BJP के बढ़ते दबदबे के आगे महाराष्ट्र एपिसोड बड़ा स्पीडब्रेकर
महाराष्ट्र के सियासी (Maharashtra Politics) उठापटक ने BJP के विजयी रथ के सामने स्पीड ब्रेकर का काम किया है - अपने स्वर्णिम काल की ओर तेजी से कदम बढ़ा रही बीजेपी के लिए झारखंड चुनाव (Jharkhand Assembly Election) के नतीजे बेहद अहम हो गये हैं - आगे की राह वहीं से दिखेगी.
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बीजेपी ने महाराष्ट्र में विधानसभा स्पीकर (Speaker) के चुनाव में किशन कठोरे को अपना उम्मीदवार बनाया था, लेकिन ऐन वक्त पर कदम पीछे खींच लिये. लिहाजा उद्धव ठाकरे और महा विकास अघाड़ी के कैंडिडेट नाना पटोले (Nana Patole) निर्विरोध स्पीकर चुन लिये गये. मालूम हुआ कि बीजेपी के विधायकों की सलाह पर ये फैसला लिया गया. नाना पटोले का यहां निर्विरोध चुना जाना अच्छी बात है क्योंकि स्पीकर के लिए सिर्फ सत्ता पक्ष नहीं बल्कि पूरे सदन के सदस्य बराबर होते हैं.
जब उद्धव ठाकरे ने विश्वासमत हासिल कर लिया था तो शक की ऐसी कोई गुंजाइश नहीं रही कि नाना पटोले के लिए किशन कठोरे कोई मुश्किल खड़ी कर सकते थे - विश्वासमत के आंकड़े देखें तो नाना पटोले को 169 वोट तो मिलते ही. ठीक उसी तरह किशन कठोरे को भी 115 वोट मिल जाते और MNS विधायक सहित चार MLA वैसे ही तटस्थ भी रह सकते थे.
ऐसा तो है नहीं कि बीजेपी ने हार के डर से स्पीकर के चुनाव से उम्मीदवारी वापस ली. वस्तुस्थिति तो उसको भी मालूम ही रही. देवेंद्र फडणवीस चाहते तो सदन में मौजूद रह कर उद्धव ठाकरे के खिलाफ फ्लोर टेस्ट में वोट दे सकते थे, लेकिन ऐसा कुछ नहीं किया. बल्कि, सदन से वॉकआउट कर के पूरा मैदान ही उद्धव ठाकरे के हवाले कर दिया.
सवाल है कि अगर स्पीकर के चुनाव में उम्मीदवार उतारने का मकसद सिर्फ विरोध जताना भर था - तो ऐन वक्त पर वापस क्यों ले लिया?
वो भी नाना पटोले के खिलाफ बीजेपी ने कदम पीछे खींच लिये, लेकिन क्यों? ये नाना पटोले ही तो हैं जिन्होंने किसानों के मुद्दे पर बीजेपी की मीटिंग में न बोलने देने का आरोप लगाया था. ये नाना पटोले ही हैं जिन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तानाशाही रवैया अपनाने का आरोप लगाते हुए कहा था कि बीजेपी में बोलने पर पाबंदी लग चुकी है - और यही नाना पटोले नागपुर में नितिन गडकरी के खिलाफ चुनाव लड़े थे जिसे गुरु और चेले की लड़ाई के तौर पर लिया जा रहा था. नतीजा बीजेपी के पक्ष में रहा और गडकरी ने साबित कर दिया कि खेल के माहिर गुरु वो ही हैं और बीजेपी को जीत दिला दी. फिर भी बीजेपी ने नाना पटोले के खिलाफ उम्मीदवारी वापस लेने का फैसला क्यों किया, फिलहाल समझना थोड़ा मुश्किल हो रहा है.
क्या बीजेपी महाराष्ट्र की उठापटक के बाद अपना स्टैंड बदलने लगी है या फिर महाराष्ट्र में बीजेपी के हाथ से सत्ता फिसल जाने के बाद हवाओं का रूख बदलने लगा है - मुंबई में एक कार्यक्रम में अमित शाह के सामने ऐसी ही चुनौती सामने आयी.
कार्यक्रम में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने उद्योगपति राहुल बजाज के सवाल का जवाब तो दिया लेकिन वो पुराना तेवर नहीं दिखा - आखिर क्यों?
राहुल बजाज को 'डर' क्यों लग रहा है?
ऐसा लगा था संसद में 'गोडसे को देशभक्त' बताने पर मचा विवाद सदन में ही साध्वी प्रज्ञा के माफी मांग लेने के साथ खत्म हो गया. विपक्ष ने भी साध्वी प्रज्ञा के तीन घंटे के भीतर दो बार माफी मांग लेने और ये कह देने के बाद कि उन्होंने 'गोडसे को देशभक्त' नहीं कहा है, मान लिया कि 'हुआ तो हुआ' और बाकी सब ठीक है.
