितों के घर खाना खाने पहुंचना सिर्फ दिखावा ही लगता है.

एनडीटीवी से बातचीत में बीजेपी सांसद उदित राज वाजिब सवाल उठाते हैं, "वो कहते हैं कि हिंदू धर्म खतरे में है. ये सिर्फ उनकी वजह से है और न कि हमारी (दलितों) वजह से."

अपनी अपनी सियासत

दलितों पर अत्याचार की घटनाओं के बहाने अठावले और मायावती में राजीतिक तू-तू, मैं-मैं शुरू हो चुका है. अठावले ने पहले मायावती के अब बौद्ध धर्म न अपनाने पर सवाल उठाया. मायावती ने अठावले को बीजेपी का गुलाम बताते हुए अपना बचाव किया, कहा - वक्त आने पर सारे दलितों के साथ बौद्ध धर्म अपनाऊंगी.

बीजेपी के दलित सांसद दलितों पर अत्याचार करने वालों के लिए मोदी सरकार से एक्शन चाहते हैं. बीजेपी के दलित सांसद हिंदू हितों के नाम पर गुंडई करने वालों को प्रधानमंत्री की ओर से कड़ा संदेश चाहते हैं.

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बीजेपी सांसदों को निश्चित तौर पर उन्हें प्रधानमंत्री की ओर से एक्शन का इंतजार होगा. निश्चित तौर पर उन्हें प्रधानमंत्री की ओर से कड़े संदेश का इंतजार होगा.

बीजेपी सांसदों ने गेंद अब प्रधानमंत्री के पाले में डाल दी है. अगर इसे प्रॉपर रिस्पॉन्स नहीं मिला बिहार की भागवत-कथा जैसा हाल यूपी में भी पक्का हो जाएगा. निश्चित तौर पर बीजेपी ये बात समझ रही होगी. प्रधानमंत्री मोदी और संघ भी समझता ही होगा. जब तक प्रधानमंत्री की ओर से कोई एक्शन नहीं होता, बीजेपी सांसदों का दलित शोर भी बेदम नजर आएगा.

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