क्या BJP नेतृत्व चुनावी गठबंधन की राजनीति से आगे बढ़ चुका है?
महाराष्ट्र में शिवसेना का साथ छोड़ना, झारखंड में आजसू से नाता तोड़ लेना - क्या इशारे करता है? ऐसा लगता है बीजेपी नेतृत्व का चुनावी गठबंधन (Pre Poll Alliance) ने मन भर चुका है - और आगे से चुनाव नतीजे आने के बाद ही कोई बात होगी.
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2019 के लोक सभा चुनावों से पहले बीजेपी ने 'संपर्क फॉर समर्थन' अभियान चलाया था. अभियान के तहत समाज में अपना प्रभाव रखने वाले लोगों के साथ साथ बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह गठबंधन के साथियों से भी मिलते रहे - मुलाकात के लिए अमित शाह महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे से मिलने मातोश्री तो गये ही, पंजाब में प्रकाश सिंह बादल से मिलने उनके घर भी गये. यूपी में अनुप्रिया पटेल और बिहार पहुंच कर नीतीश कुमार से भी उसी तरीके से मुलाकात की - लेकिन अब ये नहीं चलने वाला. बीजेपी नेतृत्व का इरादा अब बदला हुआ लगता है.
महाराष्ट्र में बीजेपी के साथ शिवसेना के ताजा व्यवहार के बाद लगता है बीजेपी नेतृत्व गठबंधन की राजनीति को पीछे छोड़ने का मन बना चुका है. देखना होगा बीजेपी अब किस रणनीति के साथ आगे बढ़ती है और बाकी बचे गठबंधन साथियों के साथ क्या सलूक करती है.
चुनावी गठबंधन के अनुभव खट्टे लगने लगे
बड़ी चर्चा रही कि एक बार अमित शाह (Amit Shah) मातोश्री जाकर उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) से मिल लिये होते तो शिवसेना से गठबंधन नहीं टूटता. उद्धव ठाकरे मान जाते. किशोर तिवारी जैसे कुछ नेताओं ने मीडिया में इस तरह की बातें भी कही थी. मगर, ऐसा कुछ हुआ नहीं. अमित शाह ने महाराष्ट्र की डील देवेंद्र फडणवीस के हवाले कर दी थी. उद्धव ठाकरे को भी फोन देवेंद्र फडणवीस ही करते थे, भले वो नहीं उठाते रहे हों - और संघ प्रमुख मोहन भागवत को भी अपडेट देने वही गये.
नतीजा ये रहा कि महाराष्ट्र में शिवसेना से तो गठबंधन टूटा ही, झारखंड में भी सुदेश महतो की पार्टी AJSU से चुनावी रिश्ता खत्म हो चुका है और दोनों ही दलों ने एक दूसरे के खिलाफ उम्मीदवार उतार दिये हैं.
महाराष्ट्र में तो अब इतना कुछ हो चुका है कि बीजेपी नेतृत्व का इरादा अब चुनावी गठबंधन की जगह नतीजे आने के बाद सीधे सीधे सत्ता में भागीदारी को तरजीह देने वाली लग रही है.
आम चुनाव से पहले उद्धव ठाकरे ही कहा करते थे - 'अभी नहीं तो कब?' उद्धव ठाकरे ये बात, हालांकि, राम मंदिर निर्माण को लेकर कह रहे थे. राम मंदिर का रास्ता तो अदालत के फैसले से ही साफ हो गया, लगता है बीजेपी ने उद्धव ठाकरे के उसी सवाल को कामयाबी का नुस्खा बना लिया है.
कुछ सर्वे रिपोर्ट में तो पहले ही मौजूदा दौर को बीजेपी का गोल्डन पीरियड बताया जा चुका है - हालांकि, अमित शाह का आइडिया थोड़ा अलग है. अमित शाह के हिसाब से जब तक पंचायत से पार्लियामेंट तक बीजेपी का शासन नहीं होगा, वो स्वर्णिम काल नहीं मानते.अमित शाह बीजेपी का स्वर्णिम काल भले ही भविष्य में देखें लेकिन पार्टी को इस स्तर पर तो पहुंचा ही दिये हैं जब किसी भी फैसले को तौल कर देखें - अभी नहीं तो कब?
अब NDA में साथियों की मनमानी नहीं चलने वाली...
2014 में केंद्र में मोदी सरकार बनने और फिर तीन राज्यों में बीजेपी की सरकार बन जाने के बाद बीजेपी नेतृत्व संकेत देने लगा था कि वो गठबंधन की राजनीति के पक्ष में नहीं है. तभी दिल्ली और बिहार चुनाव में बीजेपी को बुरी शिकस्त मिली और उसने आइडिया होल्ड कर लिया. आगे बढ़ने पर बीजेपी ने यूपी में तो गठबंधन कायम रखा ही पंजाब विधानसभा में भी अकाली दल का साथ बनाये रखा.
ये महाराष्ट्र गठबंधन के टूट जाने का ही नतीजा रहा कि बीजेपी ने झारखंड चुनाव में पुराने साथी सुदेश महतो की एक न सुनी. सीटों पर टकराव हुआ तो बीजेपी टस से मस न हुई. 2014 में बीजेपी खुद 72 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और आजसू को 8 सीटें दी थी. सुदेश महतो इस बार सीटें तो ज्यादा मांग ही रहे थे, कुछ सीटें जिन पर बीजेपी अदला बदली चाहती थी उस पर भी राजी नहीं हुए. अब दोनों अलग अलग चुनाव लड़ रहे हैं.
NDA के साथी हद से आगे बढ़े तो गये
अभी तक शिवसेना ही ऐसी पार्टी रही जिसकी राजनीतिक विचारधारा बीजेपी के करीब रही. यही वजह रही कि संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भी देवेंद्र फडणवीस को जनादेश के खिलाफ न जाने की सलाह दी थी. बहरहाल अब तो वो कहानी भी खत्म हो चुकी है.
