सब माया है : मायावती के भतीजे ही उनके वारिस हैं, इसमें इतना क्या घबराना ?
मायावती अपनी विरासत अपने भतीजे आकाश आनंद के हवाले कर रही हैं. ऐसे में हमें बिल्कुल भी विचलित नहीं होना चाहिए. ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि देश की राजनीति में हम ऐसा कुछ पहली बार देख रहे हैं.
-
Total Shares
मायावती ने अभी हाल ही में अपने भाई आनंद कुमार और उनके बेटे आकाश आनंद के कंधों पर बहुजन समाज पार्टी का भार रख दिया है. मायावती के ऐसा करने से वो लोग परेशान हुए हैं जो बसपा में हैं भी नहीं. थोड़ा पीछे चलते हैं. बात उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की है. मायावती उत्तर प्रदेश के यादव वंश में वंशवाद की राजनीति के खिलाफ रैलियां कर रही थी और दिल्ली के गांधी वंश ने 'यूपी के लड़के से गठबंधन' किया. इस गठबंधन का नतीजा ये निकला कि भाजपा ने शानदार तरीके से चुनाव जीता. हाल ही में खत्म हुए लोकसभा चुनाव में मायावती और अखिलेश यादव ने बुआ-भतीजा गठबंधन बनाया और भाजपा ने फिर से शानदार तरीके से चुनाव में जीत दर्ज की. अब उन्होंने अपने असली भतीजे को उत्तराधिकार देने की तैयारी क्या की, लोग बिदक गए.
बसपा में कोई भी आश्चर्यचकित नहीं है. मायावती फैसले लेने के लिए जानी जाती है और उन्होंने फिर एक बार फैसला लिया है. समर्थक/ पार्टी के लोग उन्हें सर्वोच्च नेता कहते हैं. गठबंधन बनाने या उनसे नाता तोड़ने से पहले मायावती उनसे परामर्श नहीं करतीं. वह एक निर्विरोध नेता हैं. देश का मीडिया भी उन्हें बसपा का अध्यक्ष नहीं कहता है, उन्हें बसपा सुप्रीमो कहा जाता है और ऐसा कहने के पीछे तमाम कारण हैं. मायावती ही पार्टी हैं. मायावती को कांशीराम से पार्टी विरासत में मिली थी मगर ये उन्हीं की मेहनत थी जिसके जरिये उन्होंने सीटें अर्जित की और वो कर दिखाया जो शायद ही किसी ने सोचा हो. उन्होंने अपने लिए कोई व्यक्तिगत संपत्ति नहीं बनाई है, मगर आज जो भी धन पार्टी के पास है वो उन्हीं के द्वारा बनाया गया है.
अपनी विरासत को आगे ले जाने के लिए मायावती ने आकाश को तैयार किया है और उसमें कोई बुराई नहीं है
बसपा पर यदि आज गौर किया जाए तो मिलता है कि पार्टी का वोट बैंक सिकुड़ गया है. बैंक अकाउंट लगातार फल फूल रहा है. चुनाव आयोग के रिकॉर्ड के अनुसार, बहुजन समाज पार्टी सबसे अमीर पार्टी है. देश के 8 राज्यों में उसके अलग अलग खातों में तकरीबन 669 करोड़ रुपए हैं. इसके बाद समाजवादी पार्टी है जिसके पास 471 करोड़ हैं.
समाजवादी पार्टी को कौन नियंत्रित करता है? यादव परिवार, है न?
आखिर मायावती ऐसा क्यों नहीं चाहेंगी कि पार्टी की जो दौलत उन्होंने बनाई है और जो पार्टी के खातों में है, उसे कोई वारिस मिले जो उन्हीं के परिवार का हो.
लोग उनपर अंगुली उठाते हैं और उनपर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हैं. कई बार उनपर चुनाव टिकटों की तथाकथित बिक्री के गंभीर आरोप लगे हैं और आलोचना हुई है. वह विभिन्न आय से अधिक संपत्ति की पूछताछ का सामना करती हैं. यदि वह भविष्य में लालू की तरह जेल जाती हैं तो वही शख्स उन्हें अपराधी कहेंगे. पर बात जब सत्ता के फल की आती है सब यही चाहते हैं कि वो उसे पार्टी के दूसरे लोगों के साथ बांटा जाए!
शायद मायावती वो जानती हैं जो हमें नहीं पता. शायद मायावती को पता चल गया है कि उनकी राजनीतिक प्रासंगिकता खो गई है. शायद उन्हें इस बात का आभास है कि उनके पैरों तले जमीन खिसक चुकी है. शायद उन्हें ये भी पता है कि चूंकि सत्ता और पावर की गोंद बसपा पर से उतर चुकी है इसलिए अब ज्यादा दिनों तक उनकी पार्टी चिपकी न रह सके.
