Delhi Police and Lawyers fight: भाजपा को टेंशन दे रहा है Kiran Bedi का पराक्रम!
पुलिस के धरने (Delhi Police and Lawyers fight) में वकीलों के खिलाफ तो पुलिस कर्मियों का गुस्सा दिखा ही, दिल्ली पुलिस कमिश्नर के खिलाफ भी गुस्सा नजर आया. नारे लगे- 'किरण बेदी (Kiran Bedi) शेरनी हमारी', 'हमारा पुलिस कमिश्नर कैसा हो, किरण बेदी जैसा हो'.
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शनिवार का दिन दिल्ली के इतिहास में हमेशा याद रखा जाएगा. ये वो दिन है, जब दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट (Tees Hazari Court) परिसर में पुलिस (Delhi Police) और वकीलों (Lawyers) के बीच झड़प हुई. झड़प भी मामूली नहीं, लात-घूंसे बरसाने वाली मारपीट. यहां तक कि पुलिस ने गोली तक चला दी, जिसमें कथित रूप से एक वकील घायल हो गया. एक गाड़ी की पार्किंग को लेकर शुरू हुई मामूली कहासुनी पहले तो धीरे-धीरे झड़प (Delhi Police and Lawyers fight) में बदली और फिर देखते ही देखते मारपीट तक जा पहुंची. हालात इतने खराब हो गए कि कोर्ट के बाहर पुलिस और वकीलों की हाथापाई होने लगी, आगजनी की गई, तोड़फोड़ मचाई गई. यहां तक कि बहुत से ऐसे भी वीडियो (Viral Video) सामने आए हैं, जिनमें वकील आम जनता और पत्रकारों को भी बुरी तरह से पीटती नजर आ रही है. पुलिसवालों को भी वकील जहां-तहां पीटने लगे. इसी बीच हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने कुछ पुलिसवालों को सस्पेंड करने के आदेश जारी किए, जिसके बाद सभी पुलिसवाले एकजुट होकर धरना देने लगे. इस धरने में वकीलों के खिलाफ तो पुलिस कर्मियों का गुस्सा दिखा ही, दिल्ली पुलिस कमिश्नर के खिलाफ भी गुस्सा नजर आया. दिल्ली का कमिश्नर (Delhi Police Commissioner) किरण बेदी (Kiran Bedi) को बनाए जाने के नारे लगने लगे. पुलिस वालों ने 1988 का वो वक्त (Kiran Bedi 1988 lathicharge in Police-Laywer fight) याद किया, जब किरण बेदी ने वकीलों पर लाठीचार्ज करवाने की हिम्मत दिखाई थी और अपने फैसले पर अड़ी रहीं. बेदी की उस हिम्मत की वजह से भाजपा (BJP) को आज भी राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ता है और इस बार भी मोदी सरकार (Modi Government) की ओर से न तो नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) कुछ बोल पा रहे हैं ना ही अमित शाह (Amit Shah).
दिल्ली पुलिस ने वकीलों के खिलाफ धरना देते वक्त किरण बेदी को याद किया था और नारा लगाया था- 'हमारा CP कैसा हो, किरण बेदी जैसा हो'
किरण बेदी की कमिश्नर को नसीहत और पुलिसवालों को सलाह
जहां एक ओर राजनीति के दिग्गज वकीलों और पुलिस की इस लड़ाई (Delhi Police and Lawyers fight) से बचते हुए दिख रहे हैं, वहीं दूसरी ओर दिल्ली की पूर्व डीसीपी और पुडुचेरी की उपराज्यपाल किरण बेदी पुलिसवालों के समर्थन में उतर आई हैं. उन्होंने कहा है कि पुलिस को अपने रुख पर दृढ़ता से कायम रहना चाहिए, चाहे नतीजे जो भी हो. उन्होंने दिल्ली के पुलिस कमिश्नर को नसीहत देने के अंदाज में ये भी कहा कि ईमानदारी से जो पुलिसकर्मी अपनी ड्यूटी कर रहे हैं, उनके वरिष्ठों को उन्हें संरक्षण देना चाहिए. आपको बता दें कि पुलिसकर्मियों ने धरना प्रदर्शन करते समय दिल्ली के पुलिस कमिश्नर के खिलाफ अपनी नाराजगी दिखाते हुए नारे लगाए थे- 'किरण बेदी शेरनी हमारी', 'हमारा पुलिस कमिश्नर कैसा हो, किरण बेदी जैसा हो'. दरअसल, किरण बेदी ने 1988 में उन वकीलों पर लाठीचार्ज करने का आदेश दे दिया था, जिन्होंने पुलिस के साथ मारपीट की थी.
