क्या एक मुसलमान का भाजपा को पसंद करना गुनाह-ए-अजीम है?
बीजेपी की जीत पर लड्डू बांटने की वजह से बाबर अली को मार दिया गया है. बाबर की मौत के बाद जो राजनीति चल रही है वो अपनी जगह है. लेकिन आज सिर्फ इस्लाम और इस्लामी नजरिये से होगी. ध्यान रहे समाजवादी पार्टी के सांसद बर्क ने बाबर को ही गलत ठहराया साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि बाबर ने लड्डू बांटकर गलती की.
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क्या एक मुसलमान का भाजपा को पसंद करना गुनाह-ए-अजीम है?
अगर कोई मुसलमान भाजपा के लिए सॉफ्ट कार्नर रख रहा है तो शेष मुसलमानों द्वारा उसे सजा दी जानी चाहिए?
क्या सत्ता में आई भाजपा को देखकर खुश होने वाले मुसलमान से बचाव का एकमात्र तरीका उसका क़त्ल है?
क्या खुदा अपने अनुनायियों को भाजपा के समर्थकों, वोटरों, को पार्टी की जीत पर जश्न मनाने के लिए सजा ए मौत का हुक्म देता है?
...सवाल विचलित कर सकते हैं लेकिन इनका उठना तब लाजमी हो जाता है जब हम उस व्यक्ति की बातों को सुनें जिसने अल्लाह को हाज़िर नज़ीर मान कर सविधान की शपथ ली थी और कहा था कि वो रंग, जाति, मज़हब से इतर सबको एक नजर से देखेगा. हमारा इशारा संभल से सपा सांसद शफीकुर्रहमान बर्क की तरफ है जो बाबर अली की मौत के मद्देनजर ऐसा बहुत कुछ बोल गए हैं जिसके बाद न तो उन्हें इंसान कहा जाएगा और न ही मुसलमान.
भाजपा समर्थक बाबर अली की मौत पर सबसे घटिया बात सपा सांसद शफीकुर्रहमान बर्क ने की है
बीजेपी की जीत पर लड्डू बांटने की वजह से मौत के घाट उतार दिए गए मुस्लिम युवक बाबर अली को लेकर जो राजनीति चल रही है वो अपनी जगह है. लेकिन आज सिर्फ इस्लाम और इस्लामी नजरिये से होगी. ध्यान रहे समाजवादी पार्टी के सांसद बर्क ने बाबर को ही गलत ठहराया साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि बाबर ने लड्डू बांटकर गलती की.
इस ओछेपन के बाद बड़ा सवाल यही है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि बर्क़ या उनके जैसे लोग इस मुगालते में हैं कि वो मुस्लिम समुदाय के रहनुमा हैं?
बर्क जवाब दें कि क्या विपरीत विचारधारा का ये मतलब हो गया है कि कोई आपको न समझ आए तो छूटते ही उसकी हत्या कर दी जाए या हत्या का समर्थन कर दिया जाए? बर्क क्योंकि अपने को मुसलमान कहते हैं तो क्या यही है इस्लाम की शिक्षा? क्या यही सन्देश पैग़म्बर मुहम्मद ने अपनी उम्मत को दिया था.
पूर्व में चाहे वंदे मातरम का विरोध रहा ही या फिर तालिबान का समर्थन और महिलाओं पर दिया गया बयान वो सब बर्क़ के नैरेटिव का हिस्सा थे. यूं भी राजनीति के लिए नैरेटिव जरूरी हैं इसलिए उन बातों पर चर्चा फिर कभी लेकिन आज बात एक ज़िन्दगी की है. एक जान की है. एक मौत पर जैसा रवैया बर्क का है वो मुसलमान और इंसान दोनों कहलाने लायक नहीं हैं.
बाबर की मौत विपरीत विचारधारा के चलते हुई है. बाबर इसलिए मारा गया क्योंकि उसने एक मुस्लिम होने के बावजूद न केवल भारतीय जनता पार्टी, योगी आदित्यनाथ और उनके गुड़ गवर्नेंस का समर्थन किया बल्कि उसकी जीत पर जश्न मनाया. वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में जैसा माहौल तैयार हुआ है और बर्क जैसे चंद मौका परस्तों द्वारा आम मुसलमानों के लिए जैसा माहौल तैयार किया गया है, उन्हें रहनुमाओं द्वारा ये हिसयत दी गयी है कि क्योंकि भाजपा उनकी दुश्मन है इसलिए उन्हें भाजपा और उसकी नीतियों से दूर रहना है.
