पंजाब की राजनीतिक जमीन यूपी चुनाव के लिए बीजेपी को कितना उपजाऊ लगती है
यूपी चुनाव (UP election 2022) में पंजाब की राजनीति का क्या काम है - लेकिन ये बीजेपी को ये बहुत फायदेमंद लगता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के पंजाब दौरे में सुरक्षा में सेंध (PM Security Breach) पर शुरू राजनीति से तो ये और भी साफ हो गया है.
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हिंदुत्व और राष्ट्रवाद - बीजेपी की लगभग पूरी राजनीति इन्हीं दो मुद्दों के इर्द-गिरती घूमती फिरती रहती है. बीजेपी को फर्क इस बात से भी नहीं पड़ता कि देश में आम चुनाव हो रहे हैं या किसी राज्य में विधानसभा या किसी शहर का नगर निगम चुनाव - ये बीजेपी को सूट करता है. बीजेपी नेतृत्व इन्हीं दोनों पर फोकस रहता है और पार्टी के नेता दिशानिर्देशों के मुताबिक एजेंडे को आगे बढ़ाते रहते हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) बीजेपी के इन दोनों ही मुद्दों का अकेले ही प्रतिनिधित्व करते हैं. नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का फायदा उठाते हुए बीजेपी अपने खिलाफ गंभीर से गंभीर मुद्दों को हवा में उड़ा देती है. बीते वक्त में ऐसे कई मौके देखने को मिले हैं.
विपक्षी खेमे से सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते कांग्रेस हमेशा ही बीजेपी के निशाने पर रहती है - पंजाब में तो कांग्रेस सत्ता में है ही, यूपी में भी प्रियंका गांधी वाड्रा के 'लड़की हूं... लड़ सकती हूं' के नारे के साथ कांग्रेस का आगे बढ़ते नजर आना बीजेपी के लिए चिंता का कारण है. यूपी चुनाव (UP election 2022) में भले ही कांग्रेस अपने लिए कुछ खास न कर पाये, लेकिन अगर विरोधियों की जगह बीजेपी के लिए ही विशेष परिस्थितियों में वोटकटवा बन जाये तो मुश्किल तो होनी ही है.
पंजाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में सेंध (PM Security Breach) को बीजेपी पहले की ही तरह राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ इस्तेमाल करने वाली है. जैसे आम चुनाव में राफेल डील के मुद्दे पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी के स्लोगन 'चौकीदार चोर है' को मोदी के बहाने न्यूट्रलाइज कर दिया गया. ठीक वैसा ही 2017 के गुजरात चुनाव में कांग्रेस के कैंपेन 'विकास गांडो थायो छे' के खिलाफ बीजेपी ने ब्रांड मोदी का इस्तेमाल किया - और पूरी तरह कामयाब रही.
पंजाब के रास्ते इस बार यूपी के चुनावी मैदान में ब्रांड मोदी के लेटेस्ट वर्जन के साथ इस्तेमाल की तैयारी होने लगी है. पंजाब में थोड़ा भी मिल जाये तो बहुत होगा, बीजेपी के लिए असली फायदे की जरूरत तो उत्तर प्रदेश में ही है - 2024 के आम चुनाव के हिसाब से भी देखें तो.
1. ब्रांड मोदी बीजेपी के लिए करिश्माई है
2019 के आम चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने नाम के पहले चौकीदार लगा लिया था - और फिर एक एक करके सारे बीजेपी नेता और समर्थकों ने शुभंकर की तरह अपने नाम के साथ भी जोड़ लिये. नतीजे आने पर मालूम पड़ा राहुल गांधी तो अमेठी भी गंवा चुके हैं. स्मृति ईरानी ने पांच साल की तैयारी में ही गांधी परिवार का बरसों पुराना किला फतह कर लिया था.
पांच साल पहले 2017 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात पहुंचते ही बीजेपी के एक बड़े कार्यक्रम में घोषणा कर दी थी - 'हूं छू विकास, हूं छू गुजरात!'
यूपी में बीजेपी मोदी के नाम पर ही तो योगी के लिए वोट मांग रही है
असल में ये कांग्रेस की बेहद सफल चुनावी मुहिम 'विकास पागल है' को न्यूट्रलाइज करने की बीजेपी की आखिरी तरकीब रही - और शत प्रतिशत सफल भी रही. फिर क्या था कांग्रेस का कैंपेन चारों खाने चित्त हो गया.
