MCD के बहाने AAP को दिल्ली से दूर करने में जुट गयी है BJP
नगर निगमों का एकीकरण (MCD Unification Bill) भी अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) को दिल्ली में घेरने के लिए बीजेपी (BJP) के पास उप राज्यपाल जैसा ही नकेल है जिसे कसने के पूरे इंतजाम किये जा चुके हैं - आप की राजनीति टिकाऊ भी है या नहीं एमसीडी के चुनाव तस्वीर साफ कर देंगे.
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दुश्मन के सफाये के लिए सबसे कारगर उसकी जड़ पर हमला होता है. बीजेपी (BJP) को मालूम है कि अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में गहराई तक जड़ें जमा ली है, लिहाजा एक जोरदार वार तो दिल्ली में ही ठीक रहेगा. दिल्ली के तीनों नगर निगमों को एक करने वाले विधेयक (MCD Unification Bill) को मोदी कैबिनेट की मंजूरी का मकसद भी यही है.
एमसीडी को एक करने का पहला मकसद तो आम आदमी पार्टी की जड़ पर हमला कर खत्म करने की कोशिश ही है, लेकिन उसकी आड़ में संगठन को मजबूत करने की कवायद भी है. 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनावों के बाद संघ के मुखपत्र में दिल्ली में स्थानीय नेतृत्व खड़ा करने की तैयारी पर जोर दिया गया था - लेकिन बीजेपी हरकत में तब आई है जब आप ने पंजाब में भी करीब करीब दिल्ली जैसा प्रदर्शन दोहरा दिया है.
कैबिनेट के बाद विधेयक को संसद से भी मंजूरी मिल जाती है तो दिल्ली में दस साल पुराने नगर निगम वाली स्थिति बहाल हो जाएगी. तब तक दिल्ली में एक MCD के चलते एक ही मेयर भी हुआ करता था. बंटवारे के बाद भी वार्डों की संख्या तो 272 ही रही, लेकिन आगे क्या प्लान है ये अभी देखना होगा. मतलब, नये सिरे से पुरानी यथास्थिति बरकरार रखी जाती है या परिसीमन के जरिये वार्डों की संख्या कम या ज्यादा करने की भी तैयारी है.
पंजाब चुनाव के नतीजे आने के बाद, अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) का मोदी सरकार पर पहला हमला एमसीडी के चुनाव टाले जाने को लेकर ही रहा. नगर निगमों के मौजूदा कार्यकाल को देखते हुए, एमसीडी के चुनाव 18 मई से पहले कराया जाना जरूरी है, हालांकि, चुनावों को ज्यादा से ज्यादा 6 महीने तक टाला भी जा सकता है. अरविंद केजरीवाल और उनके साथियों को यही बात खटक रही है. आम आदमी पार्टी की तरह से, निजी सर्वे के आधार पर, ढाई सौ से ज्यादा सीटें जीत लेने के दावे भी किये जा रहे हैं.
अरविंद केजरीवाल के बीजेपी पर हमले को काउंटर करने के लिए केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को आगे किया गया था. स्मृति ईरानी का आरोप है कि केजरीवाल सरकार ने नगर निगम का 13 हजार करोड़ रुपये का फंड रोक कर रखा है - बीजेपी के खिलाफ तो 2017 में ही सत्ता विरोधी लहर महसूस की जा रही थी, लेकिन तब केजरीवाल मौके का फायदा नहीं उठा सके और बीजेपी बाजी मार ले गयी - लेकिन पंजाब के प्रदर्शन के बाद केजरीवाल से बीजेपी को खतरा महसूस होने लगा है और यही वजह है कि नेतृत्व पहले से ही सतर्क हो गया है.
आप का विस्तार डराने वाला तो है ही!
जय श्रीराम तो अरविंद केजरीवाल पहले से ही बोल रहे थे, ये अलग बात है कि यूपी में अयोध्या यात्रा के बावजूद कोई फायदा नहीं उठा सके - और पंजाब में ऐसी कोई जरूरत भी नहीं थी. दिल्ली की तरह पंजाब में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के आतंकवाद के नाम पर केजरीवाल को कठघरे में खड़ा की कोशिश नाकाम रही - और भगत सिंह के नाम पर केजरीवाल न सिर्फ खुद को बचा लिये बल्कि, आगे की लड़ाइयों के लिए राजनीतिक हथियार बना लिया है.
