जानिए, योगी आदित्यनाथ का चुनाव लड़ना जरूरी क्यों था, वो भी गोरखपुर से ही
जिस गोरखपुर (Gorakhpur) से योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) पांच बार सांसद रहे हैं, वहां की सदर विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में उतारे जा रहे हैं - और ये बीजेपी उम्मीदवारों की पहली लिस्ट (BJP Candidates First List) का सबसे बड़ा सरप्राइज है.
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बीजेपी उम्मीदवारों की पहली सूची (BJP Candidates List) में सरप्राइज भी है और कुछ सवाल भी हैं. योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) का विधानसभा चुनाव लड़ना तो सरप्राइज भी है और एक बड़ा सवाल भी - क्योंकि ये चुनाव मैदान अयोध्या या मथुरा नहीं बल्कि गोरखपुर (Gorakhpur) में है. जी हां, वही गोरखपुर जहां से 5 बार चुनाव जीत कर वो संसद पहुंच चुके हैं.
योगी आदित्यनाथ के साथ साथ बीजेपी ने डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को सिराथू से उम्मीदवार बनाया है. केशव प्रसाद मौर्य 2012 में सिराथू से विधायक रह चुके हैं. साथ ही, उत्तराखंड के राज्यपाल के पद से इस्तीफा देकर यूपी के मैदान में उतरीं, बेबीरानी मौर्य आगरा ग्रामीण से चुनाव लड़ेंगी.
उम्मीदवारों की सूची ऐसी लगती है जैसे दूध का जला छाछ भी फूंक फूंक कर पी रहा हो. स्वामी प्रसाद मौर्य के बीजेपी छोड़ कर अखिलेश यादव के साथ चले जाने का भी साफ असर देखा जा सकता है. कुल 107 सीटों के लिए घोषित उम्मीदवारों में 44 ओबीसी कैटेगरी वाले हैं - और खास बात ये भी है कि एक सामान्य सीट पर अनुसूचित जाति के उम्मीदवार को टिकट दिया गया है.
चुनाव प्रचार के लिए तो बीजेपी नेतृत्व बड़े नेताओं को भी कहीं भी सड़क पर उतार देता है. बिहार चुनाव के बाद हैदराबाद नगर निगम के लिए हुए चुनाव में अमित शाह खुद तो रोड शो करने उतरे ही, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को छोड़ कर लगभग सबकी ड्यूटी लगा दी थी.
बड़े नेताओं को चुनाव मैदान में लड़ने के लिए पश्चिम बंगाल में झोंका गया वो अलग मामला है. केंद्रीय मंत्री रहे बाबुल सुप्रियो से लेकर राज्य सभा सांसद स्वपन दासगुप्ता तक चुनाव लड़े और हार गये. बाद में बीजेपी नेतृत्व ने जिसके लिए जो पहले से सोच रखा था, सलूक भी वैसा ही किया.
योगी आदित्यनाथ के लिए अभी चुनाव लड़ना जरूरी नहीं था. मायावती ने भी अपनी प्रेस कांफ्रेंस में ये बात कही है. योगी आदित्यनाथ सितंबर, 2017 में यशवंत सिंह के इस्तीफे से खाली हुई सीट से विधान परिषद निर्विरोध चुन कर गये थे, जबकि केशव मौर्य ने बुक्कल नवाब की खाली की हुई जगह पर चुने गये थे - और दोनों का ही कार्यकाल अभी 6 जुलाई 2022 तक है.
हो सकता है एक सहज सवाल आपके मन में भी उठ रहा हो - ऐसा इसलिए भी क्योंकि कुछ मसले ऐसे रहे हैं जिन पर योगी आदित्यनाथ और मोदी-शाह के बीच काफी तकरार की खबरें आ चुकी हैं. ये भी तभी की बात है जब योगी आदित्यनाथ, संघ के दत्तात्रेय होसबले से दूरी बनाते नजर आये थे - और अभी अभी स्वामी प्रसाद मौर्य सहित बीजेपी छोड़ने वाले सभी मंत्रियों और विधायकों के निशाने पर भी योगी आदित्यनाथ ही रहे हैं.
क्या योगी आदित्यनाथ से उनकी मन की बात पूछी गयी होगी - क्या वो भी वास्तव में चुनाव लड़ना चाहते हैं? क्या गोरखपुर के अलावा अयोध्या और मथुरा भी ऑप्शन रहे होंगे - और क्या चुनाव न लड़ने का वीटो भी मिला होगा?
