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Updated: 20 जून, 2018 02:58 PM
धीरेंद्र राय
धीरेंद्र राय
  @dhirendra.rai01
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कश्‍मीर में भाजपा-पीडीपी गठबंधन टूट गया है. भाजपा ने जम्‍मू-कश्‍मीर सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया है. इसके साथ ही भारतीय राजनीति के दो ध्रुव अपनी-अपनी जगह पहुंच गए हैं. इस घटनाक्रम से हैरानी इसलिए हो रही है, क्‍योंकि हाल ही में बीजेपी ने रमजान को लेकर अप्रत्‍याशित रूप से आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन रोक देने का एलान किया था. जिसे बीजेपी के बेहद लचीले और नरम रवैये के रूप में देखा जा रहा था.

2014 के जम्‍मू-कश्‍मीर विधानसभा चुनाव में जिस तरह का जनमत पार्टियों को हासिल हुआ था, उसने पीडीपी और बीजेपी के सामने अजीब स्थिति ला दी थी. एक तरफ कश्‍मीर की वो पार्टी थी, जो अलगाववादियों की हिमायत करती नजर आती थी. तो दूसरी ओर बीजेपी थी, जिसका अलगाववाद को लेकर सख्‍त विरोधी रुख था. लेकिन 89 सीटों वाली विधानसभा में 28 सीटें जीतकर पहुंची पीडीपी और 25 सीटों वाली बीजेपी ही सरकार बना सकते थे. ऐसे में कश्‍मीर में वो सियासी गठबंधन हुआ, जो किसी ने नहीं सोचा था.

bjp pdp, kashmirभाजपा ने जम्‍मू-कश्‍मीर सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया है

2014 के आमचुनाव में मोदी ने प्रचार करते हुए कश्‍मीर के अलगाववादियों और पाकिस्‍तान को मुंहतोड़ जवाब देने के जो वादे किए थे, कश्‍मीर में सरकार बनाते ही वे अजीब से ठंडे बस्‍ते में डाले गए. कश्‍मीर में 'ऑपरेशन ऑलआउट' और सीमा पार सर्जिकल स्‍ट्राइक ने बीजेपी और मोदी को थोड़ी राहत दी, लेकिन 2019 चुनाव के नजदीक आने पर सिर्फ इतना काफी नहीं रहा. लिहाजा बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्‍व कश्‍मीर के सियासी निकाह को लेकर नतीजे पर पहुंच गया. तीन तलाक को लेकर पार्टी का जो भी रुख हो, लेकिन कश्‍मीर की सरकार को लेकर राम माधव ने एक ही सांस में 'तलाक-तलाक-तलाक' कह दिया है. कल जिस गठबंधन में सबकुछ ठीक चलता दिख रहा था, उसे आज अचानक तोड़ देने से सियासी पंडित भी हतप्रभ है. उमर अब्‍दुल्‍ला नपेतुले शब्‍दों में ही प्रतिक्रिया दे पाए हैं.

पहले एक नजर, उस आधार पर जिसे राम माधव जम्‍मू-कश्‍मीर सरकार से समर्थन वापसी की वजह बता रहे हैं :

1. सरकार बनने के चार महीने के भीतर पीडीपी और बीजेपी ने मिलकर एक कॉमन मिनिमम प्रोग्राम बनाया और गठबंधन सरकार को मूर्त रूप दिया था. ताकि राज्‍य के तीनों क्षेत्र कश्‍मीर, लद्दाख और जम्‍मू क्षेत्र का विकास हो. लेकिन जम्‍मू और लद्दाख के साथ भेदभाव हुआ.

2. तमाम कोशिशों के बावजूद जम्‍मू-कश्‍मीर में आतंकवाद तेजी से बढ़ रहा है और इस्‍लामी कट्टरपंथ भी. जिसे रोकना इस सरकार के बूते की बात नहीं रही है.

