येदियुरप्पा ने इस्तीफ़ा देने से पहले 1996 में वाजपेयी का भाषण दोहरा दिया
बीएस येदियुरप्पा ने कर्नाटक फ्लोर टेस्ट से पहले इस्तीफा दे दिया है. लेकिन इस नाटकीय घटनाक्रम से पहले उन्होंने वही किया जो 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था. दोनों के बीच की समानता देखना दिलचस्प होगा...
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राजनीति में हमेशा ही संख्या महत्वपूर्ण होती है और शायद ये सही संख्या का आभाव ही है जिसने कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा को मुश्किल में डाल दिया है. बीएस येदियुरप्पा ने फ्लोर टेस्ट पर जाने से पहले मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है. कर्नाटक में चले सियासी घमासान के बीच अटल बिहारी वाजपेयी सरकार की यादें ताजा हो गयीं. 1996 में जब अटल बिहारी वाजपेयी सरकार बहुमत हासिल करने में नाकाम रही तो वाजपेयी ने सदन में भाविक करने वाला भाषण दिया था. इस भाषण के बाद वाजपेयी ने राष्ट्रपति को अपना इस्तीफ़ा दौंप दिया था. दिलचस्प ये है कि अटल जी के इस्तीफे के बाद देवगौड़ा प्रधानमंत्री बने थे, वह भी कांग्रेस के समर्थन से. और अब उनके पुत्र कुमारस्वामी को कांग्रेस कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनवाने जा रही है.
13 दिन तक रहने वाली ये सरकार महज 1 वोट के चलते गिर गयी थी. सरकार गिरने के बाद वाजपेयी ने नेता प्रतिपक्ष की भूमिका निभाई थी. माना जा रहा है कि यदि कर्नाटक में कुछ "इधर-उधर" हुआ तो येदियुरप्पा भी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की तर्ज पर इस्तीफ़ा दे सकते हैं और उन्हीं की तरह भावुक कर देने वाला भाषण देकर बड़ी बेइज्जती से बच सकते हैं.
माना जा रहा है कि येदियुरप्पा भी वाजपेयी से प्रेरणा लेकर बड़ी बेइज्जती से बच सकते हैं
बात अगर 1996 में दिए गए उस भाषण की हो तो वाजपेजी ने इस बात को बहुत ही प्रमुखता से कहा था कि इस सदन में एक एक व्यक्ति की पार्टी है, वो हमारे खिलाफ जमघट करके हमें हमते का प्रयास कर रहे हैं. उन्हें प्रयास करने का पूरा अधिकार है. मगर हैं वो एक एक व्यक्ति की पार्टी. एकला चलो रे और चलो एकला अपने चुनाव क्षेत्र से और दिल्ली में आकर जो जाओ इकट्ठे रे. यदि ये लोग देश के भले के लिए साथ आ रहे हैं तो इनका स्वागत है. हम देश सेवा कर रहे हैं वो भी निस्स्वार्थ भाव से और पिछले 40 सालों से ऐसे ही करते आ रहे हैं. तब वाजपेयी ने ये भी माना था कि ये कोई आकस्मिक जनादेश नहीं है ये कोई चमत्कार नहीं है हमनें मेहनत की हम लोगों में गए और संघर्ष किया. पार्टी 365 दिन चलने वाली पार्टी है. ये कोई चुनाव में कुकुरमुत्ते की तरह से खड़ी होने वाली पार्टी नहीं है.
कर्नाटक के इस सियासी संग्राम ने वाजपेयी की यादों को ताजा कर दिया है
अपने उस भाषण में नाराजगी दिखाते हुए वाजपेयी ने कहा था कि हमें अकारण ही कटघरे में खड़ा किया जा रहा है क्योंकि हम थोड़ी ज्यादा सीटें नहीं ला सके. हम मानते हैं कि ये हमारी कमजोरी है. हमें बहुमत मिलना चाहिए. राष्ट्रपति ने हमें अवसर दिया हमनें उसका लाभ उठाने की कोशिश की अब सफलता नहीं मिली वो अलग बात है. हम सदन में सबसे बड़े विरोधी दल के रूप में बैठेंगे और आपको हमारा सहयोग लेकर सदन चलाना पड़ेगा. मगर सरकार आप कैसी बनाएंगे, वो सरकार किस कार्यक्रम पर बनेगी वो सरकार कैसी चलेगी मैं नहीं जानता.
तब वाजपेयी ने ये भी माना था कि अगर आप (कांग्रेस)हमें (उनकी पार्टी को छोड़कर) सत्ता बनाना चाहते हैं और ये सोचते हैं कि वो टिकाऊ होगी तो मुझे उसके लक्षण कम ही दिखते हैं. पहले तो उसका जन्म लेना कठिन है फिर उसका जीवित रहना कठिन है और ये सरकार अंतर्विरोध में घिरी हुई है ये देश का कितना लाभ कर सकेगी ये एक प्रश्न वाचक चिन्ह है. ऐसे में तब आपको हर बात के लिए कांग्रेस सके पास दौड़ना पड़ेगा और आप उनपर निर्भर हो जाएंगे. हम फ्लोर पर कोर्डिनेशन करते हैं उसके बिना सदन नहीं चलता आप सारा देश चलाना चाहते हैं आप सारा देश चलाना चाहते हैं अच्छी बात है हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं.
बहरहाल अब देखना दिलचस्प होगा कि कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा तो बहुमत सिद्ध करने से पहले मैदान छोड़कर चले गए, लेकिन कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन क्या रूप लेता है. थोड़ा सा इन्तेजार और इन सभी सवालों के जवाब हमें जल्द ही पता चल जाएंगे. फिलहाल तो कांग्रेस और जेडीएस के लिए जश्न का समय है.
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