'डर' कभी अच्छा तो कभी बुरा भी होता है!
महाराष्ट्र में चुनाव नतीजे आने के बाद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह (Amit Shah) का एक कार्यक्रम रद्द हो गया था और फिर उद्धव ठाकरे के सत्ता पर काबिज होने के बाद अमित शाह पहली बार मुंबई में एक अवॉर्ड समारोह में पहुंचे थे. गृह मंत्री अमित शाह के साथ वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन और रेल मंत्री पीयूष गोयल भी मंच पर मौजूद थे. उद्योगपति राहुल बजाज के हाथ में माइक पहुंचा तो पूरी भड़ास उन्होंने निकाल डाली. कुछ कुछ अंग्रेजी में और थोड़ा बहुत हिंदी में भी.
बजाज ग्रुप के चेयरमैन राहुल बजाज (Rahul Bajaj) ने मॉब लिंचिंग से लेकर साध्वी प्रज्ञा के बयान तक का जिक्र किया. ये भी याद दिलाया कि कैसे प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि वो मन से माफ नहीं कर पाएंगे और फिर संसदीय समिति में भी डाल दिया... हटा भी दिया. लिंचिंग पर संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयान के जिक्र के साथ राहुल बजाज ने ये भी समझाने की कोशिश कि कैसे असहिष्णुता है और उसकी हवा बह रही है.
अमित शाह ने याद दिलाया कि साध्वी प्रज्ञा के मुद्दे पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह सफाई दे चुके हैं और पार्टी ने भी एक्शन लिया है. अमित शाह ने कहा, 'न तो सरकार और न ही पार्टी ऐसे किसी टिप्पणी का समर्थन करती है, हमलोग पूरी सख्ती से इस बयान की आलोचना करते हैं.'
राहुल बजाज ने देश में असहिष्णुता के साथ ही व्याप्त भय के माहौल की तरफ ध्यान खींचा - और यूपीए सरकार की मोदी सरकार से तुलना भी पेश की.
राहुल बजाज बोले, 'कोई बोलेगा नहीं... मेरा इंडस्ट्रियलिस्ट फ्रेंड कोई नहीं बोलेगा, मैं ये बात खुलेआम कहूंगा... एक माहौल पैदा करना होगा... यूपीए 2 में तो हम किसी को भी गाली दे सकते थे.. आप अच्छा काम कर रहे हैं, उसके बाद भी हम आपको क्रिटिसाइज ओपनली करें - कॉन्फिडेंस नहीं है कि आप एप्रीशिएट करेंगे.'
कांग्रेस के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से राहुल बजाज वाला ये वीडियो शेयर किया गया है - और जवाबी एक्शन में बीजेपी के आईटी सेल की तरफ से राहुल बजाज का एक पुराना वीडियो भी शेयर हुआ है, जिसमें वो खुले दिल से राहुल गांधी की तारीफ में कसीदे पढ़ रहे हैं.
It can be difficult to speak truth to power. Circumstances however, have made doing so increasingly necessary.#RahulBajaj stands out for his courage & integrity & for calling a spade a spade. pic.twitter.com/O6d7EWtiCd
— Congress (@INCIndia) December 1, 2019
‘It is difficult for me to praise anyone’, said Rahul Bajaj except off course if it is Rahul Gandhi.
Wear your political affiliation on your sleeve and don’t hide behind inanities like there is atmosphere of fear and all that... pic.twitter.com/2JeyBzkfp8
— Amit Malviya (@amitmalviya) November 30, 2019
बहरहाल, अमित शाह ने राहुल बजाज की टिप्पणी पर जवाब में कहा कि किसी को डरने की जरूरत नहीं है. अमित शाह ने राहुल बजाज की बातों को आगे बढ़ाते हुए कहा कि अगर ऐसा माहौल बना है तो निश्चित तौर पर इसे बेहतर बनाने का प्रयास करना चाहिये. अमित शाह ने कहा, 'मैं इतना स्पष्ट तौर पर कहना चाहूंगा कि किसी को डरने की जरूरत नहीं और ना ही कोई डराना चाहता है.'
अब उद्योग जगत की राजनीति जो भी हो और राहुल बजाज ने उद्योग जगत से चाहे जिन दोस्तों की तरफ इशारा किया हो, वैसे मौके पर रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के चेयरमैन मुकेश अंबानी, आदित्य बिड़ला ग्रुप के चेयरमैन कुमार मंगलम बिड़ला और भारती एंटरप्राइजेज के सुनील भारती मित्तल भी मौजूद थे.
हाल ही में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की भी एक टिप्पणी ऐसी ही रही कि कई उद्योगपतियों ने उन्हें बताया है कि वे किस तरह उत्पीड़न के माहौल में रह रहे हैं. मनमोहन सिंह ने कहा, 'उद्योगपति नई परियोजनाएं शुरू करने से पहले घबराते हैं. इस माहौल में उनके अंदर असफ़लता का डर रहता है.'