निर्विरोध चुनाव का ऑप्शन बचा है क्या?
गोरखपुर सदर विधानसभा सीट भी तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए विधान परिषद जैसी ही है - क्या योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से अब निर्विरोध विधायक नहीं बन सकते? संघ, बीजेपी और हिंदू युवा वाहिनी चाह ले तब भी? अयोध्या में राम मंदिर बन रहा है तब भी? काशी विश्वनाथ कॉरिडोर बन चुका है तब भी? मथुरा को लेकर भी माहौल बनाने की कोशिश हो चुकी है तब भी?
जिन प्रतिकूल हालात में योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से विधानसभा के लिए नामांकन दाखिल करने जा रहे हैं - कुछ सवाल अपनेआप खड़े हो जाते हैं.
मसलन, एक सवाल है - तब क्या होगा अगर पश्चिम बंगाल चुनाव जैसे नतीजे आ गये? या फिर जैसा पांच साल पहले हिमाचल प्रदेश में हुआ था? दोनों चुनावों में कॉमन चीज ये रही कि पार्टी तो चुनाव जीत गयी, लेकिन मुख्यमंत्री पद का चेहरा अपनी सीट नहीं बचा सका.
योगी आदित्यनाथ के लिए बीजेपी का टिकट पूर्वांचल के चुनाव प्रभारी बनाये जाने जैसा क्यों लगता है?
2017 में हिमाचल प्रदेश में बीजेपी की सरकार भी बनी, 2021 में पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की भी सरकार बनी. जैसे हिमाचल प्रदेश में बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार प्रेम कुमार धूमल चुनाव हार गये थे, ममता बनर्जी का भी नंदीग्राम में वही हाल हुआ - ममता बनर्जी तो फिर से मुख्यमंत्री बन गयीं, लेकिन हिमाचल प्रदेश में बीजेपी के सीएम फेस प्रेम कुमार धूमल को मार्गदर्शक मंडल का रुख करना पड़ा था.
ये सब हिमाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल में तो हो सकता है, लेकिन उत्तर प्रदेश में ऐसा हरगिज नहीं होगा, कोई गारंटी दे सकता है क्या?
चुनाव है - नतीजे भी क्रिकेट की तरह होते हैं. अक्सर अनिश्चित. कभी कभी सरप्राइज भी देते हैं.
और ऐसे सवालों का जवाब तो योगी आदित्यनाथ खुद ही दे चुके हैं - 'एक्सीडेंट का क्या... गाड़ी कभी भी पलट सकती है... कभी भी...'
और जिस तरह से संघ और बीजेपी नेतृत्व योगी आदित्यनाथ से मन ही मन नाखुश है, योगी आदित्यनाथ को अपनी ही बात प्रतिध्वनि के रूप में कानों में गूंज रही होगी. जरूरी नहीं कि ऐसा अभी से ही हो.
ये तो योगी आदित्यनाथ का हक बनता है. जिस सीट पर योगी आदित्यनाथ का उम्मीदवार बीजेपी के अधिकृत प्रत्याशी को शिकस्त दे चुका हो. जहां के लोग योगी आदित्यनाथ को लगातार पांच बार लोक सभा भेज चुके हों - वहां भी अगर योगी आदित्यनाथ का निर्विरोध चुना जाना संभव न हो तो बाकियों की जमानत जब्त हो जाये, ऐसी कोशिश तो हो ही सकती है - है कि नहीं?
ये कैसी 'घर वापसी'!
बीजेपी ने योगी आदित्यनाथ को उम्मीदवार बना कर उनके राजनीतिक विरोधियों को बोलने का मौका भी दे दिया है. बीजेपी की लिस्ट आते ही समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव ने नया शिगूफा छोड़ा है.
अखिलेश यादव कह रहे हैं, 'बीजेपी ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को घर भेज दिया है... क्योंकि वो भाजपा के सदस्य नहीं हैं.'
अखिलेश यादव के टोन में योगी आदित्यनाथ की बहुचर्चित मुहिम घर वापसी का तंज भी साफ सुनाई पड़ रहा है. हिंदुत्व छोड़ कर दूसरा धर्म अपना चुके लोगों को फिर से हिंदू धर्म में लौटाने की मुहिम को ही घर-वापसी नाम दिया गया है.
कुछ ही दिन पहले चित्रकूट में एक कार्यक्रम में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने हिंदुओं की घर वापसी के लिए अभियान तेज करने का संकेत दिया था, लेकिन अखिलेश यादव ये समझाना चाह रहे हैं कि बीजेपी ने योगी आदित्यनाथ को लखनऊ से गोरखपुर मठ ही भेज दिया है.