राजनीतिक जमीन बचाने में लगे नेता
दिल्ली पुलिस से जुड़ी कोई भी बात हो तो अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) मोदी सरकार के खिलाफ आ जाते हैं और मोदी सरकार (Modi Government) अपना बचाव करने में जुट जाती है. इस बार न तो केजरीवाल कुछ बोल रहे हैं ना ही मोदी सरकार. न तो नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने अब तक कुछ कहा है, ना ही गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) का कोई बयान आया है. सीधे-सीधे कहा जाए तो न तो भाजपा ने ना ही आम आदमी पार्टी ने खुलकर किसी का समर्थन किया है. वजह है दिल्ली चुनाव, जो आने वाले महीनों में होने वाले हैं. एक का साथ दिया तो दूसरा नाराज हो जाएगा.
भाजपा के लिए 'इधर कुआं-उधर खाई'
अगर भाजपा की ओर से दिल्ली पुलिस (Delhi Police and Lawyers fight) का साथ दिया जाता है तो वकील नाराज हो जाएंगे, और अगर वकीलों का साथ दे दिया तो दिल्ली पुलिस तो है ही केंद्र के अधीन. पुलिस नाराज भी होगी और मोदी सरकार की नाक भी कट जाएगी. ये समय राजनीति के दिग्गजों के लिए इधर कुआं- उधर खाई जैसा है, जिसे काफी डिप्लोमेटिक तरीके से हैंडल किए जाने की जरूरत है. ध्यान दिया जाए तो भाजपा ने ये शुरू भी कर दिया है. भाजपा के नेता निजी तौर पर कोई पुलिस की साइड ले रहा है तो कोई वकीलों की. वैसे भी, 1988 में किरण बेदी ने जो किया था, उसका गुस्सा वकील पहले भी भाजपा पर निकाल चुके हैं. जब दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा ने किरण बेदी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया था तो सारे वकील लामबंद हो गए थे और भाजपा के खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर किया था. अब अगर एक बार फिर भाजपा दिल्ली पुलिस की साइड लेती है तो कम से कम दिल्ली चुनाव (Delhi Assembly Election) जीत पाना तो मुश्किल ही समझिए.
आखिर ऐसा क्या किया था किरण बेदी ने 1988 में?
किरण बेदी (Kiran Bedi) को याद करने की वजह कहानी 31 साल पुरानी एक कहानी है. ध्यान देने वाली बात ये है कि इस कहानी के तार भी तीस हजारी कोर्ट (Tees Hazari Court) से जुड़े हैं. तब भी वकीलों और पुलिस वालों के बीच विवाद हो गया था. उस समय किरण बेदी दिल्ली डीसीपी नॉर्थ के पद पर तैनात थीं. 15 जनवरी 1988 को पुलिस ने एक वकील को सेंट स्टीफेंस कॉलेज से एक लड़की का पर्स चुराते हुए गिरफ्तार किया था. अगले दिन 16 जनवरी को उस वकील को हथकड़ी लगाकर तीस हजारी कोर्ट में पेश किया गया, जिस पर वकील भड़क गए और तुरंत उसे रिहा करते हुए पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की. मजिस्ट्रेट ने भी वकील को उसी दिन छोड़ दिया और दिल्ली पुलिस कमिश्नर को आरोपी पुलिसकर्मियों पर एक्शन लेने को कह डाला.
18 जनवरी को वकीलों ने हड़ताल कर दी. 20 जनवरी को किरण बेदी ने पुलिस की कार्रवाई को सही बताया और कथित चोर को छोड़ने के लिए मजिस्ट्रेट की आलोचना की. 21 जनवरी को कुछ वकील किरण बेदी से मिलने उनके दफ्तर पहुंचे, जो तीस हजारी कोर्ट कॉम्प्लैक्स में ही था. आरोप है कि वहां पर वकील जबरन घुस गए, बदसलूकी की, गालियां दीं और कपड़े फाड़ने लगे. फिर क्या था, किरण बेदी ने लाठीचार्ज (Kiran Bedi 1988 lathicharge in Police-Laywer fight) का आदेश दे दिया, जिसके बाद दिल्ली में हंगामा हो गया. वकीलों ने 2 महीने काम नहीं किया और बेदी के इस्तीफे की मांग करने लगे. बेदी ने सफाई में कहा कि बदसलूकी की वजह से मजबूरी में बल का प्रयोग करना पड़ा. आखिरकार एक कमेटी बनी, जिसे मामले की जांच की जिम्मेदारी दी गई. इसमें जो जज थे, जिन्होंने जांच के बाद आरोपी वकील को हथकड़ी लगाने के गलत करार दिया और बेदी के ट्रांसफर की सिफारिश भी की. किरण बेदी पर उसके बाद काफी दबाव बनाए गए, लेकिन वह झुकीं नहीं और अपने फैसले पर कायम रहीं. अब यही सलाह उन्होंने दिल्ली पुलिसकर्मियों को भी दी है कि वह अपने रुख पर डटे रहें, पीछे ना हटें. देखते हैं कि इस बार वकीलों और पुलिस के बीच का ये विवाद कितने दिनों में थमता है.
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