तत्काल प्रभाव से राहुल गांधी को कैंपेन रोकने का निर्देश देना पड़ा. मोदी के मोर्चे पर आ जाने की वजह से राहुल गांधी को घोषणा करनी पड़ी कि वो हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री हैं और कांग्रेस इसी कारण अपना कैंपेन वापस ले रही है - पंजाब में प्रधानमंत्री की सुरक्षा में सेंध को लेकर ठीक वैसे ही इस बार कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को कहना पड़ा है कि मोदी सभी के, पूरे देश के प्रधानमंत्री हैं और उनकी सुरक्षा बंदोबस्त में कोई कमी नहीं आनी चाहिये.
पंजाब में अभी अभी उग आयी ये राजनीतिक फसल भी बीजेपी यूपी चुनाव के लिए संजो कर रख चुकी है, जैसे प्रधानमंत्री मोदी ने गुरु परब के दिन कृषि कानूनों के वापस लेने की घोषणा करके की या फिर योगी आदित्यनाथ ने मलेरकोटला को पंजाब का नया जिला बनाये जाने पर विरोध प्रकट करके किया - जैसे पाकिस्तान के बंटवारे के जख्म फिर से ताजा हो गये हों. प्रधानमंत्री मोदी की तरफ से बंटवारे की याद में विभाजव विभीषिका दिवस की घोषणा भी तो योगी आदित्यनाथ के रुख का एक तरीके से एनडोर्समेंट ही था.
किसान आंदोलन का जारी रहना बीजेपी के लिए पंजाब में नहीं, यूपी चुनाव में ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता था. प्रधानमंत्री मोदी ने कृषि कानूनों की वापसी की घोषणा गुरु परब के दिन ही की थी. खैर अब तो बात ही पुरानी हो गयी, कैप्टन अमरिंदर सिंह भी अब बीजेपी के साथ हैं, लेकिन मुख्यमंत्री रहते जब वो मलेरकोटला को पंजाब का नया जिला घोषित किये थे तो पहला विरोध यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ही जताया था.
2. मोदी सुरक्षित, राष्ट्र सुरक्षित
प्रधानमंत्री की सुरक्षा का मामला भी तो राष्ट्रीय सुरक्षा से ही जुड़ा है. मोदी सुरक्षित हैं, तो समझा जाना चाहिये कि राष्ट्र भी सुरक्षित है. मोदी की सुरक्षा को लेकर पंजाब में उठे मामले की लपटें यूपी तक असर दिखा रही हैं.
मोदी की सुरक्षा का मामला - हिंदुत्व और राष्ट्रवाद दोनों के लिए एक साथ चिंता का विषय है. ओमिक्रॉन के चलते चुनावी रैलियों के रद्द होने की सूरत में बीजेपी के आईटी सेल के लिए भी ये बेहतरीन टॉपिक है जिसके तमाम प्लेटफॉर्म पर शेयर होते ही सुपर वायरल होते देर नहीं लगने वाली है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में सेंध पूरे देश के लिए फिक्र की बात है, लेकिन चुनावी लिहाज से देखें तो ये बीजेपी के लिए काफी फायदेमंद है. पीएम सिक्योरिटी का मामला राजनीतिक रंग लेने के बाद भी जरूरी नहीं कि पंजाब में बीजेपी के लिए बल्ले-बल्ले माहौल बन जाये - साइड इफेक्ट के तौर पर यूपी चुनाव में ये काफी फायदेमंद साबित हो सकता है.
बीजेपी के नये साथी कैप्टन अमरिंदर सिंह कांग्रेस छोड़ने के बाद से पंजाब के जरिये राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा उठाते रहे हैं, लुधियाना कोर्ट धमाका और फिर प्रधानमंत्री की सुरक्षा में सेंध के बाद वो गंभीर मामला बन गया है - ये यूपी चुनाव में बीजेपी के राष्ट्रवाद के एजेंडे में ईंधन की भूमिका आसानी से निभा सकता है.
जब मोदी और राष्ट्र की सुरक्षा का सवाल उठेगा तो भला कौन लखीमपुर खीरी हिंसा को लेकर अजय मिश्रा टेनी के इस्तीफे की मांग पर ध्यान देने वाला है. वैसी स्थिति में न तो कोई बेरोजगारी पर ही सवाल पूछेगा न महंगाई पर. पेट्रोल की कीमतों की बातें तो शायद दिमाग भी नहीं आने वाली.
3. मोदी सुरक्षित, हिंदुत्व खतरे से बाहर
हिंदुत्व के पॉलिटिकल आइकॉन नरेंद्र मोदी की सुरक्षा और लंबी उम्र के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जाप हो रहा है. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने गुफा मंदिर में महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया है. उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ ने काशी विश्वनाथ मंदिर में प्रधानमंत्री मोदी की दीर्घायु की कामना करते हुए विशेष अनुष्ठान कराया है - और अब तो बीजेपी की तैयारी अब पूरे देश भर में महामृत्युंजय मंत्र जाप कराने की तैयारी है.
