मंदिर आंदोलन के बाद क्या 'लव जिहाद' बीजेपी का अगला एजेंडा है?
देश के बीजेपी शासित राज्यों में लव जिहाद (Love Jihad) पर कानून बनाने की जो होड़ मची है, उसकी आंच बिहार तक पहुंच चुकी है - नीतीश कुमार (Nitish Kumar) तो चुप हैं लेकिन जेडीयू ने बीजेपी (BJP) की इस मांग का विरोध किया है.
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लव जिहाद यूं तो योगी आदित्यनाथ का पुराना पसंदीदा शगल रहा है, लेकिन ताजातरीन तेजी मध्य प्रदेश सरकार की तरफ से देखी गयी है. योगी आदित्यनाथ यूपी का मुख्यमंत्री बनने से पहले लव जिहाद के खिलाफ लंबी मुहिम चला चुके हैं.
अब तो मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के साथ साथ हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक और गुजरात में भी लव जिहाद बिल के मसौदे तैयार किये जाने लगे हैं. दूसरी तरफ बिहार और राजस्थान से इसके विरोध में आवाजें उठने लगी हैं.
बीजेपी शासित राज्यों के अलावा उन राज्यों में भी ऐसे कानून बनाये जाने की मांग शुरू हो चुकी है, जहां सिर्फ बीजेपी नहीं बल्कि एनडीए की साझी सरकार है. हालांकि, अभी केंद्र सरकार की तरफ से लव जिहाद को लेकर कानून बनाने पर कोई बयान नहीं आया है.
केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भी ऐसी ही पहल की मांग कर चुके हैं, लेकिन उनकी पार्टी जेडीयू ने ऐतराज किया है. कांग्रेस शासित राज्य भी बीजेपी मुख्यमंत्रियों की इस पहल का विरोध कर रहे हैं.
बीजेपी का मंदिर आंदोलन पूर्णाहुति को ओर बढ़ रहा है, लेकिन हाल के चुनावों में उसका जिक्र बेअसर रहा है - लव जिहाद पर बीजेपी नेताओं के जोर देने की एक वजह ये भी समझ आ रही है और ऐसा लग रहा है जैसे ये बीजेपी के मंदिर मुद्दे की जगह लेने वाला है.
लव जिहाद के पहले टारगेट तो नीतीश कुमार ही हैं
देश के बीजेपी शासित राज्यों से शुरू हुई लव जिहाद पर कानून बनाने की मांग जोर तो पकड़ ही रही है - अब उसकी आंच बिहार तक पहुंच चुकी है. केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से अपील की है कि वो भी लव जिहाद को लेकर कानून बनायें. गिरिराज सिंह ने दावा किया है कि लव जिहाद देश भर के राज्यों में परेशानी की वजह बन गया है. लव जिहाद की समस्या को जड़ के खत्म करने पर जोर देते हुए गिरिराज सिंह ने कहा है कि बिहार में भी अगर ये कानून लाया जाये तो अच्छा रहेगा.
गिरिराज सिंह की नजर में लव जिहाद का मसला सामाजिक समरसता से जुड़ा है, न कि साप्रदायिकता को बढ़ावा देने से इसका कोई लेना देना है. बीजेपी नेता की सलाह है कि नीतीश सरकार को लव जिहाद के साथ साथ जनसंख्या नियंत्रण का असली मकसद समझने की जरूरत है.
लव जिहाद पर गिरिराज सिंह के कानून बनाने की डिमांड पर बिहार सरकार में बीजेपी की साझीदार जेडीयू ने बड़ी ही विनम्रता के साथ रिएक्ट किया है और कहा है कि हमारा सद्भाव में विश्वास है. नीतीश कुमार के बारे में जेडीयू प्रवक्त संजय सिंह का कहना है कि उनके नेता सभी धर्मों और जातियों को साथ लेकर चलने वाले व्यक्ति हैं. साथ ही, ये भी साफ कर दिया है कि समाज को तोड़ने वाला कोई भी प्रस्ताव आएगा तो उसे स्वीकार नहीं किया जाएगा. अपनी तरफ से संजय सिंह ने गिरिराज सिंह को आगाह करने की भी कोशिश की है कि नीतीश कुमार ने कभी भी दबाव की राजनीति नहीं की है.