बीजेपी ने अरविंद केजरीवाल को दिल्ली में घेरने का पूरा बंदोबस्त कर लिया है
भगवंत मान तो अपने दफ्तर में भगत सिंह की तस्वीर लगा ही रहे हैं, अरविंद केजरीवाल दिल्ली में सैनिक स्कूल खोलने जा रहे हैं और नाम भी बता रखा है - शहीद भगत सिंह स्कूल. स्कूल में फौज में भर्ती होने की ट्रेनिंग भी दी जाएगी.
दिल्ली के स्कूलों में देशभक्ति के पाठ्यक्रम के बाद भगत सिंह के नाम पर सैनिक स्कूल का प्लान बता रहा है कि ये सीधे सीधे बीजेपी के राष्ट्रवाद के एजेंडे पर हमला है. जय श्रीराम के नारे के साथ भगत सिंह के नाम पर केजरीवाल के राष्ट्रवाद की राजनीतिक राह अख्तियार करने का इरादा बता रहा है कि कैसे आम आदमी पार्टी पंजाब से आगे विस्तार के रास्ते निकल पड़ी है.
आप की जड़ें तो दिल्ली में ही हैं: अरविंद केजरीवाल के राजनीति में आने के बाद से आम आदमी पार्टी दो लोक सभा और दिल्ली में तीन विधानसभा चुनाव लड़ चुकी है. लोक सभा में तो केजरीवाल के उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो जाती है, लेकिन विधानसभा चुनाव में पहली बार 2013 को छोड़ दें तो 2015 में 70 में से 67 सीटें और फिर 2020 में 62 सीटें जीत लेने के बाद दिल्ली में आप का होव्वा तो है ही.
और पंजाब में भी मामला तकरीबन ऐसा ही देखने को मिला है - 117 में से 92 सीटों पर आम आदमी पार्टी का कब्जा राजनीतिक विरोधियों के होश उड़ाने वाला तो है ही. दिल्ली और पंजाब जैसा ही प्रदर्शन आगे होना बीजेपी के लिए विपक्षी राजनीति के हिसाब से सबसे खतरनाक है. ऐसे में बीजेपी के लिए सबसे सही कदम यही होगा कि वो आम आदमी पार्टी को दिल्ली में ही ठिकाने लगाने के इंतजाम शुरू करे. एमसीडी के जरिये ये काम काफी आसान हो सकता है और बीजेपी वही कर भी रही है.
केजरीवाल को घर में घेरने की तैयारी है
केंद्र में मोदी सरकार होने की वजह से अरविंद केजरीवाल को पंजाब में भी घेरना बीजेपी के लिए कोई बहुत मुश्किल काम नहीं है. भगवंत मान सरकार के साथ भी केंद्र की मोदी सरकार और बीजेपी नेतृत्व बिलकुल वैसे ही पेश आ सकते हैं जैसे पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस के साथ. मुमकिन है जल्द ही पंजाब में भी जगदीप धनखड़ जैसे ही किसी धाकड़ नेता को राज्यपाल बना कर भेज दिया जाये!
1. जिस तरह से आम आदमी पार्टी नेता सोमनाथ भारती ने आपके विस्तार की तरफ इशारा किया है, मान कर चलना चाहिये की दिल्ली और पंजाब के बाद अरविंद केजरीवाल के मन में हरियाणा को लेकर भी कोई न कोई प्लान चल ही रहा होगा. दिल्ली को अगर केजरीवाल ने अब तक कर्मभूमि बना रखा है, हरियाणा तो जन्मभूमि है ही.