क्या ये महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन का असर है?
ये तो राहुल बजाज ही बेहतर समझ रहे होंगे कि वो किस डर की बात कर रहे हैं? क्या वो डर जिसकी बाद चुनावों से पहले शरद पवार कर रहे थे, ED, CBI और आयकर विभाग की सक्रियता को लेकर? या वो डर जिसका मुद्दा अक्सर राहुल गांधी उठाते रहते हैं और कहते हैं कि बोलने की आजादी नहीं रह गयी है. या फिर कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को लगता है कि मौजूदा सरकार संवैधानिक संस्थाओं को नष्ट कर रही है - या फिर वो जिस डर का जिक्र पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कर रहे थे?
राहुल बजाज के डर की वजह जो भी रही हो, लेकिन गृह मंत्री और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने उनके साथ साथ बाकी उद्योगपतियों को भी आश्वस्त किया है कि किसी को डरने की जरूरत नहीं है. अमित शाह ने इस बात पर भी सहमति जतायी कि जैसा कि वो डर के माहौल की बात कर रहे हैं और सुझाव भी दे रहे हैं और अगर ऐसा कुछ है तो उसे दुरूस्त भी किया जाना चाहिये - लेकिन अमित शाह ने ये बात क्या किसी राजनीतिक बदलाव को महसूस करते हुए कही है? आम चुनाव से पहले तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना था - अगर किसी को डर लगता है तो अच्छा है.
राहुल बजाज के बयान पर जिस तरह बीजेपी के IT सेल ने रिएक्ट किया है और उससे जो राजनीतिक संकेत मिलते हैं तो, प्रधानमंत्री मोदी ने तो ये सब साफ साफ कहा ही था - ये डर अच्छा है.
जब मामा के बोलने से बड़े-बड़े परिवार बौखला जाए, तो ये डर अच्छा है।
जब भ्रष्ट नेताओं को भी जेल जाने का डर सताए, तो ये डर अच्छा है।
जब भ्रष्टाचारियों में भी कानून का डर हो, तो ये डर अच्छा है: PM
— PMO India (@PMOIndia) March 2, 2019
'डर' को लेकर प्रधानमंत्री मोदी का ये स्टैंड आम चुनाव के पहले का है - और अमित शाह का महाराष्ट्र में बीजेपी के सत्ता पर काबिज होने की हर कोशिश नाकाम होने के बाद की है - ये क्या कोई नया स्टैंड है?
बीजेपी नेता अमित मालवीय ने अपने ट्वीट में जिस तरफ इशारा किया है उसे भी समझा जाना जरूरी है. अमित मालवीय ने राहुल बजाज की कांग्रेस के प्रति निष्ठा स्थापित करने की कोशिश की है.
क्या राहुल बजाज के 'डर' वाले बयान को महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन से जोड़ कर भी देखा जा सकता है? क्या राहुल बजाज 'डर' का ये मसला भी इसलिए उठा रहे हैं कि बीजेपी महाराष्ट्र की सत्ता गंवा चुकी है और सत्ता पर एनसीपी और कांग्रेस का कब्जा हो चुका है? मजे की बात तो ये भी है कि राहुल बजाज ने ये मुद्दा भी महाराष्ट्र की ही धरती पर उठाया है - दिल्ली या किसी और शहर में नहीं!
महाराष्ट्र की राजनीतिक उठापटक ने बीजेपी को आत्ममंथन के लिए मजबूर तो किया ही होगा. एक तरफ महाराष्ट्र में बवाल चल रहा था और दूसरी तरफ झारखंड में विधानसभा चुनाव. 2014 में बीजेपी के विजयी रथ की राह में झारखंड तक कोई रोड़ा नहीं खड़ा हुआ था. पिछली बार दिल्ली का चुनाव पहला स्पीड ब्रेकर बना और फिर बिहार पहुंचते पहुंचते फजीहत में कोई कसर बाकी भी नहीं रह सकी.
इस बार फजीहत का सिलसिला महाराष्ट्र से ही शुरू हो गया. शुरुआत तो, दरअसल, हरियाणा से हुई थी, लेकिन वहां हालात पर काबू पा लिया गया. महाराष्ट्र को लेकर कोई शक-शुबहा नहीं था वही गच्चा दे गया. अब झारखंड के नतीजों पर सारा दारोमदार है - क्योंकि उसके आगे दिल्ली और फिर बिहार का नंबर आता है.
महाराष्ट्र के स्पीड ब्रेकर ने तो बीजेपी की चाल बदल ही दी है, ऐसे में झारखंड की भूमिका बढ़ गयी है - झारखंड के नतीजों की रोशनी में ही मालूम हो पाएगा कि बीजेपी के स्वर्णिम काल रोड पर कोई और स्पीड ब्रेकर तो नहीं है.
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