जेडीयू जो भी कहे या समझे लेकिन मेवालाल चौधरी का नीतीश कैबिनेट से इस्तीफा ही नहीं, बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे की शराबबंदी की समीक्षा की मांग भी तो ऐसी ही मुहिम का हिस्सा है.
लव जिहाद बन रहा नीतीश कुमार की नयी मुसीबत
बिहार चुनाव प्रचार के आखिरी दौर में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और नीतीश कुमार में जबरदस्त टकराव देखने को मिला था. धारा 370 और सीएए के मुद्दे पर बीजेपी का सपोर्ट कर चुके नीतीश कुमार ने योगी आदित्यनाथ के बयान पर कड़ा ऐतराज जताया था. योगी आदित्यनाथ का कहना रहा कि वो सभी घुसपैठियों को खदेड़ कर ही दम लेंगे. जाहिर है योगी आदित्यनाथ के निशाने पर नीतीश कुमार का मुस्लिम वोट बैंक था और जेडीयू नेता को भी ये बात तत्काल समझ में आ चुकी थी, लिहाजा प्रतिक्रिया देने में भी देर नहीं की. नीतीश कुमार ने भी अगली ही रैली में बोल दिया कि किसी की मजाल नहीं कि किसी को देश से बाहर कर सके.
जिस तरीके से नीतीश कुमार ने योगी आदित्यनाथ की बात का विरोध किया था, करीब करीब वैसे ही जेडीयू प्रवक्ता ने गिरिराज सिंह की मांग पर विरोध जता दिया है, इतने भर से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को निजात नहीं मिलने वाली है. बीजेपी ने जेडीयू के मुकाबले ज्यादा सीटें जीतकर नीतीश कुमार पर लगातार दबाव बना रखा है - और लव जिहाद जैसे मुद्दे तो नीतीश कुमार के आगे आने वाली मुसीबतों का नमूना भर है.
बिहार चुनाव से पहले भी और नतीजे आने के बाद भी बीजेपी नेताओं की तरफ से नीतीश कुमार को सलाहियत दी जाने लगी थी कि वो बीजेपी के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी खाली कर दें - और इसी कारण चुनाव के पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सार्वजनिक तौर पर बोलना पड़ा कि नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने के वादे से बीजेपी कभी पीछे हटने वाली नहीं है.
मान लेते हैं कि मोदी और शाह के बयान के बाद पहले तो गिरिराज सिंह या बिहार बीजेपी के दूसरे नेता चुप हो गये थे, लेकिन लव जिहाद जैसे मसले पर वो संयम बरत पाएंगे - ऐसा तो नहीं लगता.
सवाल ये भी है कि जब लव जिहाद को लेकर बीजेपी पूरे देश में मुहिम शुरू करने वाली हो तो नीतीश कुमार को टारगेट करने से मोदी-शाह भी बिहार के बीजेपी नेताओं को शायद ही रोक पायें. नीतीश कुमार को अब बीजेपी के ऐसे हमले के खिलाफ कोई रक्षा कवच खोजना होगा.
लव जिहाद क्या मंदिर आंदोलन जितना कारगर होगा?
लव जिहाद का मुद्दा हरियाणा के निकिता तोमर मर्डर केस के बाद से काफी जोर पकड़ा है - और उसके बाद ही राज्य के गृह मंत्री अनिल विज ने कहा था कि सरकार लव जिहाद को लेकर कानून बनाने पर विचार कर रही है
हरियाणा में लव जेहाद के खिलाफ कानून बनाने पर विचार किया जा रहा है ।
— ANIL VIJ MINISTER HARYANA (@anilvijminister) November 1, 2020
विश्व हिंदू परिषद ने तो केंद्र सरकार से ही लव जिहाद के खिलाफ ठोस कानून बनाने की मांग की है. VHP के संयुक्त महामंत्री सुरेंद्र जैन का कहना रहा कि निकिता तोमर हत्याकांड और मेवात में धर्मांतरण सहित कई मामले सामने आये हैं जिससे देश भर में लोग गुस्से में हैं. सुरेंद्र जैन का कहना है कि राज्य सरकारों को चाहिये कि केंद्र सरकार के कानून का इंतजार किये बगैर वे अपनी तरफ से इस मामले में पहल करें.
