President तो क्या CAA विरोधियों को ब्रह्मा भी न समझा पाएं!
सब समझा चुके हैं बस राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद (President Ramnath Kovind ) की ही कमी थी. Budget 2020 सत्र की शुरुआत करते हुए उन्होंने नागरिकता संशोधन कानून के विरोधियों (CAA protesters) को समझाने का प्रयास किया है. लेकिन क्या उनकी बात का असर होगा?
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तो साहब बजट सेशन (Budget 2020) के दौरान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (President Ramnath Kovind) ने अपने अभिभाषण में सीएए (CAA protest) पर बात कर ही ली. वैसे तो उन्होंने सरकार का खर्रा ही पढ़ा, लेकिन लहजे से उनकी और सरकार की सोच एकदम क्लियर है. राष्ट्रपति ने माइनॉरिटीज को लेकर पाकिस्तान (Pakistan) की निंदा की है. उन्होंने ये भी कहा है कि भारत (India) में रहने वाले किसी भी व्यक्ति जिसमें इस देश के मुसलमान (Muslims) भी शामिल हैं, की नागरिकता (Citizenship) को कोई खतरा नहीं है. अच्छा क्योंकि नागरिकता संशोधन कानून (Citizenship Amendment Act) को लेकर हिंसा (Violence) भी जमकर हुई. इस बात ने भी देश के राष्ट्रपति को टेंशन दी. कहा कि विरोध के नाम पर हिंसा को स्वीकार नहीं किया जा सकता है. अब क्योंकि हिंसा का जिक्र हुआ है तो बता दें कि पिछले एक डेढ़ महीने से यही बात भाजपा (BJP), पीएम मोदी (PM Modi), अमित शाह (Amit Shah) और योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) भी तो दोहरा ही रहे हैं मगर किसी को कहां किसी की सुननी है. सबके पास अपना एजेंडा है, सबका अपना झंडा है.
अभिभाषण के दौरान राष्ट्रपति ने भी सीएए विरोध को लेकर प्रदर्शनकारियों से अपने मन की बात कह दी है
मामला कई मायनों में दिलचस्प है. ये कितना मजेदार है इसे उस ग्राउंड रिपोर्ट से भी समझ सकते हैं जो आजतक चैनल के राहुल कंवल और अंजना ओम कश्यप ने दिल्ली के चर्चित शाहीनबाग़ पर आकर की है. रिपोर्ट के बाद ये भी क्लियर है कि पीएम मोदी और अमित शाह तो छोड़िये अगर ब्रह्मा भी धरती पर आएं और शाहीनबाग़ पहुंच जाएं तो वो भी सीएए के विरोध में प्रदर्शन कर रही महिलाओं को ये बताने में नाकाम होंगे कि घर लौट जाओ देवियों इससे तुम्हारी नागरिकता को कोई खतरा नहीं है.
इस ग्राउंड रिपोर्ट का सबसे अहम पहलू वो था जब ग्राउंड पर आकर रिपोर्टर ने पूछा कि क्या उन्होंने भाजपा को वोट किया है? रिपोर्टर का ये पूछना भर था शेखी दिखाने के लिए जनता ने एक सुर में हां कहा. लेकिन क्या ऐसा है ? ऐसा ही है ? सीधा जवाब है नहीं. बात गुजरे 6 सालों की हो तो भाजपा के सत्ता में आने और नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने फिर दोबारा पीएम बनने के बीच इस देश के मुसलमान ने मान लिया कि ये आदमी उनके लिए कुछ अच्छा करेगा ही नहीं.
अच्छे का जिक्र हुआ है तो तीन तलाक पर भी बात कर ही लें. भाजपा ने तलाक जैसी कुप्रथा की मार झेल रही महिलाओं को हक दिलाने के लिए कानून बनाया. लोगों को इसके लिए भी गुस्सा आया. वो कुलबुलाए. लोग सामने इस लिए नहीं आए क्योंकि उन्हें महसूस हुआ कि इससे उनका एजेंडा बाहर आ जाएगा. वो बेनकाब हो जाएंगे.
इस बात में रत्ती बराबर भी शक नहीं है कि भाजपा और मुसलमानों में कभी पटी ही नहीं. दूरियां इतनी ज्यादा हैं कि बस और कार तो छोड़िये कोई भी ट्रेन कोई भी जहाज उन दूरियों को पूरा नहीं कर सकता. खुद सोचिये गर जो भाजपा और मुसलमानों की पटी होती तो उन्हें सरकार पर भरोसा होता. जगह-जगह धरने न हो रहे होते. सरकार के खिलाफ बिगुल न फूंका जाता. लोग सरकार की बात को समझते और अपने घरों में होते.
चीजों को समझना मुश्किल नहीं है. लेकिन स्थिति तब अलग होती है है जब सीधी ही चीज को जलेबी समझ लिया जाए और उसे इमारती वाला ट्रीटमेंट देते हुए और उलझा दिया जाए. नागरिकता संशोधन कानून का भी मामला कुछ ऐसा ही है. ये सीधा था लेकिन इसे कुछ समझा गया. कुछ बनाया गया. कुल मिलाकर ये क्या था. क्या से क्या हो गया देखते देखते.
खैर हमेशा ही तरह सरकार राष्ट्रपति के श्रीमुख से अपना पक्ष रख चुकी है बाकी नागरिकता कानून को लेकर समझाने के मामले में ब्रह्मा तो पहले ही भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने हथियार डाल चुके हैं.
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