सोमनाथ भारती के मुताबिक, गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनावों के साथ साथ आम आदमी पार्टी कर्नाटक और तेलंगाना तक अपनी जड़ें जमाने की कोशिश में जुटी हुई है. कर्नाटक में बीजेपी को छकाने की केजरीवाल की कोशिश तो होगी ही, राजस्थान में भी कांग्रेस की जगह हथियाने का पूरा मौका नजर आ रहा होगा. राजस्थान में बीजेपी अपनी ही मजबूत नेता वसुंधरा राजे से पहले से ही परेशान है, जाहिर है केजरीवाल अलग से मुसीबतें ही खड़ा करेंगे.
2. एमसीडी पर कब्जा बरकरार रखने के साथ ही, बीजेपी को दिल्ली में अपना संगठन भी मजबूत करना है. आपको ध्यान होगा दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद संघ के अंग्रेजी मुखपत्र ऑर्गनाइजर में दिल्ली बीजेपी को नसीहतें भी दी गयी थीं - चुनाव जीतने के लिए मोदी-शाह के भरोसे बैठे रहना ठीक नहीं है. सलाह दी गयी थी कि बीजेपी दिल्ली में नये नेतृत्व खड़ा करे. मदनलाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा, विजय कुमार मल्होत्रा का जमाना चला गया और विजय गोयल को किनारे कर दिया गया. पूर्वांचल के लोगों को अपनी तरफ खींचने के लिए बीजेपी ने भोजपुरी गायक और एक्टर मनोज तिवारी को खड़ा करने की कोशिश की थी, लेकिन चुनावों के बीच ही प्रवेश वर्मा के प्रति अमित शाह का मोह जाग उठा और सब चौपट हो गया.
बीजेपी के अंदर महसूस किया जाने लगा है कि नगर निगमों के बंटवारे की वजह से बीजेपी के कार्यकर्ता अलग अलग दायरे में सिमट कर रह गये हैं. दिल्ली में बीजेपी के तीन तीन मेयर होने के बावजूद अगर विधानसभा चुनाव में बार बार नाकामी मिले तो, माना यही जाएगा कि स्थानीय नेतृत्व खड़ा करने का ये तरीका किसी काम का नहीं है. हो सकता है बीजेपी नेतृत्व को लगने लगा हो कि प्रस्तावित स्थिति के अमल में आ जाने के बाद तीन तीन की जगह दिल्ली में एक मेयर होगा - और तब केजरीवाल को मजबूती के साथ घेरना बीजेपी के लिए अभी के मुकाबले ज्यादा आसान होगा.
3. एमसीडी चुनाव बीजेपी के लिए आम आदमी पार्टी के संगठन में तोड़ फोड़ के लिए भी बेहतरीन अवसर साबित हो सकता है. 2020 से पहले हुए उपचुनावों में बीजेपी ऐसा कर भी चुकी है. कामयाबी तो बीजेपी को ऐसा करके पश्चिम बंगाल में भी नहीं मिली, फिर दिल्ली में भी प्रयास ही किये जा सकते हैं, उम्मीद तो नहीं.
ये तो डबल अटैक की तैयारी लगती है
पिछले एमसीडी चुनाव में भी अरविंद केजरीवाल ने कोई कम कोशिश नहीं की थी. जिस तरह से बीजेपी को वोट देने पर नतीजे भुगतने के लिए दिल्लीवालों को केजरीवाल कोस रहे थे, लोगों को पसंद तो नहीं ही आया. फिर भी केजरीवाल ने एमसीडी में आम आदमी पार्टी की एंट्री तो करा ही दी, जीत नहीं पाये क्योंकि कोई भी तिकड़म चल नहीं सका.
अरविंद केजरीवाल बीजेपी सरकार के एमसीडी एक्शन प्लान को देख कर काफी आक्रामक हो गये हैं. केजरीवाल का कहना है कि एक छोटे से चुनाव के लिए बीजेपी की सरकार देश की व्यवस्था के साथ खिलवाड़ कर रही है और ये बिलकुल भी मंजूर नहीं है.
बीजेपी के सबसे बड़ी पार्टी होने के दावे का हवाला देकर केजरीवाल कह रहे हैं कि वे दिल्ली की एक छोटी सी पार्टी से घबरा गये हैं. कहते हैं, 'एक छोटे से चुनाव से घबरा गये... क्या हिम्मत है यार तुम्हारे अंदर... लानत है! मैं चैलेंज करता हूं बीजेपी को हिम्मत है तो एमसीडी के चुनाव समय पर कराकर दिखा दो - जीतकर दिखा दो, हम राजनीति छोड़ देंगे.'
दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के साथ ही अरविंद केजरीवाल केंद्र सरकार पर हमले शुरू कर दिये थे, लेकिन पहली बार 49 दिन में लोकपाल के नाम पर भाग खड़े हुए. जब दूसरी बार मुख्यमंत्री बने तब तक केंद्र में सत्ता परिवर्तन हो चुका था. अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के एलजी यानी उपराज्यपाल के बहाने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को टारगेट करना शुरू कर दिया. जगह जगह पोस्टर और बैनर लगा दिये - वो परेशान करते रहे, हम काम करते रहे. लेकिन कोविड 19 के संकट काल में सारी हेकड़ी निकल गयी और वही केजरीवाल ऐसी बातें करने लगे कि लगा जैसे वो अमित शाह को ही गुरु मानने लगे हों. मोहल्ला क्लिनिक को तो कोरोना वायरस ने पहले ही शिकार बना लिया था.
बीते दिल्ली चुनाव के दौरान ही केजरीवाल के तेवर नरम पड़ गये थे, लेकिन पंजाब के बाद वो फिर से पहले की ही तरह उछलने लगे हैं. केजरीवाल के सहयोगी मनीष सिसोदिया तो बीजेपी को भी कांग्रेस जैसा बताने लगे हैं. स्मृति ईरानी के बयान के जवाब में मनीष सिसोदिया ने जो कुछ कहा उसका मतलब भी वही था.
फर्ज कीजिये, एमसीडी में घुसपैठ के बाद अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी अगर तीन में से एक भी नगर निगम जीत जाती तो क्या होता?
साफ है दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की ताकत में और इजाफा होता और ये बीजेपी के लिए दिल्ली की सत्ता में वापसी में नये सिरे से मुश्किलें खड़ी कर देता. एमसीडी का विलय करके भी बीजेपी जुआ ही खेल रही है, लेकिन वो मैदान में उतर कर खुला चैलेंज स्वीकार करने जैसा है.
चुनाव का एक नतीजा ये भी हो सकता है कि आम आदमी पार्टी ही जीत जाये, लेकिन बीजेपी नेतृत्व केंद्र की सत्ता पर काबिज होने के साथ साथ हर खेल में माहिर हो चुका है और उसका पूरा फायदा उठा लेता है - पंजाब चुनाव से पहले आये चंडीगढ़ नगर निगम के नतीजे मिसाल हैं.
आम आदमी पार्टी ने चंडीगढ़ नगर निगम में जीत का जी भर जश्न मनाया, लेकिन मेयर तो बीजेपी ने ही बनाया. एमसीडी में भी ऐसा होने की प्रबल संभावना है. बीजेपी नेतृत्व ने यही सब सोच कर एमसीडी का एक्शन प्लान तैयार कर रखा है.
नयी व्यवस्था में निश्चित तौर पर अरविंद केजरीवाल के पास भी एमसीडी पर चुनाव जीत कर काबिज होने का पूरा मौका है. हो सकता है केजरीवाल की पार्टी के इतने पार्षद जीत जायें जिससे वो एक नगर निगम में मेयर बना सकती थी, लेकिन तीनों निगमों के विलय के बाद तो ये संभव भी नहीं है - AAP अगर पूरा जीत ले तब तो बात और होगी, लेकिन जीत से चूक की स्थिति में तो बीजेपी अपने असली मकसद में कामयाब होगी ही.
केजरीवाल सरकार के अदालत के दरवाजे लगातार खटखटाने के बावजूद मोदी सरकार ने ऐसे इंतजाम तो कर ही दिये कि दिल्ली का बॉस लेफ्टिनेंट जनरल ही होगा - और अब तो बीजेपी एलजी के साथ साथ पूरी दिल्ली के मेयर के जरिये भी केजरीवाल को घेरने का जाल बिछा चुकी है.
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