3. लोगों के मौलिक अधिकार खतरे में है. जिसमें अभिव्‍यक्ति की आजादी और जीवन जीने की आजादी खतरे में है. हाल ही मूर्धन्‍य पत्रकार शुजात बुखारी की श्रीनगर में दिन दहाड़े हत्‍या इसका प्रमाण हैं. जिन्‍हें राज्‍य की राजधानी के सबसे सुरक्षित इलाके में मौत के घाट उतार दिया गया.

4. केंद्र सरकार ने 80 हजार करोड़ का पैकेज राज्‍य को दिया. इसमें एक बड़ी राशि पहुंचा भी दी गई. गृहमंत्री बार-बार राज्‍य की स्थिति को लेकर मुख्‍यमंत्री और बाकी अमले से मिलते रहे. एक मध्‍यस्‍थ को भी केंद्र सरकार ने तैनात किया. लेकिन इससे राज्‍य की स्थिति सुधरने के बजाए बिगड़ी ही है.

5. सीमा पार से होने वाले हमलों का जवाब देने के लिए भी केंद्र सरकार ने काम किया है. लेकिन राज्‍य में जैसा काम होना चाहिए, वैसा नहीं हुआ. क्‍योंकि पूरी सरकार तो भाजपा की है नहीं. बीजेपी के मंत्रियों को विकास के काम आगे बढ़ाने में कठिनाई हो रही थी. इन तमाम बिगड़े हालातों से निपटने के लिए बीजेपी चाहती है कि राज्‍य की कमान गवर्नर के हाथों में आए. ताकि कश्‍मीर में हालात सुधरे.

...तो पहली बार कश्‍मीर में बीजेपी सरकार

बीजेपी के इस फैसले ने साफ कर‍ दिया है कि वह केंद्र में अपने शासन के आखिरी वर्ष में जम्‍मू-कश्‍मीर पर सीधा नियंत्रण चाहती है. बिना किसी लागलपेट के कहें तो मोदी ही अब कश्‍मीर के कर्ता-धर्ता होंगे. अपने चार वर्ष के कार्यकाल में अलगाववादियों और पाकिस्‍तान को हाशिए पर रखकर केंद्र सरकार अपने एजेंडे को लेकर साफ इशारा करती रही है. लेकिन अलगववादियों के प्रति हमदर्दी रखने वाली पार्टी के साथ गठबंधन उसके सारे किए कराए पर पानी फेरता रहा है. आर्मी को फ्री-हैंड देने वाली मोदी सरकार अब राज्‍य की पुलिस पर भी अपना नियंत्रण चाहती है, जिसकी कठुआ गैंगरेप और मेजर लितुल गोगोई के मामले में कार्रवाई विवादों के घेरे में रही है.

रमजान में बीजेपी की नरमी एक रणनीति थी :

कश्‍मीर में पहले आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन शुरू करने को हरी झंडी और फिर अगले दिन बीजेपी-पीडीपी का सरकार का गिर जाना बताता है कि घाटी में जंग अपने नए लेवल पर पहुंचने वाली है. रमजान में आर्मी ऑपरेशन रोकने से हुए सियासी नुकसान की भरपाई की जाएगी. देश में जो हिंदू वोटबैंक कश्‍मीर को लेकर अपनी सीधी राय नहीं बना पा रहा था, उसे गवर्नर राज में साफ-साफ शब्‍दों में प्रकट जाएगा.

रमजान के सीजफायर से बीजेपी-पीडीपी गठबंधन की सरकार ने ईद की मिठास का आनंद तो लिया. लेकिन ये पहले ही दिखाई दे रहा था कि दोनों की सियासी मजबूरियां जल्‍द ही कुछ कुर्बानी मांगेंगी. और बलि का बकरा बन गई जम्‍मू-कश्‍मीर की सरकार. ईद और बकरीद, दोनों ही त्‍योहार है. यानी बीजेपी और पीडीपी दोनों ही आने वाले समय में इसका आनंद लेंगी.

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लेखक

धीरेंद्र राय धीरेंद्र राय @dhirendra.rai01

लेखक ichowk.in के संपादक हैं.

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