क्या राहुल गांधी का तेज-तर्रार सोशल मीडिया अवतार फर्जी लोगों के सहारे है ?
कई देशों के राजनेता अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिए सोशल बॉट्स का सहारा लेते हैं. हालांकि कांग्रेस ने राहुल गांधी के ट्विटर अकाउंट पर उठ रहे सवालों को सिरे से ख़ारिज कर दिया है.
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हाल के महीनों में कांग्रेस के सोशल मीडिया को लेकर तमाम तरह की ख़बरें आ रहीं हैं. कहीं राहुल गांधी के तीखे ट्वीट्स को लेकर चर्चे हैं तो कहीं उनकी सोशल मीडिया की टीम की तारीफ हो रही है. हालांकि एएनआई की एक खबर ने कांग्रेस की सोशल मीडिया की इस सफलता पर सवाल खड़े कर दिए हैं. खबर के अनुसार राहुल गांधी के ट्वीट को रीट्वीट करने वाले कई लोग ऐसे हैं जो रूस, कजाकिस्तान और इंडोनेशिया में रहने वाले हैं. हालांकि जब इन एकाउंट्स की गतिविधियां को देखा गया तो इनमें से ज्यादातर ट्विटर पर केवल रिट्वीटस ही करते पाए गए. ऐसे में इन ट्विटर एकाउंट्स के बोट्स (BOTS) होने की आशंका जताई जा रही है.
क्या हैं यह सोशल बोट्स-
अगर आसान शब्दों में समझें तो ये वो सोशल मीडिया एकाउंट्स होते हैं, जिन्हें सॉफ्टवेयर के माध्यम से संचालित किया जाता है. यह खुद-बखुद ट्वीट या रीट्वीट करने में सक्षम होते हैं. दुनिया के कई देशों में इनका उपयोग किसी ख़ास मकसद से किया जाता है. यूनिवर्सिटी ऑफ़ साउथर्न कैलिफ़ॉर्निया और इंडिआना यूनिवर्सिटी के रिसर्च के अनुसार पूरे विश्व के ट्विटर इस्तेमाल करने वालों में 9 से 15 फीसदी बोट्स अकाउंट हैं.
फर्जी फॉलोवर के जरिए असली वोट पाना चाहते हैं राहुल गांधी!
हालांकि ट्वीटर बोट्स भारत के लिए जरूर नया हो. मगर विश्व के कई बड़े देशों में ट्विटर बोट्स चर्चा का विषय रहा है. इसको लेकर कई तरह के रिसर्च भी किये जा चुके हैं. साउथर्न कैलिफ़ॉर्निया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एमीलिओ फेरार्रा के शोध के अनुसार 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों के दौरान 4 लाख सोशल बोट्स चुनावों से जुड़ी चीजें ट्वीट कर रहे थे. शोध के अनुसार इन 4 लाख बोट्स ने कम से कम 40 लाख से ज्यादा ट्वीट के जरिये अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में लोगों की राय बनाने में एक अहम भूमिका निभाई. कई न्यूज़ रिपोर्ट्स का दावा था कि राष्ट्रपति चुनाव के ही दिन कई सोशल बॉट्स के माध्यम से हिलेरी क्लिंटन के खिलाफ भी ट्रेंड चलाया गया था.
सोशल बॉट्स की भूमिका हाल ही में सम्पन्न हुए फ्रांस और जर्मनी के चुनावों में भी देखने को मिला. यूनिवर्सिटी ऑफ़ लंदन के एक रिसर्च में यह दावा किया गया कि ब्रिटेन के यूरोपियन यूनियन से अलग होने पर जनमत संग्रह के दौरान भी सोशल बॉट्स की भूमिका देखने को मिली. रिसर्च के अनुसार इस दौरान 13 हजार सोशल बॉट्स के जरिये करीब 65 हजार रिट्वीट किये गए. इनमें से ज्यादातर ट्वीट्स में ब्रिटेन का यूरोपियन यूनियन से अलग होने का समर्थन किया गया. जनमत संग्रह के बाद इन एकाउंट्स के ज्यादातर की पहचान बदल दी गयी.
तो यह कहा जा सकता कई देशों के राजनेता अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिए सोशल बॉट्स का सहारा लेते हैं. हालांकि कांग्रेस ने राहुल गांधी के ट्विटर अकाउंट पर उठ रहे सवालों को सिरे से ख़ारिज कर दिया है. मगर हाल के कुछ दिनों में अगर ट्विटर पर राहुल गांधी के फॉलोवरों की लिस्ट देखें तो उनमें से अधिकतर ऐसे एकाउंट्स दिख जायेंगे जिनमें न तो कोई तस्वीर लगी है और ना ही इन्होने कोई ट्वीट किया है.
मजे की बात यह है कि इनमें से आधे से ज्यादा लोगों ने तो ट्विटर अक्टूबर 2017 में ही ज्वाइन किया है. हालांकि ऐसा ही कुछ नजारा नरेंद्र मोदी के फॉलोवरों में भी देखने को मिल सकता है. यह कहना मुश्किल है कि इनमें से कौन बोट्स हैं और कौन जेनुइन अकाउंट है. हां यह जरूर कहा जा सकता है कि हाल के कुछ वर्षों में भारत में सोशल मीडिया में जो क्रांति आयी है, उसने भारत की राजनैतिक पार्टियों को भी इस प्लेटफार्म पर पांव ज़माने पर मजबूर कर दिया है.
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