गोरखपुर सीट का पुराना गुणा-भाग
बीस साल पहले 2002 के चुनाव में योगी आदित्यनाथ चार बार के विधायक रहे शिवप्रताप शुक्ल के विरोध में खड़े हो गये. शिवप्रताप शुक्ल 1989 से गोरखपुर सीट बीजेपी की झोली में डालते आ रहे थे, लिहाजा बीजेपी ने योगी आदित्यनाथ की बात काटते हुए शिवप्रताप शुक्ल को ही अधिकृति प्रत्याशी घोषित किया.
गुस्से में योगी आदित्यनाथ ने शिवप्रताप शुक्ल के खिलाफ हिंदू महासभा के उम्मीदवार के रूप में डॉक्टर राधा मोहन दास अग्रवाल को उतार दिया. पूरी ताकत से चुनाव प्रचार किये और योगी के उम्मीदवार की जीत हुई. बीजेपी हार गयी. फिर राधा मोहन दास अग्रवाल बीजेपी में शामिल हो गये और धीरे धीरे शिवप्रताप शुक्ल हाशिये पर पहुंच गये.
बाद में बीजेपी नेतृत्व ने शिवप्रताप शुक्ल को राज्य सभा भेजा और मंत्री भी बनाया. अभी उनको बीजेपी की ब्राह्मण कमेटी का प्रमुख बनाया गया है - जो यूपी चुनाव में सुर्खियों में आये ब्राह्मण वोट को बीजेपी के पाले में लाने के लिए काम कर रही है.
गुजरते वक्त के साथ राधा मोहन दास अग्रवाल भी योगी आदित्यनाथ के विरोधी हो गये, हालांकि, बीजेपी में बने रहे. एक बार एक ऑडियो वायरल हुआ था. ऑडियो में अग्रवाल और एक बीजेपी नेता की बातचीत बतायी गयी, जिसमें अग्रवाल को कहते सुना गया, 'ठाकुरों की सरकार है इसलिए दबकर रहना चाहिये.'
जब बवाल मचा तो बीजेपी ने नोटिस भेज कर जवाब भी मांगा था. गोरखपुर में जनप्रतिनिधियों के साथ एक बैठक में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बीजेपी विधायक राधा मोहनदास अग्रवाल को फटकारा भी था - और मर्यादा में रहने की नसीहत दी कि जाति के साथ जोड़कर किसी व्यवस्था को देखना गलत है.
योगी का गोरखपुर टास्क
चुनावी तैयारियों के तहत बीजेपी ने पूरे यूपी को छह क्षेत्रों में बांट कर तैयारी शुरू की थी. उसमें गोरखपुर-कानपुर क्षेत्र की जिम्मेदारी बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के पास है. ब्रज और पश्चिम क्षेत्र की जिम्मेदारी अमित शाह और अवध-काशी रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह संभाल रहे है. जैसे जेपी नड्डा के हिस्से में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का इलाका है, वैसे ही राजनाथ सिंह के पास प्रधानमंत्री मोदी का संसदीय क्षेत्र - और सबसे मुश्किल टास्क अमित शाह ने अपने हाथ में लिया है, जहां कृषि कानूनों की वापसी से पहले तक बीजेपी नेताओं का गांवों में घुसना तक मुहाल हो चुका था.
नड्डा वाले टास्क में अब योगी आदित्यनाथ को भी शामिल कर लिया गया है - पहले से ही गोरखपुर नगर विधानसभा क्षेत्र के गोरखनाथ बूथ संख्या-246 के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पन्ना प्रमुख के रूप में भी नियुक्ति हो चुकी है. गोरखपुर जिले में 9 विधानसभा सीटें हैं - और 2017 में इनमें से 8 बीजेपी के हिस्से में आयी थीं, इस बार तो पूरे सौ फीसदी रिजल्ट चाहिये होगा.
आज तक के मंच पर कुछ दिन पहले राम मंदिर के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास आये थे. तब योगी आदित्यनाथ के अयोध्या से चुनाव लड़ने की खूब चर्चा रही, लेकिन सत्येंद्र दास सहमत नहीं दिखे, बोले - 'योगी जी को गोरखपुर में ही किसी स्थान से चुनाव लड़ना चाहिये... अयोध्या की स्थिति भी अन्य जगहों जैसी ही है. मतलब - गोरखपुर की तरह कहीं भी और पूरी तरह सुरक्षित नहीं है.
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