अगर पूरे देश में महामृत्युंजय मंत्र का जाप होगा तो मोदी की लंबी उम्र के साथ साथ पांच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों में भी बीजेपी को फायदा मिलेगा ही - और मोदी के सुरक्षित रहते हिंदुत्व के खतरे से बाहर होने का संदेश तो अपनेआप लोगों तक पहुंच ही जाएगा.
चूंकि ये मुद्दा पंजाब से उठा है, इसलिए वहां भी हिंदुओं के ध्रुवीकरण की कोशिश होगी. पहले बीजेपी पंजाब चुनाव में सिर्फ हिंदू आबादी वाली सीटों पर ही ध्यान दे रही थी, कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ आ जाने से ये दायरा बढ़ चुका है.
यूपी में भी बोनस फायदा ये होगा कि राहुल गांधी ने कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद की किताब के बाद हिंदुत्व और हिंदूवादियों का फर्क समझाते हुए बीजेपी पर जो हमला बोला है उसकी धार भी अपनेआप कम हो सकती है.
4. डबल इंजिन से बीजेपी के फायदे
डबल इंजिन तो बीजेपी देश के साथ साथ राज्यों में अपनी पार्टी की सरकार के लिए कहती रही है, लेकिन ये भी बीजेपी के लिए वैसे ही फायदेमंद है जैसे हवाई जहाज और हेलीकॉप्टरों में लगे डबल इंजिन - अगर एक इंजिन फेल हो जाये तो दूसरा स्थिति संभाल ले.
जैसे 2019 के आम चुनाव में अयोध्या मुद्दा लगा काम लायक नहीं लगने पर ड्ऱॉप कर दिया गया. राष्ट्रवाद के सहारे आगे बढ़ने का फैसला हुआ. पुलवामा आंतकवादी हमले के बाद पाकिस्तान के कब्जे से अभिनंदन वर्धमान की वापसी ने ब्रांड मोदी को चुनावी लिहाज से काफी मजबूत बना दिया था. चुनाव नतीजे भी सबूत हैं.
हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के कॉम्बो का सबसे बड़ा फायदा तो यही है कि कोविड की तीसरी लहर ओमिक्रॉन संकट में लोग दूसरी लहर की बदइंतजामियों को भूल कर हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की राजनीति को लेकर चल रही बहस में उलझ जाएंगे.
ऐसे में न तो उत्तर प्रदेश की कानून-व्यवस्था पर सवाल उठाने का किसी को वक्त मिलेगा न ही गुंजाइश बचेगी और न ही कोविड की वजह से मिले पुराने जख्मों की तरफ देखने भर की भी फुरसत होगी - ये बीजेपी के लिए फायदा नहीं तो और क्या है?
5. हर मर्ज की एक दवा नहीं होती
हालांकि, 'हिंदुत्व और राष्ट्रवाद' भी कोई संजीवनी बूटी नहीं है, जो हर मर्ज की दवा के तौर पर कारगर ही हो. ये बीजेपी के लिए हमेशा ही फायदेमंद भी साबित होता रहा है, ऐसा भी नहीं है. बीजेपी को काफी नुकसान भी उठाना पड़ता है. चुनावों में हार तक का सामना करना पड़ता है, लेकिन भगवा राजनीतिक का दिल है कि मानता ही नहीं.
2019 के आम चुनाव के बाद महाराष्ट्र और हरियाणा में विधानसभा के चुनाव हुए थे. दोनों ही राज्यों में कम सीटें आने के कारण बीजेपी बचाव की मुद्रा में आ गयी. माना गया कि बीजेपी अगर स्थानीय मुद्दों को चुनाव प्रचार में तरजीह दी होती तो उतना भी बुरा हाल न होता. महाराष्ट्र में कम सीटों के चलते बीजेपी को शिवसेना के साथ गठबंधन गंवाना पड़ा और हरियाणा में दुष्यंत चौटाला की पार्टी जेजेपी के साथ गठबंधन की सरकार चलानी पड़ रही है - बाद में झारखंड और दिल्ली चुनाव में भी वैसा ही हाल हुआ.
महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव में बीजेपी लोगों से जम्मू-कश्मीर से धारा 370 खत्म करने के नाम पर वोट मांगती रही - झारखंड में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का श्रेय लेकर. दिल्ली चुनाव में भी शाहीन बाग के नाम पर राष्ट्रवाद का ही एजेंडा आगे बढ़ाने की कोशिश की और दोबारा मुंह की खानी पड़ी. झारखंड में तो सत्ता भी हाथ से फिसल गयी.
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