बीजेपी ने अब शिवसेना को भी वैसे ही छोड़ दिया है जैसे जम्मू-कश्मीर में साझा सरकार चलाने के बाद पीडीपी को छोड़ दिया था. पीडीपी के साथ बीजेपी का कोई चुनावी गठबंधन नहीं था. सीधे सत्ता में भागीदारी तय हुई और जब जरूरत खत्म हुई तो बीजेपी ने गठबंधन ही तोड़ लिया. पीडीपी से गठबंधन तोड़ने का कोई नुकसान नहीं बल्कि फायदा ही हुआ. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर से ही राष्ट्रवाद का एजेंडा पेश किया और आम चुनाव के बाद मोदी सरकार ने जबरदस्त वापसी की.
गठबंधन की राजनीति में बीजेपी के लिए महाराष्ट्र और झारखंड के बाद अगला पड़ाव बिहार है. महाराष्ट्र के राजनीतिक घटनाक्रम पर बिहार में भी NDA नेताओं की बयानबाजी शुरू हो गयी है. राम विलास पासवान ने ट्विटर पर लिखा है, 'सड़क पर वही जानवर मरता है जो निर्णय नहीं लेता है कि दाएं जाएं या बाएं जाएं?' सही बात है - अब हर कोई राजनीति का मौसम वैज्ञानिक तो हो नहीं सकता.
बिहार के डिप्टी सीएमसुशील कुमार मोदी ने नयी फडणवीस सरकार को बधाई देते हुए शरद पवार को नीतीश कुमार जैसा बताया है - और शिवसेना को अब RJD वाली कैटेगरी में डाल दिया है.
Congratulations @Dev_Fadnavis .Sharad Pawar like Nitish Kumar knew that BJP is more reliable then Congress.Shiv Sena was like RJD.Very difficult to work with party like SSor RJD full of lumpens.
— Sushil Kumar Modi (@SushilModi) November 23, 2019
एक ट्वीट बीजेपी नेता गिरिराज सिंह ने भी किया है जिसके आखिरी तीन शब्द हैं - 'देख तमाशा देख.' महाराष्ट्र के बहाने एक बार फिर लगता है गिरिराज सिंह ने नीतीश कुमार को ही टारगेट किया है. लहजा तो चेतावनी भरा ही लगता है.
नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू झारखंड विधानसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ चुनाव मैदान में है. होने को तो राम विलास पासवान की पार्टी LJP भी काफी सीटों पर चुनाव लड़ रही है. जाहिर है ये सब अमित शाह या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तो कतई पसंद नहीं आ रहा होगा.
अमित शाह ने तो नीतीश कुमार को बिहार एनडीए का नेता बताने के साथ ही गठबंधन के मायने भी समझा दिये थे - बिहार में बीजेपी नीतीश कुमार के नेतृत्व में वैसे ही चुनाव लड़ेगी जैसे पूरे देश में एनडीए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लड़ता है. अमित शाह के इस बयान के आगे पीछे बिहार बीजेपी के कुछ नेताओं ने नीतीश कुमार को भी बड़ा दिल दिखाने की अपेक्षा भरी सलाह दी थी. फिर भी नीतीश कुमार ने झारखंड में चुनाव लड़ने का फैसला नहीं बदला. दिल्ली चुनाव को लेकर भी नीतीश कुमार ने कुछ वैसा ही इरादा जताया है. जेडीयू ने तो MCD चुनाव में भी थोड़ा बहुत हाथ आजमाया ही था. झारखंड के बाद दिल्ली विधानसभा के चुनाव होने हैं और जेडीयू की ओर से कहा गया है कि पार्टी दिल्ली के मैदान में भी उतरेगी.
सुदेश महतो को उसके हाल पर छोड़ देने के बावजूद बीजेपी झारखंड चुनाव में नीतीश कुमार और पासवान की पार्टी के चुनाव लड़ने को लेकर पूरी तरह खामोश है. यहां तक कि बागी सरयू राय को जेडीयू के समर्थन देने पर भी बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने झारखंड दौरे में कुछ भी नहीं कहा. वैसे सरयू राय से दोस्ती के बावजूद नीतीश कुमार ने कहा है कि झारखंड में चुनाव प्रचार का उनका कोई इरादा नहीं है. क्या नीतीश कुमार सावधानी बरतने लगे हैं.
नीतीश कुमार एनडीए में बीजेपी से काफी बच-बचाकर चल रहे हैं, लेकिन चैलेंज करने का कोई मौका भी नहीं छोड़ रहे हैं. तीन तलाक और धारा 370 पर संसद में जेडीयू की भूमिका से इसे आसानी से समझा जा सकता है.
महाराष्ट्र में शिवसेना और बीजेपी के बीच जब टकराव होने लगा था तो जेडीयू नेता केसी त्यागी ने एनडीए में समन्वय समित बनाने की मांग की थी. पंजाब से भी अकाली दल के नेता भी ऐसी ही सलाह दे रहे थे - महाराष्ट्र के एक ही शॉट से अमित शाह ने सभी को सख्त मैसेज दे दिया है - आगे से किसी भी गठबंधन साथी ने सीटों के मामले में आंख दिखायी तो NDA से बाहर होगा.
आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू के साथ छोड़ देने के बाद, जगनमोहन रेड्डी को मोदी-शाह का साथ मिला है - संसद में शरद पवार और नवीन पटनायक की तारीफ के बाद महाराष्ट्र में समीकरण बदल ही चुके हैं. आगे के लिए संदेश यही है कि बाकी साथी खुद समझदार हैं.
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