बीजेपी गुजरात में पाटीदार लीडरों को घेरने में नाकाम
राज्य में पटेलों की आबादी करीब 20 फीसदी है. इतने बड़े वर्ग की नाराजगी बीजेपी के लिए मुसीबत का सबब बन सकती है. इसको भांपते हुए गुजरात सरकार की तरफ से पाटीदार समुदाय के लिए कई घोषणाएं भी की गई लेकिन मामला हाथ से निकलता ही जा रहा है.
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गुजरात में राजनीति अपने चरम पर है. बीजेपी जहां पाटीदारों को अपने खेमे में लाने की कोशिश में जुटी है तो वहीं पाटीदार नेता बीजेपी को तगड़ा झटका देने पर आमादा हैं. हाल के दिनों में बीजेपी नई घोषणाएं करके पाटीदारों की नाराजगी दूर करने की कोशिश कर रही है. साथ ही कुछ पाटीदार नेताओं को बीजेपी में शामिल कर ये सन्देश भी देना चाह रहे हैं कि यहां सबकुछ ठीक-ठाक है. उनकी मेहनत रंग ला ही रही थी की तभी उनके मिशन को दो पाटीदार लीडरों ने तगड़ा झटका दिया है. चुनाव आयोग ने अभी तक गुजरात विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान नहीं किया है. लेकिन चुनावी सरगर्मी, ट्वेंटी-ट्वेंटी क्रिकेट मैच की तरह कभी इस पाले में तो कभी उस पाले में देखने को मिल रही है.
आरक्षण की मांग को लेकर हार्दिक पटेल के नेतृत्व में पटेल (पाटीदार) समाज के लाखों लोग आंदोलन कर चुके हैं. और इस आंदोलन ने बीजेपी सरकार और राज्य के पटेलों को आमने-सामने ला खड़ा कर दिया था. राज्य में पटेलों की आबादी करीब 20 फीसदी है. इतने बड़े वर्ग की नाराजगी बीजेपी के लिए मुसीबत का सबब बन सकती है. इसको भांपते हुए 26 सितम्बर को गुजरात सरकार की तरफ से पाटीदार समुदाय के लिए कई घोषणाएं भी की गईं. उन्हें लुभाने के कई प्रयास किये जा रहे हैं. इसी क्रम में 21 अक्टूबर को पाटीदार समाज के दो लीडर रेशमा पटेल और वरुण पटेल को बीजेपी ज्वाइन करवाने में सफलता हासिल कर पायी.
झटकों का दौर-
पाटीदार नेता नरेंद्र पटेल ने बीजेपी पर पैसे देने का आरोप लगाया. नरेंद्र पटेल 22 अक्टूबर को शाम 7 बजे बीजेपी में शामिल हुए थे. रात को 11 बजे उन्होंने ही मीडिया को बताया कि BJP ने उन्हें पार्टी में शामिल होने के लिए एक करोड़ रुपए की पेशकश की है. नरेंद्र पटेल के मुताबिक उन्हें 10 लाख रुपए एडवांस के तौर पर दिए गए और बाकी के 90 लाख रुपए 23 अक्टूबर को मिलने वाले थे. यह मुद्दा मीडिया में जोर पकड़ने लगा था तभी बीजेपी को दूसरा झटका भी लगा.
इन दोनों नेताओं ने बीजेपी की मिट्टी पलीद कर दी
23 अक्टूबर को पाटीदार अमानत आंदोलन समिति के नेता और हाल में ही बीजेपी में शामिल हार्दिक पटेल के पूर्व साथी निखिल सवानी ने बीजेपी छोड़ दी. उन्होंने आज एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बीजेपी छोड़ने की जानकारी दी. साथ ही यह भी कहा कि- उनका बीजेपी में जाने का फैसला गलत था. सवानी ने मीडिया से बातचीत में कहा कि- वो कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से मिलने का वक्त मांगेंगे. सूरत में निखिल का काफी दबदबा है और सूरत में ही पाटीदार पटेलों की संख्या ज्यादा है. जब हार्दिक पटेल जेल में थे तो निखिल ने आंदोलन को जिन्दा रखने में अग्रणी भूमिका निभाई थी.
कांग्रेस की रणनीति-
राहुल गांधी को गुजरात दौरे के दौरान पटेल भूमि सौराष्ट्र में पॉजिटिव रिस्पांस मिला था. कांग्रेस पाटीदारों की बीजेपी से नाराजगी को लुभाने के लिए हार्दिक पटेल को अपने पक्ष में करने के तहत मिशन में जी-जान से जुटी है. इसका परिणाम भी कुछ-कुछ उसके पक्ष में दिखता हुआ नजर आ रहा है. हार्दिक ने खुले तौर पर तो कुछ नहीं कहा पर उन्होंने कांग्रेस पार्टी को समर्थन देने के संकेत दिए हैं. वे लगातार कहते आये हैं कि बीजेपी को हराने के लिए वह कुछ भी कर सकते हैं. गुजरात प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भरतसिंह सोलंकी ने तो हार्दिक को चुनाव लड़ने का भी ऑफर भी दिया था लेकिन उन्होंने उसे ठुकरा दिया.
क्यों अहम् हैं पाटीदार?
पाटीदारों को गुजरात का किंगमेकर भी कहा जाता है. गुजरात में पाटीदार वोटर करीब 20 फीसदी हैं. पटेल समुदाय के कई विधायक और मंत्री वर्तमान गुजरात सरकार में अपना रोल प्ले कर रहे हैं. पाटीदार समाज हमेशा से बीजेपी को ही वोट करता रहा है. 2014 में नरेंद्र मोदी का पीएम बन जाने के बाद से पाटीदारों पर बीजेपी की पकड़ कमजोर हुई है. हार्दिक पटेल के नेतृत्व में शुरू हुए पटेल आंदोलन ने बीजेपी की पकड़ को और कमजोर कर दिया है.
गुजरात में पटेलों के दो उप-समुदाय हैं. इनमें एक लेउवा पटेल और दूसरा कड़वा पटेल. हार्दिक, कड़वा पटेल हैं. पाटीदार समुदाय में लेउवा का हिस्सा 60 फीसदी और कड़वा का हिस्सा 40 फीसदी है. कांग्रेस को कड़वा के मुकाबले लेउवा से ज्यादा समर्थन मिलता रहा है. 2012 विधान सभा चुनाव रिजल्ट के आंकड़े को देखें तो लेउवा पटेल के 63 फीसदी और कड़वा पटेल के 82 फीसदी वोट बीजेपी को मिले थे वहीं दूसरी और लेउवा पटेल के 15 फीसदी और कड़वा पटेल के 7 फीसदी वोट कांग्रेस को मिले थे.
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