BSP विधायक का टिकट के लिए पैसे का आरोप पूरा सही नहीं है
BSP में पैसे लेकर टिकट दिये जाने का राजस्थान के विधायक का आरोप अब आधा ही सच लगता है. जमाने के साथ कदम मिला कर चलते हुए ट्विटर पर आने के बाद मायावती की पार्टी अब कैशलेस लेनदेन को तरजीह देने लगी है.
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मायावती पर अक्सर बीएसपी छोड़ कर जाने वाले नेता पैसे लेकर टिकट देने के आरोप लगाते रहे हैं. मायावती और उनके करीबी नेता ऐसे आरोपों को सिरे से खारिज कर देते रहे हैं. चू्ंकि टिकट के बदले भारी रकम ऐंठने के आरोप बीएसपी नेता तभी लगाते हैं जब वो पार्टी छोड़ चुके होते हैं, ऐसे में उनकी बातें यूं ही शक के दायरे में आ जाती हैं और आरोप भी हल्के लगने लगते हैं.
बीएसपी नेतृत्व पर टिकट बेचने का ताजा इल्जाम ऐसे वक्त लगा है जब उत्तर प्रदेश में पार्टी उपचुनावों की तैयारी में जुटी हुई है. वैसे लखनऊ में बीएसपी की राजनीति में दिलचस्पी रखने वालों के बीच चल रही चर्चाओं को मानें तो राजस्थान के विधायक का आरोप आधा सच ही लगता है.
टिकट बेचने के आरोप में नया क्या है?
BSP पर चुनावों के दौरान टिकट की बिक्री के आरोपों में एक अपडेट आ गया है. खास बात है कि ये आरोप सरेराह चलते फिरते कहीं नहीं बल्कि बीएसपी के एक विधायक ने विधानसभा के अंदर ऐसी बात कही है. चुनावों में पैसे लेकर टिकट देने का आरोप कोई नया नहीं है, पहली बार ये हुआ है कि राजस्थान में BSP के मौजूदा विधायक ने ये आरोप लगाया है. जाहिर है विधानसभा के अंदर इस तरह के आरोप लगाने की गंभीरता की बात बीएसपी विधायक को भी समझ में आ ही रही होगी.
राजस्थान विधानसभा में बसपा को कठघरे में खड़ा कर पार्टी के मौजूदा विधायक ने हड़कंप मचा दिया है. बीएसपी विधायक राजेंद्र गुढ़ा ने सिर्फ पैसे लेकर टिकट देने का आरोप लगाया है, बल्कि दावा किया है कि अगर कोई ज्यादा पैसे दे दे तो पहले वाले का टिकट कट कर दूसरे को मिल जाता है - और किसी और से डील उससे भी ज्यादा रकम पर हो जाये तो दूसरा वाला भी गया काम से. उदयपुर वाटी से विधायक राजेंद्र गुढ़ा का बयान न्यूज एजेंसी एएनआई ने जारी किया है.
#WATCH BSP MLA, Rajendra Gudha in Rajasthan Assembly, "Humari party Bahujan Samaj Party mein paise lekar ticket diya jata hai..koi aur zada paise de deta hai toh pehle ka ticket kat kar dusre ko mil jata hai, teesra koi zada paise de deta hai toh un dono ka ticket kat jata hai." pic.twitter.com/ZMNbF5c9R6
— ANI (@ANI) August 1, 2019
बीएसपी नेतृत्व पर टिकट के बदले पैसे लेने के आरोप बरसों पुराने हैं, लेकिन हाल के तीन-चार साल में ऐसे ज्यादा मामले सुनने को मिले हैं. करीब डेढ़ दर्जन नेता बीएसपी नेतृत्व पर ऐसे इल्जाम लगाकर पार्टी छोड़ चुके हैं. यूपी के एक नेता मुकुल उपाध्याय का आरोप रहा कि अलीगढ़ से टिकट देने के लिए उनसे 5 करोड़ रुपये मांगे गये थे. हालांकि, मुकुल उपाध्याय ने ये आरोप पार्टी से निकाले जाने के बाद लगाया था. 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में भी कई नेताओं ने टिकट के बदले 2 से 10 करोड़ रुपये तक मांगे जाने के आरोप लगाये. ऐसे नेताओं का कहना रहा कि इस मामले में पार्टी तत्कालीन विधायकों को भी नहीं बख्शा जा रहा है.
चुनावों में मायावती आरोपों से बच नहीं पातीं
चुनावों के दौरान पैसे लेकर टिकट दिये जाने के आरोप अक्सर राजनीतिक दलों के नेताओं पर लगते रहे हैं - और इस मामले में बीएसपी अकेली नहीं है.
1. 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी नेता आरके सिंह ने अपनी ही पार्टी की प्रदेश इकाई पर पैसे लेकर आपराधिक छवि के नेताओं को टिकट देने का आरोप लगाकर हड़कंप मचा दिया था. आरके सिंह ने तो इस बात की भी घोषणा कर डाली थी कि वो ऐसे दागियों के लिए प्रचार भी नहीं करेंगे.
राजनीति में आने से पहले नौकरशाह रहे आरके सिंह मोदी कैबिनेट 2.0 में स्वतंत्र प्रभार वाले मंत्री हैं.
2. 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में भी टिकट बंटवारे को लेकर बीजेपी कार्यकर्ताओं ने जगह जगह खूब बवाल किया. बीजेपी कार्यकर्ताओं के विरोध का आलम तो ये रहा कि वे बड़े नेताओं की गाड़ी के आगे लेट जा रहे थे और कई बार तो पार्टी दफ्तर में घुसने भी नहीं दे रहे थे. कुछ मामलों में बीजेपी कार्यकर्ताओं ने पैसे लेकर टिकट देने का आरोप भी लगाया था.