ध्यान रहे अयोध्या में मंदिर निर्माण का मुद्दा भी विश्व हिंदू परिषद की ही पहल थी, जिसे बाद में बीजेपी ने अपनाते हुए उस पर सियासत का कवर चढ़ा दिया था. आम चुनाव से पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत की मंदिर को लेकर कानून बनाने की मांग के बाद वीएचपी और बीजेपी नेताओं ने आवाज तेज कर दी थी, लेकिन लोक सभा चुनाव के ऐन पहले मंदिर मुद्दा होल्ड करने का फैसला हुआ. तब तक देश में ऐसा माहौल बन चुका था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सत्ता में वापसी के लिए मंदिर मुद्दे के इस्तेमाल की जरूरत नहीं बची थी. चुनाव नतीजो ने भी साबित कर दिया कि ये फैसला बिलकुल सही था.
आम चुनाव के बाद बीजेपी ने हरियाणा और महाराष्ट्र चुनाव धारा 370 और सीएए के नाम पर निकाल दिये थे. अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला जब आया उस वक्त झारखंड में चुनाव होने वाले थे. बीजेपी नेता अमित शाह ने झारखंड चुनाव में जोर शोर से राम मंदिर निर्माण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का क्रेडिट लेने की कोशिश की, लेकिन लोगों ने जरा भी ध्यान नहीं दिया और रघुबर दास सरकार को बेदखल कर हेमंत सोरेन को गठबंधन सरकार सौंप दी.
झारखंड के बाद दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी की तरफ से राम मंदिर निर्माण को भुनाने की कोशिश की गयी, लेकिन हाल वही ढाक के तीन पात ही रहा. अब जाकर संघ और बीजेपी को लगने लगा है कि मंदिर मुद्दे में कोई दम नहीं बचा है और आगे के चुनाव जीतने के लिए किसी कारगर मुद्दे की तलाश करनी होगी.
राम मंदिर की तरह ही लव जिहाद पर कानून बनाने की पहल भी विश्व हिंदू परिषद ही कर रहा है, हालांकि, आरएसएस की तरफ से अभी तक इस मसले पर कोई राय सुनने को नहीं मिली है. हां, बीजेपी शासित राज्य सरकारें एक्टिव जरूर नजर आ रही हैं.
लव जिहाद को लेकर सबसे पहले मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्र आगे आये. नरोत्तम मिश्र ने ऐलान किया है कि जल्द ही ऐसा एक कानून विधानसभा में पेश किया जाएगा. साथ ही, ये भी बताया है कि ये गैर जमानती अपराध होगा और दोषी पाये जाने पर पांच साल तक की सजा का प्रावधान होगा.
उत्तर प्रदेश में भी गृह विभाग ने मसौदा तैयार कर विधायी समिति को भेज दिया है और जल्द ही इसे कैबिनेट की बैठक में लाये जाने की संभावना जतायी गयी है. ध्यान देने वाली बात ये है कि यूपी में इसे धर्मांतरण निरोधक बिल कहा जा रहा है और कहीं भी लव जिहाद शब्द का जिक्र नहीं किया गया है, ऐसा बताया जा रहा है. कहा ये भी जा रहा है कि सजा का प्रावधान 5 से 10 साल तक की सजा का प्रावधान हो सकता है.
बिहार के बाद बीजेपी पश्चिम बंगाल चुनाव की तैयारी में जुटी है - और केरल के भी लेफ्ट शासन पर उसकी नजर लगी हुई है. वैसे भी राम मंदिर का मुद्दा पीछे छूट जाने और बेअसर होने के बाद बीजेपी को ऐसे ही किसी असरदार एजेंडे की जरूरत तो है ही. एक ऐसा एजेंडा जो बीजेपी के वोट बैंक को भावनात्मक तौर पर एकजुट रख सके.
लव जिहाद के मामले में बीजेपी सरकार के पांच साल के प्रावधान को लेकर सोशल मीडिया पर लोगों को मजाक उड़ाते देखा गया - लव जिहाद का शिकार होने वाली लड़की को जिन्दगी भर की सजा मिल रही है और उसके अपराधी को पांच साल में ही जेल से छोड़ दिया जाएगा?
लव जिहाद अगर वास्तव में आपराधिक प्रवृत्ति बन रही है तो निश्चित तौर पर महिलाओं के खिलाफ अपराधों के हिसाब से ही सजा का प्रावधान होना चाहिये. हां, अगर ये सिर्फ एक राजनीतिक एजेंडा है और इसके जरिये किसी को चुनावी राजनीति में सफल होने की कोशिश है तो बात अलग है.
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