मायावती उन चुनिंदा नेताओं में से हैं जिन्होंने उत्तर प्रदेश की राजनीति में राजा की भूमिका निभाई है
मायावती पैसे बचाती हैं. चुनावों के दौरान पैसा जुटाने के मामले में बसपा बीजेपी के करीब नहीं है, लेकिन वह चुनावों पर पैसा बहाती नहीं है. बात 2017 के विधानसभा चुनावों की हो तो कहा जाता है कि भाजपा ने 1,027 करोड़ रुपए जुटाए थे. बाकी 758 करोड़ रुपए खर्च कर दिए. ये खर्च किसी भी राजनीतिक दल द्वारा किये गए खर्च में सबसे अधिक था. जो बचा उसे 2019 के लोकसभा चुनावों में बहा दिया होगा.
बसपा चालाक है. बहुत सारे निंदक, विशेषकर जो बीएसपी छोड़ते हैं, अक्सर मायावती पर सबसे अधिक बोली लगाने वालों को टिकट बेचने का आरोप लगाते हैं. बड़ा सवाल ये है कि आखिर क्यों उन्हें फ्री में टिकट देना चाहिए. बसपा का शुमार उन चुनिंदा राजनीतिक दलों में है जिसके समर्पित काडर वोट हैं. अगर किसी ने पार्टी के लिए काम नहीं किया है तो वह सिर्फ इसलिए टिकट हासिल करना चाहता है क्योंकि उसके पास चुनाव लड़ने के लिए पर्याप्त पैसा है. ऐसे लोगों से मिला पैसा बसपा के उन कैडर उम्मीदवारों पर खर्च किया जा सकता है जो शुद्ध रूप से मेरिट पर चुनाव लड़ते हैं.
बचा हुआ पैसा पार्टी में ही रहता है. यही पैसा वर्षों से इकट्ठा होता आया है. अब कुछ लोग, जिन्होंने इस धन को जुटाने में कोई भूमिका नहीं निभाई, आपत्ति उठा रहे हैं कि मायावती अपने सगे-संबंधियों को विरासत में पार्टी का पैसा सौंप रही हैं. ये जान लीजिए कि कोई भी शख्स अपनी विरासत को यूं ही गैरों को नहीं सौंप देता, जिसकी मायावती से अपेक्षा की जा रही है.
मायावती अपना धन अपने भतीजे को दे रही हैं जिसे उन्होंने भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार किया हुआ है.
नेता और उनका परिवार जिनके मजबूत कन्धों पर न सिर्फ विरासत बल्कि पार्टी की जिम्मेदारी होती है
शिवसेना के सुप्रीमो बाल ठाकरे ने अपनी विरासत अपने भतीजे को नहीं दी जिसे एक समय उन्होंने नेता बनने के लिए तैयार किया था. जबकि भतीजा नेता बनने की प्रबल इच्छा रखता था. पर बेटे के रहते भतीजावाद कौन करता है. शरद पवार ने भी अपना उतना ही हिस्सा अपने भतीजे को दिया, जब उनकी विरासत का एक बड़ा हिस्सा उनकी बेटी ने सुप्रिया सुले ने अपने कब्जे में ले लिया. प्रकाश सिंह बादल का भतीजा खुश नहीं था, क्योंकि शिरोमणि अकाली दल की सारी पावर सुखबीर के पास थी. बादल का नाराज भतीजा फ़िलहाल कांग्रेस में है. इसी तरह मुलायम सिंह यादव के भतीजों को भी अपने आपको उस हिस्से से संतुष्ट करना पड़ा जो अखिलेश द्वारा लिए जाने के बाद बच गया था.
भतीजे तभी खा पाते हैं जब प्राकृतिक विरासत के तौर पर अपने खून ने अपना हिस्सा ले लिया होता है - देवेगौड़ा, चंद्रबाबू, करुणानिधि, लालू. सूची अंतहीन है.
ममता बनर्जी की अपनी संतान नहीं है, इसलिए उनके भतीजे को हिस्से के लिए ज्यादा जद्दोजहद नहीं करनी होगी. प्राकृतिक विरासत उन्हीं की होगी - पार्टी इस बात को भली प्रकार जानती है. अतः क्यों लोग मायावती द्वारा लिए गए फैसले को लेकर आश्चर्यचकित हैं ? मायावती ने जो किया वही होना था.
क्या ओडिशा में अरुण पटनायक को नवीन बाबू का उत्तराधिकारी नियुक्त किया जाएगा? या फिर अभी उन्हें और इंतजार करना होगा? जाइए, अभी इसपर चर्चा कीजिए.
ये भी पढ़ें -
मायावती ने 'असली' भतीजे को तो अब मैदान में उतारा है
Mayawati का 'परिवारवाद' मजबूरी की विरासत है
मुजफ्फरपुर भी आपको बहुत मिस कर रहा है मोदी जी...
आपकी राय