3. 2019 के लोक सभा चुनाव में दिल्ली में आप उम्मीदवार बलबीर सिंह जाखड़ के बेटे ने टिकट के बदले भारी रकम ऐंठने का आरोप लगाया था. आप उम्मीदवार के बेटे का आरोप था कि लोक सभा के टिकट के लिए उसके पिता ने आप नेता अरविंद केजरीवाल को छह करोड़ रुपये दिये गये थे. केजरीवाल के विरोधियों ने आरोपों को हवा देने की भी भरपूर कोशिश की लेकिन रोज बदलते मुद्दों के बीच मामला कहीं खो गया.
अब कैश लेता कौन है?
चाहे टिकट के बदले पैसे लेने के मामले हों या चुनावी चंदा, एक धारणा रही है कि इसमें काले धन का खुला खेल चलता रहा है. इसे रोकने के लिए मोदी सरकार एलेक्टोरल बॉन्ड का कंसेप्ट लेकर आयी - और तब से राजनीतिक दल ऐसे ही बॉन्ड के जरिये डोनेशन लेने लगे हैं.
सवाल है कि क्या कैशलेस हो चुके लेन-देन के दौर में अब भी कोई ये सब पैसे लेकर करता होगा?
यही वो सवाल है जिसका जवाब बीएसपी एमएलए राजेंद्र गुढ़ा के आरोपों में नहीं मिलता. यही वजह है कि बीएसपी के मौजूदा विधायक होने के बावजूद राजेंद्र गुढ़ा के इल्जाम पूरी तरह मजबूत नहीं लगते.
ऐन उसी वक्त, दूसरी चर्चा ये है कि बीएसपी में भी कैशलेस व्यवस्था लागू हो चुकी है. ऐसा होने की वजह मायावती के भाई आनंद कुमार के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों के कसते नकेल के चलते हुआ बताया जाता है. हाल ही में आनंद कुमार की 400 करोड़ की संपत्ति जब्त कर ली गयी थी.
तो क्या राजेंद्र गुढ़ा के आरोप बिलकुल बिना सिर-पैर वाले हैं?
ऐसा भी नहीं है. उपचुनाव लड़ने का मन बना चुके संभावित उम्मीदवारों के सामने नये विकल्प पेश किये जाने की बात कही जा रही है. चर्चा है कि अब टिकट के बदले एलेक्टोरल बॉन्ड की डिमांड हो रही है. अब अगर कोई पार्टी एलेक्टोरल बॉन्ड ले रही है तो इसमें क्या दिक्कत है. एलेक्टोरल बॉन्ड लेना तो साफ सुथरा काम हुआ.
वैसे एलेक्टोरल बॉन्ड के साथ समस्या ये है कि ये पार्टी के अकाउंट में सीधे जमा होगा. नुकसान ये होगा कि कैश की तरह इसे मनमाने तरीके से खर्च नहीं किया जा सकेगा. पार्टी फंड से होने वाले खर्च के लिए पक्की रसीद और ऑडिट भी होगी.
फिर तो इसे साफ सुथरी राजनीति की दिशा में सराहनीय कदम ही माना जाना चाहिये - लेकिन सवाल ये है कि राजेंद्र गुढ़ा ने ऐसा बयान विधानसभा में क्यों दिया?
राजेंद्र गुढ़ा का आगे के लिए क्या इरादा है
अक्सर बीएसपी नेता पार्टी छोड़ने के बाद मायावती पर टिकट बेचने के आरोप लगाते हैं लेकिन राजेंद्र गुढ़ा ने ये काम पहले ही कर दिया है. अब तो ये कहना भी मुश्किल है कि राजेंद्र गुढ़ा बीएसपी में कब तक रह पाएंगे. बीएसपी से तो नेताओं को ऐसे निकाला जाता रहा है जैसे दूध से मक्खी. अभी अभी कर्नाटक में भी ऐसा ही मामला देखने को मिला है. मायावती ने कर्नाटक के एकमात्र बीएसपी एमएलए एन. महेश को तो ट्विटर पर ही बाहर का रास्ता दिखा दिया. एन. महेश सफाई देते रहे कि उन्होंने जो कुछ भी किया है वो आलाकमान के निर्देश से ही किया है. एन. महेश, दरअसल, कर्नाटक विधानसभा से विश्वासमत के वक्त गैरहाजिर रहे. कर्नाटक में मायावती ने पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की पार्टी जेडीएस के साथ चुनावी गठबंधन किया था और पार्टी के एक ही उम्मीदवार को जीत नसीब हो पायी थी.
वैसे राजेंद्र गुढ़ा ने ये बयान यूं ही तो दिया नहीं होगा. राजेंद्र गुढ़ा के मुताबिक बीएसपी में अगर पैसे लेकर ही टिकट देने की परंपरा रही है तो जाहिर है खुद उन्हें भी इस प्रक्रिया से होकर गुजरना ही पड़ा होगा. डील कितने में और कैसे पक्की हो पायी ये भी वही जानते होंगे?
इस डील से जुड़े लोगों को ही ये भी मालूम होगा कि राजेंद्र गुहा टिकट लेने वालों की पहली कैटेगरी में रहे या दूसरी या फिर तीसरी कैटेगरी में? ये बात भी तो राजेंद्र गुढ़ा ने स्वयं कही है कि कतार में खड़े तीसरे नेता को टिकट के लिए सबसे ज्यादा रकम देनी पड़ती है.
राजेंद्र गुढ़ा के आगे का इरादा क्या है? कहीं कोई नयी डील हो पायी है या नहीं? अगर हुई भी है तो किसके साथ? उस पार्टी के साथ जो सत्ता पर काबिज है या जिसे बेदखल होना पड़ा है?
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