बाबर ने इन बातों को नहीं माना और बगावत की. नतीजा जो निकला वो हमारे सामने हैं आज बाबर हमारे बीच नहीं है लेकिन हमारे बीच बर्क जैसे लोग हैं जो एक चुने हुए प्रतिनिधि होने से पहले मुसलमान हैं और जिनका मुसलमानों को साफ़ सन्देश है कि उन्हें भाजपा और उसके सिद्धांतों से दूर रहना है.
बात बहुत सीधी और साफ़ है. विचारधारा के नाम पर क़त्ल सिर्फ बाबर का नहीं हुआ है. वो भरोसा भी मरा है जो उस मुसलमान में बरक़रार था जो अपनी कौम को किनारे रखकर दूसरी लीग पर चल रहा है.
बहरहाल, बाबर अली की मौत का जैसा मामला है ये कहना गलत नहीं है कि इस्लाम उस वक़्त शमसार हुआ, जब एक मुसलमान के सतह अन्य मुसलमानों ने पशुता की और उससे भी ज्यादा शमर्सार तब हुआ जब उसने समाजवादी पार्टी के एक नेता को एक निर्मम मौत पर मुंह खोलते देखा.
उपरोक्त पंक्तियों में जिक्र भारतीय जनता पार्टी को पसंद करने वाले बाबर का हुआ है. बाबर की बेरहम हत्या का हुआ, मुसलमानों का हुआ है और साथ ही मौत और हत्यारों का समर्थन करने वाले समाजवादी पार्टी के सांसद शफीकुर्रहमान बर्क का हुआ है तो हम उस किस्से के साथ अपनी बातों को विराम देंगे जिसे अगर बर्क के साथ साथ भाजपा को नापसंद करने वाले मुसलमान समझ लें तो स्थिति ही बदल जाए.
किस्से के अनुसार, 'पैगंबर मुहम्मद जब भी नमाज के लिए मस्जिद जाते तो उन्हें रोज ही एक बूढ़ी औरत के घर के सामने से निकलना पड़ता था. वह बूढ़ी औरत बड़ी ही अजीब थी. वह अशिष्ट, कर्कश और क्रोधी स्वभाव की थी. जब भी मुहम्मद साहब उधर से निकलते, वह उन पर कूड़ा-करकट फेंक दिया करती थी. मुहम्मद साहब बगैर कुछ कहे अपने कपड़ों से कूड़ा झाड़कर आगे बढ़ जाते. रोज की तरह जब वो एक दिन उधर से गुजरे तो उन पर कूड़ा आकर नहीं गिरा. उन्हें कुछ हैरानी हुई पर वो आगे बढ़ गए.
अगले दिन फिर ऐसा ही हुआ तो मुहम्मद साहब से रहा नहीं गया. उन्होंने दरवाजे पर दस्तक दी. बूढ़ी औरत ने दरवाजा खोला. दो ही दिन में बीमारी के कारण वह बहुत कमजोर हो गई थी. मुहम्मद साहब उसकी बीमारी की बात सुनकर हकीम को बुलाकर लाए और उसकी दवा का इंतजाम किया. उनकी सेवा और देखभाल से बूढी औरत जल्द ही स्वस्थ हो गई.
जब वह अपने बिस्तर पर उठ बैठने लगी तो एक दिन मुहम्मद साहब ने कहा- अपनी दवाएं लेती रहना और मेरी जरूरत हो तो मुझे बुला लेना. बूढ़ी औरत रोने लगी. मुहम्मद साहब ने उससे रोने का कारण पूछा तो वह बोली, मेरे दुर्रव्यवहार के लिए मुझे माफ कर दोगे?
बुढ़िया के सवाल पर पैग़म्बर मुहम्मद हंसने लगे और उन्होंने बुढ़िया से कहा कि जो हुआ उसे भूल जाओ और अपनी तबीयत पर ध्यान दो. बाद में बूढ़ी औरत ठीक हुई और उसने न केवल पैग़बर मुहम्मद को धन्यवाद कहा बल्कि वो उनकी फॉलोवर बन गयी.
एक तरफ ये कहानी और पैगंबर मुहम्मद का चरित्र है दूसरी तरफ आज के मुसलमान और बर्क जैसे लोग जिनकी नजर में बाबर अली जैसे वो लोग क़त्ल के काबिल हैं जिनकी विचारधारा या ये कहें कि सोचने का नजरिया अलग है, जो भाजपा को पसंद करते हैं.
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